बीस साल बाद पाकिस्तान में इतिहास फिर से करवट बदल रहा है. पाकिस्तानी फौज के मौजूदा मुखिया जनरल कमर जावेद बाजवा भी लगता है अपने पुराने उस्ताद जनरल परवेज मुशर्रफ के रास्ते चलने का मन बना चुके हैं.
12 अक्टूबर 1999 को तत्कालीन पाक आर्मी चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलटा था और तत्काल प्रभाव से खुद को पाकिस्तान का चीफ एक्जीक्यूटिव घोषित कर दिया था. तख्ता पलट के 20 साल बाद आज हालात ये है कि मुशर्रफ को खुद अपने देश से भागकर विदेश में रहना पड़ रहा है. हालांकि, मुशर्रफ को चुनावी समर में हरा कर नवाज शरीफ फिर से प्रधानमंत्री बन गये थे - लेकिन दोबारा फौज के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के सामने भी बिलकुल वैसे ही हालात पैदा हो गये हैं. ये तो पहले से ही सरेआम है कि इमरान खान को पाकिस्तानी फौज ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा रखा है और उनकी हैसियत किसी प्रवक्ता से ज्यादा कभी नहीं रही.
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के कश्मीर पर मुंह की खाने के बाद तो लगने ही लगा था कि इमरान खान के पाकिस्तान लौटने के बाद चीजें पहले जैसी तो नहीं ही रहने वाली हैं - और अब पाकिस्तानी कारोबारियों को बुलाकर मीटिंग करने के बाद जनरल बाजवा ने अपना इरादा भी एक तरीके से जाहिर कर ही दिया है.
जनरल बाजवा भी मुशर्रफ के रास्ते चल पड़े हैं
पाकिस्तान में 2018 के आम चुनाव से पहले जनरल राहिल शरीफ पाकिस्तानी फौज के चीफ हुआ करते थे. तब जो माहौल बन रहा था लगता कि नवाज शरीफ को हाशिये पर भेज कर वो भी परवेज मुशर्रफ की तरह फौजी शासक बन सकते हैं - लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पाकिस्तान के नये आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा बने और राहिल शरीफ रिटायर होकर अपने दूसरे मिशन में लग गये.
बाजवा थोड़े अलग हैं और हाल ही में तीन साल का एक्सटेंशन लेकर 2022 तक के लिए कुर्सी पक्की कर ली है. जब ये फैसला हुआ तो ऊपरी तौर पर तो ऐसा लगा जैसे बाजवा और इमरान दोनों ही एक दूसरे को एक्सटेंशन दे रहे हों.
संयुक्त राष्ट्र में...
बीस साल बाद पाकिस्तान में इतिहास फिर से करवट बदल रहा है. पाकिस्तानी फौज के मौजूदा मुखिया जनरल कमर जावेद बाजवा भी लगता है अपने पुराने उस्ताद जनरल परवेज मुशर्रफ के रास्ते चलने का मन बना चुके हैं.
12 अक्टूबर 1999 को तत्कालीन पाक आर्मी चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलटा था और तत्काल प्रभाव से खुद को पाकिस्तान का चीफ एक्जीक्यूटिव घोषित कर दिया था. तख्ता पलट के 20 साल बाद आज हालात ये है कि मुशर्रफ को खुद अपने देश से भागकर विदेश में रहना पड़ रहा है. हालांकि, मुशर्रफ को चुनावी समर में हरा कर नवाज शरीफ फिर से प्रधानमंत्री बन गये थे - लेकिन दोबारा फौज के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा.
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के सामने भी बिलकुल वैसे ही हालात पैदा हो गये हैं. ये तो पहले से ही सरेआम है कि इमरान खान को पाकिस्तानी फौज ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा रखा है और उनकी हैसियत किसी प्रवक्ता से ज्यादा कभी नहीं रही.
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के कश्मीर पर मुंह की खाने के बाद तो लगने ही लगा था कि इमरान खान के पाकिस्तान लौटने के बाद चीजें पहले जैसी तो नहीं ही रहने वाली हैं - और अब पाकिस्तानी कारोबारियों को बुलाकर मीटिंग करने के बाद जनरल बाजवा ने अपना इरादा भी एक तरीके से जाहिर कर ही दिया है.
जनरल बाजवा भी मुशर्रफ के रास्ते चल पड़े हैं
पाकिस्तान में 2018 के आम चुनाव से पहले जनरल राहिल शरीफ पाकिस्तानी फौज के चीफ हुआ करते थे. तब जो माहौल बन रहा था लगता कि नवाज शरीफ को हाशिये पर भेज कर वो भी परवेज मुशर्रफ की तरह फौजी शासक बन सकते हैं - लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पाकिस्तान के नये आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा बने और राहिल शरीफ रिटायर होकर अपने दूसरे मिशन में लग गये.
बाजवा थोड़े अलग हैं और हाल ही में तीन साल का एक्सटेंशन लेकर 2022 तक के लिए कुर्सी पक्की कर ली है. जब ये फैसला हुआ तो ऊपरी तौर पर तो ऐसा लगा जैसे बाजवा और इमरान दोनों ही एक दूसरे को एक्सटेंशन दे रहे हों.
संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर पाकिस्तान की फजीहत की पहली गाज गिरी मलीहा लोधी पर. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की प्रतिनिधि मलीहा लोधी को NGA खत्म होते ही हटा दिया गया. पाकिस्तान लौटने के बाद इमरान खान की ओर से पहला बड़ा फैसला यही लिया गया.
कहने की जरूरत नहीं इमरान खान ने ये फैसला भी फौजी हुकूमत के कहने पर ही लिया होगा. मालूम नहीं इमरान खान को इस बात का एहसास हुआ या नहीं - लेकिन मलीहा लोधी कि विदाई भी इमरान खान के लिए एक तरह से अलर्ट था. इमरान खान को भी अब तो एहसास हो ही चुका होगा कि उनका भी पत्ता साफ होने वाला है.
पाकिस्तान में फिलहाल आर्मी चीफ जनरल बाजवा की देश के बड़े कारोबारियों के साथ हुई मुलाकातें चर्चा में सबसे ऊपर हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अब तक ऐसी तीन मीटिंग हो चुकी हैं और ये बैठकें कराची और रावलपिंडी के सैन्य मुख्यालयों में हुईं हैं. बताते हैं कि सुरक्षा और गोपनीयता की जिम्मेदारी भी इस दौरान सेना ने ही संभाल रखी थी, जिसकी वजह से ज्यादा जानकारी बाहर नहीं आ सकी थी.
पाकिस्तानी मीडिया और सोशल मीडिया पर जनरल बाजवा और कारोबारियों की मुलाकात और उसके आगे के दुष्प्रभावों को देखते हुए सेना की तरफ से बयान जारी करना पड़ा है. उसके बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की ओर से भी एक बयान आया है.
सेना की तरफ से कहा गया है कि सेना मुख्यालय में हुई मीटिंग में देश के कारोबारियों को आंतरिक सुरक्षा को लेकर अपडेट करना रहा. सेना की ओर से कारोबारियों को बताया गया कि देश के आतंरिक सुरक्षा ढांचे को दुरूस्त कर दिया गया है और ऐसे में आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए माहौल सही हो गया है.
इस बीच इमरान खान ने चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के साथ एक मीटिंग में कहा कि पाकिस्तान की तरक्की अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई है और सरकार इसके लिए कारोबारियों को हर संभव सुविधायें मुहैया कराने की कोशिश कर रही है ताकि व्यापारिक गतिविधियों को फायदे में लाने की पूरी कोशिश हो.
इमरान खान का भी नवाज जैसा हाल होने वाला है!
सैन्य प्रमुख और कारोबारियों की बैठक को लेकर पाकिस्तान में तरह तरह की आशंकाएं जतायी जाने लगी है - और कुछ लोग तो इसे सॉफ्ट-तख्तापलट जैसा भी मानने लगे हैं. सिटी बैंक के पूर्व अधिकारी बैंकर और लेखक यूसुफ नजर ने तो यहा तक कह दिया, “ये नर्म-तख्तापलट ही एक तरीका है... इसके अलावा ये कुछ नहीं कहा जा सकता.”
यूसुफ नजर ने बाजवा के इस कदम को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में दखल माना है. यूसुफ नजर के हिसाब से सेना का काम मुल्क की हिफाजत से आगे नहीं होना चाहिए और ऐसे में जबकि पाकिस्तान पहले ही कई बार सैन्य शासन के दौर से गुजर चुका है, बाजवा का ताजा कदम तख्तापलट की तरफ उठाया गया एक 'सॉफ्ट-स्टेप' है बेहद गंभीर नतीजे हो सकते हैं.
फिर तो बहुत शक-शुबहे की जरूरत है नहीं - साफ है पाकिस्तान में इमरान खान को 'नवाज शरीफ' बनाने की कवायद शुरू हो चुकी है. वैसे भी इमरान खान को अपना राजनीतिक भविष्य तो अमेरिका में ही नजर आने लगा था. इमरान खान संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण से पहले ही कहने लगे थे कि कुछ होना जाना तो है नहीं, रस्म अदायगी भर बची है.
संयुक्त राष्ट्र इमरान खान के भाषण का नंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद आया था. प्रधानमंत्री मोदी पहले ही पाकिस्तान के कारनामों और भारतीय 'युद्ध नहीं बुद्ध' नीति से दुनिया को बाखबर कर दिया था - बाद में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री आये और कश्मीर में खून-खराबे की बात करते रहे. अगले दिन भारत ने भी जवाब दे दिया था.
एक बात तो धीरे धीरे साफ होने लगी थी कि पाक फौज ने जिस मकसद से नवाज शरीफ को हटाकर इमरान खान को लाया था - वो तो पूरा होने से रहा. इमरान खान लाख कोशिशों के बावजूद FATF ने पाकिस्तान को ग्रे-लिस्ट में तो रख ही दिया है, नवंबर तक ब्लैक-लिस्ट में पहुंच सकता है. IMF ने पाकिस्तान को 6 बिलियन डॉलर के कर्ज की हामी तो भर दी लेकिन ऐसी कड़ी शर्तें जड़ दी कि अब तक पहली किस्त का कुछ ही हिस्सा इमरान सरकार को हासिल हो पाया है - अगर पाकिस्तान सरकार ने शर्तें नहीं मानीं तो लोन का मामला बीच में ही अटक जाएगा.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ फिलहाल जेल में हैं - चुनावों के वक्त वो अपनी बीमार बेगम को छोड़कर बेटी मरियम शरीफ के साथ पाकिस्तान लौटे - और तभी गिरफ्तार कर लिया गया. चुनाव तो हारे ही अभी तक जेल में ही हैं - और ये सब सिर्फ एक ही वजह से हो रहा है. नवाज शरीफ पाकिस्तानी फौज के मंसूबों को अंजाम तक पहुंचाने में नाकाम रहे. नवाज शरीफ के साथ ऐसा दूसरी बार हुआ है. 1999 में जो तख्तापलट हुआ वो बगैर किसी खून-खराबे के हुआ था - और पाकिस्तान की फौजी हुकूमत एक बार फिर उसी रास्ते पर आगे बढ़ती नजर आ रही है.
परवेज मुशर्रफ से ठीक 20 साल पहले जनरल जिया-उल-हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार का तख्तापलट कर दिया था और खुद शासन की कमान अपने हाथ में ले ली थी - परवेज मुशर्रफ के राष्ट्पति बनने के ठीक 20 साल बाद पाकिस्तान में एक बार फिर पुराना खेल शुरू हो गया है.
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