थलसेना अध्यक्ष बिपिन रावत 31 दिसंबर 2019 को रिटायर होने वाले हैं. और 99 प्रतिशत उम्मीद है कि उन्हें देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बना दिया जाएगा. यानी वे तीनों सेनाओं के प्रमुख होंगे. उद्देश्य यह है कि CDS की नियुक्ति से तीनों सेनाओं के बीच ज्यादा सामंजस्य होगा. भारतीय सीमाओं की सुरक्षा और दुश्मन से मुकाबला ज्यादा बेहतर ढंग से हो सकेगा. अभी इन उम्मीदों की चर्चा खत्म भी नहीं हुई थी कि CDS पद के सबसे योग्य उम्मीदवार बिपिन रावत ने भारत की आंतरिक स्थिति पर टिप्पणी कर दी. जो विवादों में पड़ गई. आइए, पड़ताल करें कि बिपिन रावत की टिप्पणी कितनी जरूरी/गैरजरूरी थी. उस पर हो रहा विवाद कितना जरूरी/गैरजरूरी है.-क्या कहा बिपिन रावत ने: सेना में नेतृत्व की बात करते हुए बिपिन रावत युद्ध के दौरान एक जवान और अफसर के बीच के रिश्ते को समझा रहे थे. उन्होंने जोर देकर कहा कि कई जवानों ने युद्ध में अदम्य साहस दिखाया. ऐसा किसी आदेश के कारण नहीं किया उन्होंने. बल्कि उनके भीतर नेतृत्व का जज्बा हमेशा कायम रहा है. सेना का अनुशासन उन्हें सही दिशा में खुद का नेतृत्व करने की प्रेरणा देता है. लीडरशिप की यही खासियत होती है. वे लीडर नहीं हो सकते, जो लोगों को गलत दिशा की ओर ले जाएं. जैसा कि हम आजकल देख रहे हैं कि कॉलेज-युनिवर्सिटी के छात्रों को हिंसा के लिए भड़काया जा रहा है. ऐसा करना लीडरशिप नहीं है.
कहां बोल रहे थे रावत: जनरल बिपिन रावत दिल्ली में आयोजित सिक्स सिग्मा हेल्थकेयर समिट...
थलसेना अध्यक्ष बिपिन रावत 31 दिसंबर 2019 को रिटायर होने वाले हैं. और 99 प्रतिशत उम्मीद है कि उन्हें देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बना दिया जाएगा. यानी वे तीनों सेनाओं के प्रमुख होंगे. उद्देश्य यह है कि CDS की नियुक्ति से तीनों सेनाओं के बीच ज्यादा सामंजस्य होगा. भारतीय सीमाओं की सुरक्षा और दुश्मन से मुकाबला ज्यादा बेहतर ढंग से हो सकेगा. अभी इन उम्मीदों की चर्चा खत्म भी नहीं हुई थी कि CDS पद के सबसे योग्य उम्मीदवार बिपिन रावत ने भारत की आंतरिक स्थिति पर टिप्पणी कर दी. जो विवादों में पड़ गई. आइए, पड़ताल करें कि बिपिन रावत की टिप्पणी कितनी जरूरी/गैरजरूरी थी. उस पर हो रहा विवाद कितना जरूरी/गैरजरूरी है.-क्या कहा बिपिन रावत ने: सेना में नेतृत्व की बात करते हुए बिपिन रावत युद्ध के दौरान एक जवान और अफसर के बीच के रिश्ते को समझा रहे थे. उन्होंने जोर देकर कहा कि कई जवानों ने युद्ध में अदम्य साहस दिखाया. ऐसा किसी आदेश के कारण नहीं किया उन्होंने. बल्कि उनके भीतर नेतृत्व का जज्बा हमेशा कायम रहा है. सेना का अनुशासन उन्हें सही दिशा में खुद का नेतृत्व करने की प्रेरणा देता है. लीडरशिप की यही खासियत होती है. वे लीडर नहीं हो सकते, जो लोगों को गलत दिशा की ओर ले जाएं. जैसा कि हम आजकल देख रहे हैं कि कॉलेज-युनिवर्सिटी के छात्रों को हिंसा के लिए भड़काया जा रहा है. ऐसा करना लीडरशिप नहीं है.
कहां बोल रहे थे रावत: जनरल बिपिन रावत दिल्ली में आयोजित सिक्स सिग्मा हेल्थकेयर समिट में हिस्सा लेते हुए भाषण दे रहे थे. जहां दो परमवीर चक्र विजेता मानद कैप्टर बाना सिंह, और सुबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव भी मौजूद थे.
रावत की टिप्पणी को विवादित बताने वालों का तर्क: पत्रकार निखिल वागले कहते हैं कि 'सेना भले गैर-राजनीतिक हो, लेकिन कई सेनाध्यक्ष ऐसे नहीं रहे. वीके सिंह, बिपिन रावत, एडमिरल भागवत... कुछ उदाहरण हैं.' पूर्व नौसेना अध्यक्ष एडमिरल एल रामदास ने भी जनरल रावत की टिप्पणी को 'गलत' करार दिया. वे कहते हैं कि वर्दी में मौजूद अफसर को सेना की दशकों पुरानी परंपरा का पालन करते हुए देशसेवा करनी चाहिए, ना कि किसी पोलिटिकल फोर्स की. यशवंत सिन्हा ने भी जनरल रावत के बयान पर तल्खी दिखाते हुए कहा कि 'भारतीय लोकतांत्रिक परंपराओं को कई तरह से बर्बाद किया गया है. मौजूदा राजनीतिक विवाद में कूदकर आर्मी चीफ बिपिन रावत ने लोकतांत्रिक परंपरा को नीचा करने का काम किया है. इसे यहीं दबाया जाना चाहिए.'
रावत की टिप्पणी का समर्थन करने वालों की दलील: ट्विटर पर रिटायर्ड मेजर गौरव आर्य लिखते हैं कि 'जनरल रावत ने CAA protest पर नहीं, बल्कि उसकी आड़ में किए जा रहे दंगे और आगजनी की आलोचना की थी. सेना हमेशा से गैर-राजनीतिक संस्थान रही है, इसलिए दंगा भड़काने के लिए उजागर हुए राजनेताओं को उनकी बात हजम नहीं हो रही है.' रिटायर्ड इंजीनियर सुंदरेशा चिलाकुंडा लिखते हैं कि बिपिन रावत ने अपने बयान में वही कहा है जो एक जिम्मेदार भारतीय को कहना चाहिए. हर देशभक्त हिंसा की निंदा ही करेगा. इसी तरह डॉ. सचिन श्रीवास्तव ट्विटर पर टिप्पणी करते हैं कि 'जनरल बिपिन रावत को हिंसा पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है, लेकिन एक जर्मन छाऋ को हमें नाजी कहने का अधिकार है?'
निष्कर्ष: जनरल बिपिन रावत ने अपने 15 मिनट के भाषण में पूरा फोकस आर्मी के हर स्तर पर मौजूद नेतृत्व क्षमता की जानकारी देने पर रखा. उन्होंने अनुशासन और अनुशासनहीनता के बीच लीडरशिप किस तरह रोल प्ले करती है, उसी का उदाहरण देने के लिए नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुई हिंसक घटनाओं को चुना. उन्होंने अपने भाषण में कहीं भी नागरिकता संशोधन कानून के विरोध पर कोई टिप्पणी नहीं की. लेकिन, इस बेहद विवादित विषय को छेड़कर सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने अनावश्यक रूप से खुद को इस बहस में उतारा है. उन्हें ऐसे विषयों पर बोलने से बचना चाहिए. देश के भीतर यदि हिंसक घटनाएं हो भी रही हैं, तो उस पर बोलने का अधिकार आंतरिकत प्रशासन और गृह मंत्रालय को है. यह कोई देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला नहीं है. जिस पर रावत टिप्पणी करते. जनरल रावत के बयान का उद्देश्य भले गलत न हो, लेकिन उन्होंने सही बात कहने के लिए गलत समय और गलत विषय को चुना.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.