कांग्रेस के वरिष्ठ और असंतुष्ट गुट G-23 के नेताओं में से एक गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान दिए जाना सुर्खियों में छा गया है. असंतुष्ट गुट जी-23 के नेताओं (कपिल सिब्बल से लेकर शशि थरूर तक) ने गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान के लिए बधाई दी है. वहीं, गांधी परिवार के समर्थक कांग्रेस नेताओं ने आजाद पर निशाना साधा है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने माकपा के नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य के पद्म पुरस्कार ठुकराने का जिक्र करते हुए गुलाम नबी आजाद पर निशाना साधते हुए ट्वीट कर लिखा है कि 'सही काम किया है. वह आजाद बनना चाहते हैं, गुलाम नहीं.' वैसे, गुलाम नबी आजाद को मिले पद्म पुरस्कार पर भी अन्य मामलों की तरह कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार ने चुप्पी साध रखी है. और, ये साफ इशारा है कि कांग्रेस की असल समस्या से गांधी परिवार बखूबी वाकिफ है.
कांग्रेस का मतलब गांधी परिवार क्यों?
अगस्त, 2020 में कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के गुट G-23 ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी के सांगठनिक ढांचे में आमूल-चूल बदलाव और सक्रिय नेतृत्व की मांग की थी. इस पत्र को सीधे तौर पर गांधी परिवार के खिलाफ बगावत के तौर पर देखा गया. वैसे, 2014 के बाद कुछ राज्यों को छोड़कर पूरे देश में ही कांग्रेस का जनाधार लगातार दरक रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर सोनिया गांधी की जगह राहुल गांधी विराजमान हो गए. 2019 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से किनारा कर लिया. जिसके बाद फिर से सोनिया गांधी इस पद पर काबिज हो गईं. इसके बावजूद कई राज्यों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. हालात ऐसे हो गए कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में जहां कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल के तौर पर हुआ करता थी. वहां विधानसभा चुनाव में पार्टी का खाता तक नहीं खुला.
इसके...
कांग्रेस के वरिष्ठ और असंतुष्ट गुट G-23 के नेताओं में से एक गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान दिए जाना सुर्खियों में छा गया है. असंतुष्ट गुट जी-23 के नेताओं (कपिल सिब्बल से लेकर शशि थरूर तक) ने गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण सम्मान के लिए बधाई दी है. वहीं, गांधी परिवार के समर्थक कांग्रेस नेताओं ने आजाद पर निशाना साधा है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने माकपा के नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य के पद्म पुरस्कार ठुकराने का जिक्र करते हुए गुलाम नबी आजाद पर निशाना साधते हुए ट्वीट कर लिखा है कि 'सही काम किया है. वह आजाद बनना चाहते हैं, गुलाम नहीं.' वैसे, गुलाम नबी आजाद को मिले पद्म पुरस्कार पर भी अन्य मामलों की तरह कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार ने चुप्पी साध रखी है. और, ये साफ इशारा है कि कांग्रेस की असल समस्या से गांधी परिवार बखूबी वाकिफ है.
कांग्रेस का मतलब गांधी परिवार क्यों?
अगस्त, 2020 में कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के गुट G-23 ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी के सांगठनिक ढांचे में आमूल-चूल बदलाव और सक्रिय नेतृत्व की मांग की थी. इस पत्र को सीधे तौर पर गांधी परिवार के खिलाफ बगावत के तौर पर देखा गया. वैसे, 2014 के बाद कुछ राज्यों को छोड़कर पूरे देश में ही कांग्रेस का जनाधार लगातार दरक रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर सोनिया गांधी की जगह राहुल गांधी विराजमान हो गए. 2019 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से किनारा कर लिया. जिसके बाद फिर से सोनिया गांधी इस पद पर काबिज हो गईं. इसके बावजूद कई राज्यों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. हालात ऐसे हो गए कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में जहां कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल के तौर पर हुआ करता थी. वहां विधानसभा चुनाव में पार्टी का खाता तक नहीं खुला.
इसके बावजूद गांधी परिवार अपनी हार पर चिंतन करता नजर नहीं आया. बल्कि, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भाजपा को रोकने में कामयाब हुईं टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को बधाई देते नजर आए थे. वहीं, इस बधाई के एक साल के भीतर ही अब ममता बनर्जी कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती देने के लिए यूपीए के सहयोगी दलों के साथ गठजोड़ बनाने की कोशिश कर रही हैं. असंतुष्ट नेताओं के गुट की ओर से जब गांधी परिवार को कांग्रेस के लिए कुछ अहम सुझाव दिए जा रहे थे, तो आखिर इसे मानने में समस्या क्या थी? राहुल गांधी का चेहरा अब तक कांग्रेस के लिए चमत्कारिक साबित नहीं हो सका है. इस बात को जानने के बावजूद सोनिया गांधी चाहती है कि कांग्रेस पार्टी पर गांधी परिवार का कब्जा बरकरार रहे. राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बैठी हैं. और, चाहती हैं कि राहुल गांधी ही फिर से कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज हों.
एक-एक कर गिरते जा रहे हैं मजबूत स्तंभ
बीते कुछ सालों में हिमंता बिस्वा शर्मा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देब से लेकर हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले कद्दावर नेता आरपीएन सिंह तक किसी को भी रोकने के प्रयास नहीं किए गए. बहुत संभव है कि कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के गुट जी-23 को भी रोकने के लिए कोई खास मेहनत नहीं की जाएगी. क्योंकि, राहुल गांधी पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि 'आरएसएस की विचारधारा वाले लोग कांग्रेस से निकल जाए. ऐसे लोगों की पार्टी को कोई जरूरत नहीं है.' वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी कहती नजर आ चुकी हैं कि 'जो संघर्ष आज हम कर रहे हैं वो बुजदिलों और कायरों का संघर्ष नहीं है. वो ऐसा संघर्ष है अगर आपका दिल है, मन है और आपमें साहस है तब करिए वरना खुशी से जाइये.' यहां विडंबना ये है कि गांधी परिवार को लगता है कि पूरी कांग्रेस केवल सोनिया-राहुल-प्रियंका के चेहरे पर ही चल रही है. जबकि, किसी भी पार्टी के लिए उसका एक छोटा सा कार्यकर्ता भी बहुत मायने रखता है. और, जब एक-एक कर कांग्रेस के कई मजबूत स्तंभ पार्टी से किनारा कर रहे हैं. तो, कांग्रेस की ओर उन्हें रोकने का प्रयास तक नहीं किया जा रहा है.
दिशाहीन हो चुकी है कांग्रेस
कांग्रेस यानी गांधी परिवार इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद से पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदल चुका है. भाजपा अगर हिंदुत्व की बात करती है, तो लोगों के बीच 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' जैसे नारे के सहारे अपनी पकड़ भी बनाए रखती है. लेकिन, कांग्रेस के साथ समस्या ये है कि वह मोदी विरोध में इस कदर दिशाहीन हो चुकी है कि राम मंदिर, धारा 370, नागरिकता संशोधन कानून, तीन तलाक जैसे मुद्दों के बीच का फर्क भी समझने की शक्ति अब उसमें नहीं रही है. अगर कांग्रेस की 'सेकुलर' विचारधारा को ही देखा जाए, तो तमाम धर्मों-पंथों-जातियों की बात को मजबूती से उठाने की बात होनी चाहिए. लेकिन, गांधी परिवार को लगता है कि अल्पसंख्यक वर्ग के मुद्दों को पुरजोर तरीके से उठाया जाना चाहिए. और, देश की बहुसंख्यक आबादी को माथे पर त्रिपुंड लगाने और जनेऊ धारण करने भर से साधा जा सकता है.
सोनिया गांधी का 'पुत्रमोह'
कांग्रेस की असल समस्या है सोनिया गांधी का 'पुत्रमोह'. दरअसल, सोनिया गांधी चाहती हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन जाएं और इसके सहारे देश के प्रधानमंत्री बन जाएं. जबकि, खुद सोनिया गांधी ने यूपीए सरकार में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर 10 वर्षों तक सत्ता सुख भोगा था. आखिर पुत्रमोह के चक्कर में सोनिया गांधी क्यों किसी नये चेहरे को कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर मौका देने से कतरा रही हैं? जबकि, इस वजह से लगातार कांग्रेस ही कमजोर होती जा रही है. राहुल गांधी अगर इतने परिपक्व राजनेता हैं, तो उन्हें इस बात की समझ भी होगी कि फिलहाल ये समय उनके लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी तक जाने वाली दौड़ में शामिल होने का नहीं है. क्योंकि, उस दौड़ में शामिल होने से पहले उन्हें यूपीए के अध्यक्ष के तौर पर ही खुद को स्थापित करने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है. कहा जाता है कि बीते साल चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ गांधी परिवार की हुई बातचीत भी इसी कारण से फलीभूत नहीं हो सकी थी कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद की मांग कर दी थी.
खैर, कांग्रेस से नेताओं का जाना जारी है. और, भविष्य में इस संख्या में इजाफा होना तय है. क्योंकि, गांधी परिवार का मानना है कि कांग्रेस को वे ही चला रहे हैं. जबकि, हकीकत ये है कि पार्टी के 'दरबारी' नेताओं से घिरी कांग्रेस के लिए 'अच्छे दिन' राहुल गांधी को इस दौड़ से बाहर करने के बाद ही आ सकते हैं. इसके लिए गांधी परिवार को साइडलाइन किए जाने की जरूरत नही है. लेकिन, उन्हें एक ही लीक पर चलने से हटकर प्रयोगधर्मी बनना होगा. लेकिन, ऐसा होने की संभावना नगण्य है. तो, देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में गांधी परिवार के दम पर कांग्रेस कहां तक जा पाती है?
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