कांग्रेस में एक ही दिन में ऐसा बिखराव शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) तमिलनाडु के दौरे पर निकले हुए थे. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा संत रविदास जयंती के मौके पर वाराणसी में लंगर के दौरान पहुंची हुई थीं - और G-23 के नेता जम्मू पहुंच कर गांधी परिवार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक रहे थे.
गांधी ग्लोबल फेमिली के बैनर तल जम्मू में शांति सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें कांग्रेस के बागी गुट G-23 के सात नेता जुटे - गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad), कपिल सिब्बल (Kapil Sibal), आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, विवेक तन्खा, राज बब्बर और भूपेंद्र सिंह हुड्डा.
मंच से किसी भी कांग्रेस नेता ने राहुल गांधी या सोनिया गांधी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन जो कुछ भी बोला उससे साफ था कि निशाने पर गांधी परिवार ही है - नेताओं के बयान बड़े ही तल्ख रहे और ये संदेश देने की कोशिश भी लगी कि असली कांग्रेस वही हैं - और कांग्रेस भी उनसे ही है.
बोले भी सभी - और गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस की तरफ से राज्य सभा न भेजे जाने को लेकर गहरी नाराजगी भी जतायी, लगे हाथ गुलाम नबी आजाद ने ये भी साफ कर दिया कि वो राज्य सभा से रिटायर हुए हैं लेकिन राजनीति से नहीं और ये कोई पहली बार नहीं हुआ है.
बगावती लहजा कदम कदम पर नजर आ रहा था. सिर्फ लफ्जों में नहीं बल्कि पूरे हाव भाव से - और सबके सिर पर भगवा साफा तो जैसे कहर ही ढा रहा था!
भगवा साफा क्या कहता है?
बताया भी गया और जताया भी जा रहा था कि कांग्रेस नेताओं का वो गांधी ग्लोबल फैमिली शांति सम्मेलन था, लेकिन उनकी बातें बता रही थी कि अंदर घोर अशांति है और सभी के मन में कूट कूट कर भरी हुई है.
ये -23 के वही नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिख कर कांग्रेस के लिए एक पूर्णकालिक अध्यक्ष का इंतजाम करने का आग्रह किया था. शर्त बस इतनी थी कि जो भी कांग्रेस अध्यक्ष हो वो वास्तव में काम करता हुआ भी नजर आये - और वो नाम राहुल गांधी भी...
कांग्रेस में एक ही दिन में ऐसा बिखराव शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) तमिलनाडु के दौरे पर निकले हुए थे. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा संत रविदास जयंती के मौके पर वाराणसी में लंगर के दौरान पहुंची हुई थीं - और G-23 के नेता जम्मू पहुंच कर गांधी परिवार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक रहे थे.
गांधी ग्लोबल फेमिली के बैनर तल जम्मू में शांति सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें कांग्रेस के बागी गुट G-23 के सात नेता जुटे - गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad), कपिल सिब्बल (Kapil Sibal), आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, विवेक तन्खा, राज बब्बर और भूपेंद्र सिंह हुड्डा.
मंच से किसी भी कांग्रेस नेता ने राहुल गांधी या सोनिया गांधी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन जो कुछ भी बोला उससे साफ था कि निशाने पर गांधी परिवार ही है - नेताओं के बयान बड़े ही तल्ख रहे और ये संदेश देने की कोशिश भी लगी कि असली कांग्रेस वही हैं - और कांग्रेस भी उनसे ही है.
बोले भी सभी - और गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस की तरफ से राज्य सभा न भेजे जाने को लेकर गहरी नाराजगी भी जतायी, लगे हाथ गुलाम नबी आजाद ने ये भी साफ कर दिया कि वो राज्य सभा से रिटायर हुए हैं लेकिन राजनीति से नहीं और ये कोई पहली बार नहीं हुआ है.
बगावती लहजा कदम कदम पर नजर आ रहा था. सिर्फ लफ्जों में नहीं बल्कि पूरे हाव भाव से - और सबके सिर पर भगवा साफा तो जैसे कहर ही ढा रहा था!
भगवा साफा क्या कहता है?
बताया भी गया और जताया भी जा रहा था कि कांग्रेस नेताओं का वो गांधी ग्लोबल फैमिली शांति सम्मेलन था, लेकिन उनकी बातें बता रही थी कि अंदर घोर अशांति है और सभी के मन में कूट कूट कर भरी हुई है.
ये -23 के वही नेता हैं जिन्होंने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिख कर कांग्रेस के लिए एक पूर्णकालिक अध्यक्ष का इंतजाम करने का आग्रह किया था. शर्त बस इतनी थी कि जो भी कांग्रेस अध्यक्ष हो वो वास्तव में काम करता हुआ भी नजर आये - और वो नाम राहुल गांधी भी तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होने वाली बशर्ते वो शर्त पूरी करने को राजी हों.
चिट्ठी के बाद कांग्रेस कार्यकारिणी में जो बवाल हुआ वो तो जगजाहिर हुआ ही, सबको ये भी मालूम हो गया कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी को कांग्रेस के सीनियर नेताओं का पत्र लिखना कितना बुरा लगता है. मीटिंग में पत्र के कंटेंट पर चर्चा तो नहीं हुई लेकिन ये मांग जरूर उठी कि चिट्ठी लिखने की जुर्रत करने वाले नेताओं के खिलाफ सख्त से सख्त एक्शन होना बेहद जरूरी है.
फिर भी ये नेता हरकत से बाज नहीं आ रहे थे तो लॉकडाउन से पहले तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ की पहल पर कांग्रेस के सीनियर नेताओं की एक मीटिंग बुलायी गयी और उसमें गुलाम नबी आजाद को भी बुलाया गया. मीटिंग का मकसद चिट्ठीबाजों की नाराजगी दूर करना था ताकि कहीं ऐसा न हो राहुल गांधी के दोबारा अध्यक्ष बनने में ये नेता रोड़ा न खड़ृा करने लगें. मीटिंग हुई, ऐसे नेताओं से बातें भी हुईं और ये वादा भी कि नेताओं की तरफ से उठाये गये मसलों का समाधान भी किया जाएगा.
कुछ दिन तक इंतजार होता रहा. खबर आती रही कि जनवरी में ही कांग्रेस का सम्मेलन होगा और पार्टी अपना नया अध्यक्ष चुन लेगी. फिर खबर आयी कि राहुल गांधी ही दोबारा कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं - और भी ये भी संशय जताये जाने लगे कि राहुल गांधी अभी पूरी तरह मानसिक तौर पर कुर्सी संभालने को लेकर हां नहीं कहे हैं - और फिर एक दिन अचानक एक मीटिंग बुला कर फैसला हो गया कि नहीं, अभी तो बिलकुल नहीं - अब जो कुछ भी होगा वो मई के बाद होगा. शायद जून तक. अंदाजा सही था. 2 जून को राज्यों के विधानसभा चुनाव में हुई वोटिंग की गिनती होगी - और तब कहीं जाकर कांग्रेस में नया अध्यक्ष चुनने की कवायद शुरू होगी.
ये सब इस उम्मीद के साथ तय किया गया और बताया गया कि सब ठीक ठाक हो गया है और आगे भी रहेगा. लेकिन होगा भी तो कैसे. ठीक ठाक तो तभी होगा जब चुनावों के नतीजे भी ठीक ठाक आएंगे. राहुल गांधी की सारी रणनीति बिहार में फेल हो गयी और वो भी फेल हो गये - हर तरफ से निशाने पर आ गये. कांग्रेस के ही कपिल सिब्बल ने बोल दिया कि कांग्रेस नेतृत्व को तो जैसे हारने की आदत ही लग चुकी है.
ये सब चल ही रहा था कि गुलाम नबी आजाद के राज्य सभा से रिटायर होने का समय भी आ गया. संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुलाम नबी आजाद की जम कर तारीफ की और फिर आजाद ने भी शुक्रिया अदा करने में कोई कोताही नहीं बरती - और आखिरकार बड़े ही भाव विह्वल माहौल में गुलाम नबी आजाद राज्य सभा से विदा हो गये.
कांग्रेस में ऐसी बातों को लेकर अंदर भले ही जो भी चर्चा हुई हो, बाहर कोई कानाफूसी भी नहीं सुनायी थी - और गुलाम नबी आजाद की जगह कर्नाटक में आम चुनाव हार चुके मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का नया नेता बना दिया गया. संसद के पिछले कार्यकाल में वो ये जिम्मेदारी लोक सभा में निभाते रहे. जब वो संसद पहुंचने से चूक गये तो उनकी जगह पश्चिम बंगाल से अधीर रंजन चौधरी को बुलाया गया और विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए फिर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर कोलकाता भेजा गया है.
जम्मू में जुटे नेताओं ने गुलाम नबी आजाद को फिर से राज्य सभा नहीं भेजे जाने को लेकर कांग्रेस नेतृत्व को खूब खरी खोटी सुनायी - और प्रधानमंत्री की तारीफों की भी बीच बीच में याद दिलाते रहे - जब वे प्रधानमंत्री मोदी का नाम लेते रहे ऐसा लगता जैसे भगवा साफा भी कुछ कहना चाह रहा है.
असली कांग्रेस, नकली कांग्रेस
G-23 नेताओं में नेतृत्व तो सबने गुलाम नबी आजाद का स्वीकार कर लिया है लेकिन मुखर अक्सर कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा को देखा जाता है - जम्मू में भी वही नजारा देखने को मिला.
कपिल सिब्बल ने कहा, 'ये सच्चाई है कि कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है... इसलिए हम लोग यहां जुटे हैं. हम इससे पहले भी इकट्ठा हुए थे और हमें कांग्रेस पार्टी को आगे ले जाना है.'
आनंद शर्मा तो जैसे शक्ति प्रदर्शन ही कर रहे थे. बोले, 'हम छात्र आंदोलन से आये हैं... यूथ आंदोलन से आये हैं... ये अधिकार मैंने किसी को नहीं दिया कि मेरे जीवन में कोई बताये कि हम कांग्रेसी हैं कि नहीं है... ये हक किसी का नहीं है... हम बता सकते हैं कांग्रेस क्या है... हम बनाएंगे कांग्रेस को.'
आनंद शर्मा का ये भी कहना रहा, 'पिछले 10 साल में कांग्रेस कमजोर हुई है... दो भाई अलग-अलग मत रखते हों, तो इसका मतलब यह नहीं है कि घर टूट जाएगा... या भाई, भाई का दुश्मन हो जाता है, ऐसा तो नहीं हो जाता है... अगर कोई अपना मत न जाहिर करे कि उसका कोई क्या मतलब न निकाल ले, फिर वो घर मजबूत नहीं रहता.'
और सबसे बड़ी बात तो राज बब्बर ने ही कह डाली. राज बब्बर ने कहा, 'लोग हमें G-23 कहते हैं, लेकिन मैं गांधी-23 कहता हूं... महात्मा गांधी के विश्वास, संकल्प और सोच के साथ ही इस देश का कानून और संविधान बना...'
राज बब्बर तो ऐसे समझाने की कोशिश करते दिखे जैसा बताना और जताना चाह रहे हों कि G-23 ही असली कांग्रेस है - और बाकी जो कांग्रेसी हैं भगवा साफा का संदेश उनके लिए ही है.
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