राजनाथ सिंह फिलहाल पीएम मोदी के बाद बीजेपी में नम्बर दो की हैसियत रखते हैं, लेकिन वो इस वक्त सबसे ज्यादा चर्चा मे इसलिए हैं क्योंकि यूपी की इस प्रचंड बहुमत को संभालने के लिए बीजेपी ने राजनाथ सिंह के नाम को आगे करना शुरू किया है. लेकिन बीजेपी के इस कदम मे कितनी गंभीरता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अबतक राजनाथ सिंह ने अपनी सहमति नहीं दी है.
राजनीति मे एक कहावत है जिसका नाम काटना उसका नाम आगे कर दो. चर्चा इस बात की भी है कि राजनाथ सिंह को अगर कमान देनी है तो तो अन्दरखाने की चर्चा को आगे करने के कोई मायने नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से राजनाथ सिंह के नाम को पहले आगे किया जा रहा है वो कई कयासों को जन्म भी दे रहा है, कि क्या बीजेपी सचमुच यूपी के इस सबसे कद्दावर नेता को कमान सौंपना चाहती है या फिर पीएम मोदी ने नाम तय कर रखा है.
राजनाथ सिंह चुनाव के पहले अपनी दावेदारी खारिज कर चुके हैं, अगर सूत्रों की मानें तो नतीजे के बाद जब अमित शाह ने फिर प्रस्ताव पर राजनाथ सिंह को टटोला तो भी उन्होंने मना कर दिया, लेकिन ऐसे में राजनाथ सिंह की एक ही सूरत बनती है जब संघ और पीएम मोदी उन्हें यूपी की कमान संभालने को कह दें.
राजनैतिक जानकार राजनाथ सिंह के यूपी मे सीएम बनने की संभावना को नकार रहे हैं, ज्यादातर लोग इस मत के हैं कि राजनाथ सिंह अगर यूपी की सियासत मे आते हैं तो उनकी राजनैतिक हैसियत एक मुख्यमंत्री की रह जाएगी जो उन्हें नंबर दो से कई पायदान नीचे ला देगा.
ये सच है कि राजनाथ अगर मुख्यमंत्री बनाए जाते हैं तो उनके कद के आगे कोई सवाल नहीं होंगे.
दो और चेहरे जिस पर चर्चा जोरों पर है उसमें एक नाम मनोज सिन्हा और दूसरा नाम केशव मौर्य का है.
मनोज सिन्हा, पीएम मोदी और शाह के करीबी माने जाते हैं, बीएचयू से छात्र राजनीति में रहे हैं,...
राजनाथ सिंह फिलहाल पीएम मोदी के बाद बीजेपी में नम्बर दो की हैसियत रखते हैं, लेकिन वो इस वक्त सबसे ज्यादा चर्चा मे इसलिए हैं क्योंकि यूपी की इस प्रचंड बहुमत को संभालने के लिए बीजेपी ने राजनाथ सिंह के नाम को आगे करना शुरू किया है. लेकिन बीजेपी के इस कदम मे कितनी गंभीरता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अबतक राजनाथ सिंह ने अपनी सहमति नहीं दी है.
राजनीति मे एक कहावत है जिसका नाम काटना उसका नाम आगे कर दो. चर्चा इस बात की भी है कि राजनाथ सिंह को अगर कमान देनी है तो तो अन्दरखाने की चर्चा को आगे करने के कोई मायने नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से राजनाथ सिंह के नाम को पहले आगे किया जा रहा है वो कई कयासों को जन्म भी दे रहा है, कि क्या बीजेपी सचमुच यूपी के इस सबसे कद्दावर नेता को कमान सौंपना चाहती है या फिर पीएम मोदी ने नाम तय कर रखा है.
राजनाथ सिंह चुनाव के पहले अपनी दावेदारी खारिज कर चुके हैं, अगर सूत्रों की मानें तो नतीजे के बाद जब अमित शाह ने फिर प्रस्ताव पर राजनाथ सिंह को टटोला तो भी उन्होंने मना कर दिया, लेकिन ऐसे में राजनाथ सिंह की एक ही सूरत बनती है जब संघ और पीएम मोदी उन्हें यूपी की कमान संभालने को कह दें.
राजनैतिक जानकार राजनाथ सिंह के यूपी मे सीएम बनने की संभावना को नकार रहे हैं, ज्यादातर लोग इस मत के हैं कि राजनाथ सिंह अगर यूपी की सियासत मे आते हैं तो उनकी राजनैतिक हैसियत एक मुख्यमंत्री की रह जाएगी जो उन्हें नंबर दो से कई पायदान नीचे ला देगा.
ये सच है कि राजनाथ अगर मुख्यमंत्री बनाए जाते हैं तो उनके कद के आगे कोई सवाल नहीं होंगे.
दो और चेहरे जिस पर चर्चा जोरों पर है उसमें एक नाम मनोज सिन्हा और दूसरा नाम केशव मौर्य का है.
मनोज सिन्हा, पीएम मोदी और शाह के करीबी माने जाते हैं, बीएचयू से छात्र राजनीति में रहे हैं, संघ के भी करीब रहे.
मोदी के पसंदीदा मंत्रियों में भी एक हैं, लेकिन जिस भूमिहार तबके से आते है वो यूपी मे राजनैतिक रूप से उतना सशक्त नहीं है जितनी दूसरी जातियां हैं ऐसे उनका सीएम बनना किसी आश्चर्य से कम नहीं होगा.
केशव मौर्य वो नाम है जिसकी चर्चा सबसे ज्यादा है लेकिन केशव मौर्य के पास कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं है, ऐसे मे पार्टी क्या इतना प्रचंड बहुमत उनके कंधे पर डालेगी, इसे लेकर भी कयास जोरों पर है.
ये सच है कि बीजेपी यूपी में दूसरा कल्याण सिंह चाहती है ताकि 2019 उसके लिए आसान हो, और पीएम और अमित शाह की जोड़ी का अक्स भी उनमें दिखता है लेकिन केशव मौर्य को चुनने के पहले पार्टी और नामों को तोल लेना चाहती है.
ये बातेें मौर्य को मजबूत बनाती हैं
केशव मौर्य बीजेपी के उस खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे हैं जो दांव बीजेपी ने गैर यादव पिछड़े वर्ग के नाम पर खेला, मौर्य, सैनी, शाक्य जैसी पिछड़ी जातियां अब तक सपा और बसपा की कट्टर समर्थक रही थीं लेकिन मोदी के पिछड़ा कार्ड मे ये जातियां जुड़ी और केशव मौर्य उसके प्रतीक के तौर पर उभरे.
बीजेपी के लिए राजनाथ सिंह के बाद केशव मौर्य बड़ा नाम बनकर उभरा है जो संघ का भी उतना ही चहेता है.
अब देखना है कि मोहन भगवत, अमित शाह और पीएम मोदी किसके नाम पर मुहर लगाते हैं.
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