एक भारतीय होने के नाते इसपर बहस करने के कारण मैं देशद्रोही करार दिया जा सकता हूं, पर सही यही है कि 'मेक इन इंडिया' फेल हो चुका है. क्योंकि राजीनीति 'मेक इन इंडिया' पर भारी पड़ी है.
भारतीय सीमा पर बढ़ते दबाव के बीच चीन के ग्लोबल टाइम्स में खबर आई है कि 'भारत ने 55 साल बाद भी कुछ नहीं सीखा.' दरअसल देखा जाए तो इस बात में सच्चाई है कि हमने 55 साल में सच में कुछ नहीं सीखा. आज चीन डोकलाम में जो आंखे दिखा रहा है उसका एकमात्र कारण है भारत की गन्दी राजनीति, जो फेल हो गयी है. आज पूरे भारत वर्ष में कोई जगह नहीं है जहां पर चीन से बना सामान न बिकता हो.
'भारत 55 साल बाद भी कुछ नहीं सीख पाया'- ग्लोबल टाइम्स
दरअसल ग्लोबल टाइम्स की इस बौखलाहट के पीछे कर्नाटक के कुछ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बयान हैं जिसमें चीनी उत्पादों के बहिष्कार का ऐलान किया है, और कहा गया है कि चीन को सबक सिखाएंगे.
ग्लोबल टाइम्स ने जब इस खबर को छापा तो चीन में कई लोगों ने इसपर अपनी प्रतिकिया दी और कुछ लोगो ने यहां तक कहा कि-
'चीन में कोई जगह नहीं है जहां पर भारतीय उत्पादों का उपयोग होता है'
'चीन में बने सामान यदि भारतीय नहीं खरीदेंगे तो उनके पास कोई और विकल्प नहीं बच जाता'
'भारतीय व्यापारी और अन्य प्रान्तों के लोग चीनी सामान इसलिए खरीदते हैं क्योंकि ये सस्ते और टिकाऊ होते हैं'
बड़े जोर शोर से 'मेक इन इंडिया' की तैयारी की गयी और करोडों रुपये भी विज्ञापनों पर खर्च किए गए, पर आज हम सब जानते हैं कि 'मेक इन इंडिया' की हालत कितनी पतली है. क्योंकि राजीनीति 'मेक इन इंडिया' पर भारी पड़ी है. और इसलिए आज भी भारतीय बाजारों में मेड इन इंडिया की कोई खास दावेदारी नहीं हैं, जबकि चीनी उत्पादों की बात करें तो चीनी उत्पाद सस्ते और टिकाऊ होते हैं.
भारतीय सीमा पर बढ़ते दबाव के बीच चीन के ग्लोबल टाइम्स में खबर आई है कि 'भारत ने 55 साल बाद भी कुछ नहीं सीखा.' दरअसल देखा जाए तो इस बात में सच्चाई है कि हमने 55 साल में सच में कुछ नहीं सीखा. आज चीन डोकलाम में जो आंखे दिखा रहा है उसका एकमात्र कारण है भारत की गन्दी राजनीति, जो फेल हो गयी है. आज पूरे भारत वर्ष में कोई जगह नहीं है जहां पर चीन से बना सामान न बिकता हो.
'भारत 55 साल बाद भी कुछ नहीं सीख पाया'- ग्लोबल टाइम्स
दरअसल ग्लोबल टाइम्स की इस बौखलाहट के पीछे कर्नाटक के कुछ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बयान हैं जिसमें चीनी उत्पादों के बहिष्कार का ऐलान किया है, और कहा गया है कि चीन को सबक सिखाएंगे.
ग्लोबल टाइम्स ने जब इस खबर को छापा तो चीन में कई लोगों ने इसपर अपनी प्रतिकिया दी और कुछ लोगो ने यहां तक कहा कि-
'चीन में कोई जगह नहीं है जहां पर भारतीय उत्पादों का उपयोग होता है'
'चीन में बने सामान यदि भारतीय नहीं खरीदेंगे तो उनके पास कोई और विकल्प नहीं बच जाता'
'भारतीय व्यापारी और अन्य प्रान्तों के लोग चीनी सामान इसलिए खरीदते हैं क्योंकि ये सस्ते और टिकाऊ होते हैं'
बड़े जोर शोर से 'मेक इन इंडिया' की तैयारी की गयी और करोडों रुपये भी विज्ञापनों पर खर्च किए गए, पर आज हम सब जानते हैं कि 'मेक इन इंडिया' की हालत कितनी पतली है. क्योंकि राजीनीति 'मेक इन इंडिया' पर भारी पड़ी है. और इसलिए आज भी भारतीय बाजारों में मेड इन इंडिया की कोई खास दावेदारी नहीं हैं, जबकि चीनी उत्पादों की बात करें तो चीनी उत्पाद सस्ते और टिकाऊ होते हैं.
फेल हो चुका है 'मेक इन इंडिया'
एक भारतीय होने के नाते इसपर बहस करने के कारण मैं देशद्रोही करार दिया जा सकता हूं, पर सही यही है कि 'मेक इन इंडिया' फेल हो चुका है. एक बात याद आती है कि एक बार किसी जापानी को पूछा गया कि आप हिरोशिमा और नागासाकी की बमबारी पर अमेरिका की सड़कों पर प्रोटेस्ट क्यों नहीं करते? जो जवाब जापानी ने दिया उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है. 'अमेरिका की सड़कों पर प्रोटेस्ट करने की बजाए हमने अपने आपको इतना बड़ा बना दिया है कि आज सोनी का टीवी अमेरिका के वाइट हाउस में है जो जापानियों ने बनाया है'
आज अगर हम जापानियों के इस किस्से से कुछ सीख लेते हैं तो आज भले ही नहीं पर 5-10 साल बाद चीन या कोई पकिस्तान हमें आंखे दिखाने की कोशिश नहीं करेगा, क्योंकि हम कोई सामान आयात नहीं करेंगे. पर आज जरूरत है राजनैतिक इच्छाशक्ति की जो सही मायने में 'मेक इन इंडिया' की शुरुआत करे और चाइना की तरह देश के हुनर को इमानदारी और भ्रष्टाचार मुक्त 'मेक इन इंडिया' के लिए प्रोस्साहित करे. तब सही मायने में हम चीन को कह सकते हैं की 1962 के बाद हमने बहुत कुछ सीखा है.
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