गोवा कांग्रेस (Goa Congress MLA) से राहुल गांधी तक फिर से बुरी खबर पहुंची है - और ये भी संयोग ही है कि गोवा में फिर से कांग्रेस की तभी फजीहत हुई है, जब दिग्विजय सिंह ड्यूटी पर लौट आये हैं. दिग्विजय सिंह ही असल में भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक बनाये गये हैं.
हो सकता है दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा के अनुभव को देखते हुए भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) का संयोजक बनाया गया हो. ये भी तो जरूरी नहीं कि हमेशा अनुभवों का ही फायदा उठाया जाये, कभी कभी लकी चार्म को भी आजमाया जाता ही है.
2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तो दिग्विजय सिंह की यात्रा का योगदान तो था ही, बोनस में उनको चुनाव अभियान से भी जोड़ दिया गया - जो काम गोवा में दिग्विजय सिंह करने से चूक गये थे, मध्य प्रदेश में यथाशक्ति भरपाई कर ही दी थी. दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की गोवा में सरकार न बन पाने का ठीकरा दिग्विजय सिंह के सिर पर ही फोड़ा गया था. तब दिग्विजय सिंह गोवा के प्रभारी महासचिव हुआ करते थे - और उसके बाद दिग्विजय सिंह से गोवा का चार्ज छीन लिया गया था.
तब कांग्रेस नेतृत्व को भी लगा था कि दिग्विजय सिंह गोवा के मामले को ठीक से संभाल नहीं पाये थे. 2017 के चुनाव में कांग्रेस की सबसे ज्यादा सीटें आयी थीं, लेकिन सरकार बनाया बीजेपी ने. दिग्विजय सिंह से खफा होने की एक बड़ी वजह बीजेपी की तरफ से कांग्रेस नेतृत्व का कहा गया शुक्रिया का भी असर था. गोवा के तमाम विधायकों के साथ साथ जब कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता विश्वजीत राणे जब बीजेपी ज्वाइन कर रहे थे तो दिग्विजय सिंह की भूमिका पर ही सवाल उठाये थे.
अभी तो ज्यादा दिन हुए भी नहीं, जब कांग्रेस छोड़ते हुए गुलाम नबी आजाद ने अपनी चिट्ठी में लिखा था कि राहुल गांधी को पहले कांग्रेस जोड़ो यात्रा करनी चाहिये और उसके बाद भी भारत जोड़ो जैसी मुहिम चलानी चाहिये - और अब तो साबित भी हो गया.
गोवा से खबर आयी है कि अभी मार्च, 2022 में विधानसभा चुनाव जीत कर आये कांग्रेस के 11 विधायकों में...
गोवा कांग्रेस (Goa Congress MLA) से राहुल गांधी तक फिर से बुरी खबर पहुंची है - और ये भी संयोग ही है कि गोवा में फिर से कांग्रेस की तभी फजीहत हुई है, जब दिग्विजय सिंह ड्यूटी पर लौट आये हैं. दिग्विजय सिंह ही असल में भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक बनाये गये हैं.
हो सकता है दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा के अनुभव को देखते हुए भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) का संयोजक बनाया गया हो. ये भी तो जरूरी नहीं कि हमेशा अनुभवों का ही फायदा उठाया जाये, कभी कभी लकी चार्म को भी आजमाया जाता ही है.
2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तो दिग्विजय सिंह की यात्रा का योगदान तो था ही, बोनस में उनको चुनाव अभियान से भी जोड़ दिया गया - जो काम गोवा में दिग्विजय सिंह करने से चूक गये थे, मध्य प्रदेश में यथाशक्ति भरपाई कर ही दी थी. दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की गोवा में सरकार न बन पाने का ठीकरा दिग्विजय सिंह के सिर पर ही फोड़ा गया था. तब दिग्विजय सिंह गोवा के प्रभारी महासचिव हुआ करते थे - और उसके बाद दिग्विजय सिंह से गोवा का चार्ज छीन लिया गया था.
तब कांग्रेस नेतृत्व को भी लगा था कि दिग्विजय सिंह गोवा के मामले को ठीक से संभाल नहीं पाये थे. 2017 के चुनाव में कांग्रेस की सबसे ज्यादा सीटें आयी थीं, लेकिन सरकार बनाया बीजेपी ने. दिग्विजय सिंह से खफा होने की एक बड़ी वजह बीजेपी की तरफ से कांग्रेस नेतृत्व का कहा गया शुक्रिया का भी असर था. गोवा के तमाम विधायकों के साथ साथ जब कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता विश्वजीत राणे जब बीजेपी ज्वाइन कर रहे थे तो दिग्विजय सिंह की भूमिका पर ही सवाल उठाये थे.
अभी तो ज्यादा दिन हुए भी नहीं, जब कांग्रेस छोड़ते हुए गुलाम नबी आजाद ने अपनी चिट्ठी में लिखा था कि राहुल गांधी को पहले कांग्रेस जोड़ो यात्रा करनी चाहिये और उसके बाद भी भारत जोड़ो जैसी मुहिम चलानी चाहिये - और अब तो साबित भी हो गया.
गोवा से खबर आयी है कि अभी मार्च, 2022 में विधानसभा चुनाव जीत कर आये कांग्रेस के 11 विधायकों में से 8 ने बीजेपी ज्वाइन कर लिया है. खास बात ये है कि ऐसे विधायकों में पूर्व मुख्यमंत्री दिगम्बर कामत भी शामिल हैं, जिनको कांग्रेस के बाकी उम्मीदवारों के साथ कसमें भी खिलायी गयी थी - और कांग्रेस प्रभारी पी. चिदंबरम की निगरानी में ईश्वर की शपथ लेकर सारे उम्मीदवारों ने शपथ ली थी कि पूरे पांच साल के विधानसभा के कार्यकाल तक वे कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे.
गोवा के विधायकों ने तो कांग्रेस प्रभारी पी. चिदंबरम का हाल भी दिग्विजय सिंह जैसा ही बना दिया है. वो भी तब जब उनके बेटे कार्ती चिदंबरम कांग्रेस के नये बागी नेताओं G-5 के साथ खड़े हो गये हैं. G-23 के बाद G-5 वो गुट है जो कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में पारदर्शिता की मांग को लेकर चुनाव अधिकारी मधुसूदन मिस्त्री को पत्र लिख चुका है. नये गुट के दबाव का असर भी दिखा है, मधुसूदन मिस्त्री ने उनकी डिमांड पूरी कर दी है.
भारत जोड़ो यात्रा का मकसद भी कांग्रेस को लेकर लोगों में खोया हुआ विश्वास वापस जगाना है. ये विश्वास जगाने के लिए राहुल गांधी और उनकी टीम कदम कदम पर संघर्ष कर रही है और न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं.
अब तक तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को चुनावी वादों की ही याद दिलायी जा रही थी, अब तो लोग उम्मीदवारों को कसमें खिलायी जाने को लेकर भी सवाल पूछेंगे. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता गंवाने से पहले राहुल गांधी के सामने जो सवाल उठाये जा रहे थे, बहुत दिनों से सचिन पायलट राजस्थान में वही याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस में रहते ज्योतिरादित्य सिंधिया भी राहुल गांधी को यही याद दिलाने की कोशिश कर रहे थे कि जिन चुनावी वादों की बदौलत मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार बनी थी, उनको पूरा क्यों नहीं किया जा रहा है?
बिलकुल वैसे ही सचिन पायलट भी राहुल गांधी को बार बार याद दिला चुके हैं कि 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनावों के दौरान जो वादे वो कर गये थे, वे अशोक गहलोत की सरकार क्यों नहीं पूरा कर रही है - और मामला लटका दिया जाता है. जैसे ही ऐसे सवाल उठते हैं, फटाफट अशोक गहलोत कहने लगते हैं कि राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनना चाहिये. कहते हैं, राहुल गांधी ही कांग्रेस को भी बचा सकते हैं और देश को भी - और राय मशविरा करके दोनों ही भारत जोड़ो यात्रा पर निकल जाते हैं.
ये भी बड़ा ही दिलचस्प मामला है कि गोवा चुनाव से पहले कांग्रेस उम्मीदवारों को बाकायदा ईश्वर को साक्षी मान कर शपथ दिलायी गयी थी, लेकिन जैसे लोगों के बीच राहुल गांधी वादे के पक्के नहीं साबित हो रहे हैं - कांग्रेस के विधायक भी बीजेपी को देखते ही सब कुछ भूल जाते हैं, फिर खायी हुई कसमें तक पीछे छूट जाती हैं.
बीजेपी पर राहुल गांधी राजनीति में धर्म को घुसा देने और भावनाओ से खेलते हुए राजनीति करने के आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन देखा जाये तो बिलकुल वही काम करके राहुल गांधी खुद फेल हो जाते - और जब ऐसी बातें वो बीजेपी के लिए कहते हैं तो उनके विरोधी उसमें खट्टे नजर आ रहे अंगूरों के गुच्छों की झलक देखने लगते हैं.
कसमें, वादे... बातें हैं बातों का क्या!
22 जनवरी, 2022 का दिन गोवा कांग्रेस के लिए बेहद खास था. उस दिन कांग्रेस नेतृत्व की सहमति से गोवा प्रभारी पी. चिदंबरम ने कांग्रेस के सभी 36 उम्मीदवारों को कांग्रेस न छोड़ने की शपथ दिलायी थी. हालांकि, ये शपथ मुख्य रूप से सिर्फ उन नेताओं के लिए रही जो जीत कर विधानसभा पहुंचते हैं.
कांग्रेस उम्मीदवारों को पार्टी दफ्तर या किसी और जगह नहीं बल्कि एक मंदिर, एक चर्च और एक दरगाह पर ऐसी शपथ दिलायी गयी थी - शपथग्रहण में सबसे ज्यादा जोर इसी बात पर रहा कि कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनने के बाद कोई भी नेता पार्टी छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा.
महालक्ष्मी मंदिर में विधायकों ने शपथ ली कि जिस कांग्रेस ने उनको टिकट दिया है हमेशा उसी के साथ रहेंगे. और ये स्थिति वे तब भी कायम रखेंगे जब प्रतिकूल परिस्थिति होगी. यानी हर हाल में पूरे पांच साल कांग्रेस के साथ ही बने रहेंगे. महालक्ष्मी मंदिर के बाद सभी 36 उम्मीदवारों को बम्बोलिन क्रॉस चर्च में भी वही ओथ दिलायी गयी थी - और फिर हम्जा शाह दरगाह पर भी.
ये भी कितनी अजीब बात है, तब दिगंबर कामत ने बड़े ही भावपूर्ण लहजे में मीडिया के जरिये लोगों को विश्वास दिलाने की कोशिश की थी, 'हम लोग ईश्वर में आस्था रखने वाले लोग हैं. हमें भगवान पर पूरा भरोसा है. लिहाजा, आज हमने ये शपथ ली है कि हम कभी छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे.'
दिगम्बर कामत को ये कहते भी सुना गया था कि गोवा के लोग अपनी सांप्रदायिक सद्भाव के लिए भी जाने जाते हैं - और कांग्रेस के प्रति निष्ठा को लेकर भी वे उतने ही गंभीर और समर्पित हैं. दिगम्बर कामत ने तब काफी जोर देकर कहा था, वे कांग्रेस उम्मीदवार किसी भी पार्टी को शिकार नहीं बनने देंगे.
और अब वही दिगंबर कामत कह रहे हैं कि कांग्रेस छोड़ने का फैसला भी भगवान से अनुमति लेकर ही कर रहे हैं - और दावा है कि जो कदम सारे विधायकों ने उठाया है, ईश्वर से पहले ही मंजूरी ले चुके हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत अब कह रहे हैं, 'मैं मंदिर गया था... और भगवान से पूछा भी... क्या किया जाये? भगवान ने मुझसे कहा कि जो भी तुम्हारे से सबसे ठीक हो, करो.'
राहुल गांधी पास कोई जवाब तो होगा ही
ऐसे ही 2019 में भी कांग्रेस के 10 विधायकों ने एक राजनीतिक उलटफेर के बाद बीजेपी ज्वाइन कर लिया था - और बीजेपी गोवा की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया था. 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों को तीन तीन बार शपथ दिलाने के पीछे एक से ज्यादा कारण थे.
सिर्फ विधायकों को धर्म के नाम पर निष्ठावान बनाये रखने की ही कांग्रेस की कोशिश नहीं थी, बल्कि लोगों में कांग्रेस को लेकर बनने लगी धारणा को दूर करना भी रहा. अफसोस की बात ये रही कि विधायकों ने एक बार फिर कांग्रेस नेतृत्व को गलत साबित कर दिया है.
असल में, विधायकों के कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन करने पर लोग ये मान कर चल रहे हैं कि वोट किसी को भी दो आखिरकार विधायक तो बीजेपी का ही बनेगा. चुनाव नतीजे जो भी आयें, तत्काल न सही लेकिन कुछ दिन बाद तो वो भगवा रंग में ही नजर आएगा. बाकियों के साथ जैसा भी हो, लेकिन कांग्रेस विधायकों को लेकर तो लोगों के मन में ऐसा ही विश्वास घर कर गया है - और एक बार फिर कांग्रेस विधायकों ने लोगों के यकीन को पुख्ता कर दिया है.
दिगंबर कामत के साथ ही बीजेपी ज्वाइन करने वाले माइकल लोबो कह रहे हैं, 'कांग्रेस छोड़ो, बीजेपी को जोड़ो.' माइकल लोबो का कहना है कि वो मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के हाथ मजबूत करने के लिए बीजेपी में शामिल हुए हैं. यहां ये जानना भी दिलचस्प है कि माइकल लोबो चुनावों से पहले ही बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस में गये थे, जहां हमेशा साथ बने रहने के लिए शपथ तक लेनी पड़ी थी.
देखा जाये तो माइकल लोबो की घर वापसी ही हुई है - फिर तो ऐसे भी समझ सकते हैं कि चुनाव के पहले का भूला भटका अगर जीतने के बाद घर वापसी कर ले तो उसे हाथों हाथ लेना चाहिये. जब वो पूरी बारात लेकर लौटे तो कहना ही क्या. और माइकल लोबो ने तो ऐसा ही किया है.
कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने को लेकर राहुल गांधी को अक्सर ही सवालों का जवाब देना पड़ता है. पहले तो वो ऐसे नेताओं को डरपोक बता कर पल्ला झाड़ लिया करते थे. निशाने पर तो बीजेपी ही होती थी, इस मुद्दे पर उनका ताजा जवाब थोड़ा अलग है.
वैसे राहुल गांधी ने पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए ऐसी बात कही थी. वो बताना चाहते थे कि बीजेपी से अपनी मध्य प्रदेश की कुछ प्रॉपर्टी को लेकर डर गये, इसलिए कांग्रेस छोड़ कर चले गये. बाद में कांग्रेस नेताओं के साथ बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस छोड़ कर कहीं न जाने वाले नेताओं को निडर बताया था - और इस कैटेगरी वे सारे ही नेता आते हैं जो बीजेपी से कांग्रेस में आये हैं.
नवजोत सिंह सिद्धू, रेवंत रेड्डी और नाना पटोले जैसे नेताओं के राहुल गांधी को पसंद आने की भी यही वजह है. रेवंत रेड्डी भी संघ की पृष्ठ भूमि वाली राजनीति से ही कांग्रेस में आये और राहुल गांधी ने उनको तेलंगाना कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया हुआ है. सिद्धू की ही तरफ नाना पटोले भी बीजेपी के सांसद हुआ करते थे - फिलहाल वो महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने हुए हैं. कहा तो यहां तक जाता है कि नाना पटोले से राहुल गांधी इतने प्रभावित रहे कि पहली भेंट में ही पूछ डाले थे - आप कौन सा पद लेना चाहेंगे?
नेताओं के कांग्रेस छोड़ने को लेकर पूछे गये सवाल पर राहुल गांधी का ताजातरीन जवाब रहा, ‘बीजेपी के पास ऐसे नेताओं पर दबाव डालने के बेहतर साधन हैं... बीजेपी ने सभी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है और इन संस्थाओं के जरिये दबाव डाल रही है... आप जानते हैं कि सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग की क्या भूमिका है?'
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