यूपी चुनाव में गोरखपुर सदर वीवीआईपी सीट बन गयी है - क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पहली बार वहीं से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. गोरखपुर संसदीय सीट को योगी आदित्यनाथ लगातार पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और सदर विधानसभा सीट भी उसी का हिस्सा है.
गोरखपुर सदर सीट 1989 से लेकर अब तक बीजेपी के पास ही रही है. योगी आदित्यनाथ के 1998 में लोक सभा पहुंचने के बाद 2002 में ये सीट बीजेपी के हाथ से कुछ दिन के लिए जरूर छीन ली गयी थी, लेकिन तब भी वो योगी आदित्यनाथ के कब्जे में ही रही - तब बीजेपी के अधिकृति प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधायक बने राधामोहन दास अग्रवाल आगे चल कर बीजेपी में ही शामिल हो गये थे. अग्रवाल को पहला चुनाव योगी आदित्यनाथ ने ही हिंदू महासभा से लड़ाया था.
बीजेपी ने इस बार राधामोहन दास का ही टिकट काट कर योगी आदित्यनाथ को उम्मीदवार बनाया है - और योगी आदित्यनाथ को चैलेंज करने वालों में सबसे चर्चित नाम भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद का है. ये बात अलग है कि अभी से वो मुख्य मुकाबले से बाहर नजर आने लगे हैं.
अब तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने भी अपने 40 फीसदी महिलाओं के कोटे से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया है. हालांकि, प्रियंका गांधी ने भी उम्मीदवार तय करने में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) वाली रणनीति ही अपनायी है.
गोरखपुर सदर सीट पर पूरे यूपी चुनाव की झलक नजर आ रही है - और योगी आदित्यनाथ के सामने अपनी सीट पर भी करीब करीब उसी तरह की चुनौतियां हैं जैसे विधानसभा चुनाव 2022 में पूरे उत्तर प्रदेश में.
गोरखपुर सदर सीट पर कौन-कौन
गोरखपुर सदर सीट पर यूपी के मुख्यमंत्री...
यूपी चुनाव में गोरखपुर सदर वीवीआईपी सीट बन गयी है - क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) पहली बार वहीं से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. गोरखपुर संसदीय सीट को योगी आदित्यनाथ लगातार पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और सदर विधानसभा सीट भी उसी का हिस्सा है.
गोरखपुर सदर सीट 1989 से लेकर अब तक बीजेपी के पास ही रही है. योगी आदित्यनाथ के 1998 में लोक सभा पहुंचने के बाद 2002 में ये सीट बीजेपी के हाथ से कुछ दिन के लिए जरूर छीन ली गयी थी, लेकिन तब भी वो योगी आदित्यनाथ के कब्जे में ही रही - तब बीजेपी के अधिकृति प्रत्याशी को शिकस्त देकर विधायक बने राधामोहन दास अग्रवाल आगे चल कर बीजेपी में ही शामिल हो गये थे. अग्रवाल को पहला चुनाव योगी आदित्यनाथ ने ही हिंदू महासभा से लड़ाया था.
बीजेपी ने इस बार राधामोहन दास का ही टिकट काट कर योगी आदित्यनाथ को उम्मीदवार बनाया है - और योगी आदित्यनाथ को चैलेंज करने वालों में सबसे चर्चित नाम भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद का है. ये बात अलग है कि अभी से वो मुख्य मुकाबले से बाहर नजर आने लगे हैं.
अब तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने भी अपने 40 फीसदी महिलाओं के कोटे से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया है. हालांकि, प्रियंका गांधी ने भी उम्मीदवार तय करने में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) वाली रणनीति ही अपनायी है.
गोरखपुर सदर सीट पर पूरे यूपी चुनाव की झलक नजर आ रही है - और योगी आदित्यनाथ के सामने अपनी सीट पर भी करीब करीब उसी तरह की चुनौतियां हैं जैसे विधानसभा चुनाव 2022 में पूरे उत्तर प्रदेश में.
गोरखपुर सदर सीट पर कौन-कौन
गोरखपुर सदर सीट पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीत की संभावना सत्ता में उनकी वापसी से भी कहीं ज्यादा है - और जैसे यूपी चुनाव में बीजेपी के मुकाबले में सबसे आगे पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को माना जा रहा है, गोरखपुर सदर सीट पर भी मुख्य मुकाबले बीजेपी और समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों में ही होगा, ऐसा लगता है.
ये कैसी उम्मीदवारी हुई: अखिलेश यादव ने बीजेपी उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक ऐसा उम्मीदवार खोज निकाला है, जिसके पति को 2018 के संसदीय उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार ने शिकस्त दी थी - उपेंद्र दत्त शुक्ला. 2020 में उपेंद्र दत्त शुक्ला का हार्ट अटैक से निधन हो गया था.
40 साल की राजनीति में एक भी चुनाव न जीत पाने वाले उपेंद्र शुक्ला की पत्नी सुभावती शुक्ला को अखिलेश यादव ने टिकट क्यों दिया ये भी इलाके में चर्चा का विषय है. सुभावती शुक्ला ने पति की राजनीति में घर के अंदर रहते हुए जो भी सहयोग किया हो, लेकिन बाहर तो वो कभी नहीं निकलते देखी गयीं.
और अब भी आलम वही है - पूरे इलाके में चर्चा यही है कि सुभावती शुक्ला का तो बस नाम है, चुनाव तो असल में उनका बेटा लड़ रहा है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 'बातचीत में उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया कि चुनाव तो अमित ही लड़ रहे हैं, माता जी का बस नाम है.'
बीबीसी से बातचीत में अमित असली वजह भी बता देते हैं, 'मां हमारी सांकेतिक चेहरा जरूर हैं, लेकिन पिता के नाम पर सहानुभूति वोट के लिए नहीं. मेरे पिता, उपेन्द्र दत्त शुक्ला का राजनीतिक सफर 40 साल का था... हमेशा संगठन में काम किया और किसी संवैधानिक पद पर नहीं पहुंच पाए. तीन विधानसभा चुनाव भी लड़े और सब हार गये.'
कांग्रेस उम्मीदवार महिला भी, ब्राह्मण भी: कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहने को तो महिला उम्मीदवारों के 40 फीसदी कोटे में ही गोरखपुर सदर सीट को भी रखा है, लेकिन साथ में अखिलेश यादव की ही तरह ब्राह्मण कार्ड भी खेल दिया है.
प्रियंका गांधी ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चेतना पांडेय को कांग्रेस का टिकट दिया है. कह सकते हैं एक तीर से डबल टारगेट जैसा मकसद है, ये बात अलग है कि ये सब रस्मअदायगी से ज्यादा नहीं लगता.
योगी आदित्यनाथ को चैलेंज करने वालों में सबसे पहला नाम सामने आया था भीम आर्मी नेता चंद्रशेखर आजाद रावण का जो आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.
मायावती ने ख्वाजा शमसुद्दीन को गोरखपुर सदर से बीएसपी का टिकट दिया है - वो करीब बीस साल से बीएसपी में कई तरह की जिम्मेदारियां निभाते आये हैं.
एक अनोखा उम्मीदवार भी मैदान में: सबसे खास बात ये है कि योगी आदित्यनाथ के खिलाफ एक बड़ा दिलचस्प उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरने जा रहा है - विजय सिंह.
विजय सिंह की खासियत ये है कि वो पिछले 26 साल से मुजफ्फरनगर में धरना दे रहे हैं. भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ चुके विजय सिंह भूमाफिया के खिलाफ एक्शन की मांग कर रहे हैं. धरना शुरू करने से पहले विजय सिंह शिक्षक हुआ करते थे.
एक और दिलचस्प पहलू ये है कि विजय सिंह गोरखपुर सदर सीट पर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चैलेंज करने के साथ ही पूरे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव प्रचार भी करने का ऐलान कर चुके हैं.
एक सीट - और पूरे सूबे की झलक
हर चुनाव की तरह यूपी चुनाव में भी सारे राजनीतिक हथकंडे अपनाये जा रहे हैं - जैसे पश्चिम यूपी को लेकर माना जा रहा है कि अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के चुनावी गठबंधन से लड़ाई में बीजेपी को बीएसपी का काफी सपोर्ट मिला है.
जो इनपुट मिल रहे हैं, उससे लगता है कि मायावती ने तमाम जगह ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं, जो सपा और आरएलडी उम्मीदवारों को काफी डैमेज कर सकते हैं - और जाटों की नाराजगी से जूझ रही बीजेपी के लिए रास्ता थोड़ा आसान बन सकता है.
गोरखपुर सीट पर भी मायावती ने वैसी ही चाल चली है. ये सब तो वे बातें हैं जो साफ तौर पर नजर आ रही हैं, लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं जो परदे के पीछे की राजनीति का हिस्सा हैं - और यही वजह है कि गोरखपुर सदर सीट यूपी चुनाव की पूरी झलक दिखा रही है.
1. कोई चुनावी गठबंधन नहीं: जैसे यूपी में प्रमुख दलों में कोई चुनावी गठबंधन नहीं है - गोरखपुर सदर सीट पर भी वो नजारा देखा जा सकता है - क्योंकि बीजेपी उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सभी राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं.
2. कोई आपसी अंडरस्टैंडिंग नहीं: अगर गोरखपुर सदर सीट पर उम्मीदवारों की सूची देखें तो मालूम होता है कि उन्नाव और करहल की सीटों पर विधानसभा चुनाव अपवाद हैं. उन्नाव और करहल में अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी ने एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े न करने का फैसला किया है.
3. हर कोई चंद्रशेखर के खिलाफ है: शुरू में लगा जरूर था, लेकिन धीरे धीरे साफ होता चला गया कि चंद्रशेखर आजाद को यूपी में कोई भी नेता नहीं बनने देना चाहता है. नतीजों पर भले ही बहुत फर्क नहीं पड़ता, लेकिन योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अपनी लड़ाई में विपक्षी दल चाहते तो चंद्रशेखर को अपना समर्थन दे सकते थे.
4. मायावती गोरखपुर में भी मददगार बनी हैं: मायावती ने ख्वाजा शमसुद्दीन को बीएसपी का टिकट देकर दलितों के साथ साथ मुस्लिम वोटों पर भी दावेदारी जता दी है. मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का फायदा जहां योगी आदित्यनाथ को मिलेगा, वहीं दलित वोट चंद्रशेखर को न मिले उसका भी इंतजाम कर लिया है.
5. और चंद्रशेखर मुकाबले से पहले ही बाहर: गोरखपुर सदर सीट पर अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी दोनों ने ही लड़ाई को ठाकुर बनाम ब्राह्मण बनाने की कोशिश की है - और मायावती के दांव से चंद्रशेखर तो बिलकुल ही अकेले पड़ गये हैं. लगता तो ऐसा है जैसे चंद्रशेखर पहले ही मुकाबले से बाहर होकर आखिरी पायदान पर पहुंच गये हों.
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