केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बीजेपी कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया. प्रस्ताव में कहा गया है कि 2022 तक देश से जातिवाद, संप्रदायवाद, आतंकवाद और नक्सलवाद खत्म होगा. प्रस्ताव के मुताबिक केंद्र सरकार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रही है और इसकी वजह से उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ रहा है. मुद्दा ये नहीं है कि देश छोड़कर भागने वालों के नाम विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी या कुछ और.
मुद्दे की बात ये है कि इस राजनीतिक प्रस्ताव में राम मंदिर का जिक्र क्यों नहीं है? अगर बीजेपी कहती है कि राम मंदिर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही अंतिम माना जाएगा, तो SC/ST कानून पर सरकार का स्टैंड इससे अलग क्यों है?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक बड़ा सवाल उठाया है - 'कुछ मामलों को सरकारें अदालत के विवेक पर छोड़ देती हैं, ऐसा क्यों?' जस्टिस चंद्रचूड़ ने जो प्रश्न उठाया है वो कर्ई नये सवालों को जन्म दे रहा है - मसलन, क्या सरकारें न्यायपालिका के कंधे पर बंदूक रख कर चुनावी फायदा उठाने लगी हैं?
"सुप्रीम कोर्ट हमारा है!"
यूपी की योगी सरकार में मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा सुप्रीम कोर्ट को लेकर एक ऐसा बयान दिया है जो कहीं न कहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सवाल से अपनेआप कनेक्ट हो जाता है? बहराइच की कैसरगंज सीट से बीजेपी विधायक सुप्रीम कोर्ट को लेकर जो सोच रहे हैं अगर वाकई बीजेपी नेताओं के विचार ऐसे हो चुके हैं तो स्थिति कितनी खतरनाक है, समझा जा सकता है.
मुकुट बिहारी से राम मंदिर को लेकर सवाल पूछा गया था. राम मंदिर का भरोसा दिलाते दिलाते वो हद से कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गये और कह डाला - "मामला सुप्रीम कोर्ट में है और सुप्रीम कोर्ट भी हमारा ही है."
इसी कड़ी में...
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बीजेपी कार्यकारिणी में राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया. प्रस्ताव में कहा गया है कि 2022 तक देश से जातिवाद, संप्रदायवाद, आतंकवाद और नक्सलवाद खत्म होगा. प्रस्ताव के मुताबिक केंद्र सरकार भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रही है और इसकी वजह से उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ रहा है. मुद्दा ये नहीं है कि देश छोड़कर भागने वालों के नाम विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी या कुछ और.
मुद्दे की बात ये है कि इस राजनीतिक प्रस्ताव में राम मंदिर का जिक्र क्यों नहीं है? अगर बीजेपी कहती है कि राम मंदिर के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही अंतिम माना जाएगा, तो SC/ST कानून पर सरकार का स्टैंड इससे अलग क्यों है?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक बड़ा सवाल उठाया है - 'कुछ मामलों को सरकारें अदालत के विवेक पर छोड़ देती हैं, ऐसा क्यों?' जस्टिस चंद्रचूड़ ने जो प्रश्न उठाया है वो कर्ई नये सवालों को जन्म दे रहा है - मसलन, क्या सरकारें न्यायपालिका के कंधे पर बंदूक रख कर चुनावी फायदा उठाने लगी हैं?
"सुप्रीम कोर्ट हमारा है!"
यूपी की योगी सरकार में मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा सुप्रीम कोर्ट को लेकर एक ऐसा बयान दिया है जो कहीं न कहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सवाल से अपनेआप कनेक्ट हो जाता है? बहराइच की कैसरगंज सीट से बीजेपी विधायक सुप्रीम कोर्ट को लेकर जो सोच रहे हैं अगर वाकई बीजेपी नेताओं के विचार ऐसे हो चुके हैं तो स्थिति कितनी खतरनाक है, समझा जा सकता है.
मुकुट बिहारी से राम मंदिर को लेकर सवाल पूछा गया था. राम मंदिर का भरोसा दिलाते दिलाते वो हद से कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ गये और कह डाला - "मामला सुप्रीम कोर्ट में है और सुप्रीम कोर्ट भी हमारा ही है."
इसी कड़ी में दावा करते हुए मुकुट बिहारी ने बताया कि न्यायपालिका, प्रशासन, देश और मंदिर हमारा है. ज्यादा देर न लगी और बयान से सियासी भूचाल आ गया. जब विवाद बढ़ा तो मुकुट बिहारी ने भी बाकी नेताओं की तरह फौरन ही यू टर्न ले लिया - 'मैंने ऐसा नहीं कहा कि कोर्ट हमारी सरकार की है.'
मामला सुप्रीम कोर्ट में है, लेकिन नफे-नुकसान के हिसाब से
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का सीधा सवाल रहा - "कुछ मामले ऐसे हैं जिन्हें सरकारें अदालत के विवेक पर छोड़ देती हैं... उनमें सरकार किसी का पक्ष नहीं लेतीं.
धारा 377 पर फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ के जजों में से एक जस्टिस चंद्रचूड़ की नजर में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के मामले में भी सरकार ने ऐसा ही किया था. जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस क्रम में दिल्ली में प्रशासन का केस और इच्छामृत्यु के मामले का भी जिक्र किया. जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा - "कुछ फैसलों को सरकारें आखिर कोर्ट के विवेक पर क्यों छोड़ देती हैं? राजनीतिज्ञ आखिर जजों के हाथ में शक्ति क्यों सौंप देते हैं? इनमें कई बार बेहद संवेदनशील मसले भी होते हैं... हम देख रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट में आये दिन ऐसा होता है."
कोर्ट के कंधे पर बंदूक रख कर क्यों चला रही सरकार?
2014 के चुनाव में बीजेपी ज्यादातर नेता बढ़ चढ़ कर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात करते रहे. अभी हाल ये है कि बीजेपी सुप्रीम कोर्ट में मामला बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करती रही है. तो क्या यही वजह है कि राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी कार्यकारिणी में चर्चा से गायब है?
SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से ही बवाल जारी है. ये एक ऐसा मुद्दा है जिस पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार दोहरी आलोचना की शिकार हो रही है. पहली बार इस बात के लिए कि उसने कोर्ट में ठीक से पैरवी नहीं की. दूसरी बार इस बात के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट दिया.
पहले इस पर SC/ST के तहत आने वाले लोग मोदी सरकार से खफा थे, अब सवर्ण समुदाय के लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है. दिलचस्प बात ये है कि दोनों पक्ष अपने अपने हक के लिए भारत बंद करा चुके हैं - और अब आने वाले आम चुनाव में इसके असर का अंदाजा लगाया जा रहा है.
देखा जाये तो केंद्र की बीजेपी सरकार ने शाहबानो प्रकरण ही दोहराया है. जब राजीव गांधी की सरकार रही तब ऐसे ही सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को संवैधानिक तरीके से बदल दिया गया था. इस बार भी संसद में बाकायदा आदेश को बदला गया है. पिछली बार भी, और इस बार भी - बदलाव की एक मात्र वजह चुनावी राजनीति है. दोनों ही मामलों में सत्ताधारी पार्टी के वोट बैंक के हिसाब से कदम उठाये गये.
जस्टिस चंद्रचूड़ का सवाल बहुत ही गंभीर है क्योंकि ऐसे मामलों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है. जम्मू-कश्मीर में तमाम राजनीतिक दल केंद्र सरकार से सफाई मांग रहे हैं. दरअसल, कश्मीरी लोगों को विशेष अधिकार प्रदान करने वाला धारा 35A का मामला भी सुप्रीम कोर्ट में ही है. जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों का इल्जाम है कि सरकार धारा 35A को खत्म करने के लिए कानूनी रास्ता अख्तियार कर रही है. हकीकत जो भी हो, तकरीबन हर मामले में सरकार कठघरे में खड़ी नजर आती है - और ये अच्छी बात नहीं है.
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