राहुल गांधी के ताजा गुजरात दौरे में मालूम हुआ कि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले न करने का फैसला क्यों किया है. बावजूद इसके बीजेपी के कैंपेन पर तब तक कोई फर्क नहीं पड़ा जब तक चुनाव आयोग ने ऐतराज नहीं जताया. चुनाव आयोग की सख्ती के कारण बीजेपी को गुजरात में राहुल गांधी के खिलाफ अपने कैंपेन में बड़ी तब्दीली करनी पड़ी है.
चुनाव आयोग में अंधेर नहीं
चुनाव आयोग में भी लगता है देर है, लेकिन अंधेर नहीं. गुजरात चुनाव की तारीखें घोषित करने में चुनाव आयोग ने भले ही देर की हो, लेकिन राहुल गांधी के मामले में उसने दिखा दिया कि वहां अंधेर नहीं है. ये दूसरा मौका है जब चुनाव आयोग के चलते कांग्रेस को मदद मिली है. इससे पहले अहमद पटेल को भी राज्य सभा चुनाव में जीत नहीं मिल पाती अगर चुनाव आयोग ने एक विधायक का वोट रद्द नहीं किया होता.
गुजरात बीजेपी ने 31 अक्टूबर को मीडिया सत्यापन के लिए एक विज्ञापन चुनाव आयोग के पास भेजा था. विज्ञापन में पप्पू शब्द के इस्तेमाल पर चुनाव आयोग ने आपत्ति जतायी थी. चुनाव आयोग ने विज्ञापन के परीक्षण में पाया कि उसमें एक खास व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए पप्पू शब्द का इस्तेमाल हुआ है जो अपमानजनक है.
विज्ञापन में दुकान पर आये एक शख्स के लिए 'पप्पू' नाम इस्तेमाल किया गया था. विज्ञापन में दुकान पर काम करने वाला लड़का बोल रहा था, 'सर, पप्पू भाई आये लगते हैं.'हालांकि, उसमें पप्पू का चेहरा नहीं दिखाया गया था.
आयोग की सख्ती के बाद बीजेपी ने पप्पू की जगह युवराज शब्द का विकल्प दिया जिसे आयोग ने मंजूर कर लिया. बीजेपी को भी गुजरात चुनाव आयोग के इस रवैये पर आपत्ति रही. बीजेपी का कहना था कि विज्ञापन में किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया गया है...
राहुल गांधी के ताजा गुजरात दौरे में मालूम हुआ कि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले न करने का फैसला क्यों किया है. बावजूद इसके बीजेपी के कैंपेन पर तब तक कोई फर्क नहीं पड़ा जब तक चुनाव आयोग ने ऐतराज नहीं जताया. चुनाव आयोग की सख्ती के कारण बीजेपी को गुजरात में राहुल गांधी के खिलाफ अपने कैंपेन में बड़ी तब्दीली करनी पड़ी है.
चुनाव आयोग में अंधेर नहीं
चुनाव आयोग में भी लगता है देर है, लेकिन अंधेर नहीं. गुजरात चुनाव की तारीखें घोषित करने में चुनाव आयोग ने भले ही देर की हो, लेकिन राहुल गांधी के मामले में उसने दिखा दिया कि वहां अंधेर नहीं है. ये दूसरा मौका है जब चुनाव आयोग के चलते कांग्रेस को मदद मिली है. इससे पहले अहमद पटेल को भी राज्य सभा चुनाव में जीत नहीं मिल पाती अगर चुनाव आयोग ने एक विधायक का वोट रद्द नहीं किया होता.
गुजरात बीजेपी ने 31 अक्टूबर को मीडिया सत्यापन के लिए एक विज्ञापन चुनाव आयोग के पास भेजा था. विज्ञापन में पप्पू शब्द के इस्तेमाल पर चुनाव आयोग ने आपत्ति जतायी थी. चुनाव आयोग ने विज्ञापन के परीक्षण में पाया कि उसमें एक खास व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए पप्पू शब्द का इस्तेमाल हुआ है जो अपमानजनक है.
विज्ञापन में दुकान पर आये एक शख्स के लिए 'पप्पू' नाम इस्तेमाल किया गया था. विज्ञापन में दुकान पर काम करने वाला लड़का बोल रहा था, 'सर, पप्पू भाई आये लगते हैं.'हालांकि, उसमें पप्पू का चेहरा नहीं दिखाया गया था.
आयोग की सख्ती के बाद बीजेपी ने पप्पू की जगह युवराज शब्द का विकल्प दिया जिसे आयोग ने मंजूर कर लिया. बीजेपी को भी गुजरात चुनाव आयोग के इस रवैये पर आपत्ति रही. बीजेपी का कहना था कि विज्ञापन में किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया गया है इसलिए आयोग का कदम ठीक नहीं है. अगर ऐसा था तो बीजेपी ने पप्पू की जगह युवराज का ही विकल्प क्यों चुना? निश्चित रूप से निशाने पर खास व्यक्ति ही रहा, फिर तो साबित होता है कि आयोग का कदम बिलकुल सही रहा.
पप्पू, पलटू और फेंकू
चुनाव आयोग की इस आपत्ति से पहले सोशल मीडिया पर पप्पू शब्द का खूब इस्तेमाल देखने को मिलता रहा है. 2014 के चुनावों में बीजेपी नेता राहुल गांधी को कभी युवराज तो कभी पप्पू कह कर ही टारगेट किया करते रहे. नेताओं के भाषण के अलावा पार्टी के सोशल मीडिया कैंपेन में भी ये शब्द खूब इस्तेमाल होता रहा.
पप्पू की काट में कांग्रेस की ओर से फेंकू शब्द लांच हुआ. कांग्रेस के कैंपेन में ये शब्द प्रधानमंत्री मोदी के लिए प्रयोग होता रहा. इन दोनों के अलावा चुनावों में एक और भी शब्द प्रचलित रहा - पलटू. इस शब्द का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के लिए उनके राजनीतिक विरोधी करते रहे.
मोदी पर निजी हमले से बचने की सियासी वजह जो भी हो, लेकिन कांग्रेस का ये कदम सराहनीय है. बीजेपी के अड़े होने के बावजूद राहुल गांधी के लिए पप्पू शब्द पर पाबंदी भी राजनीति में अच्छा संकेत है. और कुछ भले न हो, इससे कम से कम इतना तो होगा कि चुनाव प्रचार में नेता मर्यादा लांघने से बचने की कोशिश तो करेंगे.
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