गुजरात को बीजेपी का हिन्दुत्व का प्रयोग स्थल कहा जाता है. 2002 के दंगों के बाद से शुरु हुआ हिन्दुत्व का नारा और मोदीयुग की शुरुआत हुई थी. यही कट्टर हिन्दुवादी छवि 2003 में वाईब्रेंट गुजरात और विकास पुरुष के मेकओवर के जरीये बदलने लगी. 2002 के बाद हिन्दुत्व के नाम पर चुनाव जीतने वाली बीजेपी हिन्दुत्व के एजेन्डे से ही इतनी दूर होने लगी की 2017 के चुनाव आते-आते खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 'विकास पागल हो गया है' या 'विकास एक जुमला है' पर बचाव में उतरना और कहना पड़ा की 'मैं विकास हुं, मैं गुजरात हूं.'
तो वहीं पिछले 20 सालों से हाशिये पर खड़ी कांग्रेस के लिये ये चुनाव करो या मरो की स्थिति है. दरअसल कांग्रेस अगर इस बार गुजरात में चुनाव नहीं जीत पाई तो गुजरात में उसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो जायेंगें. यही वजह है की अबतक जिस हिन्दुत्व के नाम पर बीजेपी लोगों से वोट ले रही थी, उसी हिन्दुत्व के नाम पर कांग्रेस भी अपना दांव खेलने लगी है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जब सौराष्ट्र का रोड शो शुरु किया तो पहले द्वारकाधीश के दर्शन किये. फिर चोटीला में मां चामुंडा के दर्शन के साथ-साथ दूसरे दौरे में मध्य गुजरात में संतराम मंदिर, भाथीजी मंदिर तक में माथा टेक आए. सूत्रों के मुताबिक अहमद पटेल भी इस बार गुजरात चुनाव से पुरी तरह दूर हैं. ताकि हिन्दु मुस्लिम के नाम पर बीजेपी को राजनीति करने का कोई मौका ना मिले.
विकास के नाम पर जहां बीजेपी राजनीति कर गुजरात में आगे बढ़ नहीं पा रही है, तो वहीं पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस ने उसी विकास को गुजरातियों के सामने पागल बना दिया है. इसी विकास को बीजेपी और नरेन्द्र मोदी ने 2007 और 2012 में चुनाव का मुद्दा बनाकर जीता था. वहीं कांग्रेस और...
गुजरात को बीजेपी का हिन्दुत्व का प्रयोग स्थल कहा जाता है. 2002 के दंगों के बाद से शुरु हुआ हिन्दुत्व का नारा और मोदीयुग की शुरुआत हुई थी. यही कट्टर हिन्दुवादी छवि 2003 में वाईब्रेंट गुजरात और विकास पुरुष के मेकओवर के जरीये बदलने लगी. 2002 के बाद हिन्दुत्व के नाम पर चुनाव जीतने वाली बीजेपी हिन्दुत्व के एजेन्डे से ही इतनी दूर होने लगी की 2017 के चुनाव आते-आते खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 'विकास पागल हो गया है' या 'विकास एक जुमला है' पर बचाव में उतरना और कहना पड़ा की 'मैं विकास हुं, मैं गुजरात हूं.'
तो वहीं पिछले 20 सालों से हाशिये पर खड़ी कांग्रेस के लिये ये चुनाव करो या मरो की स्थिति है. दरअसल कांग्रेस अगर इस बार गुजरात में चुनाव नहीं जीत पाई तो गुजरात में उसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो जायेंगें. यही वजह है की अबतक जिस हिन्दुत्व के नाम पर बीजेपी लोगों से वोट ले रही थी, उसी हिन्दुत्व के नाम पर कांग्रेस भी अपना दांव खेलने लगी है. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जब सौराष्ट्र का रोड शो शुरु किया तो पहले द्वारकाधीश के दर्शन किये. फिर चोटीला में मां चामुंडा के दर्शन के साथ-साथ दूसरे दौरे में मध्य गुजरात में संतराम मंदिर, भाथीजी मंदिर तक में माथा टेक आए. सूत्रों के मुताबिक अहमद पटेल भी इस बार गुजरात चुनाव से पुरी तरह दूर हैं. ताकि हिन्दु मुस्लिम के नाम पर बीजेपी को राजनीति करने का कोई मौका ना मिले.
विकास के नाम पर जहां बीजेपी राजनीति कर गुजरात में आगे बढ़ नहीं पा रही है, तो वहीं पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस ने उसी विकास को गुजरातियों के सामने पागल बना दिया है. इसी विकास को बीजेपी और नरेन्द्र मोदी ने 2007 और 2012 में चुनाव का मुद्दा बनाकर जीता था. वहीं कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी पाटीदार, ओबीसी और दलित कार्ड के साथ-साथ सॉफ्ट हिन्दुत्व के मुद्दे को ही अपने निशाने पर रख रही है.
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक 2002 के बाद बीजेपी ने लोगों के दिलों में हिन्दू मुस्लिम का डर बिठाने में कामयाब हुई है. इतना ही नहीं बीजेपी ने कहीं ना कहीं ये भी लोगों के सामने रख दिया है कि बीजेपी यानी हिन्दुओं की पार्टी और कांग्रेस यानी मुस्लिम की पार्टी. और अगर जनता बीजेपी को सत्ता में लेकर नहीं आई तो ये मुस्लिमों की पार्टी जनता को जीने नहीं देगी. ऐसे में कांग्रेस की ये सॉफ्ट हिन्दुत्व की छवि कुछ हद तक तो आज के युवाओं में अपनी पैठ बनाने में कामयाब रही है.
साथ ही कांग्रेस ने धीरे-धीरे तीन बड़े जातिवादी नेता- अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल और जिग्नेश के जरीये युवाओं को अपने साथ जोड़ लिया है. गुजरात में कुल वोटर का 60% वोटर 40 की उम्र के आसपास है. ऐसे युवा जिन्होंने कभी ये देखा ही नहीं है कि आखिर कांग्रेस की सत्ता कितनी कामयाब थी और दंगे कैसे होते हैं. उन्होंने जब से राजनीति को समझा है सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को गुजरात में राज करते हुए देखा है.
जिस विकास की बात नरेन्द्रभाई मोदी करते हैं, उस विकास का सब से ज्यादा शिकार आज के युवा ही हुए हैं. जिसमें बेरोजगारी, शिक्षा का निजीकरण, किसानों की आत्महत्या, फसल के सही दाम ना मिलना ये सारे मुद्दे सामने खड़े हैं. जबकि कांग्रेस के साथ जातिवादी राजनेता तो हैं ही, साथ ही ये तीनों नेता ऐसा ही मुद्दे को लोगों के सामने रख रहे हैं, जिसमें बेरोजगारी, शिक्षा का निजीकरण और किसानों की आत्महत्या प्रमुख है. ये मुद्दे सीधा लोगों के दिल तक पहुंचते हैं. बीजेपी गुजरात को विकास मॉडल बताकर दिल्ली के तख्त पर काबिज होने में कामयाब रही.
हालांकि इस विकास और सॉफ्ट हिन्दुत्व में किसकी जीत होती है ये तो गुजरात के नतीजों के बाद ही साफ होगा. लेकिन इतना साफ है कि ये जीत 2019 के लोकसभा चुनाव की दशा ओर दिशा दोनों ही तय करेगी.
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