भाजपा जीत के जश्न में डूबी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात की जीत को विकास की जीत करार दे रहे हैं. सवाल उठता है कि क्या 2012 के नतीजों के मुकाबले पिछड़ने के बावजूद भी भाजपा को जश्न में डूबना चाहिए? तो इसका जवाब पाने के लिए भाजपा के बेहद विवादित फैसलों की तरफ रुख करना पड़ेगा, एजेंडे को परखना होगा. कांग्रेस की चुनावी रणनीति का भी सिंहावलोकन करना पड़ेगा.
चुनावी परीक्षा में पास हो गए जीएसटी और डिमोनेटाइजेशन?
जीएसटी और डिमोनेटाइजेशन, दो ऐसे हथियार थे जिन्हें कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ जमकर इस्तेमाल किया. राहुल गांधी ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स तक कहा. माना जा रहा था कि व्यापारी इस बार भाजपा को धूल चटा देंगे. गुजरात में व्यापारियों के गढ़ सूरत ने आशातीत नतीजे दिए. भाजपा को सूरत ने सिरमाथे पर बैठाया तो कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया. तो क्या इससे अब यह मान लेना चाहिए कि भाजपा के ये दोनों फैसलों पर व्यापारी समुदाय ने अपनी मुहर लगा दी है? बहरहाल सूरत की जनता के चुनाव के पीछे वजह जो भी हो, लेकिन जीएसटी और डिमोनेटाइजेशन के बाद सांसत में आई भाजपा के लिए यह राहत की बात है.
कांग्रेस के लिए भाजपा ने तय किया एजेंडा:
अपने हिंदूवादी एजेंडे पर भाजपा गुजरात में भी कायम रही. लेकिन गुजरात की चुनावी गंगा में कांग्रेस की चाल और चरित्र दोनों बदले बदले से दिखे. राहुल गांधी ने सोमनाथ मंदिर में जाकर मत्था टेका. विवाद बढ़ने पर कांग्रेसी नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने उन्हें जनेऊधारी ब्राह्मण तक करार दिया. कांग्रेस के कई नेताओं ने उन्हें ब्राह्मण बताने के लिए बढ़ चढ़कर राजीव गांधी के अंतिम संस्कार की फोटो शेयर की. राहुल गांधी ने भी चुप्पी साधना ही...
भाजपा जीत के जश्न में डूबी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात की जीत को विकास की जीत करार दे रहे हैं. सवाल उठता है कि क्या 2012 के नतीजों के मुकाबले पिछड़ने के बावजूद भी भाजपा को जश्न में डूबना चाहिए? तो इसका जवाब पाने के लिए भाजपा के बेहद विवादित फैसलों की तरफ रुख करना पड़ेगा, एजेंडे को परखना होगा. कांग्रेस की चुनावी रणनीति का भी सिंहावलोकन करना पड़ेगा.
चुनावी परीक्षा में पास हो गए जीएसटी और डिमोनेटाइजेशन?
जीएसटी और डिमोनेटाइजेशन, दो ऐसे हथियार थे जिन्हें कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ जमकर इस्तेमाल किया. राहुल गांधी ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स तक कहा. माना जा रहा था कि व्यापारी इस बार भाजपा को धूल चटा देंगे. गुजरात में व्यापारियों के गढ़ सूरत ने आशातीत नतीजे दिए. भाजपा को सूरत ने सिरमाथे पर बैठाया तो कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया. तो क्या इससे अब यह मान लेना चाहिए कि भाजपा के ये दोनों फैसलों पर व्यापारी समुदाय ने अपनी मुहर लगा दी है? बहरहाल सूरत की जनता के चुनाव के पीछे वजह जो भी हो, लेकिन जीएसटी और डिमोनेटाइजेशन के बाद सांसत में आई भाजपा के लिए यह राहत की बात है.
कांग्रेस के लिए भाजपा ने तय किया एजेंडा:
अपने हिंदूवादी एजेंडे पर भाजपा गुजरात में भी कायम रही. लेकिन गुजरात की चुनावी गंगा में कांग्रेस की चाल और चरित्र दोनों बदले बदले से दिखे. राहुल गांधी ने सोमनाथ मंदिर में जाकर मत्था टेका. विवाद बढ़ने पर कांग्रेसी नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने उन्हें जनेऊधारी ब्राह्मण तक करार दिया. कांग्रेस के कई नेताओं ने उन्हें ब्राह्मण बताने के लिए बढ़ चढ़कर राजीव गांधी के अंतिम संस्कार की फोटो शेयर की. राहुल गांधी ने भी चुप्पी साधना ही मुनासिब समझा. परदादा जवाहर लाल नेहरु की जातीय विरासत का हवाला राहुल को ब्राह्मण बनाने में कारगर रहा. हालांकि राहुल के पास खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के ठोस आधार थे. मां क्रिस्चियन, दादा पारसी और परदादा हिंदू. लेकिन रणनीतिकारों ने मौके की नजाकत को भांपते हुए, मां और दादा की पहचान को परे करना ही ठीक समझा. राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ मोड़ने का श्रेय हिंदुवादी एजेंडे पर चल रही भाजपा को ही जाता है.
गोधरा दंगों के आरोप से बाइज्जत बरी होने के बाद भी कांग्रेस ने इस मामले को गाहे-बगाहे अलग-अलग मंचो पर उठाया है. गुलबर्ग सोसायटी कांड में दंगों का शिकार हुए एहसान जाफरी का नाम तक कांग्रेस ने इन चुनावों में लेना मुनासिब नहीं समझा. यहां तक कि मुस्लिमों का जिक्र राहुल ने एक बार भी नहीं किया. कुल मिलाकर मुस्लिमों को गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने अछूत करार दे दिया. कांग्रेस ने अपने परंपरागत मुस्लिम वोटर को भाजपा की लाइन पर चलते हुए दरकिनार कर दिया.
और तो और ईवीएम भी भाजपा नहीं कांग्रेस का मुद्दा:
2009 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा को कांग्रेस के हाथों शिकस्त मिली थी, तो भाजपा ने पहली बार ईवीएम का मुद्दा उठाया था. पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जमकर ईवीएम को कांग्रेस की जीत और अपनी पार्टी की हार की वजह बताया था. इसके बाद पार्टी ने भारतीय, विदेशी विशेषज्ञों, कई गैर सरकारी संगठनों, एनजीओ और थिंक टैंक की मदद से पूरे देश में ईवीएम के खिलाफ एक अभियान चलाया था.
2010 में भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने तथाकथित धोखेबाज ईवीएम की पूरी कहानी बयान की थी. 'डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन' नाम से एक किताब तक लिख डाली. भाजपा के कट्टर हिंदुत्व का चेहरा सुब्रमण्यम स्वामी ने भी 'इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनः अनकॉन्स्टिट्यूशनल एंड टैंपरेबल' नाम से किताब लिखी.
कांग्रेस के नेता अखिलेश सिंह जब चुनावी नतीजों के बीच यह कह रहे थे कि जैसे-तैसे भाजपा ने जीत दर्ज की है, तो वे ईवीएम की गड़बड़ी की तरफ ही इशारा कर रहे थे. हार्दिक ने तो खुले तौर पर ईवीएम के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. कांग्रेस नेताओं और समर्थकों ने नतीजों से पहले ही ईवीएम पर आरोप मढ़ने शुरू कर दिए थे. चुनाव से पहले ही यह तय हो गया था कि यह अग्नि परीक्षा नरेंद्र मोदी की नहीं बल्कि ईवीएम की है.
राहुल गांधी के कहे अनुसार परिवर्तन की आंधी तो यह चुनाव नतीजे नहीं बन सके, मगर ठंडी हवा का झोंका जरूर साबित हुए हैं. 68 से बढ़कर 80 का आंकड़ा छूना, 2014 से लेकर अब तक लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस के लिए अशुभ संकेत नहीं है. इस बीच पंजाब में कांग्रेज जीती, लेकिन इसका पूरा श्रेय कैप्टन अमरिंदर सिंह को ही जाता है. भाजपा के गढ़ और मोदी के गृह राज्य में गुजरात में कांग्रेस की इस जीत को छोटा करके आंका नहीं जाना चाहिए.
लेकिन इन चुनावों में भाजपा के लिए सबसे राहत वाली बात है, जीएसटी और डिमोनेटाइजेशन के टेस्ट में पास होना और उससे भी ज्यादा सुखद है कांग्रेस को भाजपा के एजेंडे पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर करना. इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा के लिए यह कई मायने में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को राहत पहुंचाने और भविष्य चुनावों पर बड़ा असर डालने वाली साबित हो सकती है. लेकिन भाजपा अपनी इस जीत का प्रचार करके और बड़ा बनाएगी. और यह सबको पता है कि प्रचार के मामले में भाजपा महारथी है.
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