गुजरात चुनाव नतीजे 2017 भाजपा के पक्ष में जाते दिख रहे हैं. लेकिन कांग्रेस के लिए बहुत दुखी होने का कारण नहीं है. क्योंकि उसने पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर स्कोर हासिल किया है. लेकिन, इस चुनाव में कांग्रेस ने अल्पेश ठाकुर पर दाव लगाया था. लेकिन आंकलन किया जा रहा है कि उन्होंने पर्याप्त जोर नहीं लगाया और वही कांग्रेस के लिए हार का सबब बनता दिख रहा है. और बीजेपी को जीत मिल रही है और बीजेपी को हार.
राजनीति के लिए मुद्दे ज़रूरी हैं. मुद्दे कुछ भी हो सकते हैं मगर मुद्दे तभी भुनाए जाते हैं जब स्क्रिप्ट और टाइमिंग मजबूत हो. गुजरात में स्क्रिप्ट अच्छी रची गयी थी मगर टाइमिंग गलत रही और ये गलत टाइमिंग का प्रभाव ही था जिसके बल पर अल्पेश ठाकुर ज्यादा कुछ कर नहीं पाए. चुनाव से पहले जोश से लबरेज अल्पेश को देखकर लग रहा था कि ये कुछ बड़ा करेंगे मगर जिस तरीके के नतीजे आ रहे हैं उससे ये कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि गुजरात खासतौर से उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में अल्पेश ठाकोर की हालत पतली है.
गुजरात में हार्दिक पटेल की देखा देखी अल्पेश ने ओबीसी, एससी और एसटी को एक मंच पर लाने का काम किया और उनके लिए ओएसएस नाम का एक संगठन बना दिया. अल्पेश ने अपनी सियासत गुजरात के ओबीसी, एससी और एसटी के बल पर चमकाने की कोशिश की. मगर उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में उन्हें किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया. अब तक जो परिणाम निकल रहे हैं उनको देखकर साफ हो गया है कि एक आम गुजरती को अल्पेश की ये अदा शायद पसंद नहीं आई और उसने इसे केवल एक चुनावी जुमला माना.
बात अल्पेश की हो रही है तो हमें पहले उनके कार्य क्षेत्र और कार्यप्रणाली को समझना होगा. ध्यान रहे कि अल्पेश कहीं न कहीं इस...
गुजरात चुनाव नतीजे 2017 भाजपा के पक्ष में जाते दिख रहे हैं. लेकिन कांग्रेस के लिए बहुत दुखी होने का कारण नहीं है. क्योंकि उसने पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर स्कोर हासिल किया है. लेकिन, इस चुनाव में कांग्रेस ने अल्पेश ठाकुर पर दाव लगाया था. लेकिन आंकलन किया जा रहा है कि उन्होंने पर्याप्त जोर नहीं लगाया और वही कांग्रेस के लिए हार का सबब बनता दिख रहा है. और बीजेपी को जीत मिल रही है और बीजेपी को हार.
राजनीति के लिए मुद्दे ज़रूरी हैं. मुद्दे कुछ भी हो सकते हैं मगर मुद्दे तभी भुनाए जाते हैं जब स्क्रिप्ट और टाइमिंग मजबूत हो. गुजरात में स्क्रिप्ट अच्छी रची गयी थी मगर टाइमिंग गलत रही और ये गलत टाइमिंग का प्रभाव ही था जिसके बल पर अल्पेश ठाकुर ज्यादा कुछ कर नहीं पाए. चुनाव से पहले जोश से लबरेज अल्पेश को देखकर लग रहा था कि ये कुछ बड़ा करेंगे मगर जिस तरीके के नतीजे आ रहे हैं उससे ये कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि गुजरात खासतौर से उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में अल्पेश ठाकोर की हालत पतली है.
गुजरात में हार्दिक पटेल की देखा देखी अल्पेश ने ओबीसी, एससी और एसटी को एक मंच पर लाने का काम किया और उनके लिए ओएसएस नाम का एक संगठन बना दिया. अल्पेश ने अपनी सियासत गुजरात के ओबीसी, एससी और एसटी के बल पर चमकाने की कोशिश की. मगर उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में उन्हें किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया. अब तक जो परिणाम निकल रहे हैं उनको देखकर साफ हो गया है कि एक आम गुजरती को अल्पेश की ये अदा शायद पसंद नहीं आई और उसने इसे केवल एक चुनावी जुमला माना.
बात अल्पेश की हो रही है तो हमें पहले उनके कार्य क्षेत्र और कार्यप्रणाली को समझना होगा. ध्यान रहे कि अल्पेश कहीं न कहीं इस बात को बेहतर ढंग से जानते थे कि गुजरात की राजनीति में ओबीसी और अन्य पिछड़ा वर्ग के पास वोट के रूप में असीम ताकत है. गुजरात के सन्दर्भ में हमेशा से ही राजनीतिक पंडितों का ये मानना रहा है कि यहां जिस भी नेता ने कमजोर तबके को अपने वश में कर लिया वही यहां की सत्ता का सुख भोगता है.
गौरतलब है कि अल्पेश ठाकोर ने उत्तर गुजरात को अपना कार्यक्षेत्र बनाया था और मध्य गुजरात में दौरे किये थे. ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तर और मध्य गुजरात में ठाकोरों और ओबीसी की कुल आबादी को यदि मिला दिया जाये तो उत्तर गुजरात की 53 सीटों में से ये वोटबैंक 30 से ज्यादा सीटों को प्रभावित करता है. राधनपुर विधान सभा क्षेत्र से भाजपा के लविंगजी ठाकोर के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अल्पेश अपने विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं को रिझा नहीं पाए हैं और यहां पिछड़ों के अधिकांश वोट भाजपा के खाते में गए हैं और इससे ये साफ हो गया है कि पिछड़ों ने भी अप्लेश के चुनावी जुमलों को एक हसीं ख्वाब मान कर नकार दिया है. वर्तमान परिपेक्ष में इस सीट को देखकर कहा जा सकता है कि यहां अल्पेश, अपने ही समुदाय के बीजेपी उम्मीदवार से कड़े मुकाबले में है.
बहरहाल, ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि इस चुनाव में राधनपुर सीट जितनी जरूरी भाजपा के लिए है उतनी ही प्रमुख ये कांग्रेस के लिए भी है. यदि अल्पेश इस सीट पर बढ़त बना लेते हैं तो साफ हो जाएगा कि उनकी बात लोगों खासतौर से ओबीसी समुदाय को पसंद आई है और उन्होंने उनका साथ दिया है और यदि वो हार गए तो ये बात ये दर्शाने के लिए काफी होगी कि पहचान का मोहताज और एक उभरता हुआ नेता मानकर उनके ही लोगों ने उन्हें सिरे से खारिज कर दिया है और भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपना विश्वास कायम रखा है.
अंत में बस इतना ही कि गुजरात में परिणाम जो भी हों मगर ये देखना दिलचस्प रहेगा कि जीएसटी, नोटबंदी जैसे मुख्य मुद्दों को दरकिनार कर गुजरात की जनता खासतौर से वो तबके जिनको लेकर आल्पेश, हार्दिक और जिग्नेश अपनी राजनीति चमका रहे हैं उनका कितना कल्याण हुआ है. साथ ही ये भी देखना दिलचस्प रहेगा कि गुजरात की जीत में निर्णायक भूमिका रखने वाले इन तबकों के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों क्या-क्या करते हैं.
ये भी पढ़ें -
राहुल गांधी में बदलाव को क्रांति बताने वाली राजनैतिक मार्केटिंग क्यों?
गुजरात और हिमाचल की हार-जीत का राहुल पर नहीं होगा असर
क्या सच में गुजरात का ताज बीजेपी को जा रहा है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.