पूर्व IPS ऑफिसर Sanjiv Bhatt को उम्र कैद की सज़ा मिल गई है. जामनगर सेशन कोर्ट ने संजीव भट्ट को 30 साल पुराने मामले में सज़ा सुनाई है. ये केस 1990 का है जब संजीव भट्ट की कस्टडी में Prabhudas Madhavji Vaishnani की मौत हुई थी. नवंबर 1990 में प्रभुदास सहित 133 अन्य लोगों को भारत बंद के दौरान दंगा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. 9 दिन तक हिरासत में रहने के बाद उन्हें बेल तो मिल गई थी, लेकिन रिहा होने के 10 दिन के अंदर ही किडनी फेल होने के कारण प्रभुदास की मौत हो गई थी. उस समय असिस्टेंड सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस रहे Sanjiv Bhatt पर कस्टडी के दौरान हिंसा का आरोप लगाया गया था. आरोप लगाने वालों में प्रभुदास के भाई सहित अन्य कैदी भी शामिल थे.
Sanjiv Bhatt के मामले में शुरू से ही Narendra Modi के नाम को घसीटा जाता रहा है, संजीव को कट्टर मोदी विरोधी माना जाता था और कई बार Rahul Gandhi से नजदीकियों को लेकर भी बातें होती रही हैं. शायद यही कारण है कि शुरू से ही विवादित रहे इस ऑफिसर की सजा के समय भी नरेंद्र मोदी को लोग बीच में घसीट लाए हैं.
संजीव भट्ट पर पहले भी लग चुके हैं कई आरोप-
संजीव भट्ट ने 1988 में IPS ज्वाइन किया था और 1990 से ही उनपर केस चल रहे हैं. ये मामला गुजरात दंगों के काफी पहले का है. 1990 के केस में 1995 तक कोई फैसला नहीं आया था और उसके बाद गुजरात कोर्ट ने इस मामले में स्टे लगा दिया था जो 2011 तक वैसे ही बना रहा था.
1996 में जब भट्ट SP बन चुके थे तब उनपर...
पूर्व IPS ऑफिसर Sanjiv Bhatt को उम्र कैद की सज़ा मिल गई है. जामनगर सेशन कोर्ट ने संजीव भट्ट को 30 साल पुराने मामले में सज़ा सुनाई है. ये केस 1990 का है जब संजीव भट्ट की कस्टडी में Prabhudas Madhavji Vaishnani की मौत हुई थी. नवंबर 1990 में प्रभुदास सहित 133 अन्य लोगों को भारत बंद के दौरान दंगा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. 9 दिन तक हिरासत में रहने के बाद उन्हें बेल तो मिल गई थी, लेकिन रिहा होने के 10 दिन के अंदर ही किडनी फेल होने के कारण प्रभुदास की मौत हो गई थी. उस समय असिस्टेंड सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस रहे Sanjiv Bhatt पर कस्टडी के दौरान हिंसा का आरोप लगाया गया था. आरोप लगाने वालों में प्रभुदास के भाई सहित अन्य कैदी भी शामिल थे.
Sanjiv Bhatt के मामले में शुरू से ही Narendra Modi के नाम को घसीटा जाता रहा है, संजीव को कट्टर मोदी विरोधी माना जाता था और कई बार Rahul Gandhi से नजदीकियों को लेकर भी बातें होती रही हैं. शायद यही कारण है कि शुरू से ही विवादित रहे इस ऑफिसर की सजा के समय भी नरेंद्र मोदी को लोग बीच में घसीट लाए हैं.
संजीव भट्ट पर पहले भी लग चुके हैं कई आरोप-
संजीव भट्ट ने 1988 में IPS ज्वाइन किया था और 1990 से ही उनपर केस चल रहे हैं. ये मामला गुजरात दंगों के काफी पहले का है. 1990 के केस में 1995 तक कोई फैसला नहीं आया था और उसके बाद गुजरात कोर्ट ने इस मामले में स्टे लगा दिया था जो 2011 तक वैसे ही बना रहा था.
1996 में जब भट्ट SP बन चुके थे तब उनपर राजस्थान स्थित एक वकील पर झूठा नारकोटिक्स केस दायर करने का आरोप लगा था. उस समय आरोप लगाया गया था कि राजस्थान और गुजरात कोर्ट में भट्ट ने 40 याचिका दायर की ताकि उनके खिलाफ कार्रवाई में देर हो सके. बार एसोसिएशन के मेंबर्स का कहना था कि Sanjiv Bhatt ने खुद को गुजरात सरकार का ऑफिसर इंचार्ज बना दिया था जो सुप्रीम कोर्ट में खास अपील कर सके. उनका कहना था कि संजीव भट्ट गुजरात सरकार को एक ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं और अपने द्वारा किए गए जुर्म के लिए जनता का पैसा इस्तेमाल कर रहे हैं.
1998 में एक बार फिर संजीव भट्ट पर एक और कस्टडी टॉर्चर का केस दाखिल किया गया. 1999 से 2002 तक संजीव भट्ट गांधीनगर में राज्य इंटेलिजेंस ब्यूरो में डेप्युटी कमीशनर बन गए. उन्हें राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी. उन्हें गुजरात के तत्कालीन सीएम Narendra Modi की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी दी गई थी. यही समय था गोधरा कांड का और उस समय गुजरात दंगों का.
2003 में संजीव भट्ट को साबरमती जेल में सुप्रीटेंडेंट बनाया गया, लेकिन उन्हें ट्रांसफर कर दिया गया क्योंकि वो बहुत ज्यादा ही अपराधियों से दोस्ती निभा रहे थे. संजीव के ट्रांसफर पर जेल के 6 कैदियों ने अपने हाथ की नस काट ली थी.
2007 तक संजीव के साथ के अफसर Inspector-general of police (IGP) की पोस्ट तक पहुंच गए थे, लेकिन 1 दशक में संजीव का प्रमोशन नहीं हुआ क्योंकि संजीव के ऊपर पहले से ही कई केस चल रहे थे.
क्यों Narendra Modi से जोड़ा जाता है Sanjiv Bhatt का नाम?
9 सितंबर 2002 को नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर मुसलमानों के बर्थ रेट को लेकर टिप्पणी की थी और इसके लिए उनपर National Commission for Minorities (NCM) द्वारा कार्यवाई भी की गई थी और सरकार से रिपोर्ट मांगी गई थी. रिपोर्ट में कुछ नहीं आया था, लेकिन इंटेलिजेंस ब्यूरो के कुछ अधिकारियों ने जानकारी दे दी और उन्हें कथित तौर पर सज़ा देने के लिए ट्रांसफर कर दिया गया, इनमें से एक संजीव भट्ट भी थे. यहीं से नरेंद्र मोदी और संजीव भट्ट के तार जुड़ने लगे.
संजीव भट्ट ने कथित तौर पर 2002 में वो मीटिंग अटेंड की थी जिसमें सीएम नरेंद्र मोदी ने पुलिस वालों को कहा था कि मुसलमानों के खिलाफ गुस्सा निकलने दो और हिंदुओं को मत रोकना. इसके बारे में तत्कालीन गृहमंत्री हरेन पांड्या ने भी कहा था. बाद में हरेन पांड्या को मार दिया गया था. भट्ट ने 2011 के बाद इसी तरह के आरोप नरेंद्र मोदी पर लगाए थे. आरोप में ये कहा गया था कि हरेन पांड्या की मृत्यु को लेकर जरूरी सबूत उन्हें मिले थे, लेकिन अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने वो सब छुपाने के लिए कहा था. सुप्रीम कोर्ट में जब ये याचिका दायर हुई थी तब बाकायदा सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी बनाई थी जिसका काम था संजीव भट्ट के आरोपों की जांच करना. कमेटी के हिसाब से संजीव ने वो मीटिंग अटेंड ही नहीं की थी जिसका हवाला दिया जा रहा था.
कुल मिलाकर संजीव भट्ट की जिंदगी में विवाद नरेंद्र मोदी का विवाद जुड़ने से पहले ही जुड़े हुए थे. इतना ही नहीं भट्ट को 2015 में इसलिए पुलिस सर्विस से हटा दिया गया था क्योंकि वो अपनी सर्विस से गायब रहते थे. 2015 अक्टूबर में ही सुप्रीम कोर्ट की स्पेशल कमेटी ने गुजरात सरकार द्वारा भट्ट के खिलाफ दाखिल किए केस में भी ये बात सामने आई कि संजीव भट्ट विपक्षी पार्टियों से मिले थे और कई NGO से भी जुड़े थे, साथ ही कुछ स्तर पर राजनीति से भी जुड़े थे.
संजीव भट्ट के लिए कई लोग सोशल मीडिया पर आवाज़ उठा रहे हैं. उनके लिए ये कहा जा रहा है कि उन्हें मोदी से दुश्मनी के कारण दोषी करार दिया गया है. ये मोदी का बदला है और पता नहीं क्या-क्या.
पर इन सबसे कुछ सवाल पूछने जरूरी हैं. नरेंद्र मोदी के विवाद को अगर छोड़ भी दिया जाए तो भी संजीव भट्ट को लेकर कई विवाद जुड़े हुए हैं.
1. नरेंद्र मोदी से जुड़ने से पहले भी संजीव भट्ट पर कई आरोप लगे थे, उसके बारे में क्या कहा जाएगा?
2. क्या ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी केस का फैसला दशकों बाद आया हो? ये जरूरी तो नहीं कि फैसला अभी आया है तो जिसकी सरकार है उसके खिलाफ ही रहा हो?
3. संजीव भट्ट ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ कार्यवाई या याचिका ही गुजरात दंगों के काफी बाद दाखिल की थी. ऐसे में क्या कहा जाए?
4. अगर ये सब भी नहीं तो क्या हमें भारत की न्याय प्रणाली पर भरोसा नहीं रह गया है? हम कम से कम कोर्ट की अवमानना तो न ही करें.
इन सब सवालों के जवाब शायद ट्वीट करने वाले कई लोगों के पास न हों, उनके लिए सिर्फ नरेंद्र मोदी से जुड़ाव ही जरूरी है. मैं ये नहीं कह रही कि संजीव भट्ट वाले मामले में कथित तौर पर दोषी माने गए नरेंद्र मोदी का कोई संबंध न हो. हो सकता है ये हो भी और हो सकता है न भी हो. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कोर्ट के फैसले के खिलाफ ही बोलना शुरू कर दिया जाए. संजीव भट्ट पर कई तरह के आरोप लगे हैं, क्या वो सब मोदी से जुड़े हुए हैं? नहीं बिलकुल नहीं ऐसे में उनके सारे आरोपों पर पर्दा डालकर क्यों सिर्फ एक ही बात को उछाला जा रहा है? सवाल बड़ा है, लेकिन शायद कुछ लोग इसके बारे में सोचेंगे ही नहीं.
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