अहमदाबाद (Ahmedabad) के एक होटल से गुजरात एटीएस (Gujarat ATS) की मदद से गिरफ्तार हुए शार्प शूटर के टार्गेट पर गुजरात बीजेपी (Gujarat BJP) का एक नेता है. एटीएस को पूछताछ में पता चला कि शार्प शूटर के निशाने पर बीजेपी के नेता गोरधन झडफिया (Gordhan Zadafia) हैं. दरअसल गोरधन झडफिया ही क्यों शार्प शूटर के निशाने पर थे? इसे लेकर भी कई तर्क चल रहे हैं. गुजरात एटीएस के सूत्रों कि मानें तो गोरधन झडफिया की राजनीतिक कार्यशैली और हिंदू नेता (Hindu Leader) के तौर पर 2002 में बतौर गृहमंत्री रहने की वजह से उन्हें शार्पशूटर के निशाने पर होने की बात सामने आयी हैं. 2002 में गुजरात में फैले दंगो (Gujarat 2002 Riots) के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगों की मौत हुई थी. गोरधन झडफिया की इस छवि की वजह से 18 साल बाद बदला लेने के प्रयास से छोटा शकिल (Chota Shakeel) ने मुंबई (Mumbai) में उसकी सुपारी दी थी, और ये शख्स अहमदाबाद में उसी सुपारी को अंजाम देने के लिए आया था.
18 साल बाद गोरधन झडफिया को ही क्यों टार्गेट बनाया गया?
गोरधन झडफिया 2002 में जब बीजेपी की मोदी सरकार गुजरात में थी, तब गुजरात के गृहमंत्री थे. हालाकी गोरधन झडफिया को 2002 में हुए चुनाव के बाद मोदी सरकार के जरिए मंत्री मंडल में जगह नही मिली थी. जिस वजह से माना जा रहा था कि गोरधन झडफिया मोदी से नाराज थे. लेकिन एक वक्त ऐसा आया कि गोरधन झडफिया को मंत्री पद के लिए शपथ लेनी थी, तो मोदी और राज्यपाल की हाजरी में गोरधन झडफिया ने मंत्री पद की शपथ लेने से इंकार कर दिया और बाद में ख़ुद को बीजेपी से अलग कर लिया.
बीजेपी को छोड़ने के बाद गोरधन झडपिया अपनी खुद की पार्टी महागुजरात जनता...
अहमदाबाद (Ahmedabad) के एक होटल से गुजरात एटीएस (Gujarat ATS) की मदद से गिरफ्तार हुए शार्प शूटर के टार्गेट पर गुजरात बीजेपी (Gujarat BJP) का एक नेता है. एटीएस को पूछताछ में पता चला कि शार्प शूटर के निशाने पर बीजेपी के नेता गोरधन झडफिया (Gordhan Zadafia) हैं. दरअसल गोरधन झडफिया ही क्यों शार्प शूटर के निशाने पर थे? इसे लेकर भी कई तर्क चल रहे हैं. गुजरात एटीएस के सूत्रों कि मानें तो गोरधन झडफिया की राजनीतिक कार्यशैली और हिंदू नेता (Hindu Leader) के तौर पर 2002 में बतौर गृहमंत्री रहने की वजह से उन्हें शार्पशूटर के निशाने पर होने की बात सामने आयी हैं. 2002 में गुजरात में फैले दंगो (Gujarat 2002 Riots) के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोगों की मौत हुई थी. गोरधन झडफिया की इस छवि की वजह से 18 साल बाद बदला लेने के प्रयास से छोटा शकिल (Chota Shakeel) ने मुंबई (Mumbai) में उसकी सुपारी दी थी, और ये शख्स अहमदाबाद में उसी सुपारी को अंजाम देने के लिए आया था.
18 साल बाद गोरधन झडफिया को ही क्यों टार्गेट बनाया गया?
गोरधन झडफिया 2002 में जब बीजेपी की मोदी सरकार गुजरात में थी, तब गुजरात के गृहमंत्री थे. हालाकी गोरधन झडफिया को 2002 में हुए चुनाव के बाद मोदी सरकार के जरिए मंत्री मंडल में जगह नही मिली थी. जिस वजह से माना जा रहा था कि गोरधन झडफिया मोदी से नाराज थे. लेकिन एक वक्त ऐसा आया कि गोरधन झडफिया को मंत्री पद के लिए शपथ लेनी थी, तो मोदी और राज्यपाल की हाजरी में गोरधन झडफिया ने मंत्री पद की शपथ लेने से इंकार कर दिया और बाद में ख़ुद को बीजेपी से अलग कर लिया.
बीजेपी को छोड़ने के बाद गोरधन झडपिया अपनी खुद की पार्टी महागुजरात जनता पार्टी लेकर आए, हालांकि महागुजरात जनता पार्टी बनाने के बावजूद ये गुजरात की जनता को रिझाने में नाकाम रहे और वो छवि नहीं बना पाए जिसकी उम्मीद इन्होंने की थी. 2012 में इन्होंने गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के साथ मिलकर गुजरात परिवर्तन पार्टी को लॉन्च किया, लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में केशुभाई अकेले ही चुनाव जीत पाए, जबकि गोरधन झडफिया की जमानत तक जब्त हो गई.
2014 में एक बार फिर केशुभाई और नरेन्द्र मोदी के बीच बातचीत का दौर चला और गुजरात परिवर्तन पार्टी को बीजेपी में मर्ज किया गया. तब गोरधन झडफिया एक बार फिर बीजेपी में शामिल हुए और पार्टी के कार्यकर्ता के तौर पर काम करने लगे. धीरे धीरे एक बार फिर नरेन्द्र मोदी का विश्वास उन्होंने जीता और गोरधन झडफिया को यूपी चुनाव का इन्चार्ज बनाया गया और उन्होंने वही किया जो पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह चाहते थे.
इसके बाद एक बार फिर गोरधन झडफिया गुजरात लौटे और पाटीदार नेता होने की वजह से 2017 में जब पाटीदार बीजेपी के खिलाफ थे तब उन्होंने बीजेपी को जीत हासिल करवायी. हालांकि तब ही से माना जा रहा था कि गोरधन झडफिया को पार्टी में बड़े पद पर स्थान मिलेगा लेकिन जब अध्यक्ष बनाने की बात आयी तो सीआर पाटील को अध्यक्ष के तौर पर चुना गया.
क्या गोरधन झडफिया के जरिए अब बीजेपी एक बार फिर हिंदुत्व का कार्ड खेलेगी?
गुजरात को बीजेपी की हिंदुत्व की प्रयोगशाला कहा जाता है. गुजरात में बीजेपी ने 2002 के दंगों के बाद हिंदुत्व के कार्ड के आधार पर सब से ज्यादा 146 सीट हासिल की थी, लेकिन वक्त के साथ साथ हिंदुत्व को छोड बीजेपी सब का साथ सब का विकास के नारे और विकास के मुद्दों पर राजनीति कर रही है. अब जैसी स्थिति है पीएम मोदी के दिल्ली जाने के बाद गुजरात मे हिंदुत्व का मुद्दा विकास के मुद्दे के सामने फीका पड़ने लगा है.
ऐसे में सवाल ये भी आ रहे हैं कि क्या 2002 के दंगों का बदला लेने के उद्देश्य से बीजेपी के नेता को मारने के लिए शार्पशूटर गुजरात आया है? विजय रुपानी के बाद अगला मुख्यमंत्री हिंदुत्व की छवि वाला होगा. जानकार गुजरात की राजनीति में विजय रुपानी को फिलहाल फेल मुख्यमंत्री के तौर पर देख रहे हैं. कह सकते हैं कि कोरोना हो या फिर शिक्षा का मुद्दा हो, या युवाओं को रोजगार देने की बात हो हर क्षेत्र में विपक्ष का पलड़ा गुजरात में भारी रहा हैं.
साथ ही अब मुख्यमंत्री विजय रुपानी को हटाने की बात भी हो रही हैं. आम तौर पर गुजरात में विकास के सामने हिंदुत्व का पलड़ा अकसर भारी देखा गया हैं. जानकार मान रहे है कि 2002 के दंगो का बदला लेने और नेता की हत्या करने आए शार्पशूटर के जरिए एक बार फिर हिंदुत्व का कार्ड गुजरात में बीजेपी खेल सकती है.
सीआर पाटील के साथ गोरधन झडफिया को भी क्या बड़ा स्थान मिल सकता है?
गुजरात बीजेपी के इतिहास में ये देखा गया है कि ज्यादातर बीजेपी अध्यक्ष पाटीदार ही रहे हैं. उम्मीद की जा रही थी कि इस बार किसी पाटीदार नेता को ही बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त किया जाएगा ऐसे में जातिवाद से ऊपर उठकर भाजपा का सी आर पाटिल को अध्यक्ष बनाना तमाम सवाल खड़े कर रहा है. सी आर पाटिल के विषय में एक दिलचस्प बात ये है कि दक्षिण गुजरात में तो इनकी पकड़ मजबूत है मगर सौराष्ट्र में इनका कोई ख़ास अनुभव नहीं है.
अभी बीते दिनों ही सी आर पाटिल ने अपनी 4 दिन की सौराष्ट्र यात्रा की शुरुआत की थी और इस यात्रा में उन्हें गोरधन झडफिया का पूरा सहयोग मिल रहा है. गोरधन झडफिया की सौराष्ट्र पर अच्छी खासी पकड है. पाटीदारों में उनका खास प्रभाव है. राजनीति के जानकार मानते है कि गोरधन झडफिया सौराष्ट्र के पाटीदार नेता होने के साथ अपनी हिंदूवादी छवि के कारण 2022 में गुजरात में बीजेपी की जीत का रास्ता आसान कर सकते हैं.
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