गुजरात में लोकसभा की कुल 26 सीट हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी 26 सीटें हासिल की थी. लेकिन इस बार बीजेपी के लिये गुजरात में सबसे बड़ी चुनौती 26 में से 26 सीटें हासिल करना ही है. जिसके लिये बीजेपी ने उम्मीदवार चयन से लेकर प्रचार में खास तवज्जो दी है. तो वहीं कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों के चयन को लेकर जातियों के समीकरण को भी पूरी तरह से नजर में रखा है. 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2019 के चुनाव में गुजरात में क्या बदल गया है, पढिए पूरा विश्लेषण:
+ अमित शाह- गांधीनगर सीट जो कि 1989 से लालकृष्ण आडवाणी यहा से चुनाव जीतते आये थे, उसी सीट पर इस बार बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ रहे हैं. 3 सीट से 180 सीट तक पहुंचाने वाले लालकृष्ण आडवाणी की जगह अमित शाह के यहां से चुनाव लड़ने से बीजेपी कार्यकर्ता काफी खुश हैं. कार्यकर्ता मानते हैं कि बीजेपी की जीत नहीं बल्की बीजेपी यहां से 6 लाख से भी ज्यादा लीड के साथ जीतेगी. हालांकि ये सीट बीजेपी की परंपरागत सीट है. ऐसे में अचरज नहीं होगा कि अमीत शाह की अनुपस्थिति में भी इस सीट के चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
+ वही कांग्रेस से इस बार मजबूत उम्मीदवार के तौर पर भरतसिंह सोलंकी ओर परेश धानानी की सीट को देखा जा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी के बेटे भरतसिंह सोलंकी पिछले कई सालों से यहां से लोकसभा का चुनाव जीतते आये हैं. 2014 के चुनाव में वो यहां से चुनाव हार गये थे. इस इलाके पर मजबूत पकड़ और सामाजिक समीकरण की वजह इस बार उन्हे आणंद की सीट पर जीत मिल सकती है. तो वहीं अमरेली से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे परेश धानानी के लिये स्थितियां अनुकूल दिख रही हैं. पाटीदार समुदाय से आने वाला यह युवा बीजेपी को कड़ी चुनौती दे रहा है.
गुजरात की सभी 26 सीटों को अपनी झोली में डालने की राह में बीजेपी के सामने एक मुश्किल स्थानीय नेतृत्व भी है. 2014 का लोकसभा चुनाव जीतकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तो देश के प्रधानमंत्री बन गए,...
गुजरात में लोकसभा की कुल 26 सीट हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी 26 सीटें हासिल की थी. लेकिन इस बार बीजेपी के लिये गुजरात में सबसे बड़ी चुनौती 26 में से 26 सीटें हासिल करना ही है. जिसके लिये बीजेपी ने उम्मीदवार चयन से लेकर प्रचार में खास तवज्जो दी है. तो वहीं कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों के चयन को लेकर जातियों के समीकरण को भी पूरी तरह से नजर में रखा है. 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2019 के चुनाव में गुजरात में क्या बदल गया है, पढिए पूरा विश्लेषण:
+ अमित शाह- गांधीनगर सीट जो कि 1989 से लालकृष्ण आडवाणी यहा से चुनाव जीतते आये थे, उसी सीट पर इस बार बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ रहे हैं. 3 सीट से 180 सीट तक पहुंचाने वाले लालकृष्ण आडवाणी की जगह अमित शाह के यहां से चुनाव लड़ने से बीजेपी कार्यकर्ता काफी खुश हैं. कार्यकर्ता मानते हैं कि बीजेपी की जीत नहीं बल्की बीजेपी यहां से 6 लाख से भी ज्यादा लीड के साथ जीतेगी. हालांकि ये सीट बीजेपी की परंपरागत सीट है. ऐसे में अचरज नहीं होगा कि अमीत शाह की अनुपस्थिति में भी इस सीट के चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
+ वही कांग्रेस से इस बार मजबूत उम्मीदवार के तौर पर भरतसिंह सोलंकी ओर परेश धानानी की सीट को देखा जा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी के बेटे भरतसिंह सोलंकी पिछले कई सालों से यहां से लोकसभा का चुनाव जीतते आये हैं. 2014 के चुनाव में वो यहां से चुनाव हार गये थे. इस इलाके पर मजबूत पकड़ और सामाजिक समीकरण की वजह इस बार उन्हे आणंद की सीट पर जीत मिल सकती है. तो वहीं अमरेली से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे परेश धानानी के लिये स्थितियां अनुकूल दिख रही हैं. पाटीदार समुदाय से आने वाला यह युवा बीजेपी को कड़ी चुनौती दे रहा है.
गुजरात की सभी 26 सीटों को अपनी झोली में डालने की राह में बीजेपी के सामने एक मुश्किल स्थानीय नेतृत्व भी है. 2014 का लोकसभा चुनाव जीतकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तो देश के प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन उन्होंने गुजरात की बागडोर आनंदीबेन पटेल को सौंप दी. लेकिन आनंदीबेन पटेल के डेढ़ साल के शासन के दौरान ही हार्दिक पटेल अपना पाटीदार आंदोलन लेकर आए. अल्पेश ठाकोर ने अपना ओबीसी आंदोलन खड़ा किया और जिग्नेश मेवानी दलित नेता बन गए.
गुजरात में इस डेढ साल के दौरान तीन युवा चहरे उभर कर आये जिसे रोक पाने में बीजेपी कहीं ना कहीं नाकामयाब साबित हुई. और आलम ये हुआ कि, आनंदीबेन को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाया गया और अमित शाह के करीबी विजय रुपानी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया. विजय रुपानी के नेतृत्व में गुजरात में 2017 का विधानसभा का चुनाव लड़ा गया, लेकिन आंदोलन से उभरे इन तीन नेताओं का असर इस कदर छाया रहा कि, बीजेपी 99 सीट हासिल करके बमुश्किल सरकार बना पाई. जब कि कांग्रेस को 2002 के बाद पहली बार 77 सीट मिली.
2017 के विधानसभा के बाद गुजरात में ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ. बीजेपी लगातार ये कोशिश करती रही है कि कांग्रेस के जितने भी बड़े नेता हैं, उन्हें बीजेपी में शामिल किया जाये. उसी का परिणाम था कि बीजेपी ने 2017 के चुनाव के बाद सरकार बनाये 4 महिने भी नहीं हुए थे कि कांग्रेस के कोली समाज के बड़े चहरे कुंवरजी बावलिया को बीजेपी में शामिल किया. 2019 का चुनाव आते आते कांग्रेस के 5 विधायक को बीजेपी में शामिल कर लिया गया, जिसमें से एक को केबिनेट मंत्री बनाया गया. गुजरात के मुख्यमंत्री कहते हैं कि, कांग्रेस ने इन विधायकों का सम्मान नहीं दिया था, इसीलिये वो भाजपा में आये हैं.
लेकिन कांग्रेस के विधायकों के बीजेपी में शामिल होने की वजह से कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता खुश नहीं था. कार्यकर्ताओं में दबीजुबान से ये बात चलती है कि, अगर बीजेपी की सरकार में मंत्री बनना है तो कांग्रेस से विधायक बन जाये. जिससे भाजपा के लिये गुजरात में फायदा भी है. क्योंकि गुजरात कांग्रेस के पास ऐसा कोइ प्रमुख चहेरा नहीं रहा है. हार्दिक पटेल ने कांग्रेस ज्वाइन की है, और हार्दिक पटेल ही फिलहाल गुजरात में कांग्रेस का चहेरा है. कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई तब सामने आयी जब अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस के नेताओं पर आरोप लगाते हुए कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. हालांकि इसी बीच भाजपा के जरिये अल्पेश को मंत्री बनाने और पैसे देने की बात लगातार आती रही है. जिस वजह से उसके इस्तीफे से कांग्रेस को जो नुकसान की उम्मीद थी वो नहीं हुआ.
वहीं कांग्रेस को हार्दिक पटेल के तौर पर एक बड़ा चहेरा गुजरात में मिला है, जो कि 14% पाटीदारों को कांग्रेस की तरफ मोड़ सकता है. और गुजरात 26 सीटो में से कुछ पर कांग्रेस के लिए उम्मीद बांधता है.
गुजरात में चुनावी मुद्दे
गुजरात में इस बार प्रमुख तीन मुद्दे हैं, जो कि गुजरात की रुपानी सरकार के लिये भारी पड़ सकते हैं.
1) किसान- किसान पिछले लम्बे वक्त से गुजरात सरकार से नाराज चल रहे हैं. दरअसल किसानो को अपनी फसल के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं. यूपीए सरकार के वक्त पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही किसानों को फसल का न्यूनतम दाम देने कि बात करते थे, जिस में कपास मूंगफली जैसी चीजें शामिल है. लेकिन केन्द्र में मोदी सरकार के आने के बाद कपास ओर मूंगफली दोनों के दाम जो यूपीए सरकार में मिल रहे थे उससे भी कम हो गये. वहीं 2017 के चुनाव की वजह से सौराष्ट्र में पानी पहुंचाने के लिए सभी जलाशयों को नर्मदा के पानी से भरा गया. लेकिन हालत ये हुई कि, गरमी आते आते सारे जलाशय सूख गये ओर बारीश ना होने की वजह से किसान को फसल के लिये तो क्या गांव में पीने के पानी के लिये भी दूर दूर तक जाना पडा.
2) पाटीदार- गुजरात की 6 करोड़ जनसंख्या में 1.4 करोड़ पाटीदार हैं. 2017 के चुनाव में पाटीदार नाराज थे. जिस का खामियाजा बीजेपी को विधानसभा में अपनी सीटें गंवाकर भुगतना पड़ा. पाटीदारों के नेता हार्दिक पटेल अब कांग्रेस के साथ हैं. जिस वजह से पाटीदारो में दो ग्रुप हो गये हैं. एक बीजेपी के साथ है, तो दूसरा हार्दिक पटेल समर्थक ग्रुप है. हालाकी हार्दिक अब धीरे धीरे अपनी बातें सब के सामने रख रहे हैं. वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी पाटीदारों के दोनों ही गुट कड़वा पटेल ओर लेउवा पटेल को मनाने का पूरा प्रयास किया है. कडवा पटेल की कुलदेवी उमियाधाम की भूमि पूजा में तो वे स्वयं आए थे, तो वहीं लेउवा पटेल कि कुल देवी अन्नपूर्णाधाम की स्थापना के लिये पहुंचे थे. अगर यही नाराजगी बरकरार रहती है तो गुजरात में पाटीदार प्रभुत्व वाली सौराष्ट्र की सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ सकता है.
3) चहेरा- 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मतलब नरेंद्र मोदी था, कोई स्थानीय चहेरा लोगों के लिये उम्मीदवार नहीं था. खुद प्रधानमंत्री लोगों से अपील करते थे कि स्थानीय नेता को नहीं बल्कि उन्हें देख कर वोट दें. हालाकी इस बार मोदी का वो करिश्मा चुनाव में गायब दिखता है. यहां स्थानीय चेहरा ही लोग पूछ रहे हैं. सौराष्ट्र में तो हालत ये है कि, खुद भाजपा के सांसद और जूनागढ़ के उम्मीदवार राजेश चुडासमा को तो गांव वालो ने विरोध कर गांव से निकाला था. तो वही दूसरी जगहों पर भी भाजपा के स्थानीय नेताओं का हाल ठीक नहीं है. लोगों के बीच जाते हैं तो लोग पांच साल में क्या विकास किया, उसका हिसाब मांग रहे हैं.
टिकट का गणित:
26 में से 26 सीट हासिल करने वाली भाजपा की गुजरात में हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि भाजपा ने गुजरात में अपने 26 सांसदों में से 10 सांसद को टिकट ही नहीं दिया है. बीजेपी के 10 नये चहरों में से 6 नये चहेरों को मैदान में उतारा है जबकि 4 मौजूदा विधायक को टिकट दिया है.
वहीं कांग्रेस ने 8 मौजूदा विधायकों को चुनाव मैदान में उतारा है. महिलाओं की बात करें तो कांग्रेस ने जहां एक ही महिला (अहमदाबाद पूर्व की सीट से गीता पटेल) को टिकट दिया है, तो वहीं बीजेपी ने 6 महिला उम्मीदवार को टिकट दिया है. (पूनम माडम- जामनगर, रंजना भट्ट- वडोदरा, दर्शना जरदोश- सूरत, भारतीबेन शियाल- भावनगर, गीताबेन राठवा - छोटाउद्देपुर, शारदाबेन पटेल- महेसाना)
जातिगत समीकरण:
दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की घोषणा में जातिवादी राजनीति भी दिखी है. बीजेपी ने 9 ओबीसी, 5 आदिवासी, 6 पाटीदार, 2 दलित जबकि एक 1 बनिया को टिकट दिया है.
तो वहीं कांग्रेस ने 9 ओबीसी, 8 पाटीदार, 5 आदिवासी, 2 दलित, 1 बनिया ओर एक मुस्लिम को टिकट दिया है. दिलचस्प बात तो ये हे कि 1984 के बाद पहली बार कांग्रेस ने मुस्लिम को टिकट दिया है. जबकि भाजपा ने तो कभी मुस्लिम को सासंद के चुनाव के लिये टिकट नहीं दिया है.
वहीं पिछले 27 साल से गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का राज है, ऐसे में एंटीइनकम्बेंसी भी बीजेपी को 26 में से 26 सीट जीत पाने में मुश्किल खड़ी कर रही है.
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