पूर्व में कई ऐसे मौके आए हैं जब हम ने कांग्रेस (Congress) के विधायकों (MLAs) को दुश्वारियों का सामना करते देख चुके हैं. साथ ही हमने उन्हें संवेदनशील मनोदशा से निकलकर सेफ लोकेशन की तरफ जाते देखा है. वर्तमान में एक नयी स्क्रिप्ट गुजरात में लिखी जा रही है. जहां 20 विधायकों को हमने माउंट आबू के वाइल्ड विंडस रिसोर्ट में देखा गया है जहां और अधिक विधायकों के शामिल होने की प्रबल संभावना है. कोरोनॉयरस लॉकडाउन के दो सिरों पर, कांग्रेस के पास गुजरात विधानसभा (Gujarat Vidhansabha) में विधायकों की संख्या घटकर 73 से 65 तक हो गयी है, जिन्हें चार राज्यसभा सांसदों के लिए 19 जून को मतदान करना है. ये वही दिन है जब कांग्रेस पार्टी के सर्वेसर्वा राहुल गांधी का जन्मदिन है.
वर्तमान में एक बहुत ही अप्रिय जन्मदिन का गिफ्ट राहुल गांधी के लिए गुजरात से आ रहा है, जहां उन्होंने 2017 में एक दिलचस्प चुनावी लड़ाई का नेतृत्व किया. कांग्रेस ने तब भाजपा को करारी टक्कर दी थी और भाजपा को उस मुकाम पर पहुंचाया था जिसकी कल्पना कभी शायद ही किसी ने की हो. यहां भाजपा 100 से नीचे रही थी जिसके बारे में कभी शायद ही किसी ने सोचा हो. दिलचस्प बात ये है कि 1995 के बाद ये पहली बार था कि भाजपा ऐसे अंक पर आकर सिमटी हो. आज, भाजपा के पास 103 विधायक हैं जबकि बात अगर कांग्रेस की हो तो कांग्रेस के पास ये संख्या 65 है. बता दें कि 2017 में, कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं.
गुजरात में कांग्रेस को चुनौतियों या फिर ये कहें कि समस्या का सामना 2017 में ही तब करना पड़ा था जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने राज्य से राज्यसभा के लिए फिर से चुनाव की मांग की थी. तब केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी चुनाव में थे. इसके बाद, कांग्रेस के छह विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और नौ अन्य लोगों ने अहमद पटेल को वोट नहीं दिया, जिन्होंने मुश्किल से वोट डाला था.
अहमदाबाद में कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ताओं की आपात बैठक
इसी तरह की स्क्रिप्ट कोरोनोवायरस-विलंबित राज्यसभा चुनाव में खेल रही है. मार्च में पार्टियों की संबंधित ताकत को देखते हुए जब राज्यसभा चुनाव की घोषणा की गई थी, कांग्रेस और भाजपा दोनों के पास दो-दो सीटें जीतने के लिए संख्या थी.
ध्यान रहे कि पूर्व में एक उम्मीदवार को पहले 37 अधिमान्य मतों की आवश्यकता थी. कांग्रेस को निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी से आश्वासन मिला था. अब जबकि आठ इस्तीफे कांग्रेस की तरफ से आ चुके हैं, आवश्यक अधिमान्य मतों की संख्या 34 हो गयी है. कांग्रेस के पास 65 हैं और जिग्नेश मेवानी का वोट मिलना निश्चित है. हालांकि, महाराष्ट्र में उसके सहयोगी, एनसीपी को यकीन नहीं है कि उसके अकेले विधायक कांधल जडेजा कांग्रेस को वोट देंगे या फिर नहीं.
बड़ी ही संदिग्ध सी स्थिति के अंतर्गत एनसीपी ने शंकरसिंह वाघेला के बदले जयंत पटेल को गुजरात इकाई का प्रमुख बनाया. जडेजा ने गुजरात की राजनीति के दिग्गज नेता वाघेला के साथ करीबी समीकरण का आनंद लिया. यह स्थिति कांग्रेस के लिए नाजुक है और भाजपा को गुजरात में खाली हो रही चार राज्यसभा सीटों में से तीन को बरकरार रखने का मौका देती है.
अभय भारद्वाज और रमीला बारा के नामांकन की घोषणा के बाद भाजपा ने अपने तीसरे उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के पुराने सदस्य नरहरि अमीन को मैदान में उतारा, यह एक स्पष्ट संकेत है कि नरहरी अमीन को अपने और पार्टी के लिए एक सीट जीतने के लिए अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल करना होगा. कांग्रेस के दो उम्मीदवार शक्तिसिंह गोहिल और भरतसिंह सोलंकी हैं.
यह सुनिश्चित करने में हम असमर्थ हैं कि इससे कांग्रेस एक साथ एक जगह रह पाएगी और राजनीति को बचा पाएगी, तो कांग्रेस ने राजनीति का सहारा लिया. हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि कांग्रेस बीजेपी के सामने हार रही है.
गौरतलब है कि 2016 में, मुख्यमंत्री पेमा खांडू सहित 44 में से 43 विधायकों ने अरुणाचल प्रदेश में भाजपा में शामिल होने के लिए अपना पक्ष बदला। 2018 में, लगभग आधा दर्जन कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा में शामिल होने के लिए इस्तीफा दिया था.
वहीं बात अगर 2019 की हो तब, कांग्रेस ने कर्नाटक में एक और सामूहिक इस्तीफा देखा और भाजपा को सत्ता मिली. इसका असर गोवा में भी हुआ. गोवा में कांग्रेस के 10 विधायकों ने पार्टी छोड़ी जिसके चलते भाजपा को 2017 में राज्य में सत्ता सुख भोगने का मौका मिला और यहां भाजपा वो सिंगल पार्टी बनी जो मेजॉरिटी में आई.
इस साल मार्च में, कांग्रेस ने भाजपा के आगे तब सत्ता खो दी जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बाद 22 कांग्रेस विधायकों ने पार्टी छोड़ी. स्पिलओवर प्रभाव के रूप में, कुछ ही दिनों बाद पांच कांग्रेसी विधायकों ने गुजरात में पार्टी छोड़ दी.
मध्य प्रदेश में सिंधिया प्रकरण में राज्यसभा चुनाव का कोण भी था. मध्य प्रदेश में इस महीने के अंत में तीन राज्यसभा सीटों के लिए भी मतदान हो रहा है.
कांग्रेस सिंधिया को एक सीट देने के लिए अनिर्णय में दिखाई दी है. ध्यान रहे कि ये वादा सिंधिया से भाजपा ने तब किया था जब उन्होंने मध्य प्रदेश में सत्ता की कमान संभाली थी. भाजपा को सत्ता मिली, सिंधिया को नामांकन और कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा.
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