भाजपा ने गुजरात विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया था. इसके बावजूद गुजरात विधानसभा चुनाव की 12 मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई है. जबकि, कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि गुजरात में उग्र हिंदुत्व का प्रतीक बनी भाजपा जानबूझकर मुस्लिमों से दूरी बनाती है. ताकि, वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति को कामयाब बनाया जा सके. लेकिन, 'हिंदुत्व' पर निशाना साधने से पहले मुस्लिम वोटों के बिखराव पर एक नजर जरूर डाली जानी चाहिए. क्योंकि, मुस्लिमों को हमेशा ही वोट बैंक के तौर पर देखने वालों ने ही उनकी आज ये हालत कर दी है कि अब मुस्लिम बहुल सीटों पर भी मुस्लिम वोटों के जरिये जीत सुनिश्चित नहीं रह गई है. ये भी संभव है कि गुजरात में मुस्लिम मतदाताओं को विपक्ष पर भरोसा ही नहीं रह गया हो. और, वो वोट देने ही न निकला हो.
मुस्लिम वोटों के बिखराव का कोई एक कारण नहीं है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दलों ने बिलकिस बानो रेप के दोषियों की रिहाई हो या अन्य कोई भी मुद्दा ऐसे मामलों पर खुलकर बोलने तक से परहेज किया. जो मुस्लिम वोटों में बिखराव का कारण बना. रही सही कसर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने पूरी कर दी. एआईएमआईएम ने मुस्लिम बहुल 14 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. इसी के साथ आम आदमी पार्टी ने भी जमकर मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई. जो संभवतया कांग्रेस के साथ जाता. लेकिन, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम की अपनी गलतियों की वजह से मुस्लिम वोटों में बिखराव हुआ. और, ज्यादातर मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा आसानी से जीत गई. इनमें से कुछ सीटें ऐसी भी रहीं, जो पहले कांग्रेस ने जीती थीं.
इसके इतर कुछ...
भाजपा ने गुजरात विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया था. इसके बावजूद गुजरात विधानसभा चुनाव की 12 मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई है. जबकि, कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि गुजरात में उग्र हिंदुत्व का प्रतीक बनी भाजपा जानबूझकर मुस्लिमों से दूरी बनाती है. ताकि, वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति को कामयाब बनाया जा सके. लेकिन, 'हिंदुत्व' पर निशाना साधने से पहले मुस्लिम वोटों के बिखराव पर एक नजर जरूर डाली जानी चाहिए. क्योंकि, मुस्लिमों को हमेशा ही वोट बैंक के तौर पर देखने वालों ने ही उनकी आज ये हालत कर दी है कि अब मुस्लिम बहुल सीटों पर भी मुस्लिम वोटों के जरिये जीत सुनिश्चित नहीं रह गई है. ये भी संभव है कि गुजरात में मुस्लिम मतदाताओं को विपक्ष पर भरोसा ही नहीं रह गया हो. और, वो वोट देने ही न निकला हो.
मुस्लिम वोटों के बिखराव का कोई एक कारण नहीं है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दलों ने बिलकिस बानो रेप के दोषियों की रिहाई हो या अन्य कोई भी मुद्दा ऐसे मामलों पर खुलकर बोलने तक से परहेज किया. जो मुस्लिम वोटों में बिखराव का कारण बना. रही सही कसर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने पूरी कर दी. एआईएमआईएम ने मुस्लिम बहुल 14 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. इसी के साथ आम आदमी पार्टी ने भी जमकर मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई. जो संभवतया कांग्रेस के साथ जाता. लेकिन, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम की अपनी गलतियों की वजह से मुस्लिम वोटों में बिखराव हुआ. और, ज्यादातर मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा आसानी से जीत गई. इनमें से कुछ सीटें ऐसी भी रहीं, जो पहले कांग्रेस ने जीती थीं.
इसके इतर कुछ मुस्लिम बहुल सीटों पर अल्पसंख्यक उम्मीदवारों ने भी वोटों में बिखराव में अहम भूमिका निभाई. उदाहरण के तौर पर सूरत जिले की लिंबायत विधानसभा सीट को ही ले लिया जाए. तो, इस लिंबायत विधानसभा सीट पर 44 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे. जिनमें से 38 अल्पसंख्यक समुदाय से थे. आसान शब्दों में कहें, तो केवल 6 हिंदू उम्मीदवारों के सामने 36 मुस्लिम प्रत्याशी ताल ठोंक रहे थे. और, इस सीट पर 26 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. इसी तरह बापूनगर की मुस्लिम बहुल विधानसभा सीट पर 29 प्रत्याशियों में से 10 मुस्लिम उम्मीदवार थे. इस सीट पर 28 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. हालांकि, 31 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली जंबूसर विधानसभा सीट पर वोटों का बिखराव देखने को नहीं मिला. लेकिन, यहां भी भाजपा ने आसानी से जीत दर्ज कर ली.
46 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली दरियापुर विधानसभा सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की. 44 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली वागरा विधानसभा सीट पर भी भाजपा ने जीत हासिल की. 38 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाली भरूच विधानसभा, 35 फीसदी मुस्लिम आबादी वाली वेजलपुर और भुज पर भी भाजपा ने जीत दर्ज की. सिर्फ 61 फीसदी मुस्लिम आबादी वाली जमालपुर खड़िया और 48 फीसदी मुस्लिम आबादी वाली दानीलिम्डा में ही कांग्रेस जीत दर्ज कर सकी. और, वडगाम विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस नेता जिग्नेश मेवाणी ने जीत हासिल की. लेकिन, भाजपा के साथ जीत-हार के अंतर की बात की जाए. तो, आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम ने यहां भी मुस्लिम वोटों में खूब बिखराव करवाया. इसके इतर भाजपा ने गोधरा, सूरत ईस्ट, मांडवी, सिधपुर, खंभाडिया और मंगरोल जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर भी आसानी से जीत दर्ज की है.
कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि हिंदुत्व की राजनीति पर निशाना साधने से पहले सियासी दलों को अपने गिरेबां में झांक लेना चाहिए. जो मुस्लिम वोटों के लिए एक-दूसरे के बीच ही गलाकाट प्रतिस्पर्धा में लगे हुए हैं. और, जिसकी प्रतिफल गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों के तौर पर सबके सामने हैं. भाजपा ने 156 सीटों पर जीत दर्ज की है. और, कांग्रेस 17 सीटों पर सिमट गई है. वहीं, गुजरात में सरकार बनाने का दावा कर रही आम आदमी पार्टी 5 सीटें लाने पर ही खुशी जता रही है.
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