2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों को एसआईटी द्वारा क्लीन चित दिए जाने को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा ख़ारिज कर दिया गया है. याचिका को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया है कि जाकिया की अर्जी में मेरिट नही है और साथ ही उसपर 'दूसरों का प्रभाव है और वो एक एजेंडे के तहत डाली गयी है. भले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से जकिया को निराश हासिल हुई हो, लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं है कि जकिया के साथ जो हुआ है बहुत बरा हुआ है. चूंकि जकिया ने गुजरात दंगों के दौरान अपने पति एहसान जाफरी को खोया है इसलिए उन्हें इंसाफ मिलना ही चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बात कारणों की हो तो इसके जिम्मेदार वो लोग हैं जो जकिया के साथ खड़े तो थे लेकिन जकिया के साथ नहीं थे. यानी इन्हीं लोगों की वजह से वो केस बिगड़ा, जिसपर फैसला जकिया के हित में आ सकता था.
उपरोक्त बातों को पढ़कर हैरत में आने की कोई जरूरत नहीं है. इसे समझने के लिए हमें एसआईटी और गुजरात सरकार द्वारा पेश की गयी दलीलों का रुख करना होगा. एसआईटी की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी का तर्क था कि एसआईटी ने अपना काम किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि जकिया के आरोप काफी हद तक कर्तव्य की उपेक्षा की ओर इशारा करते हैं और किसी भी आपराधिकता का खुलासा नहीं करते हैं.
अपनी दलीलें पेश करते हुए रोहतगी ने संदेह व्यक्त किया कि वर्तमान में याचिका जकिया द्वारा...
2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों को एसआईटी द्वारा क्लीन चित दिए जाने को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को सुप्रीम कोर्ट द्वारा ख़ारिज कर दिया गया है. याचिका को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया है कि जाकिया की अर्जी में मेरिट नही है और साथ ही उसपर 'दूसरों का प्रभाव है और वो एक एजेंडे के तहत डाली गयी है. भले ही सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से जकिया को निराश हासिल हुई हो, लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं है कि जकिया के साथ जो हुआ है बहुत बरा हुआ है. चूंकि जकिया ने गुजरात दंगों के दौरान अपने पति एहसान जाफरी को खोया है इसलिए उन्हें इंसाफ मिलना ही चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बात कारणों की हो तो इसके जिम्मेदार वो लोग हैं जो जकिया के साथ खड़े तो थे लेकिन जकिया के साथ नहीं थे. यानी इन्हीं लोगों की वजह से वो केस बिगड़ा, जिसपर फैसला जकिया के हित में आ सकता था.
उपरोक्त बातों को पढ़कर हैरत में आने की कोई जरूरत नहीं है. इसे समझने के लिए हमें एसआईटी और गुजरात सरकार द्वारा पेश की गयी दलीलों का रुख करना होगा. एसआईटी की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी का तर्क था कि एसआईटी ने अपना काम किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि जकिया के आरोप काफी हद तक कर्तव्य की उपेक्षा की ओर इशारा करते हैं और किसी भी आपराधिकता का खुलासा नहीं करते हैं.
अपनी दलीलें पेश करते हुए रोहतगी ने संदेह व्यक्त किया कि वर्तमान में याचिका जकिया द्वारा नहीं चलाई जा रही है, जो कि पीड़ित है, बल्कि याचिकाकर्ता नंबर 2 यानी तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा संचालित की जा रही है. जिक्र तीस्ता सीतलवाड़ का हुआ है तो पीएम मोदी के लिए उनकी मंशा किसी से छिपी हुई नहीं है. गुजरात दंगों की आड़ लेकर पूर्व में भी तीस्ता ऐसे तमाम आरोप प्रत्यारोप लगा चुकी हैं जो इस बात की तस्दीख कर देते हैं कि वो एक एजेंडे के तहत पीएम मोदी की छवि धूमिल करने के प्रयास लगातार कर रही हैं.
ध्यान रहे 2002 के गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी हत्याकांड में मारे गए कांग्रेस विधायक एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और यही वो मौका था जब तीस्ता जैसे लोग जकिया और दिवंगत एहसान जाफरी को इंसाफ दिलाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार या ये कहें कि नरेंद्र मोदी के विरोध में सामने आए थे.
याचिका की आड़ में छिपे एजेंडे को कोर्ट ने भी समझा और शायद यही वो कारण था जिसके चलते कोर्ट ने कहा था जकिया जाफरी की याचिका 'कुछ अन्य' के निर्देशों से प्रेरित और प्रेरित थी. अपने फैसले में कोर्ट ने ये भी कहा कि 'एक याचिका के नाम पर, अपीलकर्ता परोक्ष रूप से अन्य मामलों में अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों पर सवाल उठा रही थी, जिसमें न्यायाधीन मामले भी शामिल थे, जो उसे सबसे अच्छी तरह से ज्ञात थे. कोर्ट ने ये भी कहा कि जकिया किसी के इशारों पर ऐसा कर रही थीं और उन लोगों ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए तमाम मौकों पर झूठ का सहारा लिया.
हम फिर इस बात को कहेंगे कि जकिया का केस अभूत मजबूत था लेकिन चाहे वो तीस्ता जैसे लोग हों या फिर एक वकील के रूप में कपिल सिब्बल यदि केस कमजोर हुआ तो इसके जिम्मेदार ये लोग हैं. इन लोगों को सिर्फ अपने एजेंडे की पड़ी थी. इन्होने कभी चाहा ही नहीं कि एहसान जाफरी की मौत मामले को लेकर जकिया को सही ढंग से इंसाफ मिले. ये लोग अपना एजेंडा चलाते रहे जिसका नतीजा ये निकला कि कोर्ट तक ने मान लिया कि गुजरात दंगों को लेकर जकिया की सीरत और सूरत में गहरा विरोधाभास है.
ये भी पढ़ें -
महाराष्ट्र में नई सरकार बनने के 3 रास्ते क्या हैं, बीजेपी ने शिंदे को किस तरह का ऑफर दिया है?
महाराष्ट्र की सियासी तस्वीर भी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे जैसी साफ नजर आ रही है!
उद्धव की भावुक अपील पर एकनाथ शिंदे ने गिराया 'लेटर बम', जानिए चिट्ठी की 7 बड़ी बातें...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.