'दीवानी के मामलों में कोर्ट कमिश्नर की कार्यवाही बहुत ही साधारण बात है' - ये टिप्पणी भी वाराणसी सिविल कोर्ट के सीनियर डिवीजन जज रवि कुमार दिवाकर के अदालती आदेश में शुमार है. साथ में, एक ऐसी बात भी है जिसे सिर्फ उनकी निजी फिक्र नहीं समझी जानी चाहिये, 'एक साधारण सी कोर्ट कमीशन की कार्यवाही को असाधारण बना दिया गया है... अब मुझे भी अपने परिवार की चिंता (Judge Fears for Family) होती है.'
जैसे कुछ संगीन मामलों में 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' मान कर अदालतें फैसला सुनाती हैं, वाराणसी सिविल कोर्ट के जज की परिवार की सुरक्षा पर चिंता जताना भी वैसा ही लगता है - और ये कोई जिमी शेरगिल वाली वेब सीरिज 'योर ऑनर' में दिखायी गयी एक जज की पारिवारिक जिंदगी जैसा तो कतई नहीं है.
अक्सर पुराने संबंधों या केस से जुड़ी किसी तरीके की शिरकत की वजह से जजों को खुद को अलग करते देखा जाता है, लेकिन वाराणसी के सीनियर डिवीजन जज रवि कुमार दिवाकर (Ravi Kumar Diwakar) ने अपनी ड्यूटी करते हुए आदेश दिया है - और ज्ञानवापी (Gyanvapi Case) परिसर के सर्वे के लिए कोर्ट की तरफ से नियुक्त कमिश्नर को भी बदलने की मांग खारिज कर दी है.
अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्टे ऑर्डर जारी करने से तो इनकार कर दिया है, लेकिन जल्द सुनवाई की मांग मंजूर कर ली गयी है. सुप्रीम कोर्ट में AIM यानी अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी की तरफ से एक याचिका दायर की गयी है.
याचिकाकर्ता के वकील हुजैफा अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि निचली अदालत के फैसले पर कार्यवाही शुरू हो जाएगी, लिहाजा अदालत यथास्थिति बरकरार रखे जाने का आदेश जारी कर दे. CJI जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि बिना कागजात देखे आदेश जारी नहीं कर सकते हैं. कमेटी की तरफ से पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट से निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाने की दरख्वास्त की गयी थी, लेकिन वो खारिज हो गयी - इसलिए निचली अदालत के आदेश को सबसे बड़ी अदालत में चैलेंज किया गया है.
ये तो अच्छी बात है कि कमेटी ने अपनी अपील के साथ ये...
'दीवानी के मामलों में कोर्ट कमिश्नर की कार्यवाही बहुत ही साधारण बात है' - ये टिप्पणी भी वाराणसी सिविल कोर्ट के सीनियर डिवीजन जज रवि कुमार दिवाकर के अदालती आदेश में शुमार है. साथ में, एक ऐसी बात भी है जिसे सिर्फ उनकी निजी फिक्र नहीं समझी जानी चाहिये, 'एक साधारण सी कोर्ट कमीशन की कार्यवाही को असाधारण बना दिया गया है... अब मुझे भी अपने परिवार की चिंता (Judge Fears for Family) होती है.'
जैसे कुछ संगीन मामलों में 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' मान कर अदालतें फैसला सुनाती हैं, वाराणसी सिविल कोर्ट के जज की परिवार की सुरक्षा पर चिंता जताना भी वैसा ही लगता है - और ये कोई जिमी शेरगिल वाली वेब सीरिज 'योर ऑनर' में दिखायी गयी एक जज की पारिवारिक जिंदगी जैसा तो कतई नहीं है.
अक्सर पुराने संबंधों या केस से जुड़ी किसी तरीके की शिरकत की वजह से जजों को खुद को अलग करते देखा जाता है, लेकिन वाराणसी के सीनियर डिवीजन जज रवि कुमार दिवाकर (Ravi Kumar Diwakar) ने अपनी ड्यूटी करते हुए आदेश दिया है - और ज्ञानवापी (Gyanvapi Case) परिसर के सर्वे के लिए कोर्ट की तरफ से नियुक्त कमिश्नर को भी बदलने की मांग खारिज कर दी है.
अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्टे ऑर्डर जारी करने से तो इनकार कर दिया है, लेकिन जल्द सुनवाई की मांग मंजूर कर ली गयी है. सुप्रीम कोर्ट में AIM यानी अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी की तरफ से एक याचिका दायर की गयी है.
याचिकाकर्ता के वकील हुजैफा अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि निचली अदालत के फैसले पर कार्यवाही शुरू हो जाएगी, लिहाजा अदालत यथास्थिति बरकरार रखे जाने का आदेश जारी कर दे. CJI जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि बिना कागजात देखे आदेश जारी नहीं कर सकते हैं. कमेटी की तरफ से पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट से निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाने की दरख्वास्त की गयी थी, लेकिन वो खारिज हो गयी - इसलिए निचली अदालत के आदेश को सबसे बड़ी अदालत में चैलेंज किया गया है.
ये तो अच्छी बात है कि कमेटी ने अपनी अपील के साथ ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा दिया है. अब कम से कम सुप्रीम कोर्ट की नजर में सारी चीजें होंगी - और उनमें जज के परिवार की चिंता की बातें भी शामिल होंगी.
हर हाल में सर्वे पूरा कराये जाने का आदेश सर्वे को लेकर हो रहे कड़े विरोध को देखते हुए स्थानीय कोर्ट ने ये टास्क पूरा कराने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर को दी है - और साथ में ये भी कहा है कि डीजीपी और चीफ सेक्रेट्री हालात की निगरानी करनी होगी.
लगे हाथ कोर्ट की ये भी हिदायत है कि जिला प्रशासन बहाने बना कर सर्वे की कार्यवाही को टालने की कोशिश नहीं करेगा. जिला प्रशासन ये सुनिश्चित करेगा कि ताले खुलवा दिये जायें या फिर तोड़ कर सर्वे कराया जाये. कोर्ट कमिश्नर कहीं भी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के लिए स्वतंत्र होंगे - और चप्पे चप्पे पर ऐसा किया जाएगा.
कोर्ट के आदेश के बाद जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा ने कमेटी को नोटिस जारी कर कहा है कि अगर उसके पास चाबी है तो कमीशन की कार्यवाही के दौरान उसे मुहैया कराया जाये. कौशलराज शर्मा के मुताबिक, प्रशासन ने अदालत से स्पष्ट आदेश का अनुरोध किया था जिसमें मौके की स्थिति, चाबी नहीं मिलने की स्थिति और अंदर लोगों की मौजूदगी की बातें शामिल थीं.
जिलाधिकारी ने मीडिया को बताया है कि अदालत ने स्पष्ट आदेश दे दिया है, लेकिन सीआरपीएफ को पार्टी नहीं बनाया है... ऐसे में सीआरपीएफ को पत्र भेजकर कमीशन की कार्यवाही की जानकारी और सुरक्षा पुख्ता करने के लिए कहा गया है.
कोर्ट के आदेश के अनुसार सर्वे का काम सुबह 8 बजे से लेकर 12 बजे तक होना है - उस दौरान कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा के साथ दोनों सहायक कमिश्नर भी मौजूद रहेंगे. अदालत ने 17 मई तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है.
एक केस की सुनवाई - और जज की फिक्र
वाराणसी की अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े केस की सुनवाई कर रहे जज रवि कुमार दिवाकर ने एक डर के माहौल का जिक्र किया है. और डर के इस माहौल के लिए वो किसी तरफ इशारा कर रहे हैं - बड़ा सवाल ये है कि केस को लेकर डर का माहौल बना दिये जाने के पीछे कौन लोग हैं?
जाहिर है डर का माहौल पैदा करने वाले वे ही लोग होंगे जिनका इस केस में इंटरेस्ट होगा. एक पक्ष वो है जो सामने आकर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सीधे सीधे खुला विरोध कर रहा है. ये लोग सर्वे के लिए नियुक्त कोर्ट कमीश्नर की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं.
अदालत ने सर्वे का विरोध कर रहे लोगों का प्रतिनिधित्व करती अंजुमन इस्लामिया मसाजिद कमेटी की अपील पर भी विचार किया है, लेकिन अदालत को उनकी दलीलों में कोई ठोस आधार नजर नहीं आया - और यही वजह रही कि कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा को बदलने की मांग खारिज कर दी है. और हो सकता है ये सोच कर कि ऐसा कोई सवाल आगे न उठने पाये, अदालत ने साथ में दो और वकीलों को सहायक कोर्ट कमिश्नर भी नियुक्त कर दिया है.
ये बात भी तारीफ के काबिल है कि आदेश में डर के माहौल के जिक्र जरूर किया गया है, लेकिन अदालत फैसला नहीं बदला है. देश में इंसाफ की उम्मीद की आखिरी किरण न्यायपालिका ने निराश नहीं किया है, भला इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. आदेश जारी करने वाले जज को अपने परिवार की सुरक्षा की फिक्र है, फिर भी डर के उस माहौल का कोई असर नहीं हो सका है.
मस्जिद परिसर के सर्वे के लिए बने कमीशन को लेकर आदेश में साफ तौर पर लिखा है, 'न्यायालय के मतानुसार यह कमीशन कार्यवाही एक सामान्य कमीशन है, जो अधिकतर सिविल वादों में सामान्यतः करवायी जाती है और शायद ही कभी अधिवक्ता कमिश्नर को प्रश्नांकित किया जाता हो.'
आदेश में ही डर का इजहार: केस की सुनवाई कर रहे जज रवि कुमार दिवाकर ने सर्वे के सख्त आदेश के साथ ही अपनी सुरक्षा को लेकर अपनी पत्नी और मां की फिक्र का भी जिक्र किया है - और परिवार की सुरक्षा को लेकर अपनी स्वाभाविक चिंता को भी शेयर किया है.
जज दिवाकर आदेश में लिखते हैं, 'इस साधारण से दीवानी मामले को असाधारण मामला बनाकर भय का माहौल बना दिया गया... डर इतना है कि मेरा परिवार हमेशा मेरी सुरक्षा के बारे में चिंतित है - और मुझे उनकी सुरक्षा की चिंता है.'
अपनी पत्नी के हवाले से बताते हैं, 'जब मैं घर से बाहर जाता हूं, मेरी पत्नी मेरी सुरक्षा के बारे में बहुत चिंतित रहती हैं.'
वाराणसी में तैनात जज लखनऊ में रह रहीं अपनी मां की फिक्र का हवाला देते हुए लिखते हैं, 'मेरी मां ने हमारी बातचीत के दौरान भी मेरी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई... मीडिया को मिली खबरों से उन्हें पता चला कि शायद मैं भी कमिश्नर के तौर पर मौके पर जा रहा हूं... मेरी मां ने मुझसे कहा कि मुझे मौके पर नहीं जाना चाहिये - क्योंकि इससे मेरी सुरक्षा को खतरा हो सकता है.'
डर के साये में कैसे फैसले आएंगे?
अदालत के आदेश में जिस तरीके के डर के माहौल की बात की गयी है, वो तो वकील कमिश्नर अजय मिश्रा ने भी महसूस किया होगा. सर्वे करने गये कोर्ट कमीश्नर के सामने भी वैसी ही स्थिति नजर आयी होगी, जैसी बुलडोजर के साथ मौके पर जाने वाली डिमॉलीशन टीम को भी होता होगा.
अदालत के आदेश के बाद स्थानीय प्रशासन पहले से ही अलर्ट है - और आगे से सर्वे के दौरान अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ की टीम भी साथ में होगी. वाराणसी के जिलाधिकारी ने कहा भी है कि कोर्ट के आदेश का पूरी तरह पालन होगा - और ऊपर से भी निगरानी होगी ही.
मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है, ऐसे में मान कर चलना होगा कि देश की सबसे बड़ी अदालत की नजर भी होगी ही. सर्वे की प्रक्रिया तो अपनी जगह है ही और जो बंदोबस्त किये जा रहे हैं, मान कर चलना चाहिये कि सर्वे के काम में अब कोई बाधा नहीं आने वाली - लेकिन जज रवि कुमार दिवाकर और उनके परिवार की सुरक्षा काफी गंभीर मामला हो गया है.
हाल ही की तो बात है. कर्नाटक हिजाब विवाद की सुनवाई करने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के जज को सरेआम धमकी दिये जाने का वीडियो सामने आया था. हैरानी की बात तो ये रही कि धमकी के दौरान धनबाद में एक जज की मौत की मिसाल भी दी जा रही थी.
ये वीडियो कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के दो दिन बाद मदुरै 17 मार्च, 2022 को हुए एक प्रदर्शन का बताया जाता है. वीडियो वायरल होने के बाद तमिलनाडु तौहीद जमात कोवाई आर रहमतुल्लाह को गिरफ्तार कर लिया गया - और फैसला सुनाने वाले जजों को Y कैटेगरी की सुरक्षा दे दी गयी है.
वीडियो में रहमतुल्ला को कहते सुना गया, 'क्या पिछले अगस्त की झारखंड की घटना भूल गयी, जिसमें लोगों के खिलाफ फैसला सुनाने वाले एक जज की सुबह टहलते वक्त हत्या कर दी गयी थी. दो दिन बाद दो लोगों ने सरेंडर किया था. क्या वो याद है? ये मत सोचो कि कर्नाटक के मुस्लिमों ने वो फैसला कबूल कर लिया है. अगर कुछ ऐसा वैसा होता है, तो मैं साफ कर देता हूं कि अकेले जज ही जिम्मेदार नहीं होंगे.'
तौहीद जमात के ही विरोध प्रदर्शन का एक और वीडियो देखा गया जिसमें लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं - और सीधे सीधे धमकी दे रहे हैं कि कोई भी उनके धैर्य का इम्तिहान न ले.
वीडियो में झारखंड की जिस घटना की याद दिलाने की कोशिश हो रही है, वो धनबाद में एक जज की हत्या का मामला है. धनबाद कोर्ट के जज उत्तम आनंद मॉर्निंग वॉक पर निकले थे तभी पीछे से एक ऑटोरिक्शा के धक्के से वो गिर पड़े और उनकी मौत हो गयी. शुरुआती जांच में ही मालूम हो गया कि ये कोई हादसा नहीं बल्कि हिट एंड रन का केस था - और फिर आगे की जांच का काम सीबीआई को सौंप दिया गया. सीबीआई अभी जांच कर रही है.
अगर वास्तव में ऐसे ही डर का माहौल बनाया गया तो कल्पना कीजिये क्या हालात होंगे - डर के साये में कैसे फैसले आएंगे?
डर का माहौल किसने बनाया है
वाराणसी कोर्ट के जज ने ज्ञानवापी केस में डर के जिस माहौल बन जाने का जिक्र किया है - जिम्मेदार कौन है?
निश्चित तौर पर पहले तो वे ही लोग सामने नजर आते हैं जो सर्वे का खुल कर विरोध कर रहे हैं. वे लोग मौके पर तो विरोध कर रहे हैं, कानूनी विरोध के साथ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचे हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट जाकर इंसाफ मांगना या किसी ऐसी चीज को चैलेंज करना जो लगता हो कि गलत हो रहा है, सभी का अधिकार है.
मौके पर भी जो विरोध हो रहा है, अगर उस दौरान कोई हिंसा नहीं होती या किसी तरह के जान-माल का नुकसान नहीं होता तो भी कोई चिंता की बात नहीं होगी - लेकिन अगर परदे के पीछे कोई साजिश चल रही हो तो मामला गंभीर हो जाता है.
परदे के पीछे का शक कर्नाटक के वायरल वीडियो में दी जा रही धमकी की वजह से भी लगती है. क्योंकि धमकी भी तो सीधे सीधे एक जज की मिसाल देकर दी जा रही है - और दूसरे वीडियो में जजों के साथ साथ ऊपर तक प्रधानमंत्री और गृह मंत्री तक को धमकी दी जा रही है कि कोई धैर्य की परीक्षा न ले.
कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई परदे के पीछे ऐसे कोई और तत्व हैं जिनकी तरफ बनारस के जज इशारा कर रहे हैं. चूंकि सर्वे का विरोधी पक्ष सामने है, इसलिए समर्थक पक्ष परदे के पीछे भी हो सकता है. ऐसे ही तत्वों की तरफ इशारा करते हुए जज का कहना है कि एक साधारण मामले को असाधारण बनाकर डर का माहौल बना दिया जा रहा है.
अगर इस ऐंगल पर जज के इशारे को समझें तो अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पहले के माहौल को याद कर सकते हैं. तभी ये भी सुना गया था कि एक तबका ऐसे धमकी दे रहा था कि अगर राम मंदिर पर फैसला नहीं सुनाया जाता तो सुप्रीम कोर्ट के जजों को घेर लेना चाहिये. एक-दो मौके तो ऐसे भी देखे गये जब प्रदर्शन के लिए ऐसे तत्व सुप्रीम कोर्ट के इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गये थे.
तब तो बीजेपी नेता अमित शाह को भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ गुस्से का इजहार करते देखा गया था. सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद केरल में बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा था कि अदालत को ऐसे फैसले नहीं सुनाने चाहिये जिसका पालन करना मुमकिन न हो. बाद में हिंदू संगठनों के नेताओं के भी मिलते-जुलते बयान आये थे - क्या वास्तव में ज्ञानवापी राजनीतिक वजहों से दूसरा अयोध्या केस बनने वाला है?
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