आम आदमी पार्टी में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल पर 2 करोड़ रुपए घूस लेने का आरोप लगाया था. उस मामले में चुप्पी साधे बैठे केजरीवाल ने मंगलवार को एक नया ही खेल रचा. एमसीडी चुनाव में हुई जबर्दस्त हार के बाद से केजरीवाल ने ईवीएम का नाम लेना बंद कर दिया था, लेकिन मंगलवार को उसी मुद्दे का हवाला देकर उन्होंने दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया. फिर वहां जो हुआ, वह किसी तमाशे से कम नहीं था. ईवीएम की गड़बड़ी को साबित करने के लिए देखिए कैसे रचा गया 'फ्रॉड'-
जिस ईवीएम को दिखाया वह असली थी ही नहीं !
ईवीएम में कैसे गड़बड़ी की जाती है, यह दिखाने के लिए विधायक सौरभ भारद्वाज खुद एक 'ईवीएम मशीन' विधानसभा में लेकर आए. लेकिन यह नहीं बताया कि यह मशीन वे कहां से लेकर आए हैं. किसके कहने पर किसने इस मशीन को बनवाया है. क्योंकि जिन ईवीएम मशीनों पर जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करती है, वह इलेक्शन कमीशन द्वारा पेटेंटेड होती हैं. उन मशीनों को बनाने वाली कंपनी न तो उसे किसी और को बेच सकती है और न ही उसका कोई और इस्तेमाल कर सकता है. यानी जिस मशीन को ईवीएम के नाम पर दिल्ली विधानसभा में पेश किया गया, वह डमी मशीन यानी खिलौना मशीन थी.
सीक्रेट कोड या रिमोट ?
विधायक भारद्वाज ने खुद को कंप्यूटर इंजीनियर बताते हुए सारी दलीलें दीं. उन्होंने आंखें खोल देने वाला खुलासा किया कि ईवीएम में एक सीक्रेट कोड होता है, जिसे कोई भी ईवीएम में डालकर उसका नतीजा अपने पक्ष में कर सकता है. लेकिन, भारद्वाज के कुछ देर पहले ही आप विधायक अलका लांबा ने अपने भाषण में कहा था कि ईवीएम में चिप बदलकर कोई भी...
आम आदमी पार्टी में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल पर 2 करोड़ रुपए घूस लेने का आरोप लगाया था. उस मामले में चुप्पी साधे बैठे केजरीवाल ने मंगलवार को एक नया ही खेल रचा. एमसीडी चुनाव में हुई जबर्दस्त हार के बाद से केजरीवाल ने ईवीएम का नाम लेना बंद कर दिया था, लेकिन मंगलवार को उसी मुद्दे का हवाला देकर उन्होंने दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया. फिर वहां जो हुआ, वह किसी तमाशे से कम नहीं था. ईवीएम की गड़बड़ी को साबित करने के लिए देखिए कैसे रचा गया 'फ्रॉड'-
जिस ईवीएम को दिखाया वह असली थी ही नहीं !
ईवीएम में कैसे गड़बड़ी की जाती है, यह दिखाने के लिए विधायक सौरभ भारद्वाज खुद एक 'ईवीएम मशीन' विधानसभा में लेकर आए. लेकिन यह नहीं बताया कि यह मशीन वे कहां से लेकर आए हैं. किसके कहने पर किसने इस मशीन को बनवाया है. क्योंकि जिन ईवीएम मशीनों पर जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करती है, वह इलेक्शन कमीशन द्वारा पेटेंटेड होती हैं. उन मशीनों को बनाने वाली कंपनी न तो उसे किसी और को बेच सकती है और न ही उसका कोई और इस्तेमाल कर सकता है. यानी जिस मशीन को ईवीएम के नाम पर दिल्ली विधानसभा में पेश किया गया, वह डमी मशीन यानी खिलौना मशीन थी.
सीक्रेट कोड या रिमोट ?
विधायक भारद्वाज ने खुद को कंप्यूटर इंजीनियर बताते हुए सारी दलीलें दीं. उन्होंने आंखें खोल देने वाला खुलासा किया कि ईवीएम में एक सीक्रेट कोड होता है, जिसे कोई भी ईवीएम में डालकर उसका नतीजा अपने पक्ष में कर सकता है. लेकिन, भारद्वाज के कुछ देर पहले ही आप विधायक अलका लांबा ने अपने भाषण में कहा था कि ईवीएम में चिप बदलकर कोई भी व्यक्ति दूर से रिमोट द्वारा नतीजे बदल सकता है. तो पार्टी की दलीलों में ही विरोधाभास था. हकीकत यह है कि जिस कथित ईवीएम मशीन को बनवाकर आप विधायक भारद्वाज विधानसभा में लाए थे, उसमें पहले से ही कोडिंग वाला सिस्टम डाला गया था. इसकी जगह यदि वे कोई रिमोट से संचालित ईवीएम लेकर आते तो उसके नतीजे रिमोट से संचालित होने लगते. कुलमिलाकर आम आदमी पार्टी ने लोगों में भ्रम डालने के लिए एक खिलौना मशीन तैयार करवाई और लोगों का यह भरोसा दिलाने की झूठी कोशिश की, कि चुनाव आयोग की ईवीएम भी ऐसी ही होती है और उसमें ऐसे ही छेड़छाड़ की जाती है.
गोपनीय है असली ईवीएम की टेक्नोलॉजी
चुनाव आयोग जिन ईवीएम का इस्तेमाल वोटिंग के लिए करता है, उसके निर्माण से लेकर रखरखाव का जिम्मा बेहद फूलप्रूफ तरीके से निभाया जाता है. ईवीएम को परखने के लिए चुनाव आयोग समय-समय पर सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित भी करता है, लेकिन शर्त यही रहती है कि उन मशीनों को चुनाव की प्रक्रिया के तहत ही चेक करना होता है. उन मशीनों को खोलने की इजाजत किसी को नहीं होती. मिशिगन यूनिवर्सिटी हो या कहीं और, भारतीय ईवीएम से छेड़छाड़ को साबित करने की जितनी भी कोशिश हुई, वह डमी मशीनों पर हुई हैं. न कि चुनाव आयोग वाली ईवीएम पर. ऐसे में कल्पना के आधार पर तकनीकी हेरफेर करके एक नई ईवीएम बनवाई जाए, तो उससे यह साबित नहीं होगा कि चुनाव आयोग की ईवीएम भी वैसी ही है. आम आदमी पार्टी ने भी कल्पनाओं के आधार पर एक मशीन तैयार करवाई, लेकिन उसका हकीकत से नाता साबित नहीं होता.
चुनाव आयोग की भूमिका को भूल गए
दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी की ओर से ऐसे प्रदर्शित किया गया, मानो ईवीएम पूरी तरह से सत्ताधारी राजनीतिक दलों के कब्जे में होती है और उसके इस्तेमाल से लेकर नतीजों तक पर राजनीतिक पार्टियों का ही कब्जा होता है. ईवीएम पर सवाल उठाती जीवीएल नरसिंहाराव की किताब 'डेमोक्रेसी ऐट रिस्क' की समीक्षा करते हुए बिहार निर्वाचन सेवा के सदस्य कपिल शर्मा ने 'आईचौक' पर बताया था कि भारत में चुनावों में निष्पक्षता एवं पारदर्शिता का आधार सिर्फ ईवीएम का प्रयोग नहीं है, बल्कि चुनावी प्रक्रिया के हर स्तर पर होने वाली ईवीएम जांच और अन्य चेक-बैलेंस भी हैं. इस जिम्मा चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त विभिन्न अधिकारियों एवं तकनीकी कर्मियों द्वारा विभिन्न चरणों में किया जाता है. ताकि मशीनी स्तर पर कहीं कोई कमी आ रही हो तो वह त्वरित तौर पर पकड़ में आ जाये.
(अब यदि आम आदमी पार्टी ईवीएम को कठघरे में कर रही है, तो वह यह भूल जा रही है कि ईवीएम के इस्तेमाल की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है. क्या केजरीवाल और उनकी पार्टी चुनाव आयोग के कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं ? )
नतीजे जो साबित करते हैं कि ईवीएम बेदाग है
मोदी सरकार मई 2014 में केंद्र में आई. उसके बाद से कई राज्यों में विधानसभा और निकाय चुनाव हुए. जिनमें मोदी का दाव दिल्ली और बिहार में सबसे ज्यादा था. लेकिन इन दोनों ही चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा. इसी तरह मुंबई महानगर पालिका में शिवसेना से अनबन के बावजूद बीएमसी चुनाव में शिवसेना को ही बीजेपी से ज्यादा सीट मिली. ताजा चुनाव परिणामों की बात करें तो यूपी, उत्तराखंड में भले ही बीजेपी एकतरफा जीती है, लेकिन पंजाब में तो आम आदमी पार्टी को बीजेपी से ज्यादा कामयाबी मिली है. गोवा और मणिपुर में भी बीजेपी की सीटें कांग्रेस से कम हैं.
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पोलियो वैक्सीन और ऑटिज्म में रिश्ता ढूंढने जैसा है केजरीवाल का तर्क !
ये तर्क अजीब है, लेकिन कई फोरम पर ऐसे ही कहा जाता है. इंटरनेट पर सर्च कीजिए. कई लोगों ने दावा किया है कि पोलियो वैक्सीन से बच्चों को ऑटिज्म हुआ. कई वेबसाइट इस दुष्प्रचार पर समर्पित हैं. लेकिन, जब डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के सामने यह तर्क पहुंचा तो उन्होंने यही कहा कि पोलियो वैक्सीन और ऑटिज्म में कोई संबंध नहीं है. चूंकि, हर बच्चे को पोलियो का टीका लगता है तो ऐसे में यदि कोई माता-पिता अपने बच्चे को ऑटिज्म होने पर पोलियो की दवा को दोष दें तो यह भ्रामक है. सच नहीं. केजरीवाल भी अपनी हार के पीछे ईवीएम की गड़बड़ी को बीमारी के रूप में बता रहे हैं. उनका राजनीतिक मर्ज कुछ और है और उसका इलाज भी दूसरा है.
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आखिर इस ईवीएम के बहाने कब तक ?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.