गुजरात में चुनाव के दिन जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, ये चुनाव बीजेपी बनाम कांग्रेस नहीं बल्कि बीजेपी बनाम हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर ओर जिग्नेश मेवानी बनता जा रहा है. हालांकि गुजरात चुनाव में पहली बार, लोग कांग्रेस के पाले में इसलिये नहीं जा रहे क्योंकि कांग्रेस अच्छी पार्टी है या राहुल गांधी दमदार भाषण दे रहे हैं. बल्कि लोग कांग्रेस के पास इसलिये जा रहे हैं, क्योंकि वो बीजेपी से नाराज हैं. बीजेपी के विकास के मुद्दे से नाराज हैं. यहां तक की लोग बीजेपी के स्थानिय नेतृत्व से भी नाराज हैं.
बीजेपी के खिलाफ ये नाराजगी पैदा कैसे हुई, इसे समझने के लिये आपको दो साल पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन के शुरु होने के समय से समझना पड़ेगा. दरअसल ऐसा नहीं था कि नरेन्द्र मोदी के जाने के बाद गुजरात में आनंदीबेन पटेल की सरकार आने से ये आंदोलन शुरु हुआ था. ये आंदोलन नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी शुरु हुआ था. लेकिन मोदी जानते थे की जिन ताश के पत्तों पर उन्होंने विकास का महल बनाया है, उसे थोड़ी सी हवा भी गिरा सकती है. यही वजह थी कि जब 2008 में पहली बार पाटीदारों के जरीये आरक्षण मांगा गया, मोदी ने उस चिंगारी को वहीं बुझा दिया था. लेकिन आनंदीबेन पटेल की सरकार इस चिंगारी को भांपने में विफल रही. इस चिंगारी में घी डालने का काम पाटीदारों पर लाठीचार्ज के फैसले ने किया. इस लाठीचार्ज में 24 घंटों के अंदर 14 पाटीदारों की मौत हो गई थी.
आज की तारीख में वही मौत और वही लाठी हार्दिक की रणनीति का हिस्सा बन चुके हैं. हार्दिक पटेल अब बड़े पाटीदार नेता के तौर पर उभर रहा है. पाटीदार वोट एक, दो, चार सीटों पर अपना वर्चस्व नहीं रखता है. बल्कि ये वोट बैंक गुजरात के 182 विधानसभा सीट में से 70 सीटों पर अपना वर्चस्व रखता है. इसमें सौराष्ट्र, दक्षिण गुजरात और उत्तर गुजरात शामिल है. उत्तर गुजरात पाटीदारों का गढ़ है. लेकिन हार्दिक पटेल को उत्तर गुजरात के मेहसाणा और पाटन जैसे जिले में जाने पर कोर्ट के जरीये पाबंदी लगायी गयी है. यही वजह है कि हार्दिक पटेल ने...
गुजरात में चुनाव के दिन जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, ये चुनाव बीजेपी बनाम कांग्रेस नहीं बल्कि बीजेपी बनाम हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर ओर जिग्नेश मेवानी बनता जा रहा है. हालांकि गुजरात चुनाव में पहली बार, लोग कांग्रेस के पाले में इसलिये नहीं जा रहे क्योंकि कांग्रेस अच्छी पार्टी है या राहुल गांधी दमदार भाषण दे रहे हैं. बल्कि लोग कांग्रेस के पास इसलिये जा रहे हैं, क्योंकि वो बीजेपी से नाराज हैं. बीजेपी के विकास के मुद्दे से नाराज हैं. यहां तक की लोग बीजेपी के स्थानिय नेतृत्व से भी नाराज हैं.
बीजेपी के खिलाफ ये नाराजगी पैदा कैसे हुई, इसे समझने के लिये आपको दो साल पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन के शुरु होने के समय से समझना पड़ेगा. दरअसल ऐसा नहीं था कि नरेन्द्र मोदी के जाने के बाद गुजरात में आनंदीबेन पटेल की सरकार आने से ये आंदोलन शुरु हुआ था. ये आंदोलन नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी शुरु हुआ था. लेकिन मोदी जानते थे की जिन ताश के पत्तों पर उन्होंने विकास का महल बनाया है, उसे थोड़ी सी हवा भी गिरा सकती है. यही वजह थी कि जब 2008 में पहली बार पाटीदारों के जरीये आरक्षण मांगा गया, मोदी ने उस चिंगारी को वहीं बुझा दिया था. लेकिन आनंदीबेन पटेल की सरकार इस चिंगारी को भांपने में विफल रही. इस चिंगारी में घी डालने का काम पाटीदारों पर लाठीचार्ज के फैसले ने किया. इस लाठीचार्ज में 24 घंटों के अंदर 14 पाटीदारों की मौत हो गई थी.
आज की तारीख में वही मौत और वही लाठी हार्दिक की रणनीति का हिस्सा बन चुके हैं. हार्दिक पटेल अब बड़े पाटीदार नेता के तौर पर उभर रहा है. पाटीदार वोट एक, दो, चार सीटों पर अपना वर्चस्व नहीं रखता है. बल्कि ये वोट बैंक गुजरात के 182 विधानसभा सीट में से 70 सीटों पर अपना वर्चस्व रखता है. इसमें सौराष्ट्र, दक्षिण गुजरात और उत्तर गुजरात शामिल है. उत्तर गुजरात पाटीदारों का गढ़ है. लेकिन हार्दिक पटेल को उत्तर गुजरात के मेहसाणा और पाटन जैसे जिले में जाने पर कोर्ट के जरीये पाबंदी लगायी गयी है. यही वजह है कि हार्दिक पटेल ने सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात को प्रमुख तौर पर अपना कार्यक्षेत्र बना दिया है.
वहीं दूसरी तरफ अल्पेश ठाकोर ने उत्तर गुजरात को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया है. उत्तर गुजरात और मध्य गुजरात में ठाकोरों की आबादी और ओबीसी की आबादी को मिला लें तो उत्तर गुजरात की 32 सीटों में से 30 से ज्यादा सीट प्रभावित होती है. अल्पेश ठाकोर ने अपना मोर्चा उत्तर और मध्य गुजरात में संभाल लिया है.
पहले चरण में सौराष्ट्र ओर दक्षिण गुजरात में वोट डाले जाने हैं. सौराष्ट्र के ज्यादातर लोग दक्षिण में सूरत जाकर बसे हैं. पहले ये लोग भाजपा को जीताने के लिये सौराष्ट्र के वोटों पर असर डालते थे और फिर दक्षिण में जाकर काम करते थे. लेकिन इस बार दोनों जगह पर एक ही दिन में वोटिंग है. ऐसे में हार्दिक पटेल ने सबसे ज्यादा सौराष्ट्र में सभाओं और रोड शो के जरीये भाजपा को हराने की रणनीति बनायी है. यहां भाजपा और कांग्रेस के नेताओं की जब सभा होती है तो लोगों को सभा के लिये लाना पड़ता है. लेकिन जब हार्दिक की सभा होती है तो लोगों का हुजुम खुद ही सभास्थल पर पहुंच जाता है.
वहीं अल्पेश ने अपना ठाकोर समाज उत्तर गुजरात और मध्य-गुजरात के गांव-गांव में इस तरह फैलाया हुआ है कि पाटीदारों के बाद यहां इनका ही वर्चस्व है. अल्पेश ने मध्य गुजरात और उत्तर गुजरात की 70 सीटों पर बीजेपी के 'पेज मैनेजमेंट' के खिलाफ परिवार मैनेजमेंट किया है. यानी हर पांच परिवार पर एक कार्यकर्ता तय किया गया है. उसकी जिम्मेदारी उस पांच परिवारों का वोट अपने पक्ष में डलवाने की होगी.
जानकारों की मानें तो हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर ने लोगों में बीजेपी के खिलाफ नाराजगी तो पैदा कर दी है, लेकिन ये नाराजगी अब तक कांग्रेस के समर्थन में तब्दील नहीं हो पाई है. हालांकि अगर नाराजगी होती है तो लहर पैदा होने में वक्त नहीं लगता. लेकिन कांग्रेस के स्थानीय नेता में वो दम नहीं दिखता. सवाल ये भी है कि प्रधानमंत्री आमलोगों की नाराजगी को दूर करने में कामयाब हो गये तो अल्पेश, हार्दिक और जिग्नेश की रणनीति धरी की धरी रह जायेगी.
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