गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का हार्दिक पटेल के साथ गठजोड़ की खबरें आयी हैं. रिपोर्टों के मुताबिक लगता है की सौदेबाज़ी तगड़ी हुई है. जानकारों का मानना है की हार्दिक ने करीब 40 से 45 सीटों की मांग की है. इसके अलावा कांग्रेस शायद हार्दिक के चुनाव प्रचार का खर्च भी उठाएगी. ज़ाहिर है की सत्ता में आये तो हार्दिक और उनके पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दुसरे नेताओं को मंत्रीमंडल में भी शामिल किया जाएगा.
अल्पेश, हार्दिक और जिग्नेश- ये तीन युवा नेता कांग्रेस के लिए गुजरात चुनाव में बड़ी उम्मीद के रूप में उभरे हैं. अल्पेश तो कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन अब हार्दिक और जिग्नेश से बातचीत चल रही है. हार्दिक के कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के बाद यह तो साफ़ हो गया कि हार्दिक भाजपा विरोधी प्रचार ही करेंगे. इसमें यह पहलु देखने लायक होगी की पटेल समुदाय राज्य सरकार की 10 में से 6 मांग मन लेने को किस तरीके से लेगा.
अगर वोटरों को यह लगता है की ये व्यवसायी के हित में है की राज्य सरकार से एक मध्य पंथ बना के चला जाये- बाकि मांगों पर बातचीत की जाये- तो हार्दिक के वोट में कुछ कमी आ सकती है. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस को फायदा तो मिलेगा, लेकिन वह फ़ायदा शायद ज़्यादा सीटों में तबदील नहीं हो पायेगा. और अगर पटेल समुदाय पूरी तरीके से हार्दिक के साथ आती है, और प्रो कांग्रेस और एंटी बीजेपी वोट डाली जाती है, तो फिर 30 से ज़्यादा सीटों पर यह असर देखने को मिलेगा.
सवाल यह है की वोटर भाजपा से कितने नाराज़ हैं? नोटबंदी और जीएसटी से व्यवसायी परेशानी में तो ज़रूर हैं- लेकिन क्या वे इतने नाराज़ हैं की उनके वोट एंटी भाजपा और प्रो कांग्रेस साबित होंगे? अगर ऐसा हुआ तभी कांग्रेस को फायदा होगा और...
गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का हार्दिक पटेल के साथ गठजोड़ की खबरें आयी हैं. रिपोर्टों के मुताबिक लगता है की सौदेबाज़ी तगड़ी हुई है. जानकारों का मानना है की हार्दिक ने करीब 40 से 45 सीटों की मांग की है. इसके अलावा कांग्रेस शायद हार्दिक के चुनाव प्रचार का खर्च भी उठाएगी. ज़ाहिर है की सत्ता में आये तो हार्दिक और उनके पाटीदार आरक्षण आंदोलन के दुसरे नेताओं को मंत्रीमंडल में भी शामिल किया जाएगा.
अल्पेश, हार्दिक और जिग्नेश- ये तीन युवा नेता कांग्रेस के लिए गुजरात चुनाव में बड़ी उम्मीद के रूप में उभरे हैं. अल्पेश तो कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन अब हार्दिक और जिग्नेश से बातचीत चल रही है. हार्दिक के कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के बाद यह तो साफ़ हो गया कि हार्दिक भाजपा विरोधी प्रचार ही करेंगे. इसमें यह पहलु देखने लायक होगी की पटेल समुदाय राज्य सरकार की 10 में से 6 मांग मन लेने को किस तरीके से लेगा.
अगर वोटरों को यह लगता है की ये व्यवसायी के हित में है की राज्य सरकार से एक मध्य पंथ बना के चला जाये- बाकि मांगों पर बातचीत की जाये- तो हार्दिक के वोट में कुछ कमी आ सकती है. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस को फायदा तो मिलेगा, लेकिन वह फ़ायदा शायद ज़्यादा सीटों में तबदील नहीं हो पायेगा. और अगर पटेल समुदाय पूरी तरीके से हार्दिक के साथ आती है, और प्रो कांग्रेस और एंटी बीजेपी वोट डाली जाती है, तो फिर 30 से ज़्यादा सीटों पर यह असर देखने को मिलेगा.
सवाल यह है की वोटर भाजपा से कितने नाराज़ हैं? नोटबंदी और जीएसटी से व्यवसायी परेशानी में तो ज़रूर हैं- लेकिन क्या वे इतने नाराज़ हैं की उनके वोट एंटी भाजपा और प्रो कांग्रेस साबित होंगे? अगर ऐसा हुआ तभी कांग्रेस को फायदा होगा और सत्ता में आने की उसकी हसरत पूरी हो पाएगी.
हार्दिक शायद यह समझ गए है कि पाटीदारों की बेहतरी के लिए सत्ता में रहना ज़रूरी है. भाजपा के दरवाज़े फ़िलहाल बंद हैं, तो वो कांग्रेस के साथ चले गए हैं. अब देखना यह है की वह भाजपा से मनोनीत पाटीदार कैंडिडेटों के खिलाफ कितना सफल हो पाते हैं. वैसे मेहनत तो बहुत कर रहे हैं. पाटीदारों को ज़्यादा हिस्सेदारी देने के लिए ही हार्दिक ने कांग्रेस से 40 सीटों की मांग की है. इन्हें जीता पाए तो हार्दिक के सामने किंग मेकर बनने का अवसर होगा.
रेशमा और वरुण पटेल का भाजपा में शामिल हो जाना, हार्दिक के लिए बड़ा झटका था. इससे पाटीदारों का एकछत्र नेता होने का सेहरा उनके सिर से छीन गया. जानकारों का मानना है की उनके लिए पूरे आंदोलन के खर्चा उठा पाना मुश्किल हो रहा था- इसीलिए शायद वह कांग्रेस के शरण में गए हैं.
हार्दिक की सफलता के लिए कांग्रेस का सत्ता में आना बेहद ज़रूरी है. तभी वह किंग मेकर बन पाएंगे और अपनी शर्तों पर कांग्रेस या उसकी सरकार में हिस्सेदारी भी पाएंगे. और तभी शायद वह खुले तौर पर कांग्रेस में शामिल भी होंगे. तब तक ऐसे ही बाहर से समर्थन चलता रहेगा.
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