भाजपा निर्दलीयों को दबा रही है... निर्दलीयों को धमकाया जा रहा है... उन्हें लाने के लिए हेलिकॉप्टर भेजा जा रहा है... हरियाणा से आ रही ऐसी खबरें एक बात तो साफ कर देती हैं अब हरियाणा में सरकार बनाने का फैसला निर्दलीय करेंगे. अभी कुल 7 निर्दलीय हैं, जिनमें कुछ बागी नेता भी हैं. दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि इन निर्दलीयों पर भाजपा दबाव बना रही है, ताकि वह उनसे मिल जाएं. वहीं दूसरी ओर दुष्यंत सिंह चौटाला ने आरोप लगा दिया है भाजपा निर्दलीयों को दिल्ली बुलाने के लिए हेलिकॉप्टर भेज रही है और दबाव बनाकर उन्हें अपने साथ जोड़ना चाहती है. आपको बता दें कि हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजों (Haryana Election Result 2019) में अभी तक भाजपा के हिस्से में 40 सीटें हैं, कांग्रेस के पास 31 और जेजेपी के पास 10. इसके अलावा 9 अन्य के खाते में हैं. इन 9 में एक हैं हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा और दूसरे हैं इंडियन नेशनल लोक दल के अभय चौटाला. इनके अलावा 7 विधायक ऐसे हैं, जो निर्दलीय जीते हैं और यही किंगमेकर हैं.
यहां एक बात तो तय ही समझिए कि जेजेपी कांग्रेस के साथ जाएगी. वहीं दूसरी ओर गोपाल कांडा और अभय चौटाला भी आसानी से भाजपा का दामन थाम सकते हैं. गोपाल कांडा ने तो 2009 में कांग्रेस की सरकार बनाने में भी मदद की थी और बदले में उन्हें हुड्डा कैबिनेट में जगह भी मिल गई थी. अब इस बार भाजपा बड़ी पार्टी है तो खट्टर कैबिनेट में वह अपनी सीट पक्की कर सकते हैं. वहीं दूसरी ओर अभय चौटाला उस केस में भाजपा के साथ आसानी से आ जाएंगे, अगर जेजेपी ने भाजपा का साथ देने से मना कर दिया. वैसे भी, दुष्यंत चौटाला का भाजपा के खिलाफ बयान देना तो साफ कर रहा है कि वह भाजपा का समर्थन नहीं करेंगे, यानी अभय चौटाला भी भाजपा के खेमें में ही जाएंगे. इस तरह भाजपा की 42 और कांग्रेस-जेजेपी के गठबंधन के पास 41 सीटें हो जाएंगी. सारा खेल होगा 7 निर्दलीय विधायकों के जरिए. आइए जानते हैं ये लोग हैं कौन.
7 निर्दलीयों को लुभाने के लिए भाजपा-कांग्रेस ने अपनी-अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है.
1- राकेश दौलताबाद
हरियाणा की बादशाहपुर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे राकेश दौलताबाद ने 2009 और 2014 के चुनाव में रनर अप रहे थे. यानी अपनी मौजूदगी का मजबूती से अहसास तो उन्होंने पहले ही करवा दिया था. अब 2019 के चुनाव में वह निर्दलीय ही जीत का ताज भी पहन चुके हैं. आपको बता दें कि 2009 में राकेश दौलताबाद ने अपना पहला चुनाव निर्दलीय की तरह लड़ा था, जबकि 2014 में वह इनेलो के टिकट पर चुनावी मैदान में थे और इस बार इनेलो ने टिकट नहीं दिया तो वह बागी हो गए और निर्दलीय ही चुनाव लड़े और जीते भी.
2- सोमबीर सांगवान
हरियाणा की दादरी सीट से भाजपा के बागी नेता सोमबीर सांगवान ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था. 2014 में उन्होंने इसी सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे. इस बार भाजपा ने सांगवान को टिकट ना देते हुए यहां से बबीता फोगात को खड़ा किया था, लेकिन दंगल गर्ल बबीता फोगात को सांगवान ने चारों खाने चित कर दिया है. सांगवान ने बबीता को टिकट दिए जाने पर अपना विरोध जताते हुए ये भी कहा था कि भाजपा ने सांगवान खाप के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को भी निराश किया है. उन्होंने कहा था कि वह कार्यकर्ताओं से बात कर के ये फैसला करेंगे कि राजनीति छोड़ें या सिर्फ पार्टी. साथ ही ये भी कहा था कि अगर कार्यकर्ता कहेंगे तो वह निर्दलीय चुनाव जरूर लड़ेंगे. और देखिए उन्होंने न सिर्फ चुनाव लड़ा, बल्कि जीत भी गए.
3- बलराज कुंडु
हरियाणा की मेहम विधानसभा सीट पर जीते निर्दलीय नेता बलराज कुंडु पहले भाजपा में थे. जब भाजपा की ओर से उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने निर्दलीय ही चुनाव लड़ने का फैसला किया. कुंडु पहले रोहतक में जिला परिषद के चेयरमैन थे. हालांकि, भाजपा ने शमशेर सिंह खरखरा को टिकट दे दिया, जो पिछले दो चुनावों में इस सीट से कांग्रेस के आनंद सिंह डांगी को हरा चुके हैं. खैर, तब तो भाजपा ने इन्हें टिकट नहीं दिया, लेकिन अब भाजपा को उन्हीं की जरूरत पड़ रही है.
4- धर्मपाल गोंडर (एससी)
हरियाणा की निलोखेड़ी विधानसभा सीट से धर्मपाल गोंडर ने एससी सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा. करनाल लोकसभा के तहत आने वाली निलोखेड़ी विधानसभा सीट पर करीब 25 फीसदी आबादी एससी यानी अनुसूचित जाति वालों की ही है. धर्मपाल गोंडर को इसका बड़ा फायदा मिला है और वह निर्दलीय उम्मीदवार की तरह वहां से जीत गए हैं. दिलचस्प है कि गोंडर भी भाजपा के बागी नेता हैं, जिन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने निर्दलीय ही चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर के दिखा दी.
5- नयन पाल रावत
पृथला विधानसभा सीट से मैदान में उतरे नयन पाल रावत ने भी बाजी मार ली है. नयन पाल रावत भी भाजपा के बागी विधायक हैं, जो अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक प्रभावशाली नेता हैं. जब पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया तो उन्होंने पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया और निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतर गए.
6- रणधीर सिंह गोल्लेन
हरियाणा की पुंद्री विधानसभा सीट से रणधीर सिंह गोल्लेन ने निर्दलीय की तरह चुनाव लड़ा और ये भी भाजपा के बागी नेता है. उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया तो उन्होंने निर्दलीय की तरह चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. यहां उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार सतबीर सिंह को हराया है.
7- रंजीत सिंह
जीतने वाले निर्दलीयों की लिस्ट में एक कांग्रेस के बागी नेता भी हैं, जिनका नाम है रंजीत सिंह. कांग्रेस ने उन्हें रानिया विधानसभा से टिकट देने से मना कर दिया और विनीत कंबोज को टिकट दे दिया तो वह निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते भी. टिकट कटने पर उन्होंने कांग्रेस पर आरोप भी लगाया था कि कांग्रेस में टिकटें बिकी हैं. उन्होंने ये भी कहा कि अशोक तंवर ने ही उनकी टिकट काटी है और कांग्रेस को गर्त में ढकेलने का काम किया है. उन्होंने तो ये भी कहा था कि सिरसा की पांचों सीटों पर कांग्रेस का सफाया कर देंगे.
हरियाणा में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं और किसी भी पार्टी को जीतने के लिए कम से कम 46 सीटों पर अपना दावा पेश करना होगा. अब अगर बात भाजपा की करें तो 40 सीटें वो जीत चुकी है, दो सीटें उसे गोपाल कांडा और अभय चौटाला की आसानी से मिल ही जाएंगी, यानी आंकड़ा हो जाएगा 42. अब इन 7 निर्दलीयों में से कोई 4 भाजपा से मिल जाएं तो भाजपा हरियाणा में अपनी सरकार बना लेगी. यहां एक बात दिलचस्प है कि जिन नेताओं को भाजपा ने टिकट देने से मना किया था, अब उन्हीं के हाथ-पैर जोड़ेगी और उनकी शर्तें भी मानेगी. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए स्थिति थोड़ी सी मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं. जेजेपी का तो कांग्रेस के साथ आना लगभग तय है. कांग्रेस की 31 और जेजेपी की 10 मिलाकर 41 सीटें हो ही गईं. निर्दलीयों में से किन्हीं 5 को कांग्रेस अपने साथ जोड़ ले तो हरियाणा में सरकार उसकी ही बनेगी. यानी अब ये 7 निर्दलीय जिस ओर मुड़ेंगे, सत्ता की चाबी उसी के हाथ लगेगी.
ये भी पढ़ें-
महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव मतदान में रिकॉर्ड मंदी की 5 वजहें !
5 वजहें, जिनके चलते महाराष्ट्र-हरियाणा विधानसभा चुनाव हैं बेहद खास
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दाव पर परिवारवाद
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.