बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वो कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी निवेश बढ़ाएगी जिससे कि इस क्षेत्र कि स्थिति सुधार होगा. इसके लिए पार्टी ने ये भी वायदा किया था कि ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे कृषि क्षेत्र में लाभ बढ़े. घोषणापत्र में कहा गया था कि यह सुनिश्चित किया जायेगा कि लागत का 50% लाभ हो. साथ ही सस्ते कृषि उत्पाद और कर्ज उपलब्ध कराये जाने का भी वायदा किया था. इसके अलावा और भी कई तरह की व्यवस्था करने की बात कही गयी थी. ताकि इस क्षेत्र को ज्यादा उपज देने वाले बीज उपलब्ध करना जैसे लाभ हों.
नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल का यह चौथा साल है और इस दौरान कृषि क्षेत्र से आयी हताशाजनक खबरों से भारतीय कृषि की हालत का पता चलता है. ये वो खबरें हैं जो मौजूदा सरकार के लिए एक चेतावनी भी है.
हाल ही में कर्नाटक के मूंगफली के किसानों ने एक ओर जहां बम्पर उत्पादन पर खुशी जताई, तो वहीं वो इसके मूल्यों से दुखी दिखे. कम मूल्य होने का कारण बाकी राज्यों में भी अच्छे उत्पादन का होना था. लेकिन इससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि उनकी मानें तो कीमत कम होने से लागत भी नहीं निकल पाती. इस कारण वो इसे तुरंत बेचने से बचते दिखे.
कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के आगरा और कन्नौज में कोल्ड स्टोरेज वाले सड़कों पर आलू फेंक रहे थे. ऐसा इसलिए कि कम कीमत होने से किसान अपनी लागत भी नहीं निकल पा रहे थे और इसलिए वो स्टोरेज से आलू नहीं ले रहे थे. उधर, आंध्र के कुरनूल जिले के पट्टीकोंडा और आलूर के बाजारों में टमाटर 50 पैसे प्रति किलो रह गया. बम्पर फसल के बाद भी किसानों में मायूसी देखने को मिली और उन्होंने गुस्से और हताशा में टमाटर सड़कों पर फेंक दिए. उनकी मानें तो इसके अलावा उनके...
बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि वो कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी निवेश बढ़ाएगी जिससे कि इस क्षेत्र कि स्थिति सुधार होगा. इसके लिए पार्टी ने ये भी वायदा किया था कि ऐसे कदम उठाये जायेंगे जिससे कृषि क्षेत्र में लाभ बढ़े. घोषणापत्र में कहा गया था कि यह सुनिश्चित किया जायेगा कि लागत का 50% लाभ हो. साथ ही सस्ते कृषि उत्पाद और कर्ज उपलब्ध कराये जाने का भी वायदा किया था. इसके अलावा और भी कई तरह की व्यवस्था करने की बात कही गयी थी. ताकि इस क्षेत्र को ज्यादा उपज देने वाले बीज उपलब्ध करना जैसे लाभ हों.
नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल का यह चौथा साल है और इस दौरान कृषि क्षेत्र से आयी हताशाजनक खबरों से भारतीय कृषि की हालत का पता चलता है. ये वो खबरें हैं जो मौजूदा सरकार के लिए एक चेतावनी भी है.
हाल ही में कर्नाटक के मूंगफली के किसानों ने एक ओर जहां बम्पर उत्पादन पर खुशी जताई, तो वहीं वो इसके मूल्यों से दुखी दिखे. कम मूल्य होने का कारण बाकी राज्यों में भी अच्छे उत्पादन का होना था. लेकिन इससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि उनकी मानें तो कीमत कम होने से लागत भी नहीं निकल पाती. इस कारण वो इसे तुरंत बेचने से बचते दिखे.
कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के आगरा और कन्नौज में कोल्ड स्टोरेज वाले सड़कों पर आलू फेंक रहे थे. ऐसा इसलिए कि कम कीमत होने से किसान अपनी लागत भी नहीं निकल पा रहे थे और इसलिए वो स्टोरेज से आलू नहीं ले रहे थे. उधर, आंध्र के कुरनूल जिले के पट्टीकोंडा और आलूर के बाजारों में टमाटर 50 पैसे प्रति किलो रह गया. बम्पर फसल के बाद भी किसानों में मायूसी देखने को मिली और उन्होंने गुस्से और हताशा में टमाटर सड़कों पर फेंक दिए. उनकी मानें तो इसके अलावा उनके पास कोई चारा नहीं था. किराया देकर उपज वापस लाने का कोई औचित्य नहीं था.
इन दोनों मामलों में ये देखने को मिला की कीमत में कमी होने से उत्पाद को कोल्ड स्टोरेज में रखने के खर्चे को उठाना किसानों के लिए भारी पड़ता है. इस कारण वो अपना गुस्सा जाहिर करते हुए फसल को फेंक देते हैं या फिर उत्पाद रखे रखे खराब हो जाता है. इस साल लगभग सभी कृषि उपज की कीमतों का कुछ यही हाल रहा. इसके पीछे नोटबंदी को एक वजह माना जा रहा है. आलू, टमाटर, मूंगफली, कपास, गेहूं, धान, बाजरा, सूरजमुखी, सरसों, प्याज और अन्य दालों की कीमत को लेकर किसानों में रोष दिखा और किसानों ने कई जगह विरोध प्रदर्शन व रैलियां की.
इस दौरान महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश में सहित कई राज्यों में प्रदर्शन हुए. मध्य प्रदेश में तो आंदोलन कर रहे पांच किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भी किसानों के प्रदर्शन से अछूती नहीं रही. यहां भी कई राज्यों से आये किसानों ने प्रदर्शन किया जिसमें तमिलनाडु के किसानों का प्रदर्शन तो बिलकुल ही अलग था.
कह सकते हैं कि किसानों में आये दिन रोष बढ़ रहा है, जिससे कर्जमाफ़ी की मांग कई राज्यों से आ रही है. लेकिन कर्ज माफ़ी से किसानों की हालत को ठीक नहीं किया जा सकता. इसके लिए उन्हें सही कीमत और इस क्षेत्र की बुनियादी जरूरतों पर सरकार को ध्यान देना होगा. हाल के चुनाव में ग्रामीण गुजरात ने सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए कुछ मुश्किलें खड़ी की थी. इससे शायद सरकार को भी ये अंदाजा लग गया होगा कि उन्हें इस क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करने की जरुरत है. नहीं तो आने वाले समय में उन्हें किसानों के गुस्से का खामियाजा उठाना पड़ सकता है.
ये भी पढ़ें-
गुजरात में कर्ज से डूबे किसानों की आत्महत्या का है भयानक आंकड़ा
गुजरात में रोज एक किसान का सुसाइड और बदले में 1% प्रतिशत ब्याज में छूट !
कर्ज में डूबे किसानों को भाजपा पकड़ा रही है कांग्रेसी झुनझुना !
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.