कभी कभी तो लगता है जैसे नाम में ही सब कुछ रखा है. ये बात अलग है कि शेक्सपीयर से लेकर मुनव्वर राणा तक नामों को लेकर कोई वैचारिक तब्दीली नहीं आयी है - हां, राजनीति को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उसे अपने हिसाब से चलना होता है. अंग्रेजी साहित्यकार विलियम शेक्सपीयर कहते हैं, 'नाम कोई भी रहे गुलाब खूशबू ही देगा,' तो मशहूर शायर मुनव्वर राना की नसीहत है - 'दूध की नहर मुझसे नहीं निकलने वाली, नाम चाहे मेरा फरहाद भी रखा जाए.'
यूपी में बीजेपी की योगी सरकार सत्ता में हैं जहां ताबड़तोड़ नाम बदले जा रहे हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को रिजेक्शन की हैट्रिक झेलनी पड़ी है - और ममता को सबसे ज्यादा तकलीफ भी इसी बात से है. जब हर कोई अपने वोटरों को ध्यान में रखकर 'नामकरण' संस्कार करने में लगा है तो ममता बनर्जी कैसे पीछे रहतीं. योगी आदित्यनाथ तो दो साल से सत्ता में हैं. लेकिन ममता ने नाम बदलो अभियान उससे भी पहले से चला रखा है. जनवरी 2017 में उन्होंने स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली किताबों में 'रामधेनु' (इंद्रधनुष का बंगाली नाम) को 'रोंगधेनु' कर दिया था. सिर्फ इसलिए कि रामधेनु शब्द में 'राम' नाम का जिक्र था. लेकिन असली लड़ाई इस राज्य का नाम बदलने को को लेकर है, जिसका प्रयास वे 2011 से कर रही हैं.
न कांग्रेस ने, न बीजेपी ने बदलने दिया नाम
ममता बनर्जी सरकार पश्चिम बंगाल का नाम बदलने से जुड़ा प्रस्ताव अब तक तीन बार भेज चुकी है - पहली बार सत्ता में आते ही 2011 में और फिर 2016 में. दोबारा सत्ता में आने पर उन्होंने तीसरा प्रयास हाल ही में किया है. उनके इन प्रयासों को दिल्ली में बैठी कांग्रेस और बीजेपी की सरकार ने बराबरी से नाकाम किया. राजनीतिक तौर पर ममता बनर्जी के सामने जो भी चुनौतियां आयी हों, लेकिन ये मामला ऐसा रहा जिसमें यथास्थिति बनी रही.
मां, माटी और मानुष मिला, लेकिन 'बांग्ला'...
2011 में ममता सरकार ने पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर 'पश्चिमबंग' रखने का प्रस्ताव दिया था. तब की मनमोहन सरकार ने प्रस्ताव तो खारिज कर दिया, लेकिन उसकी कोई वजह नहीं बतायी.
2016 में फिर से ममता सरकार ने कोशिश की. 2016 में उसने राज्य के लिए तीन भाषाओं में अलग अलग लेकिन मिलते जुलते नाम रखने का प्रस्ताव भेजा - अंग्रेजी में Bengal, बंगाली में बांग्ला और हिंदी में बंगाल. केंद्र की मोदी सरकार ने ये कहकर इस प्रस्ताव को वापस लौटा दिया कि तीनों भाषाओं में ही एक ही नाम भेजा जाए. ऐसे में काफी मंथन के बाद 26 जुलाई, 2018 को पश्चिम बंगाल विधानसभा ने राज्य में सबसे अधिक बोली जाने वाली तीन भाषाओं बंगाली, हिंदी और अंग्रेजी सभी के लिए एक ही नाम रखा - बांग्ला.
'बांग्ला' नाम सामने आने पर केंद्र के गृह विभाग ने ममता सरकार के प्रस्ताव को विदेश मंत्रालय के पास भेज दिया, क्योंकि यह नाम पड़ोसी देश 'बांग्लादेश' के नाम से मिलता-जुलता है. विदेश मंत्रालय से कहा गया कि वह बांग्लादेश सरकार से इस बारे में सलाह-मशविरा कर ले कि उन्हें कोई बाद में आपत्ति ना हो. ताजा खबरों के मुताबिक पड़ोसी देश के नाम से हो रही समानता का आधार बनाकर मोदी सरकार ने ममता सरकार का प्रस्ताव लौटा दिया है.
केंद्र सरकार की इन तमाम 'आपत्तियों'और 'रुकावटों' के चलते आखिर ममता बनर्जी के सब्र का बांध टूटा, और उन्होंने इस मामले का ब्योरा देते हुए एक फेसबुक पोस्ट लिख डाली :
अपनी पोस्ट में ममता बनर्जी ने आजादी के बाद से देश भर में बदले गये नामों की ओर ध्यान दिलाया है और अपनी ओर से हर संभव आपत्तियों को खारिज करने की कोशिश की है. ममता के विरोधी पक्ष का कहना है कि बांग्ला नाम बोलने में बांग्लादेश जैसा जान पड़ता है, जिस पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनर्जी की दलील है आखिर पड़ोसी मुल्क में भी तो पंजाब नाम का सूबा है और भारत में भी है ही.
सवाल ये उठता है कि जब योगी आदित्यनाथ कोई भी नाम बदल सकते हैं तो ममता बनर्जी को ऐसी सहूलियत क्यों नहीं मिल पा रही?
देखें तो दोनों के मामलों में एक बुनियादी फर्क है - योगी आदित्यनाथ छोटे शहरों के नाम बदल रहे हैं, जबकि ममता बनर्जी एक सूबे का नाम बदलना चाहती हैं जिसके लिए केंद्र की मंजूरी जरूरी है.
ममता बनर्जी का तर्क है कि जिस तरह आजादी के बाद कुछ राज्यों और शहरों के नाम स्थानीय भाषाई भावनाओं को ध्यान में रखते हुए बदले गये पश्चिम बंगाला को लेकर भी वैसा ही प्रस्ताव रखा गया है. ममता बनर्जी इस सिलसिले में उड़ीसा को बदल कर ओडिशा, पॉन्डिचेरी को बदलकर पुडुचेरी, मद्रास को बदलकर चेन्नै और बैंगलोर को बदल कर बेंगलुरू करने का उदाहरण दे रही हैं.
हालांकि, वे पश्चिम बंगाल का नया चुनने में राज्य की भाषा को ही राज्य का नाम देने की भूल कर रही हैं. जैसे, तमिलनाडु राज्य का नाम तमिलनाडु है, तमिल नहीं. इंग्लैंड का नाम इंग्लैंड है, इंग्लिश नहीं. फ्रांस का नाम फ्रांस है, फैंच नहीं. ऐसे में बांग्ला बोलने वाले बांग्लाप्रदेश में रह सकते हैं, बांग्ला में नहीं. क्योंकि यही तो राज्य की भाषा है. क्या केरल का नाम मलयालम किया जा सकता है?
राज्य का नाम न बदलने से छटपटा रहीं ममता का मर्म समझा जा सकता है. क्योंकि केंद्र की सत्ता उस नेता के हाथ में है जिसकी वो कट्टर विरोधी हैं और 2019 के चुनावों में कड़ी चुनौती देने की तैयारियों में जुटी हुई हैं. ममता बनर्जी की दलील अपनी जगह है, लेकिन लगता है बीजेपी के मन में कुछ और ही चल रहा है. ये भी हो सकता है कि बीजेपी नेतृत्व ने खुद पश्चिम बंगाल के लिए कोई खास नाम सोच रखा हो. और उसके लिए उसे सही वक्त का इंतजार हो. अगर इस पैमाने के हिसाब से देखें तो बीजेपी की फेहरिस्त में पश्चिम बंगाल कोटे में दो ही नाम प्रमुख रूप से उभर कर आते हैं - एक, श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दूसरा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस.
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