आठ बरस पहले दिल्ली में निर्भया सामूहिक बलात्कार केस (Nirbhaya Gangrape case) में देशभर मे जनाक्रोश इसलिए फूट पड़ा था क्योंकि इसमें सियासत की गंध महसूस नहीं हो सकी थी. हांलाकि आरोप लगते हैं कि संघ (RSS) और भाजपा (BJP) ने बैकडोर से दिल्ली रेप और अन्ना आन्दोलन को हवा दी थी. बिना अपनी पहचान जाहिर किये, बिना अपने संगठन या पार्टी का झंडा लिए आम नागरिक की तरह उस दौर के जनाक्रोश की पहली जमात में संघी और भाजपाई इकट्ठा होते थे. आम इंसान के जनाक्रोश की मशाल से जनता जागरूक होती है और फिर जनाक्रोश से जनाक्रोश की मशाल जलती है. इस तरह देश की आम जनता का आंदोलन शक्तिशाली आंदोलन बनके ताकतवर से ताकतवर हुकुमतों की चूलें हिल जाती हैं. संघ और भाजपा की अतीत की इस परिपक्वता से सीख लेकर यदि कांग्रेस भी ऐसा ही करती तो हाथरस प्रकरण को निर्भया कांड बनने में देर नहीं लगती. कांग्रेस (Congress) क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर काम करती. सभी विपक्षी दलों के कार्यकर्ता बिना पार्टी की पहचान के आम नागरिक बनकर शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन करते. तो लोगों को देखकर लोग गलत के खिलाफ आगे आकर रेप के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ सकते थे. लेकिन ऐसा तब होता जब कांग्रेस के पास भाजपा/संघ जैसी सधी हुई परिपक्व रणनीति और कार्यकुशलता के गुण होते.
फिलहाल तो कांग्रेस ने हाथरस मामले पर भाजपा सरकारों को घेरने से ज्यादा इस मुद्दे को सियासी रंग देकर राहुल और और प्रियंका की ब्रांडिंग करने की कोशिश की है. आपदा में अवसर तलाशते हुए कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर यूपी के बड़े विपक्षी दलों सपा-बसपा को ज्यादा चुनौती दे रही है.
यूपी का हाथरस देशभर में बलात्कार की घटनाओ के विरोध का केंद्र बन गया है....
आठ बरस पहले दिल्ली में निर्भया सामूहिक बलात्कार केस (Nirbhaya Gangrape case) में देशभर मे जनाक्रोश इसलिए फूट पड़ा था क्योंकि इसमें सियासत की गंध महसूस नहीं हो सकी थी. हांलाकि आरोप लगते हैं कि संघ (RSS) और भाजपा (BJP) ने बैकडोर से दिल्ली रेप और अन्ना आन्दोलन को हवा दी थी. बिना अपनी पहचान जाहिर किये, बिना अपने संगठन या पार्टी का झंडा लिए आम नागरिक की तरह उस दौर के जनाक्रोश की पहली जमात में संघी और भाजपाई इकट्ठा होते थे. आम इंसान के जनाक्रोश की मशाल से जनता जागरूक होती है और फिर जनाक्रोश से जनाक्रोश की मशाल जलती है. इस तरह देश की आम जनता का आंदोलन शक्तिशाली आंदोलन बनके ताकतवर से ताकतवर हुकुमतों की चूलें हिल जाती हैं. संघ और भाजपा की अतीत की इस परिपक्वता से सीख लेकर यदि कांग्रेस भी ऐसा ही करती तो हाथरस प्रकरण को निर्भया कांड बनने में देर नहीं लगती. कांग्रेस (Congress) क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर काम करती. सभी विपक्षी दलों के कार्यकर्ता बिना पार्टी की पहचान के आम नागरिक बनकर शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन करते. तो लोगों को देखकर लोग गलत के खिलाफ आगे आकर रेप के खिलाफ जन आंदोलन छेड़ सकते थे. लेकिन ऐसा तब होता जब कांग्रेस के पास भाजपा/संघ जैसी सधी हुई परिपक्व रणनीति और कार्यकुशलता के गुण होते.
फिलहाल तो कांग्रेस ने हाथरस मामले पर भाजपा सरकारों को घेरने से ज्यादा इस मुद्दे को सियासी रंग देकर राहुल और और प्रियंका की ब्रांडिंग करने की कोशिश की है. आपदा में अवसर तलाशते हुए कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर यूपी के बड़े विपक्षी दलों सपा-बसपा को ज्यादा चुनौती दे रही है.
यूपी का हाथरस देशभर में बलात्कार की घटनाओ के विरोध का केंद्र बन गया है. दिल्ली में निर्भया केस के बाद देशभर मे जनाक्रोश तत्कालीन यूपीए सरकार के लिए घातक रहा. हाथरस मामला केंद्र और यूपी सरकार के लिए शायद कम घातक हो क्योंकि कांग्रेस के हाथ ने हाथरस प्रकरण विरोध को पूरी तरह से सियासी रंग दे दिया. इस बात में कोई शक नहीं कि कांग्रेस के मुख्य नेतृत्वकर्ता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने हाथरस की घटना को हवा देकर यूपी सरकार को मुश्किल में डाल दिया. इससे भी ज्यादा यूपी के मुख्य विपक्षी दल सपा और बसपा की सक्रियता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया.
लेकिन हाथरस पर कांग्रेस की इस सियासी कामयाबी के पीछे एक बड़ी नाकामी भी है. हाथरस की मुसीबत पर कांग्रेस के हाथ ने भाजपा को सहारा भी दिया है. कांग्रेस इस मुद्दे को यदि सियासी रंग ना देती तो शायद आम जनता विरोध में सड़कों पर उतर आती. जो भाजपा सरकारों के लिए ज्यादा नुकसानदेह होता.
उत्तर प्रदेश में रेप की घटनाएं बढ़ती जा रहा हैं तो कांग्रेस शासित राजस्थान के भी हालात अच्छे नहीं हैं. लेकिन विरोध का केन्द्र यूपी का हाथरस बना है. यहां देशभर में हो रहे बेटियों पर जुल्म के खिलाफ यज्ञ की अग्नि की लपटें अधिक नजर आ रही हैं. करीब आठ बरस पहले भी ऐसा ही हुआ था. देशभर में बढ़ती बलात्कार की घटनाओं के खिलाफ दिल्ली विरोध और आक्रोश का केंद्र बना था. दिल्ली में बस में हुए निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड का विरोध देशभर की बेटियों पर हुए जुल्म का केंद्र था. कांग्रेस यदि हाथरस मामले को खुलकर सियासी रंग ना देती तो हो सकता था कि जनाक्रोश सड़को पर आ जाता और सरकार के लिए ये बेहद घातक होता.
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