प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां 'हीराबेन' इस चराचर जगत को छोड़कर देवलोकगमन कर गईं. यह क्षण विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक व्यक्तिगत अपूर्णीय क्षति है, क्योंकि उनके जीवन में मां हीराबेन का अद्वितीय स्थान था. हर किसी के जीवन में मां का स्थान अद्वितीय ही तो है, किन्तु सार्वजनिक जीवन में आने के पश्चात समूचे परिवार में प्रधानमंत्री अपनी मां के बहुत करीब थे और उनका जिक्र भी कभी-कभी सार्वजनिक मंचो से करते थे. अपनी मां को याद करते हुए वो भावुक भी हो जाते थे. नरेंद्र मोदी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अक़्सर अपनी मां के लिए वक्त निकाल ही लेते थे और विशेष अवसर पर उनसे आशीर्वाद लेने साधारण पुत्र की तरह अवश्य जाते थे. अमूमन मां-बेटे का रिश्ता होता ही अनमोल है. यह रिश्ता किसी भी पद-प्रतिष्ठा से परे होता है. मोदी और हीराबेन को जब भी हम लोग एक साथ देखते थे, तो यह भावना और प्रगाढ़ होती थी. हीरा बा का निधन सच पूछिए तो एक ऐसी महिला का निधन है, जिन्होनें अपने संघर्षों के बहुत आयाम देखे. साथ ही अपने पुत्र को सर्वोच्च राजनीतिक शिखर पर पहुंचते हुए भी देखा. किन्त उन्होंने कभी अपने संयम, सिद्धांतों और सहजता से समझौता नहीं किया. उनका निष्काम कर्मयोग और जीवन मूल्यों के प्रति समर्पण की भावना हर व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत है.
हीरा बा की अन्त्योष्ठी में शामिल होने अहमदाबाद पहुंचे प्रधानमंत्री ने अपनी मां के शरीर को कंधा दिया और अपनी भावनाओं को शब्दों में गूंथने से अपने को नहीं रोक सकें. मां के प्रति शब्दों में अपनी भावनाओं को समेटते हुए उन्होंने लिखा कि, 'शानदार शताब्दी का ईश्वर के चरणों में विराम!' मां को मुखाग्नि देने के बाद मोदी अपनी मां की दी हुई सीख के अनुसार...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां 'हीराबेन' इस चराचर जगत को छोड़कर देवलोकगमन कर गईं. यह क्षण विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक व्यक्तिगत अपूर्णीय क्षति है, क्योंकि उनके जीवन में मां हीराबेन का अद्वितीय स्थान था. हर किसी के जीवन में मां का स्थान अद्वितीय ही तो है, किन्तु सार्वजनिक जीवन में आने के पश्चात समूचे परिवार में प्रधानमंत्री अपनी मां के बहुत करीब थे और उनका जिक्र भी कभी-कभी सार्वजनिक मंचो से करते थे. अपनी मां को याद करते हुए वो भावुक भी हो जाते थे. नरेंद्र मोदी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अक़्सर अपनी मां के लिए वक्त निकाल ही लेते थे और विशेष अवसर पर उनसे आशीर्वाद लेने साधारण पुत्र की तरह अवश्य जाते थे. अमूमन मां-बेटे का रिश्ता होता ही अनमोल है. यह रिश्ता किसी भी पद-प्रतिष्ठा से परे होता है. मोदी और हीराबेन को जब भी हम लोग एक साथ देखते थे, तो यह भावना और प्रगाढ़ होती थी. हीरा बा का निधन सच पूछिए तो एक ऐसी महिला का निधन है, जिन्होनें अपने संघर्षों के बहुत आयाम देखे. साथ ही अपने पुत्र को सर्वोच्च राजनीतिक शिखर पर पहुंचते हुए भी देखा. किन्त उन्होंने कभी अपने संयम, सिद्धांतों और सहजता से समझौता नहीं किया. उनका निष्काम कर्मयोग और जीवन मूल्यों के प्रति समर्पण की भावना हर व्यक्ति के लिए प्रेरणास्रोत है.
हीरा बा की अन्त्योष्ठी में शामिल होने अहमदाबाद पहुंचे प्रधानमंत्री ने अपनी मां के शरीर को कंधा दिया और अपनी भावनाओं को शब्दों में गूंथने से अपने को नहीं रोक सकें. मां के प्रति शब्दों में अपनी भावनाओं को समेटते हुए उन्होंने लिखा कि, 'शानदार शताब्दी का ईश्वर के चरणों में विराम!' मां को मुखाग्नि देने के बाद मोदी अपनी मां की दी हुई सीख के अनुसार अपने कर्तव्य पथ पर निकल पड़े. जो एक निष्काम कर्मयोगी और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की पहचान है.
नरेंद्र मोदी अपने कर्मप्रधान व्यक्तित्व को लेकर पहचान रखते है और यह व्यक्तित्व उनका माँ के निधन के बाद भी देखने को मिला. मां को अंतिम विदाई देने के बाद प्रधानमंत्री अपने दायित्व का निर्वहन करने निकल पड़े. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी लिखा है कि 'कर्मप्रधान विश्व रचि रखा!' जिसे आत्मसात कर प्रधानमंत्री ने देश के समक्ष एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया. हीरा बा ने अपने बेटे को अपने 100वें जन्मदिन के अवसर पर एक बात कही थी कि, 'काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से.'
मोदी इस वक्तव्य को दिलों-दिमाग में बसाकर समाज को संदेश दे रहें हैं कि जीवन में अपनों का आना-जाना लगा रह सकता है, लेकिन जिस हेतु की सिद्धि के लिए शरीर धारणा किया है वह रुकना नहीं चाहिए। प्रधानमंत्री नें नम आंखों के साथ इसी धेध्य वाक्य को सामने रखा और राज धर्म के लिए निकल पड़ें. स्वभावतः यही होता है कि जब किसी के घर में छोटा सा भी दुःख-कष्ट आता है, तो लोग सभी काम-काज बंद करके चिंता व शोक में डूब जाते हैं, लेकिन मोदी का व्यक्तित्व अलग है वह घोर विपत्तिकाल में भी संयम बनाएं रखते हैं.
अरुण जेटली जी के निधन के बाद भी हम सभी ने इस बात का एहसास किया था और आज जब वो अपनी मां को अंतिम प्रणाम किये तब भी. कर्म पर अटल रहने का फ़ैसला मोदी की शख्सियत को विशाल और अनुकरणीय बनाता है. मां को मुखाग्नि देने के बाद पीएम मोदी ने हावड़ा-न्यू जलपाईगुड़ी वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाई. साथ ही मोदी ने बंगाल में 7,800 करोड़ रुपए से ज्यादा के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स की शुरुआत की. स्वच्छ गंगा मिशन के तहत 7 सीवरेज प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया. जो आगामी समय में मजबूत और स्वच्छ भारत की नींव को आधारशिला प्रदान करेगा.
किसी भी व्यक्ति की मां का निधन उसे शून्य की अवस्था में लाकर खड़ा कर देता है, लेकिन उस शून्य की अवस्था में भी राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व और कर्तव्यबोध को लेकर इतनी सजगता ही है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को अन्य से विरला बनाती है. पीएम मोदी की राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव ही है कि विरोधी भी उनकी तारीफ़ समय-समय पर करते नहीं अघाते. सुबह जब हीराबा के निधन की खबर आई तो किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी प्रधानमंत्री इसमें शामिल होंगें लेकिन प्रधानमंत्री ने वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से कार्यक्रम में शामिल हुए.
भाजपा की धुर विरोधी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने तभी तो कहा कि 'मां का कोई विकल्प नहीं हो सकता. आपकी मां मेरी मां हैं. मुझे भी अपनी मां की बहुत याद आई. आप कार्यक्रम से वर्चुअली जुड़े, यह हमारे लिए बहुत सम्मान की बात है.' निर्बाध रूप से कहें तो हम उस संस्कृति के वाहक हैं. जहां कहा जाता है कि मां-पिता व गुरु कभी दिवंगत नहीं होते और वे अपने गुणों के माध्यम से अपनी संततियों व शिष्यों में सदैव उपस्थित रहते हैं.
यह बात पीएम मोदी और उनकी मां के लिए भी समान रूप से लागू होती है, जिसे प्रधानमंत्री भलीभांति समझते हैं. प्रधानमंत्री के जीवन के उतार-चढ़ाव और निर्णयों में उनकी माँ का साथ मिला, उनके द्वारा दी हुई शिक्षा का गहरा प्रभाव प्रधानमंत्री मोदी के जीवन में दिखता है. हीरा बा का जीवन भी असधारण था.18 जून 2022 को अपने एक ब्लॉग में प्रधानमंत्री लिखते हैं कि 'मेरी मां ने हमेशा मुझे अपने सिद्धांत पर डटे रहने, गरीब के लिए काम करते रहने के लिए प्रेरित किया है'
मुझे याद है, जब मेरा मुख्यमंत्री बनना तय हुआ तो मैं गुजरात में नहीं था. एयरपोर्ट से मैं सीधे मां से मिलने गया था. खुशी से भरी हुई मां का पहला सवाल यही था कि क्या तुम अब यहीं रहा करोगे? मां मेरा उत्तर जानती थीं. फिर मुझसे बोलीं- 'मुझे सरकार में तुम्हारा काम तो समझ नहीं आता लेकिन मैं बस यही चाहती हूं कि तुम कभी रिश्वत नहीं लेना' इसी ब्लॉग में प्रधानमंत्री आगे लिखते हैं कि 'वो मुझे बार-बार याद दिलाती हैं कि मेरी चिंता मत किया करो, तुम पर बड़ी जिम्मेदारी है.
मां से जब भी फोन पर बात होती है तो यही कहती हैं कि- 'देख भाई! कभी कोई गलत काम मत करना, बुरा काम मत करना, गरीब के लिए काम करना!' सच पूछिए तो आज भले प्रधानमंत्री जी की मां हम सभी के बीच नहीं हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी जी उनकी हर बात को, हर सीख का अपने मनो- मस्तिष्क में बैठाए हुए हैं. अब प्रधानमंत्री के भीतर कितनी बड़ी रिक्तता होगी हम उसका केवल अनुमान लगा सकते हैं किन्तु आज उन्होंने साबित किया कि हीराबा की सीख और बातें उनके दुःखद पलों में भी ढांढस बांधने के लिए काफ़ी है.
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