शिंजो अबे पिछली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र बनारस गये थे, इसलिए इस बार गृह राज्य गुजरात का ये हक रहा. चीन के चीफ शी जिनपिंग के साथ बैठ कर तो मोदी ने सिर्फ चरखा ही चलाया था, शिंजो अबे को तो खुद पूरा गुजरात घुमाये. बड़े दिनों बाद बराक जैसी दोस्ती और केमिस्ट्री देखने को मिली. घूमने की जगह से लेकर खाने के मीनू तक तैयार होने में शिंजे ने मोदी का पूरा पर्सनल टच जरूर महसूस किया होगा. कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में चुनाव भी आने ही वाले हैं.
हिंदी हैं हम!
चीन के साथ के साथ भाई भाई के नारे लगते रहे लेकिन शायद ही कभी वैसा रिश्ता भी महसूस किया गया हो. जिस अंदाज में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने भाषण शुरू किया, लगा जैसे - हिंदी हैं हम.
प्रधानमंत्री मोदी तो अक्सर ही लोगों से उनकी भाषा में अभिवादन किया करते हैं, लेकिन हिंदी दिवस के मौके पर शिंजो का नमस्कार बोलना अच्छा लगा. काफी कुछ बुलेट ट्रेन के बगैर शोर मचाये ही आगे बढ़ जाने जैसा. बिलकुल सहज.
शिंजो ने दोनों देशों के रिश्तों को भी नये अंदाज में जोड़ा - "जापान का 'ज' और इंडिया का 'इ' अगर मिला दें तो 'जय' बन जाता है". लगा जैसे हिंदी दिवस की बधाई देने के साथ ही भारत के सम्मान में 'जय हो' कह रहे हों. कानों में तो रहमान के संगीत ही गूंजने लगे थे - जय हो!
और आखिर में आभार सहित - धन्यवाद. मोदी ने भी मुस्कुरा दिया, जैसे कह रहे हों - मोस्ट वेलकम. बुलेट ट्रेन के लिए भी.
अरे वोटिंग के दिन भी तो आने वाले हैं...
शिंजो अबे पत्नी के साथ अहमदाबाद पहुंचे तो अगवानी करने खुद प्रधानमंत्री मोदी पहुंचे. पहुंचने के तुरंत बाद ही शिंजो अबे ने कुर्ता पायजामा और जैकेट पहन डाली. जिसे अब मोदी जैकेट भी...
शिंजो अबे पिछली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र बनारस गये थे, इसलिए इस बार गृह राज्य गुजरात का ये हक रहा. चीन के चीफ शी जिनपिंग के साथ बैठ कर तो मोदी ने सिर्फ चरखा ही चलाया था, शिंजो अबे को तो खुद पूरा गुजरात घुमाये. बड़े दिनों बाद बराक जैसी दोस्ती और केमिस्ट्री देखने को मिली. घूमने की जगह से लेकर खाने के मीनू तक तैयार होने में शिंजे ने मोदी का पूरा पर्सनल टच जरूर महसूस किया होगा. कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में चुनाव भी आने ही वाले हैं.
हिंदी हैं हम!
चीन के साथ के साथ भाई भाई के नारे लगते रहे लेकिन शायद ही कभी वैसा रिश्ता भी महसूस किया गया हो. जिस अंदाज में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने भाषण शुरू किया, लगा जैसे - हिंदी हैं हम.
प्रधानमंत्री मोदी तो अक्सर ही लोगों से उनकी भाषा में अभिवादन किया करते हैं, लेकिन हिंदी दिवस के मौके पर शिंजो का नमस्कार बोलना अच्छा लगा. काफी कुछ बुलेट ट्रेन के बगैर शोर मचाये ही आगे बढ़ जाने जैसा. बिलकुल सहज.
शिंजो ने दोनों देशों के रिश्तों को भी नये अंदाज में जोड़ा - "जापान का 'ज' और इंडिया का 'इ' अगर मिला दें तो 'जय' बन जाता है". लगा जैसे हिंदी दिवस की बधाई देने के साथ ही भारत के सम्मान में 'जय हो' कह रहे हों. कानों में तो रहमान के संगीत ही गूंजने लगे थे - जय हो!
और आखिर में आभार सहित - धन्यवाद. मोदी ने भी मुस्कुरा दिया, जैसे कह रहे हों - मोस्ट वेलकम. बुलेट ट्रेन के लिए भी.
अरे वोटिंग के दिन भी तो आने वाले हैं...
शिंजो अबे पत्नी के साथ अहमदाबाद पहुंचे तो अगवानी करने खुद प्रधानमंत्री मोदी पहुंचे. पहुंचने के तुरंत बाद ही शिंजो अबे ने कुर्ता पायजामा और जैकेट पहन डाली. जिसे अब मोदी जैकेट भी कहा जाने लगा है. पत्नी अकी ने भी सलवार कुर्ता धारण कर लिया.
फिर मोदी और शिंजे खुली जीप में सवार हुए हुए और रोड शो किया. आठ किलोमीटर ये लंबा शो बार बार विधानसभा चुनावों की दस्तक दे रहे थे जिसमें अब आठ महीने से भी कम वक्त बचे हैं. चुनाव आते आते व्हाट्सऐप पर अगर देखने को मिले कि मोदी के लिए गुजरात में वोट मांगने शिंजो अबे भी जापान से आये थे तो बहुतों के लिए मुश्किल होगा फर्क करना कि कहीं ये फेक न्यूज तो नहीं है.
पिछली बार मोदी शिंजो अबे को बनारस में गंगा आरती दिखाने ले गये थे, इस बार दोनों नेता सैयद मस्जिद पहुंचे. अब मन में ये सवाल उठे कि मोदी ने ऐसा गुजरात के मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए किया तो उसे रोक नहीं सकता, हां आगे बढ़ कर खंडन जरूर किया जा सकता है. मीडिया से बातचीत में बीजेपी नेताओं ने ऐसा किया भी. ऊपर से समझाया भी - प्रधानमंत्री मोदी ने इस यात्रा का इस्तेमाल अहमदाबाद की पहचान को दुनिया के सामने लाने के मकसद से किया. और दलील दी - मस्जिद ने, जो पत्थरों की जालीदार नक्काशी के लिए मशहूर है, भी अहमदाबाद को दुनिया धरोहरों सूची में शुमार होने में अहम भूमिका निभाई है. हर विजुअल के दो पहलू होते हैं, मुश्किल ये है कि एक वक्त पर सिर्फ एक ही नजर आता है.
सबसे अच्छे से भी अच्छा दोस्त
चीन ने एक बार पाकिस्तान के साथ रिश्ते की बात करते हुए उसे सबसे अच्छे से भी अच्छा दोस्त बताया था. जापान और भारत अब एक दूसरे के रिश्ते को उससे से भी अच्छा बता रहे हैं.
थोड़ा अलग रखकर देखें तो भारत और जापान की इस दोस्ती में चीन की भी खासी भूमिका है. डोकलाम विवाद में जापान ने भारत को सपोर्ट किया था. जापान की ओर से साफ तौर पर कहा गया कि विवादित क्षेत्र में पहले वाली स्थिति को बदलने की कोशिश नहीं होनी चाहिये. जापान के इस स्टैंड पर चीन की ओर से चेतावनी दी गयी थी कि वो पहले तथ्यों की जांच-परख कर ले, फिर कुछ ऐसा वैसा बोले. जापान ने चीन की परवाह नहीं की.
वैसे तो भारत और चीन ने खुद आगे बढ़ कर डोकलाम विवाद को खत्म कर लिया है, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये रही कि तनाव के बावजूद आर्थिक संबंधों पर कोई असर नहीं हुआ. लड़ाई जैसे हालात आसन्न नजर आ रहे थे - लेकिन, चीन ने भारत और जापान दोनों से आर्थिक संबंध वैसे ही कायम रखे. बाजार के असर को कोसने वालों को ये भी देखना चाहिये की जंग न होने देने और आगे बढ़ जाने के बावजूद उसे पीछे खींचने में बाजार की कितनी अहम भूमिका है. डोकलाम विवाद से शुरू हुआ तनाव और ब्रिक्स सम्मेलन से पहले उसका खत्म होना इसकी मिसाल है.
जहां तक बुलेट ट्रेन का सवाल है तो चीन ने भी अपनी हाई स्पीड रेल तकनीक को लेकर भारत के साथ बातचीत की कोशिश की थी, लेकिन सौदा फाइनल न हो सका. वैसे चीन ने अभी हार नहीं मानी है वो नये सिरे से पेशकश करने की तैयारी में है. इस बात की पुष्टि करता है चीन के विदेश मंत्रालय में प्रवक्ता गेंग शुआंग का एक सवाल का जवाब, "हम क्षेत्रीय सहयोग के लिए भारत और अन्य क्षेत्रीय देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देने को तैयार हैं." डोकलाम विवाद के दौरान हर रोज भारत के नाम चेतावनी जारी करने वाला चीनी मीडिया भी अब कहने लगा है - भारत और जापान मिल कर OBOR यानी वन बेल्ट वन रोड की काट ढूंढने लगे हैं. चीनी मीडिया में भारत के जापान के सामने एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर के प्रस्ताव का जिक्र है.
आओ इक सपना देखें!
मोदी की मुलाकात तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप के साथ भी अच्छी रही, लेकिन वो बात नजर नहीं आई. बड़े दिनों बाद शिंजो और मोदी में बराक जैसी दोस्ती की झलक मिली. एक ने कही... दूजे ने मानी भी.
शिंजो ने जैसे ही अपने ख्वाबों का खुलासा किया, मोदी ने झट से लपक लिया. जरा सी भी देर नहीं की.
शिंजो अबे बोले, "मैं जब अगली बार आऊं तो बुलेट ट्रेन में प्रधानमंत्री मोदी के साथ आऊं."
जब मोदी की बारी आई तो बोले, "मन में एक सपना है कि जब आजादी के 75 साल पूरे हों, ये योजना भी पूरी हो जाए..."
बुलेट ट्रेन का प्रोजेक्ट अगस्त, 2022 तक पूरा होने की अपेक्षा है. शर्त सिर्फ इतनी है कि जिसे 2019 में ग्रीन सिग्नल मिलेगा वही बुलेट ट्रेन को हरी झंडी दिखाएगा या उसमें सवार हो पाएगा.
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