देश का माहौल क्या है? क्या हिन्दू और मुस्लिम के बीच की खाई और गहरी हो गई है? क्या पॉलिटिकली ईंट का जवाब पत्थर से देने के दौर की शुरुआत हो गई है? क्या अब कपड़े राष्ट्रवाद निर्धारित करेंगे? क्या अब लड़ाई बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक है? इस तरह के सैंकड़ों सवाल हैं. जिनपर कई कई घंटों तक लंबी बहस हो सकती है और ये बहस उस वक़्त और तेज हो जाती है जब हम ये देखते हैं कि कुछ हिंदूवादी संगठनों के डर से कर्नाटक स्थित उडुपी का एक सरकारी स्कूल उन तमाम लड़कियों का स्कूल में प्रवेश निषेद कर देता है जिन्होंने हिजाब डाला होता है. स्कूल के इस फैसले के बाद बवाल बढ़ना लाजमी था. तमाम मुस्लिम लड़कियां इसे मूलभूत अधिकारों का हनन बता रही हैं और इस मुद्दे पर जमकर अपनी बातें रख रही हैं. विरोध के स्वर बुलंद हैं. वहीं दूसरी तरफ हिंदूवादी संगठनों ने भी ठान लिया है कि वो दो दो हाथ करेंगे. घोषणा हुई है कि यदि मुस्लिम लड़कियां हिजाब में आएंगी तो हिंदू लड़के भी गले में भगवा शॉल / स्कार्फ/ अंगोछा डालकर आएं.
ध्यान रहे कर्नाटक के उडुपी में एक कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर उन्हें स्कूल में प्रवेश करने से रोक दिया गया है. मामले ने धार पकड़ी और अब लड़ाई सिर्फ हिजाब/ बुर्के तक सीमित न होकर हिजाब बनाम भगवा गमछा हो गयी है. बतौर नागरिक हमें इस बात को गांठ बांध कर रखना होगा कि ये सब स्कूल में हो रहा है. शिक्षा के नाम पर हो रहा है.
बात शिक्षा की चली है तो ये भी बता दें कि मामला स्कूल कॉलेज से ऊपर उठ गया है और वायनाड से सांसद राहुल...
देश का माहौल क्या है? क्या हिन्दू और मुस्लिम के बीच की खाई और गहरी हो गई है? क्या पॉलिटिकली ईंट का जवाब पत्थर से देने के दौर की शुरुआत हो गई है? क्या अब कपड़े राष्ट्रवाद निर्धारित करेंगे? क्या अब लड़ाई बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक है? इस तरह के सैंकड़ों सवाल हैं. जिनपर कई कई घंटों तक लंबी बहस हो सकती है और ये बहस उस वक़्त और तेज हो जाती है जब हम ये देखते हैं कि कुछ हिंदूवादी संगठनों के डर से कर्नाटक स्थित उडुपी का एक सरकारी स्कूल उन तमाम लड़कियों का स्कूल में प्रवेश निषेद कर देता है जिन्होंने हिजाब डाला होता है. स्कूल के इस फैसले के बाद बवाल बढ़ना लाजमी था. तमाम मुस्लिम लड़कियां इसे मूलभूत अधिकारों का हनन बता रही हैं और इस मुद्दे पर जमकर अपनी बातें रख रही हैं. विरोध के स्वर बुलंद हैं. वहीं दूसरी तरफ हिंदूवादी संगठनों ने भी ठान लिया है कि वो दो दो हाथ करेंगे. घोषणा हुई है कि यदि मुस्लिम लड़कियां हिजाब में आएंगी तो हिंदू लड़के भी गले में भगवा शॉल / स्कार्फ/ अंगोछा डालकर आएं.
ध्यान रहे कर्नाटक के उडुपी में एक कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर उन्हें स्कूल में प्रवेश करने से रोक दिया गया है. मामले ने धार पकड़ी और अब लड़ाई सिर्फ हिजाब/ बुर्के तक सीमित न होकर हिजाब बनाम भगवा गमछा हो गयी है. बतौर नागरिक हमें इस बात को गांठ बांध कर रखना होगा कि ये सब स्कूल में हो रहा है. शिक्षा के नाम पर हो रहा है.
बात शिक्षा की चली है तो ये भी बता दें कि मामला स्कूल कॉलेज से ऊपर उठ गया है और वायनाड से सांसद राहुल गांधी की बदौलत पॉलिटिकल हो गया है. मामले के मद्देनजर राहुल ने एक ट्वीट किया जिसके बाद भाजपा कर्नाटक ने राहुल गांधी के ट्वीट का जवाब बात बढ़ा दी है.
बसंत पंचमी का मौका है. यूपी और पंजाब समेत पांच राज्यों में चुनाव है ऐसे में एक बार फिर राहुल गांधी के अंदर का हिंदू जाग गया है और चूंकि कर्नाटक दक्षिण भारत के लिए यूपी से कम नहीं है तो राहुल गांधी ने बसंत पंचमी के मौके पर सरस्वती पूजा हैशटैग के साथ ट्वीट करते हुए लिखा है कि, "'छात्राओं के हिजाब को उनकी शिक्षा के आड़े आने देकर हम भारत की बेटियों का भविष्य छीन रहे हैं, मां सरस्वती सभी को ज्ञान दें. वह भेद नहीं करती.'
जैसा कि हम बता चुके हैं राहुल के इस ट्वीट का करारा जवाब भाजपा कर्नाटक ने दिया है. तो बात अगर भाजपा कर्नाटक के ट्वीट की हो तो बीजेपी ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से राहुल गांधी पर शिक्षा का सांप्रदायिकरण करने का आरोप लगाया और कहा कि अगर शिक्षित होने के लिए हिजाब 'बहुत जरूरी' है, तो राहुल गांधी कांग्रेस शासित राज्यों में इसे अनिवार्य क्यों नहीं करते?
जिक्र Hijab Controversy का हुआ है तो हमें मामले को समझने या उसपर किसी तरह की राय बनाने से पहले कर्नाटक में बीजेपी चीफ नलिन कुमार कटील के उस बयान को भी अपने ध्यान में रखना होगा जिसमें उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार ‘तालिबानीकरण’ की अनुमति नहीं देगी. उन्होंने कहा, 'इस तरह की चीजों (कक्षाओं में हिजाब पहनने) की कोई गुंजाइश नहीं है. हमारी सरकार कठोर कार्रवाई करेगी.'
तो क्या हालिया सालों में मुसलमानों के बीच बढ़ी है कट्टरता?
एक तरफ विवाद, आरोप प्रत्यारोप और तमाम तरह की बातें हैं दूसरी तरफ आज से कुछ साल पहले या बहुत सीधे कहें तो 2014 के पहले का समय है. उस वक़्त से जुड़ी घटनाओं को यदि याद किया जाए तो संपूर्ण विवाद पर अंकुश खुद-ब-खुद लग जाएगा. ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मुस्लिम लड़कियां कोई आज पहली बार स्कूल और कॉलेज जा रही हैं.
जिक्र चूंकि कर्नाटक का और मौजूदा वक़्त में हिजाब कॉन्ट्रोवर्सी का हुआ है तो ये बता देना भी बहुत जरूरी है कि उत्तर के मुकाबले दक्षिण में हमेशा ही मुस्लिम समुदाय समृद्ध रहा है. चूंकि लोगों के पास ठीक ठाक पैसा था तो उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाया और हमेशा ही कन्या शिक्षा पर बल दिया. इसलिए कहा ये भी जा सकता है कि दक्षिण में मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा दर ज्यादा है.
जैसा कि हम बता चुके हैं कि 2014 से पहले की स्थिति अलग थी तो ये बात यूं ही नहीं है हममें से तमाम लोग ऐसे हैं जो को-एड स्कूलों (स्कूल जहां लड़के लड़कियां साथ पढ़ते हैं) में पढ़े हैं बचपन के उस दौर में शायद ही हमने कभी स्कूलों में किसी मुस्लिम लड़की को हिजाब / नकाब/ बुर्के में देखा. यदि किसी घर में कठोरता से इसका पालन होता तो भी ऐसे घरों की लड़कियां जब स्कूल आती तो उनका हिजाब/ नकाब/ बुर्का स्कूल के गेट पर उतर जाता. वो क्लासरूम में आतीं और वैसे ही रहतीं जैसे कोई साधारण लड़की.
अब चूंकि बात निकल ही गयी है तो मुस्लिम लड़कों का हाल भी ऐसा ही था ये भी न तो गोल जालीदार टोपी लगाते न ही ऊंची पैंट पहनते. घरों में माहौल कैसा भी हो लड़कीं क्योंकि ज्ञान अर्जित करना था तो कहीं कोई भेदभाव नहीं था कम से कम कपड़ों में तो बिल्कुल नहीं था?.
कहा जा सकता है कि पिछले एक या डेढ़ दशकों में मुस्लिम समुदाय में कुछ अहम परिवर्तन हुए हैं. समुदाय के बीच एक होड़ लगी है अपने को ज्यादा स ज्यादा मुस्लिम दिखाने की और ये उस दिखावे का परिणाम ही है कि कर्नाटक के उडुपी में मुस्लिम लड़कियों को स्कूल कॉलेज में क्वालिटी एजुकेशन तो चाहिए लेकिन उन्होंने अपने कपड़ों से समझौता नहीं करना है.
हम ये बिल्कुल नहीं कह रहे कि मुस्लिम लड़कियों को बुर्का नहीं पहनना चाहिए. क्या पहनना है क्या नहीं पहनना है ये उनकी अपनी मर्जी है लेकिन अभी बात उस जिद की है जो फिलहाल हमें कर्नाटक में देखने को मिल रही है और जिसके चलते हिंदू छात्रों ने भी ठान लिया है कि वो भगवा अंगोछे में स्कूल आएंगे.
क्या My Hijab My Right भी शाहीनबाग़ सरीखा जबरदस्ती का मूमेंट है
जैसा कि हम ऊपर ही बता चुके हैं इस Hijab Controversy ने एक ऐसे मूमेंट का रूप ले लिया है जो अब केवल कर्नाटक के उडुपी के उस सरकारी स्कूल तक सीमित नहीं है. शाहीनबाग़ की ही तर्ज पर इस मूमेंट को सोशल मीडिया पर मुस्लिम महिलाओं और बुद्धिजीवियों द्वारा एक बड़ा मुद्दा बनाकर हाथों हाथ लिया जा रहा है.
ट्वीट रीट्वीट की बाढ़ आई है. फेसबुक और इंस्टाग्राम पर बड़े बड़े पोस्ट लिखे जा रहे हैं. राहुल गांधी की दखलंदाजी से पहले ये पॉलिटिकल मामला नहीं था लेकिन अब जबकि इस मूमेंट से राहुल गांधी की सिम्पैथी जुड़ गई है तो लाजमी है कि इस मुद्दे पर भी कांग्रेस बनाम भाजपा होगा और ताबियत से होगा. लोग इस मुद्दे पर तब तक बैटिंग करेंगे जब तल उन्हें कोई दूसरा मुद्दा नहीं मिल जाता.
वहीं बात अगर उडुपी के सरकारी स्कूल की लड़कियों की हो तो शायद उन्हें भी अब इस खेल में मजा आ रहा हो. पढ़ाई लिखाई तो आगे भी हो जाएगी लेकिन बात फिर वही है कि फ्री की पब्लिसिटी और मीडिया लाइम लाइट किसे काटती है.
ध्यान रहे दिन ही कितने हुए हैं शाहीनबाग़ की दादियों और प्रदर्शनकारी महिलाओं को खूब पब्लिसिटी मिली थी लेकिन बात यदि मौजूदा वक्त की हो तो प्रदर्शन से जुड़ी एक बड़ी आबादी आज किस हाल में है इसके विषय में शायद ही किसी के पास ठीक ठीक जानकारी हो.
हिजाब को लेकर दुनिया की महिलाएं सड़क पर!
बात कर्नाटक के स्कूल की हिजाब कंट्रोवर्सी पर हुई है और मुस्लिम लड़कियों की जिद की हुई है. ऐसे में जब हम हिजाब को लेकर दुनिया का रुख और दुनिया में भी मुस्लिम महिलाओं का रुख देखते हैं तो हालात कर्नाटक से कहीं जुदा हैं. चाहे ईरान सऊदी अरब हो या फिर अफगानिस्तान हालिया दौर में हम कई ऐसे प्रदर्शन देख चुके हैं जहां हिजाब/ नकाब/ बुर्के के विरोध में और कोई नहीं बल्कि खुद मुस्लिम महिलाएं ही सड़कों पर हैं. ये महिलाएं आजादी की बात कर रही हैं. मानवाधिकारों की बात कर रही हैं. ये नहीं चाहती कि किसी तरह का कोई पहरा इनपर रहे.
हिंदू छात्रों का भगवा अंगोछे में आना हिजाब से बड़ी मूर्खता
कर्नाटक में बुर्के के समर्थन में आई छात्राओं के साथ जो किया जा रहा है भले ही ये कहकर बात को टाला जाए कि अपने कट्टरपंथ की आड़ में यदि मुस्लिम छात्राओं ने एक रेखा खींची थी. तो हिंदूवादी संगठनों ने उससे बड़ी रेखा खींच दी है. लेकिन अगर वास्तव में पूरे घटनाक्रम पर गौर किया जाए और फिर उसका अवलोकन किया जाए तो मिलता यही है कि एक मूर्खता को उससे बड़ी मूर्खता के जरिये छुपाने का प्रयास कर्नाटक में हिंदूवादी संगठनों द्वारा किया जा रहा है.
वाक़ई ये अपने आप में बहुत ज्यादा अजीब है कि जिस देश में लोगों की मूलभूत जरूरतें नहीं पूरी हो पा रही हैं वहां लोगों की प्राथमिकता है क्या?
बात बहुत सीधी सी है. उडुपी में मुस्लिम छात्राओं का रवैया और उस क्रिया पर हिंदूवादी संगठनों की प्रतिक्रिया दोनों ही गलत हैं जिसे किसी भी कीमत पर जस्टिफाई नहीं किया जा सकता.
जिस पढ़ाई के लिए हुआ बवाल अब तो वो होने से रही!
उडुपी के सरकारी स्कूल में फैली हिजाब कंट्रोवर्सी पहले स्कूल में शुरू हुई. फिर अख़बारों और टीवी पर आई जिसने सोशल मीडिया का रुख किया. जैसा कि हम देख ही रहे हैं अब इसपर कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अपना मत प्रकट कर दिया है और उन्हें कर्नाटक भारतीय जनता पार्टी से एक के बाद एक जवाब मिल रहे हैं. और मामला पब्लिक से पूर्णतः पॉलिटिकल हो गया है.
आरोप प्रत्यारोप हो रहे हैं. जनता खुद बताए कि हिजाब के समर्थकों से लेकर विरोधियों तक असल में नुकसान किसका हो रहा है? क्योंकि मामले के मद्देनजर दोनों ही पक्षों को लाइमलाईट या ये कहें कि मीडिया अटेंशन भरपूर मिल रही है तो पढ़ाई तो जितनी होनी थी हो चुकी अब छात्रों द्वारा राष्ट्रवाद के नाम पर ग्लैमर का आनंद लिया जा रहा है.
चाहे वो हिजाब की समर्थक मुस्लिम छात्राएं हों. या फिर भगवा स्कार्फ़ या अंगोछा लगाकर स्कूल पहुंचे आम छात्र. दोनों से ये कहते हुए हम अपनी बातों को विराम देंगे कि चाहे प्रत्यक्ष हो या परोक्ष. छात्र एक ऐसे मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं जिसका कोई सिरा ही नहीं है. जो कई मायनों में व्यर्थ की है.
वास्तव में देखा जाए तो न तो हिजाब मुद्दा है और न ही भगवा अंगोछा जो असल मुद्दा है वो धर्म है और इतिहास गवाह है जो देश धार्मिक आधार पर बंटा है वहां केवल और केवल नुकसान ही हुआ है. इस मामले में भी जहां एक तरफ छात्रों का नुकसान है तो वहीं इससे देश का भी नुकसान हो रहा है. देश का सामाजिक ढांचा इस बार शिक्षा की आड़ में हिजाब और भगवा अंगोछे के बीच में कहीं उलझा है.
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