अमेरिका में सत्तारूढ़ डेमोक्रैटिक पार्टी का नैशनल कन्वेंशन चल रहा है. पार्टी ने नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के लिए हिलेरी क्लिंटन के नाम पर मुहर लगा दी है. यह मुहर पार्टी की नैशनल डेमोक्रैटिक कमेटी ने लगाई है लेकिन पूरी प्रक्रिया विवादों में भी आ गई है.
दरअसल एक इंटरनेट हैकर समूह ने पार्टी की इस कमेटी से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों के ई-मेल को हैक कर लिया है. इसके साथ ही हैकर ने इन संवेदनशील इमेल को पब्लिक भी कर दिया है. इन ईमेल के खुलासे से जो बात खुलकर सामने आ रही है उसके मुताबिक नैशनल डेमोक्रैटिक कमेटी ने हिलेरी क्लिटन और एक अन्य उम्मीदवार बर्नी सैंडर्स के बीच भेदभाव करते हुए हिलेरी क्लिंटन को अपना उम्मीदवार चुना है.
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हैक हुए ईमेल पब्लिक होने के बाद इस कमेटी की चेयरमैन डेबी वॉसरमैन शल्ट्ज ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, लिहाजा ईमेल की वास्तविकता पर सवाल नहीं उठ रहा है. पार्टी की तरफ से सफाई में कहा जा रहा है कि उसके ईमेल को हैक कर पब्लिक करने के पीछे रूस की खुफिया एजेंसी का हाथ है. उसके मुताबिक रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने यह जासूसी हिलेरी क्लिंटन को रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप के सामने कमजोर करने के लिए कराई है.
एफबीआई कर रही जांच, रूस पर संदेह
इस पूरे मामले पर व्हाइट हाउस सकते में है. हैकिंग मामले की पूरी जांच एफबीआई के सुपुर्द कर दी गई है. शुरुआती जांच के बाद एफबीआई की तरफ से भी संकेत यही मिल रहे हैं कि रुसी जासूस इस हैकिंग के लिए जिम्मेदार हैं. हालांकि बराक ओबामा प्रशाषन की तरफ से अभी रूस का हाथ होने के बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है.
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हिलेरी क्लिंटन और बर्नी सैंडर्स |
अमेरिकी मीडिया की रिपोर्ट और डेमोक्रैटिक पार्टी से जारी बयानों के बीच सबसे अहम सवाल यह पैदा होता है कि आखिर क्यों रूस डेमोक्रैटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के ऊपर रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को तरजीह दे रहा है?
क्या बीते कुछ महीनों की प्राइमरी के दौरान डोनाल्ड ट्रंप के कुछ बयान रूस को रास आने लगे हैं और उसका मानना है कि रूस का फायदा सिर्फ डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने में है?
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आखिर मेल में इतना गंभीर क्या है?
डेमोक्रैटिक पार्टी के पब्लिक किए गए ईमेल में पार्टी के उच्च पदों पर आसीन लोगों के बीच उम्मीदवार तय करने के मुद्दे पर कई विवादित टिप्पणियां है. इन टिप्पणियों से साफ है कि डेमोक्रैटिक पार्टी ने हिलेरी क्लिंटन के नाम को ज्यादा तरजीह दी है जबकि उसे सभी उम्मीदवार के बीच अपनी न्यूट्रैलिटी को कायम रखना था. पार्टी के इन्हीं ईमेल में बर्नी सैंडर्स को पार्टी के बाहर का उम्मीदवार कहते हुए हिलेरी की दावेदारी को मजबूत करने की कोशिश भी की गई है. साथ ही कुछ ईमेल में हिलेरी क्लिंटन की कमेटी के अधिकारियों से वार्ता हुई है जिसमें सैंडर्स के धर्म पर सवाल उठाते हुए उन्हें यहूदी कहा गया है. इन ईमेल में बीते कुछ सालों में हिलेरी क्लिंटन द्वारा लिए गए फंड्स का भी जिक्र है. कहा गया है कि हिलेरी ने बिल क्लिंटन फाउनडेशन के जरिए राष्ट्रीय हितों को ताक में रखते हुए डोनेशन लिया है.
क्या सिर्फ महिला होने पर हिलेरी को मिली मंजूरी
आप को याद होगा कि आठ साल बराक ओबामा और हिलेरी क्लिंटन दोनों डेमोक्रैटिक पार्टी से उम्मीदवार बनने की दौड़ में थे. उस दौरान अमेरिकी चुनावों में किसी अश्वेत अथवा किसी महिला को अमेरिका का राष्ट्रपति बनाने पर जोर था. इस दौड़ में अंतत: डेमोक्रैटिक पार्टी ने बराक ओबामा के नाम पर मुहर लगाई और पहली महिला राष्ट्रपति के मुद्दे को किनारे कर दिया गया था. हालांकि बराक ओबामा ने चुनाव जीतकर हिलेरी क्लिंटन को अपनी कैबिनेट में सबसे महत्वपूर्ण पद पर रखा जिससे उम्मीदवार बनने के फैसले पर सवाल उठा कि पार्टी ने हिलेरी को दरकिनार इसी समझौते पर किया हो कि वह महत्वपूर्ण पद पर बैठेंगी. बहरहाल, एक बार फिर पार्टी ने देश को पहली महिला राष्ट्रपति देने के मुद्दे को आगे बढ़ाया जिसके चलते हिलरी क्लिंटन प्राइमरी के दौरान लगातार फ्रंटरनर बनी रहीं. लिहाजा, इस बार हिलेरी को मंजूर करने पर सवाल उठना लाजमी भी है कि क्या पार्टी ने इस बात को लेकर हिलेरी की उम्मीदवारी को बर्नी सैंडर्स से ज्यादा तरजीह दी?
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क्या पुतिन को अपने जैसे लगते हैं डोनाल्ड ट्रंप
ट्रंप के बयानों पर गौर करें तो शायद ये भी इत्मिनान हो जाए. बीते दिनों प्राइमरी के दौरान डानाल्ड ट्रंप ने कई बार रूस से मजबूत संबंधों की पैरवी की है. ट्रंप ने यहां तक कहा है कि यदि रूस के विरोध में बने यूरोपीय देशों के सैन्य संगठन नाटो के सदस्य अमेरिका की बात नहीं मानते हैं तो वह नाटो को सपोर्ट करना बंद कर देंगे.
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फिलहाल तो यही लगता है कि ब्लादिमीर पुतिन को डेमोक्रैटिक पार्टी से निजी परेशानी है. वह डेमौक्रैटिक पार्टी की जासूसी करने का आदेश इसलिए भी दे सकते हैं क्योंकि 2012 में जब वह रूस के राष्ट्रपति चुने गए थे तो डेमोक्रैटिक पार्टी ने पूरे चुनाव को फर्जी करार दिया था. वहीं रूस पर यूरोपीय देशों के चुनाव में दखलअंदीजी करने का आरोप पहले भी लगता रहा है और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मौजूदा समय में सीरिया जैसे विवादों में घिरे अमेरिका-रूस संबंध में अपनी धाक जमाने के लिए रूस ऐसा कदम उठाए.
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