Hong Kong में जनता के ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शनों के बाद चीन को विवादास्पद प्रत्यर्पण वापस लेना पड़ा. चीन समर्थित हांगकांग की मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैरी लैम ने इस इसकी घोषणा की. उन्होंने लंबे समय से चल रहे प्रदर्शन के लिए हांगकांग की जनता से माफी भी मांगी. साथ उन्होंने विरोध के कारणों की पहचान के लिए जांच आयोग के गठन की भी बात कही. हालांकि अब लैम की इस्तीफे की मांग ने ही जोर पकड़ लिया है. क्योंकि कैरी लैम का चुनाव उस कमेटी ने किया है जिसमें चीन समर्थक प्रतिनिधियों का दबदबा है. ऐसे में हांगकांग का चीफ एग्ज़िक्यूटिव वही बनता है जिसे बीजिंग का समर्थन प्राप्त हो और कैरी लैम भी हांगकांग में चीन का मोहरा मानी जाती हैं. बता दें कि हांगकांग ब्रिटेन का एक उपनिवेश था, जिसे साल 1997 में 50 साल के लिए विशेष स्वायत्ता की शर्त के पर चीन को सौंपा गया था. जिसकी अवधारणा थी 'एक देश-दो व्यवस्था'
क्या कहता है प्रत्यर्पण बिल?
हांगकांग का कई देशों के साथ कोई प्रत्यर्पण समझौता नहीं है. इसके चलते अगर कोई व्यक्ति अपराध कर हांगकांग वापस आ जाता है तो उसे मामले की सुनवाई के लिए ऐसे देश में प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता जिसके साथ इसकी संधि नहीं है. चीन को भी अब तक प्रत्यर्पण संधि से बाहर रखा गया था. लेकिन नया प्रस्तावित संशोधन इस कानून में विस्तार करेगा और ताइवान, मकाऊ और चीन के साथ भी संदिग्धों को प्रत्यर्पित करने की अनुमति देगा. हांगकांग की नेता कैरी लैम भी इसका समर्थन कर रही थीं. उनका कहना था कि ये बदलाव जरूरी हैं ताकि न्याय और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा किया जा सके.
इस बिल को लेकर हांगकांग का डर क्या है?
दरअसल चीन ने...
Hong Kong में जनता के ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शनों के बाद चीन को विवादास्पद प्रत्यर्पण वापस लेना पड़ा. चीन समर्थित हांगकांग की मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैरी लैम ने इस इसकी घोषणा की. उन्होंने लंबे समय से चल रहे प्रदर्शन के लिए हांगकांग की जनता से माफी भी मांगी. साथ उन्होंने विरोध के कारणों की पहचान के लिए जांच आयोग के गठन की भी बात कही. हालांकि अब लैम की इस्तीफे की मांग ने ही जोर पकड़ लिया है. क्योंकि कैरी लैम का चुनाव उस कमेटी ने किया है जिसमें चीन समर्थक प्रतिनिधियों का दबदबा है. ऐसे में हांगकांग का चीफ एग्ज़िक्यूटिव वही बनता है जिसे बीजिंग का समर्थन प्राप्त हो और कैरी लैम भी हांगकांग में चीन का मोहरा मानी जाती हैं. बता दें कि हांगकांग ब्रिटेन का एक उपनिवेश था, जिसे साल 1997 में 50 साल के लिए विशेष स्वायत्ता की शर्त के पर चीन को सौंपा गया था. जिसकी अवधारणा थी 'एक देश-दो व्यवस्था'
क्या कहता है प्रत्यर्पण बिल?
हांगकांग का कई देशों के साथ कोई प्रत्यर्पण समझौता नहीं है. इसके चलते अगर कोई व्यक्ति अपराध कर हांगकांग वापस आ जाता है तो उसे मामले की सुनवाई के लिए ऐसे देश में प्रत्यर्पित नहीं किया जा सकता जिसके साथ इसकी संधि नहीं है. चीन को भी अब तक प्रत्यर्पण संधि से बाहर रखा गया था. लेकिन नया प्रस्तावित संशोधन इस कानून में विस्तार करेगा और ताइवान, मकाऊ और चीन के साथ भी संदिग्धों को प्रत्यर्पित करने की अनुमति देगा. हांगकांग की नेता कैरी लैम भी इसका समर्थन कर रही थीं. उनका कहना था कि ये बदलाव जरूरी हैं ताकि न्याय और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा किया जा सके.
इस बिल को लेकर हांगकांग का डर क्या है?
दरअसल चीन ने हांगकांग की स्वायत्ता में अड़ंगा लगाने के लिए धीरे-धीरे बदलाव लाना शुरू किया और इसकी अगली कड़ी थी ये प्रत्यर्पण बिल. लोगों को डर है कि चीन की सरकार इसका उपयोग हांगकांग में लोकतंत्र ख़त्म करने और अपने खिलाफ होने वाले विरोध को कुचलने के लिए करेगी. वो जब चाहे किसी को भी पकड़कर चीन ले जाएगी, जहां कि न्याय व्यवस्था पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में है. साल 2015 में भी हांगकांग के कई किताब विक्रेताओं को नजरबंद कर दिया गया था जिससे लोगों में भय बढ़ी हुई है.
प्रदर्शनकारियों की 5 मांगें हैं
1. विवादास्पद प्रत्यर्पण बिल वापस हो
2. प्रदर्शन के दौरान पुलिस की दमनात्मक कार्रवाई की जांच के लिए निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच आयोग का गठन हो
3. गिरफ्तार किए गए लोगों को तुरंत रिहा किया जाए
4. प्रदर्शन को दंगे की श्रेणी में नहीं रखी जाए
5. हांगकांग में लोगों को अपना नेता चुनने का अधिकार मिले
इनमें से अभी मात्र पहली मांग मानी गयी है, जबकि बाकि की चार मांगों पर कोई विचार नहीं किया गया है.
मांदों में से केवल विवादास्पद प्रत्यर्पण बिल वापस लिया गया है
चीन को क्यों झुकना पड़ा?
चीन इस वक्त कई फ्रंट पर लड़ाईयां लड़ रहा है. अमरीका के साथ जारी ट्रेड वॉर, देश की धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था और तेजी से बढ़ती मुद्रास्फीति दर चीन के सामने चुनौती पेश कर रहा है. इन सब के बीच चीन नहीं चाहता की वो कुछ ऐसा करे जिससे पूरी दुनिया में उसकी किरकिरी हो और इसके आड़ में पश्चिमी देश उसपर प्रतिबंध लगा दें. क्योंकि इस प्रदर्शन को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन ने चीन पर सख्त टिप्पणी की थी. चीन का आरोप था कि प्रदर्शन को अमेरिका हवा दे रहा है. दरअसल अमरीका और युरोपिय देश चीन के महाशक्ति के तौर पर अभ्युदय से काफी चिंतित हैं. और ये देश किसी तरह चीन के इस अभ्युदय को रोकने लिए प्रयासरत हैं. जबकि चीन दक्षिण चीन सागर समेत अपने कई पड़ोसी देशों में विस्तारवादी मंशा के साथ काम कर रहा है. जिससे भारत-भूटान-वियतनाम समेत उसके कई पड़ोसी देश चिंतित हैं.
अब क्या कर सकता है चीन?
चीन को कुछ मजबूरी में अपने कदम वापस जरूर खींचने पड़े है पर वो चुपचाप बैठेगा नहीं. बल्कि अब वो प्रदर्शनकारियों को अपना निशाना बना सकता है. इस आशंका को तब और बल मिली जब मुख्य कार्यकारी अधिकारी कैरी लैम ने पत्रकारों द्वारा पूछे गए कई सवालों के जवाब देने से इनकार कर दीं. साथ ही उन्होंने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच कराने की मांग को भी खारिज कर दी. क्योंकि प्रदर्शन में शामिल लोगों को दंगाई की श्रेणी में रखा गया है, इससे लोगों में ज्यादती का भय बना हुआ है. यानि कहें तो आंदोलन के प्रमुख वजह को तो खत्म कर दिया गया है, पर आंदोलनकारियों पर खतरा अभी बरकरार है.
क्या खत्म हो पाएगा हांगकांग का आंदोलन?
स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों में उम्मीद जताई जा रही थी कि अगर इस विवादित कानून को वापस ले लिया जाता है तो संकट खत्म हो जाएगा. लेकिन प्रदर्शनकारियों ने तब तक आंदोलन जारी रखने की बात कही, जब तक उनकी सारी मांगें पूरी नहीं होती. प्रमुख एक्टिविस्ट जोशुआ वॉन्ग वे ने लोगों से चीन की चाल से भ्रमित नहीं होकर प्रदर्शन को जारी रखने की अपील की है. जिससे ये साफ हो गया है कि प्रत्यर्पण बिल को वापस लेने का फैसला हांगकांग के लिए एक फौरी राहत तो है पर लड़ाई अभी जारी रहेगी.
ये भी पढ़ें-
जाकिर नाइक मुबारक हो मलेशिया, अब भुगतो...
मोदी की जनसंख्या नीति इमरजेंसी की नसबंदी और चीन की वन चाइल्ड पॉलिसी से कितनी अलग?
कश्मीर पर किस मुंह से जवाब देगा हांगकांग को कुचल रहा चीन
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.