मोबाइल से नकल करके शोक संदेश लिखने वाले मेरे प्रिय नेता श्री राहुल गांधी जी की एक और नकल साबित हो गई है. जिस तरह से अरविंद केजरीवाल ने बिना किसी सबूत के ही शीला दीक्षित को बेईमान कह-कहकर दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली थी, उसी तरह से उन्होंने भी सोचा कि बिना कोई सबूत पेश किए सिर्फ़ गले के ज़ोर से ही वे देश के प्रधानमंत्री को चोर कह-कहकर अगला प्रधानमंत्री बन जाएंगे.
मेरे पिताजी ने जेपी आंदोलन के दौरान अपने संघर्ष के दिनों की एक रोचक कहानी मुझे सुनाई थी. एक बार किसी बस में एक पॉकेटमार ने उनका पॉकेट मार लिया, लेकिन पिताजी ने ऐसा करते हुए उसे देख लिया और देखते ही कसकर उसका हाथ धर लिया. फिर क्या था, पॉकेटमार चिल्लाने लगा- "पॉकेटमार... पॉकेटमार... पॉकेटमार..."
उसके इस पैंतरे से पिताजी एक पल के लिए सकपका गए, लेकिन वस्तुस्थिति भिन्न थी. पिताजी के आई-कार्ड समेत उनके पॉकेट का सारा सामान पॉकेटमार के हाथ में था, इसलिए बस में मौजूद लोगों को समझते देर नहीं लगी और लोग पॉकेटमार की धुनाई करने पर उतारू हो आए.
इसपर पिताजी ने उन्हें रोका और कहा- "नहीं, इसे पीटना ठीक नहीं होगा. बेचारे की कोई मजबूरी होगी. जाने दीजिए." फिर पॉकेटमार को बस से उतार दिया गया और बस आगे बढ़ गई.
हालांकि पिताजी ने जब यह कहानी मुझे सुनाई, तो मैंने उनसे कहा कि आपने सही नहीं किया. आपको पॉकेटमार को पुलिस के हवाले करना चाहिए था. आपके बड़े दिल के चलते पॉकेटमार को कोई सबक नहीं मिला और वह आगे भी लोगों के पॉकेट मारता रहा होगा.
इस कहानी का ज़िक्र मैंने दो कारणों से किया-
1. पहला, कि जिन लोगों के दामन पर चोरी के सैकड़ों दाग हैं, आज वे ही अपनी चोरी से लोगों का ध्यान...
मोबाइल से नकल करके शोक संदेश लिखने वाले मेरे प्रिय नेता श्री राहुल गांधी जी की एक और नकल साबित हो गई है. जिस तरह से अरविंद केजरीवाल ने बिना किसी सबूत के ही शीला दीक्षित को बेईमान कह-कहकर दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली थी, उसी तरह से उन्होंने भी सोचा कि बिना कोई सबूत पेश किए सिर्फ़ गले के ज़ोर से ही वे देश के प्रधानमंत्री को चोर कह-कहकर अगला प्रधानमंत्री बन जाएंगे.
मेरे पिताजी ने जेपी आंदोलन के दौरान अपने संघर्ष के दिनों की एक रोचक कहानी मुझे सुनाई थी. एक बार किसी बस में एक पॉकेटमार ने उनका पॉकेट मार लिया, लेकिन पिताजी ने ऐसा करते हुए उसे देख लिया और देखते ही कसकर उसका हाथ धर लिया. फिर क्या था, पॉकेटमार चिल्लाने लगा- "पॉकेटमार... पॉकेटमार... पॉकेटमार..."
उसके इस पैंतरे से पिताजी एक पल के लिए सकपका गए, लेकिन वस्तुस्थिति भिन्न थी. पिताजी के आई-कार्ड समेत उनके पॉकेट का सारा सामान पॉकेटमार के हाथ में था, इसलिए बस में मौजूद लोगों को समझते देर नहीं लगी और लोग पॉकेटमार की धुनाई करने पर उतारू हो आए.
इसपर पिताजी ने उन्हें रोका और कहा- "नहीं, इसे पीटना ठीक नहीं होगा. बेचारे की कोई मजबूरी होगी. जाने दीजिए." फिर पॉकेटमार को बस से उतार दिया गया और बस आगे बढ़ गई.
हालांकि पिताजी ने जब यह कहानी मुझे सुनाई, तो मैंने उनसे कहा कि आपने सही नहीं किया. आपको पॉकेटमार को पुलिस के हवाले करना चाहिए था. आपके बड़े दिल के चलते पॉकेटमार को कोई सबक नहीं मिला और वह आगे भी लोगों के पॉकेट मारता रहा होगा.
इस कहानी का ज़िक्र मैंने दो कारणों से किया-
1. पहला, कि जिन लोगों के दामन पर चोरी के सैकड़ों दाग हैं, आज वे ही अपनी चोरी से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए दूसरों को चोर-चोर कहकर चिल्ला रहे हैं. नेशनल हेरल्ड घोटाले में खुद सोनिया गांधी और राहुल गांधी फंसे हुए हैं और रॉबर्ट वाड्रा पर तो पिछली सरकार के दौर से ही भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लग रहे हैं. कांग्रेस के अन्य अनेक नेताओं का तो ज़िक्र ही क्या करें? जिस तरह से गंगा का उद्गम "गंगोत्री" से होता है, वैसे ही भ्रष्टाचार का उद्गम कांग्रेस की "नंगोत्री" से होता है. इस देश में अन्य दलों और नेताओं को भी भ्रष्टाचार की जो खुजली हुई है, वह इसी नंगोत्री से फूटी अलग-अलग धाराओं में नहाने के कारण हुई है.
2. दूसरा, कि चोर को छोड़ने की जैसी गलती मेरे पिताजी ने की, वैसी ही गलती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की है. इसीलिए, आज उन्हें चोर-चोर सुनना पड़ा है, जैसे मेरे पिताजी को पॉकेटमार-पॉकेटमार सुनना पड़ा था. प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने वादा किया था कि एक साल के भीतर देश की संसद को दागियों से मुक्त कर देंगे. बीजेपी के अनेक नेताओं ने भी रॉबर्ट वाड्रा समेत पिछली सरकार के तमाम भ्रष्टाचार-आरोपियों को जांच कराकर जेल भेजने की बात कही थी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इसीलिए, जब सरकार के साढ़े चार साल बीत जाने के बाद हाल में रॉबर्ट वाड्रा के यहां प्रवर्तन निदेशालय का छापा पड़ा, तो लोग अधिक उत्साहित नहीं हुए.
बहरहाल, भारतीय राजनीति में आज कुछ पुरानी कहावतें याद करने का दिन है. मसलन,1. चोर मचाए शोर, 2. चोर बोले ज़ोर से, 3. चोर की दाढ़ी में तिनका, 4. चोरी और सीनाज़ोरी, 5. चोर चोरी से जाए, सीनाज़ोरी से न जाए, 6. उल्टे चोर कोतवाल को डांटे. इत्यादि.
सवाल है कि राफेल डील को सुप्रीम कोर्ट द्वारा संदेह से परे बताए जाने के बाद अब राहुल गांधी क्या करेंगे? क्या पीएम को बार-बार चोर कहने के लिए माफी मांगेंगे या फिर किसी चोर की तरह ही नज़र चुराते नज़र आएंगे? क्या इस देश में ऐसी "नीच राजनीति" (प्रियंका गांधी से उधार लिया हुआ) होनी चाहिए कि कोई किसी को बिना किसी तथ्य-सबूत के चोर कह दे और वह भी केवल कुर्सी की लालसा में. जनता को इतना मूर्ख क्यों बना रहे हो भैया? 60 साल राज किया, 60 महीने भी गरिमा से नहीं रह सकते थे? इतना नीचे गिरने की कौन-सी ज़रूरत आ पड़ी थी?
अभी तीन राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनाव परिणामों के बाद अनेक लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि पप्पू पास हो गया...राहुल गांधी अब पप्पू नहीं रहे... वगैरह-वगैरह. लेकिन राफेल डील पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से एक बार फिर स्पष्ट है कि इस डील को समझने में भी वे पप्पू ही साबित हुए. न सिर्फ़ अपने देश के प्रधानमंत्री को, बल्कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति को भी उन्होंने इस विवाद में घसीट लिया था.
सोचने की बात है कि अगर ऐसा अपरिपक्व और नासमझ आदमी सचमुच किसी दिन देश का प्रधानमंत्री बन गया, तो देश की विदेश नीति की तो लुटिया ही डूब जाएगी. वैसे श्री राहुल गांधी जी की डिज़ास्ट्रस विदेश नीति की एक झलक तो तभी मिल गई थी, जब डोकलाम विवाद के समय वे चीनी राजदूत से गुपचुप मुलाकात कर रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल डील को क्लीन चिट देना और संदेह से परे बताना इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फैसला चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने सुनाया है, जबकि जस्टिस गोगोई को मोदी सरकार का विरोधी माना जा रहा था. वे न केवल असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता स्वर्गीय केशव चंद्र गोगोई के बेटे हैं, बल्कि अपने तीन सहयोगी जजों के साथ उन्होंने पिछले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के ख़िलाफ़ प्रेस कांफ्रेंस भी की थी.
मैं सोच रहा हूं कि अब जबकि "चौकीदार चोर है" कहकर राहुल गांधी जी एक्सपोज़ हो गए हैं, तो अब किस नए बगुले भगत का अवतार धरेंगे? क्या वे फिर से देश के अलग-अलग हिस्सों में जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव की राजनीति को हवा देने में जुट जाएंगे? जैसे, हरियाणा में जाटों, राजस्थान में गुर्जरों, गुजरात में पटेलों, कर्नाटक में लिंगायतों और देश भर में दलितों एवं किसानों को भड़काने की कोशिशें की गईं, क्या उसी लाइन पर फिर से कोई नया कार्ड खेला जाएगा? क्या फिर से मंदिर-मंदिर मत्था टेककर धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटा जाएगा? क्या फिर से जनेऊ धारण करके झूठ बोला जाएगा? क्या फिर से मुस्लिम भाइयों-बहनों को डराने के लिए कोई नई कहानी गढ़ी जाएगी?
आप मुझसे सहमत हों या असहमत... लेकिन सच यह है कि कांग्रेस पार्टी इस देश का दुर्भाग्य बन गई है. इसकी मर चुकी आत्मा में अब केवल सत्ता के लिए तड़प ही बची है, और कुछ भी नहीं.
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