क्या राजस्थान में चल रहा गुर्जर आंदोलन राजनीति के चतुर सुजान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मास्टर स्ट्रोक है? इस बार गुर्जर आंदोलन जिस दिन से शुरू हुआ है उसी दिन से इस बात को लेकर आम लोगों में चर्चा है कि क्या इस गुर्जर आंदोलन के जरिए अशोक गहलोत एक तीर से कई निशाने साध रहे हैं. निशाना भी ऐसा साध रहे हैं कि जिसे लगे उसका जख्म भी न दिखे. कहा जा रहा है कि इसबार राजस्थान में गुर्जर आंदोलन की सियासी आग लगी है जिसमें धुआं ही धुआं है.
राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनते ही हाशिए पर जा चुके गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला अचानक से सक्रिय हो गए. जिस बैंसला को लोग चुका हुआ गुर्जर नेता मान चुके थे, वो बैंसला तीन से चार हजार गुर्जरों की भीड़ के साथ सवाई माधोपुर के पास मलारना रेलवे स्टेशन पर पटरी पर बैठ गए. एक छोटी सी भीड़ को रेलवे ट्रैक पर बैठते हुए बड़ी संख्या में तैनात पुलिस कर्मी देखते रह गए. बैंसला ने कहा कि आंदोलन पूरी तरह से अहिंसात्मक होगा. अगर हिंसा हुई तो वह आंदोलन को छोड़कर उठ जाएंगे.
गुर्जर आंदोलन पूरे राजस्थान में इस बार पहले की तरह दिखना तो छोड़िए पिछले गुर्जर आंदोलन की छाया की तरह भी नहीं दिख रहा है. राजस्थान सरकार इस तरह से आचरण कर रही थी जैसे पूरे राजस्थान में गुर्जर सड़कों पर हैं और वह पूरी तरह से चिंतित हैं. धौलपुर में बीजेपी नेताओं के गुर्जर आंदोलन की आग में घी डालने की साजिश की घटना की कोशिशों को छोड़ दिया जाए तो कमोबेश हर जगह 15 से 50 गुर्जर युवा सड़क पर बैठे मिले और उनकी बदौलत राजस्थान की सड़कें जाम होती गईं. बिना किसी शांत या उन्मादी भीड़ के ही इस तरह से राज्य के छह करोड़ की आबादी को बंधक बना लिया गया और राजस्थान सरकार बयानों के जरिए गुर्जर नेताओं से बातचीत का न्योता देती रही. यहां तक कि राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह किरोड़ी सिंह बैंसला से वार्ता के लिए मलारना में पटरी पर जाकर बैठ गए.
कांग्रेस की सरकार बनते ही हाशिए पर जा चुके गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला अचानक से सक्रिय हो गए हैं
बैंसला पहले दिन से संकेत देते रहे कि उन्हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से काफी उम्मीदें हैं लेकिन सियासत के जानकार कहते हैं गुर्जर आंदोलन से बैंसला को कोई उम्मीद हो या ना हो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को उनसे बहुत सारी उम्मीदें हैं. इस बार राजस्थान के चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच के वोट का अंतर देखें तो कांग्रेस को बीजेपी से महज 1 लाख 42 हजार वोट ज्यादा मिले हैं. और माना जा रहा है कि जिस तरह से गुर्जरों ने बड़ी संख्या में कांग्रेस को वोट किए हैं इस एक लाख 42 हजार में से 80 फ़ीसदी गुर्जर वोट हैं, जबकि 20 फीसदी मुस्लिम वोट हैं. इस बार बीजेपी का एक भी गुर्जर विधायक विधानसभा में नहीं पहुंचा है. दरअसल गुर्जर समझ रहे थे कि इस बार राजस्थान का मुख्यमंत्री गुर्जर का बेटा सचिन पायलट बनेगा. मगर यह हो न सका और राजस्थान की कमान राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत के हाथों में चली गई. सचिन पायलट देखते ही रह गए.
अशोक गहलोत राहुल गांधी के बगल से सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के पिटारे से मुख्यमंत्री का पद दिल्ली से निकाल लाए. सांत्वना में सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री के पद से नवाजा गया. सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन अशोक गहलोत को जानने वाला जानते हैं कि गहलोत का काटा पानी नहीं मांगता है. राजस्थान के लोग आम बातचीत में अक्सर यह चर्चा करते हैं कि लोगों के बंदोबस्त करने में अशोक गहलोत का कोई सानी नहीं है. इसके लिए लोग राजस्थान के बड़े-बड़े नेता परसराम मदेरणा, नवल किशोर शर्मा, नटवर सिंह, शीशराम ओला से लेकर हिंदू नेता प्रवीण तोगड़िया और संत रहे आसाराम तक का उदाहरण देते हैं. खैर यह तो बात रही कि अशोक गहलोत कैसे-कैसे किन किन को निपटाते आए हैं.
बड़ी बात है कि गुर्जर आंदोलन की वजह से विधानसभा में गुर्जर आरक्षण विधेयक लाकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पायलट के मुख्यमंत्री नहीं बनने से नाराज गुर्जरों को एक बार फिर से सचिन पायलट के बिना ही कांग्रेस से जोड़ने में सफल हो सकते हैं. जिस तरह से गुजरा आंदोलन के दौरान गतिविधियां रहीं उसमें देखा गया कि राजनीति में सचिन पायलट के विरोधी रहे युवा गुर्जर नेता अशोक चांदना गुर्जर आरक्षण पर फ्रंट फुट पर खेलते नजर आए. गुर्जर आरक्षण के लिए विधानसभा में कांग्रेस सरकार प्रस्ताव लाएगी, इस बात को बताने के लिए मुख्यमंत्री सचिवालय के बाहर गुर्जर नेता के पारंपरिक लिबास में अशोक चांदना खड़े नजर आए.
गुर्जर आरक्षण आंदोलन मामले में लोग यही कह रहे हैं मौजूदा गुर्जर आंदोलन के निशाने पर कहीं न कहीं सचिन पायलट रहे हैं. आंदोलन की जब शुरुआत हो रही थी तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पत्रकारों ने पूछा गुर्जर आंदोलन होने वाला है सरकार की क्या तैयारी है. इस सवाल को पूरा सुनने के बाद गहलोत ने माइक सचिन पायलट की तरफ खिसकाते हुए इशारा किया कि गुर्जर आंदोलन पर यही जवाब देंगे. वहां मौजूद सभी लोग ठहाका लगा दिए और पायलट झेंप गए. उस दिन पायलट को गहलोत ने राजस्थान का उपमुख्यमंत्री या कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष नहीं बल्कि एक गुर्जर नेता बना दिया था.
राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट के लिए राह आसान नहीं है
पायलट के साथ धर्मसंकट ये है कि अगर गुर्जर आंदोलन भड़का तो राजस्थान में लोग कहने लगेंगे कि गुर्जर तो ऐसे ही हैं. अगर गुर्जर अभी से इस तरह के हालात पैदा कर रहे हैं तो गुर्जर मुख्यमंत्री बन जाएगा तो फिर राजस्थान का क्या होगा और गुर्जर आरक्षण के बिल के विधानसभा में पारित होने के बाद अगर गुर्जर खुश हो जाते हैं तो गुर्जर आरक्षण के नाम पर वापस कांग्रेस की तरफ आ सकते हैं. इस गुर्जर आंदोलन में राजस्थान सरकार की तरफ से अशोक चांदना को राजस्थान का नया गुर्जर नेता बनाने की कोशिश की गई है. दूसरी तरफ एक गुर्जर नेता के रूप में किरोड़ी सिंह बैंसला को फिर से स्थापित किया जा रहा है. माना जा रहा है कि कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का बेटा विजय बैंसला लोकसभा चुनाव लड़ सकता है. ऐसा हुआ तो सचिन पायलट के समानांतर एक और गुर्जर नेता अशोक गहलोत खड़ा करने में सफल हो जाएंगे. यानी राजस्थान की राजनीति में सचिन पायलट के लिए राह आसान नहीं है.
अशोक गहलोत को जानने वाले जानते हैं कि अशोक गहलोत राजनीति के चौबीसों घंटे के खिलाड़ी हैं जो हर वक्त शतरंज खेलते हैं और सबसे अच्छी उनकी चाल घोड़े की होती है. वह हमेशा ढाई घर की चाल चलते हैं. दो घर आगे बढ़ते हैं तो एक घर पीछे भी हटते हैं और यहीं से उनकी मारक क्षमता बढ़ जाती है. ऐसे में सचिन पायलट अगर कोई उम्मीद पाले बैठे हैं कि राज्य की राजनीति में अशोक गहलोत के रहते नंबर एक की हैसियत पा लेंगे तो सचिन पायलट को किसी करिश्मे से उम्मीद करनी चाहिए. गुर्जरों को आरक्षण मिलेगा यह तो पता नहीं है लेकिन गुर्जर आरक्षण की आग इतनी आसानी से बुझने वाली नहीं है. और इस आग में सचिन पायलट हमेशा झुलसते रहेंगे. जो गुर्जर वोट बैंक पायलट की सबसे बड़ी ताकत है, ऐसा संभव है कि अशोक गहलोत उसे उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बना दें.
अशोक गहलोत गुर्जर आरक्षण की गेंद केंद्र की मोदी सरकार के पाले में डाल रहे हैं
गुर्जरों को समझना होगा कि राजस्थान विधानसभा में इससे पहले भी दो बार गुर्जर आरक्षण पर हाईकोर्ट ने रोक लगा रखी है. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है लिहाजा इस मामले पर सियासत तो हो सकती है पर समाधान आसान नहीं है. इस पूरे मामले में खोने के लिए केवल बीजेपी के पास ही सब कुछ पड़ा है. सचिन पायलट और अशोक गहलोत गुर्जर आरक्षण की गेंद केंद्र की मोदी सरकार के पाले में डाल रहे हैं. इनका कहना है कि अगर गरीब सवर्णों के 10 फीसदी आरक्षण को लेकर संविधान संशोधन किया जा सकता है तो गुर्जरों के पांच फीसदी आरक्षण के लिए संविधान संशोधन क्यों नही हो सकता. वसुंधरा पांच साल सत्ता में रहने के बाद कुछ नहीं कर पाईं लिहाजा अब गुर्जर आरक्षण को समर्थन देने का नैतिक हक भी खो चुकी हैं. दोराहे पर खड़े पायलट गुर्जरों की मांग का समर्थ तो कर रहे हैं क्योंकि एक तो गुर्जर हैं दूसरा वो राजस्थान कांग्रेस के अध्य़क्ष हैं जिसने चुनावी घोषणा पत्र में गुर्जर आरक्षण की बात कही थी मगर इस आंदोलन के साथ खड़े होकर एक गुर्जर नेता भर बनकर नहीं जीना चाहते हैं. जबकि इस आंदोलन के धुएं में धुंधला ही सही मगर एक ही चेहरा मुस्कुराता दिख रहा है. मानो कह रहा हो देखो मैं गुर्जर आंदलनों को कितने सही ढंग से निपटाता हूं.
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