पांच साल पहले जब योगी आदित्यनाथ का नाम घोषित हुआ तब बड़े बड़ों को एक झटका ज़रूर लगा था. यूं तो योगी जी का नाम गोरखपुर और आसपास के जिले बखूबी जानते है लेकिन मुख्यमंत्री की उम्मीद नहीँ थी. उम्मीद इस बार भी नहीं थी. लेकिन राम जी की मर्ज़ी के आगे भला किसकी मर्ज़ी चली है. उस वक़्त ज़्यादातर लोगों का कहना था कि मोदी फैक्टर काम कर गया. सही भी था. मोदी की लहर थी और उसपर सवार हर किसी का बेड़ा पार था. लेकिन इस बार? जनाब 2022 का चुनाव और इसके नतीजे कई मामलों में अलग है और शायद इसलिए ये बीती किसी भी सरकार से ज़्यादा ऐतिहासिक जीत है. पैंडेमिक के दौरान हुए ब्लंडर 'वेर टू मच!' खुदा खैर करे उसका असर भी आल तू जलाल तू कर के टाल दिया गया.
पांच साल का पूरा समय पूरा करने वाली ये उत्तर प्रदेश के तीसरे मुख्यमंत्री है. ये उत्तर प्रदेश की राजनीती के बखूबी अंदाज़ा देता है की यहां, 'बहुत कठिन डगर सत्ता की' उसपर भी होने लगा जय जय बाबा जी की!
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हुए जिनकी वापसी यूं हुई - दोबारा! इससे पहले अनडिवाइडेड उत्तरप्रदेश में करीब सैंतीस साल पहले ये कारनामा हुआ था. अब ये बात बड़ी रोचक भी है और समाज शास्त्रियों के लिए शोध का विषय भी बन सकती है कि आखिर ये हुआ क्यों?
ऐसा तो नही की पूरी जनता इनके हर फैसले के साथ है लेकिन फिर भी ये 255 का आंकड़ा बहुत कुछ कहता है मानो या न मानो भारतीय राजनीती में धर्म का प्रवेश हो चुका है. अब हालात ये होते जा रहे हैं की भले कन्वेसिंग उसके नाम पर हो न हो वोटर के ध्यान में ये बात रहती है. लॉ ऑफ़ रेपिटिटिव मोशन यू सी. साल भर की मशक्क्त दैट टू सॉफ्ट मैसजिंग.
सोह मिडिया से माइंड मैपिंग करवा कर...
पांच साल पहले जब योगी आदित्यनाथ का नाम घोषित हुआ तब बड़े बड़ों को एक झटका ज़रूर लगा था. यूं तो योगी जी का नाम गोरखपुर और आसपास के जिले बखूबी जानते है लेकिन मुख्यमंत्री की उम्मीद नहीँ थी. उम्मीद इस बार भी नहीं थी. लेकिन राम जी की मर्ज़ी के आगे भला किसकी मर्ज़ी चली है. उस वक़्त ज़्यादातर लोगों का कहना था कि मोदी फैक्टर काम कर गया. सही भी था. मोदी की लहर थी और उसपर सवार हर किसी का बेड़ा पार था. लेकिन इस बार? जनाब 2022 का चुनाव और इसके नतीजे कई मामलों में अलग है और शायद इसलिए ये बीती किसी भी सरकार से ज़्यादा ऐतिहासिक जीत है. पैंडेमिक के दौरान हुए ब्लंडर 'वेर टू मच!' खुदा खैर करे उसका असर भी आल तू जलाल तू कर के टाल दिया गया.
पांच साल का पूरा समय पूरा करने वाली ये उत्तर प्रदेश के तीसरे मुख्यमंत्री है. ये उत्तर प्रदेश की राजनीती के बखूबी अंदाज़ा देता है की यहां, 'बहुत कठिन डगर सत्ता की' उसपर भी होने लगा जय जय बाबा जी की!
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हुए जिनकी वापसी यूं हुई - दोबारा! इससे पहले अनडिवाइडेड उत्तरप्रदेश में करीब सैंतीस साल पहले ये कारनामा हुआ था. अब ये बात बड़ी रोचक भी है और समाज शास्त्रियों के लिए शोध का विषय भी बन सकती है कि आखिर ये हुआ क्यों?
ऐसा तो नही की पूरी जनता इनके हर फैसले के साथ है लेकिन फिर भी ये 255 का आंकड़ा बहुत कुछ कहता है मानो या न मानो भारतीय राजनीती में धर्म का प्रवेश हो चुका है. अब हालात ये होते जा रहे हैं की भले कन्वेसिंग उसके नाम पर हो न हो वोटर के ध्यान में ये बात रहती है. लॉ ऑफ़ रेपिटिटिव मोशन यू सी. साल भर की मशक्क्त दैट टू सॉफ्ट मैसजिंग.
सोह मिडिया से माइंड मैपिंग करवा कर - मेरा मतलब है रोज़ के दस मेसेज. वही जिन्हे आप फॉरवर्ड करते है. भैया बाकायदा लोग होते है. सबके पास है क्या योगी क्या केजरी. हां शायद राहुल के पास नहीं वरना आइसक्रीम की पिक्चर! अभी होली तक तो ऑफिशियल सर्दी है ही. राहुल बाबा इस टू इनोसेंट आई गेस!
कमज़ोर विपक्ष
इसका रोना तो क्या ही रोये. कॉंग्रेस इस मायने में खुशकिस्मत थी कि उसे विपक्ष के नेता के रूप में भी अटल बिहारी वाजपेयी जैसा नेता मिला था.आज के समय मे विपक्ष में केवल प्रदेशीय पार्टियां रह गयी है, एक भी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी नहीं. न न कॉंग्रेस का नाम भी न लें.
अगर प्रियंका के बीज के वट वृक्ष बनने का इंतेज़ार करेंगे तब तक बहुत देर हो जाएगी. नॉट गुड़ फॉर डेमोक्रेसी क्योंकि जब तक नियम हमारे मन के तब तक ठीक वरना नो ऑपोसिशन मतलब डिक्टेटरशिप की पूरी छूट. खैर बस ख्याल है बाकि तो खेला 2024 के बाद ही होगा.
टफ टास्कमास्टर
ये छवि कितनी सही कितनी गलत ये तो नहीं कह सकते क्योंकि पिछले दो सालो में कई जगहों पर मैनेजमेंट लड़खड़ाया और यूं आम आदमी त्राहि त्राहि कर बैठा लेकिन उसके बाद छवि सुधार में दल बल से लगने के बाद ये इमेज बन ही गई है. पुराणी परियोजनाए अब खत्म हुई. अब - काम नए सिरे से होना ही होगा. टास्क और मास्टर दोनों के रूप देखने को मिलेंगे.
केंद्र के फैसलों का अच्छा और बुरा असर हुआ ही होगा. किसान बिल का असर शायद पंजाब पर पड़ा लेकिन गन्ना किसानों की बहुतायत वाला पश्चिमी उत्तरप्रदेश के जाटों का वोट इसी ओर आया. महिलाओं की सुरक्षा पर कुछ तवज्जो उनके वोट भी ले आई. एंड लास्ट बट नॉट द लीस्ट छंटे हुए गुंडों के प्रॉपर्टी को ज़मींदोज़ करने वाला बुलडोज़र!
कसम से लेम्बोर्गिनी से ज़्यादा बुलडोज़र का असर है. कुल मिलाकर शोध का मसाला बहुत है बशर्ते कोई करे. फ़िलहाल नेहा सिंह के गाने का जवाब रंग गुलाल और ढोल के शोर से दिया गया है. अब ये 2024 का ट्रेलर है या नहीं ये तो आने वाला साल बताएगा. हां बुलडोज़र कहां कहां चलता है ये अगले पांच साल की कहानी होगी!
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