भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) का आज 41वां स्थापना दिवस है. पिछले चार दशक में BJP ने लोकसभा में 2 सीटों से 303 सीटों का लंबा सफर तय किया है. अटल-आडवाणी से लेकर मोदी-शाह की जोड़ी तक, इस पार्टी ने हर दशक में नई उपलब्धि हासिल की है. राम मंदिर आंदोलन, कश्मीर से लेकर प्रखर हिन्दुत्व तक, कई मुद्दों ने पार्टी के लिए आक्सीजन का काम किया. बीजेपी को आगे बढ़ाने में जितनी मेहनत उसके कार्यकर्ताओं और नेताओं ने की, उतनी ही बड़ी भूमिका भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की भी रही है. खासकर राहुल गांधी और मनमोहन सिंह का योगदान बीजेपी कभी नहीं भुला पाएगी, क्योंकि इन दोनों नेताओं की वजह से ही नरेंद्र मोदी जैसे नेतृत्व को उभरने का मौका मिला और वो राष्ट्रीय स्तर पर छा गए. आज 18 करोड़ सदस्य संख्या के साथ BJP दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है. इसके सदस्यों की संख्या से दुनिया के सिर्फ 8 देशों की आबादी ही ज्यादा है.
चार दशक पहले साल 1980 में स्थापित हुई भारतीय जनता पार्टी ने आजादी से पहले स्थापित हुई कांग्रेस को सियासी गलियारे में बहुत पीछे धकेल दिया है. 'कांग्रेस मुक्त भारत' के नारे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार ने कांग्रेस का सबसे ज्यादा नुकसान किया है. लेकिन बीजेपी को यहां तक लाने में कांग्रेस की भी बहुत बड़ी भूमिका रही है. पिछले सात दशक तक हिन्दुस्तान पर राज करने वाली एक पार्टी आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम पर चलने वाला ये राजनीतिक दल आज एक करिश्माई नेतृत्व के लिए तरस रहा है. इसी का फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला. मोदी और शाह की जोड़ी ने संगठन से लेकर सरकार तक मजबूती से सकारात्मक दिशा में काम किया. इसका परिणाम हमारे सामने है. आज अपने 41वें स्थापना दिवस पर बीजेपी दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल और लोकतंत्र के मंदिर संसद में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में मौजूद है.
आइए जानते हैं, कैसे कांग्रेस ने बीजेपी को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने में मदद की है...
करिश्माई नेतृत्व का अभाव
भारतीय राजनीति में करिश्माई नेतृत्व और व्यक्तित्व की भूमिका हमेशा से रही है. राजनीतिक दल किसी भी स्तर का हो, लेकिन उसकी विजय का आधार उसके नेतृत्व के सामाजिक रूतबे से तय होता रहा है. आजादी के बाद कांग्रेस लंबे समय तक सत्ता में रही, उसका सबसे बड़ा कारण था नेहरू की लोकप्रियता. देश में उनके प्रति अपार श्रद्धा थी, जिसकी वजह से कांग्रेस लगातार बहुमत प्राप्त करती रही. उनके निधन के बाद कांग्रेस की बागडोर उनकी बेटी इंदिरा गांधी के पास आई. उन्होंने भी नेहरू की तरह पार्टी को संभाला. इंदिरा को आयरन लेडी कहा जाता था. पूरे देश में उनका प्रभाव था. उनकी मौत के बाद राजीव गांधी एक स्तर तक कांग्रेस का करिश्मा बनाए रखने में कामयाब रहे, लेकिन उनके निधन के बाद कांग्रेस में कोई करिश्माई नेता नहीं बचा. इधर, बीजेपी में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं का तेजी से उदय हो रहा था. उनका प्रभाव और प्रभुत्व पार्टी में ही नहीं पूरे देश में बढ़ रहा था.
नेतृत्व में वैक्यूम देकर
राम मंदिर आंदोलन की वजह से बीजेपी को बहुत फायदा हुआ. उसके नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. कई राज्यों और बाद में केंद्र में सरकार बनाने का अवसर मिला. साल 2010 के बाद नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए भी देशभर में चर्चा का केंद्र थे. वहीं, कांग्रेस सोनिया और राहुल गांधी के भरोसे आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थी. लेकिन साल 2014 में मोदी ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व से पूरे देश का मनमोह लिया. उधर, राहुल गांधी को पार्ट टाइम पॉलिटिशियन कहा जाता है. उनकी राजनीतिक अनिच्छा का कांग्रेस को जबरदस्त नुकसान हुआ है. पूर्व राष्ट्रपति दिवंगत प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब 'द प्रेसिडेंशियल ईयर्स' में लिखा है, 'कांग्रेस अपने करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान करने में विफल रही है. पंडित नेहरू जैसे कद्दावर नेताओं ने यह सुनिश्चित किया था कि भारत अपने अस्तित्व को कायम रखे और एक मजबूत एवं स्थिर राष्ट्र के तौर पर विकसित हो. दुखद है कि अब ऐसे अद्भुत नेता नहीं हैं.'
वैचारिक शून्यता देकर
बिना किसी विचारधारा के राजनीति नहीं हो सकती. भारत में करीब हर राजनीतिक दल किसी न किसी विचारधारा से जुड़ा है. कुछ तटस्थ दल भी हैं, लेकिन उनका भी झुकाव देखा जाता है. राजनीतिक विचारधारा किसी सामाजिक व्यवस्था के लिए राजनीतिक या सांस्कृतिक ब्लूप्रिंट प्रदान करती हैं. इसके आधार पर ही कोई राजनीतिक दल काम करता है. हिन्दुस्तान में तीन राजनीतिक विचारधाराएं प्रचलित हैं. लेफ्ट, सेंटर और राइट. इसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी जैसे राजनीतिक दल लेफ्ट, बीजेपी राइट और कांग्रेस सेंटर मानी जाती है. लेकिन पिछले एक दशक से कांग्रेस गांधी और नेहरू की विचारधारा से दूर होती जा रही है. वहीं बीजेपी ने अपनी दक्षिणपंथी विचारधारा को मजबूती से अपनाए रखा है. इस वजह से उसकी विचारधारा के लोग पार्टी से लगातार जुड़ते गए हैं. बीजेपी को वैचारिक रूप से मजबूत करने का काम आरएसएस ने बखूबी किया है. वहीं कांग्रेस में विचारधारा तो छोड़िए फिलहाल 'विचार' भी नजर नहीं आता.
पॉलिसी पैरालिसिस
किसी भी देश के विकास के लिए अच्छी और मजबूत पॉलिसी का होना बहुत जरूरी है. व्यापार, कृषि या उद्योग कोई भी क्षेत्र बिना परफेक्ट पॉलिसी के उन्नति नहीं कर सकता. लेकिन यूपीए सरकार 'पॉलिसी पैरालिसिस' की शिकार हो गई थी. अपने दस साल के कार्यकाल के दौरान मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री के प्रधानमंत्री रहते हुए भी देश की आर्थिक विकास की दर कम हो गई. बेरोजगारी तेजी से बढ़ने लगी. इस पॉलिसी पैरालिसिस का परिणाम यह हुआ कि देश के युवाओं को रोजगार के अवसर नहीं मिले. इस वजह से लोग मनमोहन सरकार से नाराज हो गए. रही सही कसर उनके एक बयान के बाद निकल गई, जिसमें मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय विकास परिषद में दिए अपने भाषण में कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ मुसलमानों का है. बीजेपी ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई और बहुसंख्यकों के बीच इन मुद्दों को कैश कर लिया. गुजरात में मोदी ने जो विकास का मॉडल खड़ा किया था, उसे पूरे देश में प्रचारित और प्रसारित करके लोगों को सुनहरे भविष्य के सपने दिखाए गए.
नैतिकता की तिलांजलि देकर
भारत में भ्रष्टाचार का मुद्दा हमेशा राजनीति के केंद्र में रहा है. कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के दोनों कार्यकाल में जमकर भ्रष्टाचार हुआ. इतने बड़े-बड़े घोटाले हुए कि पूरा देश हिल गया. ऑयल फार फूड, सत्यम घोटाला, आईपीएल घपला, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, आदर्श घोटाला, इसरो घोटाला, कोयला घोटाला, एनएचआरएम घपला और अगस्ता वेस्टलैंड घपला सबसे चर्चित केस रहे हैं. इनमें 2जी, कॉमनवेल्थ और कोयला घोटालों में शामिल रकम इतनी बड़ी है, जिसमें कई देशों की पूरी अर्थव्यवस्था समाहित हो सकती है. एक अनुमान के अनुसार मनमोहन सरकार के मंत्रियों पर करीब 1.86 लाख करोड़ की हेराफेरी का आरोप लगा था. आए दिन नए-नए घोटालों के सामने आने से लोग त्रस्त हो गए थे. मोदी की अगुवाई में एनडीए ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत और शासन का सपना दिखाया, तो लोग उनकी ओर आकर्षित हुए. विकल्प भी कोई नहीं था. ऐसे में भ्रष्टाचार मुक्त देश के वादे के साथ मोदी सरकार सत्ता में आ गई.
कैडरविहीन होकर
किसी राजनीतिक दल को जड़ से मजबूती के साथ खड़ा करने में उसके कैडर की भूमिका बहुत बड़ी होती है. बीजेपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अनुषांगिक संगठन है. ऐसे में उस पर आरएसएस का प्रभाव होना लाजिमी है. बीजेपी को कैडर बेस राजनीतिक पार्टी कहा जाता है. यहां शीर्ष नेतृत्व से लेकर बूथ लेवल के कार्यकर्ता के बीच कनेक्शन देखने को मिल जाएगा. यहां परिवार आधारित वंशवाद नहीं है, मोदी जैसा सामान्य कार्यकर्ता भी सीएम और पीएम बन सकता है. बीजेपी की सरकार और संगठन समानांतर काम करते हैं, ताकि शासन और पार्टी दोनों सुचारू रूप से चलते रहें. इसके ठीक उलट कांग्रेस अपना कैडर खो चुकी है. एक वक्त था, जब गांव-गांव और घर-घर में कांग्रेस का कैडर हुआ करता था, लेकिन जबसे नेताओं की संख्या बढ़ी, कार्यकर्ता कम होते गए. नेताओं की गुटबाजी के बीच कांग्रेस केवल हाईकमान तक सीमित रह गई है. इसका बीजेपी को बहुत फायदा मिला है. एक सुव्यवस्थित और अनुशासित राजनीतिक दल से हर कोई जुड़ना चाहता है.
बीजेपी का चार दशक का सफर
BJP की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई थी. अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष बने. 1984 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर थी, इसलिए BJP को सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल हो सकी. साल 1989 में बोफोर्स मुद्दा गरम हुआ, तो इसका बीजेपी को फायदा मिला. उस वक्त हुए चुनाव में बीजेपी को 85 सीटें मिली थीं. इसी साल पार्टी ने राम जन्मभूमि आंदोलन को समर्थन दिया. लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से राम रथयात्रा शुरू कर दी. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद आंदोलन ने ऐसा जोर पकड़ा कि साल 1991 में बीजेपी की सीटें बढ़कर 120 हो गईं. साल 1993 में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल और मध्य प्रदेश में पार्टी के प्रति जनसमर्थन बढ़ा तो वोट भी बढ़े. साल 1995 में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, ओडिशा, गोवा, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी कमल खिला.
ऐसे बीजेपी ने रच दिया इतिहास
साल 1996 में बीजेपी ने 161 सीटें जीतीं. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, लेकिन बहुमत नहीं होने से 13 दिन में ही सरकार गिर गई. साल 1998 के मध्यावधि चुनावों में बीजेपी ने कई राजनीतिक दलों के साथ NDA गठबंधन बनाया. इस गठबंधन की बदौलत बीजेपी सत्ता में आ गई. लेकिन साल 1999 में जयललिता की पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई. इसके बाद हुए चुनाव में NDA ने 303 सीटें हासिल करके स्पष्ट बहुमत पा लिया. 183 सीटों के साथ बीजेपी गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी थी. साल 2004 और 2009 के चुनाव में बीजेपी की स्थिति खराब हो गई. सीटें घटकर 116 रह गईं. लेकिन साल 2014 में बीजेपी ने एक बार फिर अंगड़ाई लिया. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी को 282 सीटें हासिल हुईं. वहीं, 336 सीटों के साथ NDA को बहुमत मिला. 26 मई 2014 को मोदी देश के 15वें प्रधानमंत्री बने. साल 2019 के चुनाव में 303 सीटों पर जीत हासिल कर बीजेपी ने इतिहास रच दिया.
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