कर्नाटक में अभी चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन प्रदेश की दो महत्वपूर्ण पार्टियां - कांग्रेस और भाजपा लिंगायत समुदाय के वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं. क्योंकि लिंगायत समुदाय यहां के चुनावों में जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कर्नाटक में ऐसा देखा गया है कि लिंगायत का समर्थन यानि सत्ता की सीढ़ी.
कर्नाटक का विधानसभा चुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का चुनाव है. इस चुनाव में जहाँ बीजेपी का लक्ष्य दक्षिण भारत में दोबारा कमल खिलाने का है, वहीं कांग्रेस के लिए कुर्सी को बचाए रखना किसी जंग से कम नहीं.
गायत समुदाय इतना अहम क्यों...
कर्नाटक में लिंगायत सबसे बड़े समुदायों में से एक है जो आबादी के लगभग 21 फीसदी हैं और जो यहां की 224 सीटों में से 100 सीटों पर हार जीत तय करते हैं. इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि जब साल 2013 के चुनाव के वक़्त भाजपा ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाया था तो लिंगायत समाज ने बीजेपी को वोट नहीं दिया था क्योंकि येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं. येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बाद मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था और इसी वज़ह से भाजपा न केवल चुनाव हार गयी थी बल्कि तीसरे स्थान पर खिसक गयी थी. यही नहीं कर्नाटक के राजनीतिक इतिहास में छह बार लिंगायत समुदाय से ही मुख्यमंत्री बने हैं.
कांग्रेस का लिंगायत वोटरों को लुभाने का प्रयास..
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस बार लिंगायतों को कांग्रेस के पाले में करने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं. राहुल गांधी कर्नाटक के दौरे पर हैं और वो ज्यादातर लिंगायत बुहुल इलाकों का दौरा कर रहे हैं. वे दो लिंगायत धार्मिक सेंटर जा रहे हैं. कोप्पल में राहुल गांधी गविसिद्देश्वर मठ...
कर्नाटक में अभी चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन प्रदेश की दो महत्वपूर्ण पार्टियां - कांग्रेस और भाजपा लिंगायत समुदाय के वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं. क्योंकि लिंगायत समुदाय यहां के चुनावों में जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कर्नाटक में ऐसा देखा गया है कि लिंगायत का समर्थन यानि सत्ता की सीढ़ी.
कर्नाटक का विधानसभा चुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का चुनाव है. इस चुनाव में जहाँ बीजेपी का लक्ष्य दक्षिण भारत में दोबारा कमल खिलाने का है, वहीं कांग्रेस के लिए कुर्सी को बचाए रखना किसी जंग से कम नहीं.
गायत समुदाय इतना अहम क्यों...
कर्नाटक में लिंगायत सबसे बड़े समुदायों में से एक है जो आबादी के लगभग 21 फीसदी हैं और जो यहां की 224 सीटों में से 100 सीटों पर हार जीत तय करते हैं. इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि जब साल 2013 के चुनाव के वक़्त भाजपा ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाया था तो लिंगायत समाज ने बीजेपी को वोट नहीं दिया था क्योंकि येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं. येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बाद मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था और इसी वज़ह से भाजपा न केवल चुनाव हार गयी थी बल्कि तीसरे स्थान पर खिसक गयी थी. यही नहीं कर्नाटक के राजनीतिक इतिहास में छह बार लिंगायत समुदाय से ही मुख्यमंत्री बने हैं.
कांग्रेस का लिंगायत वोटरों को लुभाने का प्रयास..
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस बार लिंगायतों को कांग्रेस के पाले में करने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं. राहुल गांधी कर्नाटक के दौरे पर हैं और वो ज्यादातर लिंगायत बुहुल इलाकों का दौरा कर रहे हैं. वे दो लिंगायत धार्मिक सेंटर जा रहे हैं. कोप्पल में राहुल गांधी गविसिद्देश्वर मठ का दर्शन करेंगे जहाँ लिंगायत समुदाय के बीच यह मठ काफी चर्चित है. इसके बाद वो बिदर जिले के बसवक्कलयन में स्थित अनुभा मंतरपा जा रहे हैं जो लिंगायत समुदाय के बीच काफी चर्चित है
अभी कुछ दिन पहले ही कर्नाटक की कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिंगायतों के एक समूह द्वारा हिन्दू धर्म से अलग कर नई धार्मिक पहचान की मांग को हवा दी थी. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार सिद्धारमैया का यह चाल लिंगायत वोटरों को अपने पक्ष में करने का था क्योंकि लिंगायत समुदाय भाजपा का प्रमुख वोट बैंक रहा है. वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को लगभग 15 प्रतिशत लिंगायतों का वोट प्राप्त हुआ था.
भाजपा के लिए भी लिंगायत महत्वपूर्ण..
भाजपा 2013 के विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर खामियाज़ा भुगत चुकी है ऐसे में इस बार के चुनाव में उसे ही मुख्यमंत्री का उमीदवार घोषित किया है. हालाँकि, तब येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बाद मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया था और अब भी उनके खिलाफ मुकदमे चल रहे हैं लेकिन भाजपा को शायद पता है कि उसका चुनावी नैय्या येदियुरप्पा ने पहले भी लगाया था और अब भी वही लगाएंगे. 2013 के चुनावों में येदियुरप्पा ने अपना पार्टी 'कर्नाटक जनता पक्ष' नामक पार्टी बनाया था और छह सीटों के साथ 9 .79 प्रतिशत वोट पाया था जिसके कारण भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. 2008 के चुनावों में जहाँ भाजपा को 110 सीटें मिली थी और उसकी सरकार बनी थी, वहीं 2013 में येदियुरप्पा के कारण मात्रा 40 सीटों पर सिमट गयी थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में येदियुरप्पा की वापसी के कारण से भाजपा को लगभग 63 प्रतिशत लिंगायत वोट मिले थे और लोकसभा की 28 सीटों में से 17 सीटों पर जीत हासिल की थी.
इस तरह लिंगायत समुदाय कर्नाटक में जिसे समर्थन करती है उसकी सरकार लगभग बनना तय माना जाता है. हालांकि, कर्नाटक में 1985 के बाद से राज्य के लोगों में मौजूदा सरकारों को हटाने का मजबूत ट्रेंड रहा है ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि येदियुरप्पा भाजपा के लिए फिर से यहाँ कमल खिलाने में मददगार साबित होंगे या फिर सिद्धारमैया का हाल में खेला गया 'लिंगायत कमीशन कार्ड' इस ट्रेंड को खत्म करेगा.
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