शिवपाल यादव ने गुजारिश तो नहीं कि लेकिन जो बात कही वो मायावती के लिए रिटर्न गिफ्ट जरूर है. एक प्रेस कांफ्रेंस में जब शिवपाल को बीएसपी में लेने को लेकर सवाल पूछा गया तो मायावती का कहना था कि अगर वो गुजारिश करेंगे तो वो विचार कर सकती हैं. हालांकि, शिवपाल यादव ने जसवंत नगर से नामांकन कर दिया है.
नामांकन के वक्त शिवपाल ने एक अहम बात कही - बिछड़े साथियों के सपोर्ट को लेकर. अगर ऐसा हुआ तो उसका असर मायावती के पक्ष में जाएगा.
शिवपाल का रिटर्न गिफ्ट
2015 में मायावती पर टिप्पणी करते हुए शिवपाल ने कहा था - 'बसपा की महिला हेड इस वक्त निठल्ली हैं, इसलिए चपर-चपर बोला करती हैं.' सियासत में साल भर का वक्त बहुत होता है. उस प्रेस कांफ्रेंस में मायावती को शायद ये बात भूल गयी हो, तभी तो उन्होंने शिवपाल यादव के प्रति पूरी सहानुभूति जताई लेकिन शर्त रखी कि अगर पहल उनकी ओर से हो तो वो सोच सकती हैं. शिवपाल के प्रति अपनी हमदर्दी उंड़ेलते हुए मायावती बोलीं, "मुलायम सिंह यादव ने सोची समझी रणनीति के तहत अपने सगे भाई शिवपाल तक को बलि का बकरा बना दिया." मायावती के इस बयान को यूपी के तमाम हिस्सों में फैले शिवपाल के समर्थकों पर नजर के तौर पर देखा गया.
वैसे शिवपाल का नाम लेकर मायावती तभी से लगातार बयान देती रहीं जब से समाजवादी पार्टी में झगड़ा शुरू हुआ. इस दौरान हमेशा मुलायम सिंह यादव उनके निशाने पर रहे और वो कहा करतीं कि पूरी पटकथा खुद मुलायम ने लिखी है.
जसवंत नगर में शिवपाल यादव ने दो बातें खास तौर पर कहीं और अगर उसका कोई असर हुआ तो नतीजे सीधे सीधे मायावती के पक्ष में जाएंगे. एक, 11 मार्च के बाद शिवपाल अपनी नयी पार्टी बनाएंगे. मतलब, समाजवादी पार्टी में...
शिवपाल यादव ने गुजारिश तो नहीं कि लेकिन जो बात कही वो मायावती के लिए रिटर्न गिफ्ट जरूर है. एक प्रेस कांफ्रेंस में जब शिवपाल को बीएसपी में लेने को लेकर सवाल पूछा गया तो मायावती का कहना था कि अगर वो गुजारिश करेंगे तो वो विचार कर सकती हैं. हालांकि, शिवपाल यादव ने जसवंत नगर से नामांकन कर दिया है.
नामांकन के वक्त शिवपाल ने एक अहम बात कही - बिछड़े साथियों के सपोर्ट को लेकर. अगर ऐसा हुआ तो उसका असर मायावती के पक्ष में जाएगा.
शिवपाल का रिटर्न गिफ्ट
2015 में मायावती पर टिप्पणी करते हुए शिवपाल ने कहा था - 'बसपा की महिला हेड इस वक्त निठल्ली हैं, इसलिए चपर-चपर बोला करती हैं.' सियासत में साल भर का वक्त बहुत होता है. उस प्रेस कांफ्रेंस में मायावती को शायद ये बात भूल गयी हो, तभी तो उन्होंने शिवपाल यादव के प्रति पूरी सहानुभूति जताई लेकिन शर्त रखी कि अगर पहल उनकी ओर से हो तो वो सोच सकती हैं. शिवपाल के प्रति अपनी हमदर्दी उंड़ेलते हुए मायावती बोलीं, "मुलायम सिंह यादव ने सोची समझी रणनीति के तहत अपने सगे भाई शिवपाल तक को बलि का बकरा बना दिया." मायावती के इस बयान को यूपी के तमाम हिस्सों में फैले शिवपाल के समर्थकों पर नजर के तौर पर देखा गया.
वैसे शिवपाल का नाम लेकर मायावती तभी से लगातार बयान देती रहीं जब से समाजवादी पार्टी में झगड़ा शुरू हुआ. इस दौरान हमेशा मुलायम सिंह यादव उनके निशाने पर रहे और वो कहा करतीं कि पूरी पटकथा खुद मुलायम ने लिखी है.
जसवंत नगर में शिवपाल यादव ने दो बातें खास तौर पर कहीं और अगर उसका कोई असर हुआ तो नतीजे सीधे सीधे मायावती के पक्ष में जाएंगे. एक, 11 मार्च के बाद शिवपाल अपनी नयी पार्टी बनाएंगे. मतलब, समाजवादी पार्टी में किचकिच बरकरार है और जीतने में संदेह है. मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए मायावती बार बार ये बात दोहराती रही हैं कि मुसलमान अपने वोट को जाया न होने दें.
असल में, शिवपाल के लिए खामोश रहना उनके कॅरिअर के लिए खतरनाक होता. उन्हें सबसे बड़ा डर अपने समर्थकों के खोने का होगा क्योंकि समाजवादी पार्टी में जिन नेताओं ने अखिलेश से बैर मोल लिया उनके लिए महंगा साबित हुआ. इसके साथ ही शिवपाल ने एक और राजनीतिक रास्ता खोल दिया. अगर चुनाव बाद पावर शेयरिंग की कोई स्थिति बनी तो शिवपाल के पास बदले समीकरणों में फिट होने की पूरी गुंजाइश रहेगी. इसमें मायावती के साथ जाने का ऑप्शन भी खुला होगा.
फर्ज कीजिए, समाजवादी पार्टी सत्ता में दोबारा आती है अखिलेश कैबिनेट में ज्यादा से ज्यादा उन्हें एक मंत्री पद मिल सकता है, लेकिन पहले जैसी पूछ तो रहेगी नहीं. दूसरी तरफ, अगर वो मायावती से हाथ मिला लेते हैं तो बीएसपी में उनका दबदबा बढ़ सकता है. अखिलेश को काउंटर करने के लिए मायावती शिवपाल को छूट भी दे सकती हैं. वैसे भी स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी में चले जाने के बाद बीएसपी में ऐसी एक जगह खाली तो है ही.
अखिलेश का छोटा नुकसान भी मायावती के लिए बड़ा फायदा
शिवपाल की वजह से अखिलेश को अगर छोटा नुकसान भी होता है तो वो मायावती के लिए डबल फायदा होगा. ये कुछ उसी तरह है जैसे बिहार चुनाव में जीतनराम मांझी जिसके साथ हो लेते वो नीतीश के लिए रेडीमेड जवाबी हमलावर के रोल में फिट हो जाते. चुनावों में मांझी से बीजेपी को भले ही कोई फायदा साबित नहीं हुआ, लेकिन चुनाव पूर्व माहौल को बैलेंस करने में उनकी भूमिका तो थी ही.
जसवंत नगर में ही शिवपाल ने एक और अहम बात कही जो पूरी तरह मायावती के पक्ष में जाती है. शिवपाल ने कहा कि वो उन साथियों के लिए प्रचार कर सकते हैं जो टिकट न मिलने के कारण इधर उधर चले गये हैं. समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ने वाले नेताओं में सबसे ज्यादा शरण बीएसपी में ही मिला है.
समाजवादी पार्टी के बड़े नेता अंबिका चौधरी ने बीएसपी का रुख किया तो नारद राय भी साइकल छोड़ हाथी पर सवार हो लिये. गाजीपुर की जहूराबाद सीट से विधायक और पूर्व मंत्री शादाब फातिमा को लेकर भी ऐसी ही अटकलें लगाई जा रही हैं. हालांकि, फातिमा ने कहा है कि वो नेताजी यानी मुलायम के आदेश का इंतजार कर रही हैं. फातिमा के मुताबिक मुलायम ने उनके टिकट को लेकर अखिलेश से बात करने को कहा है.
इन सब के अलावा अंसारी बंधु भी हैं जिन्हें अखिलेश के रिजेक्ट करते ही मायावती ने हाथों हाथ लिया. ये कौमी एकता दल ही रहा जिसने समाजवादी पार्टी के झगड़े की आग में घी का काम किया था.
अब अगर वास्तव में शिवपाल यादव इन सब के पक्ष में चुनाव प्रचार करने जाते हैं तो थोड़ा ही सही अखिलेश को नुकसान तो होगा ही. वैसे भी शिवपाल इस काम के लिए फ्री हैं क्योंकि समाजवादी पार्टी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में उनका नाम नहीं है.
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