Loksabha election results अब आने ही वाले हैं. लेकिन इससे पहले एग्जिट पोल ( Exit poll 2019 ) से जो नतीजे सामने आए हैं उनमें भाजपा की क्लीन स्वीप और एनडीए की सरकार बनती नजर आ रही है. रुझानों का यदि अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि नरेंद्र मोदी दोबारा देश के प्रधानमंत्री कि शपथ लेने वाले हैं. यूं तो ये पूरा चुनाव ही दिलचस्प था मगर इस चुनाव में सबसे मजेदार रवैया मुस्लिम मतदाताओं का रहा है. गोरक्षा के नाम पर हिंसा और तीन तलाक मामले को देखते हुए मुस्लिम समुदाय की वोटिंग ( Muslim voting in Loksabha elections 2019 ) को लेकर सबसे ज्यादा जिज्ञासा रही, और यह माना जा रहा था कि मुस्लिम मतदाता बीजेपी को बिलकुल वोट नहीं देंगे. लेकिन क्या वाकई ऐसा हुआ? आइए, इस India Today Axis my India Exit poll के आंकड़े से जानने की कोशिश करते हैं कि 17वीं लोकसभा के लिए मुस्लिम मतदाताओं ने किसका पक्ष लिया और किसका विरोध किया.
कांग्रेस से लेकर सपा बसपा तक एक ऐसे वक़्त में जब सभी ने मुस्लिम तुष्टिकरण को दरकिनार कर देश के मुसलमानों को साइड लाइन कर दिया हो, जिस हिसाब से मतों का बंटवारा हुआ है साफ पता चल रहा है मुस्लिमों ने वोट उन्हीं दलों को दिया है जिन्होंने किसी जमाने में अपने को मुस्लिम समुदाय का हिमायती दिखाया है.
कुछ और बात करने से पहले आपको बताते चलें कि देश भर में कुल मुस्लिम मतों में मुसलामानों के 10% मत भाजपा को गए. जबकि कांग्रेस को 51 प्रतिशत मुस्लिम मत और अन्य दलों को 39% मुस्लिम वोट मिले.
पोलिंग के लिहाज से मजेदार उत्तर प्रदेश और बिहार को देखना रहा. आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में 8 प्रतिशत मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया. जबकि 14 प्रतिशत वोट कांग्रेस सको मिले....
Loksabha election results अब आने ही वाले हैं. लेकिन इससे पहले एग्जिट पोल ( Exit poll 2019 ) से जो नतीजे सामने आए हैं उनमें भाजपा की क्लीन स्वीप और एनडीए की सरकार बनती नजर आ रही है. रुझानों का यदि अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि नरेंद्र मोदी दोबारा देश के प्रधानमंत्री कि शपथ लेने वाले हैं. यूं तो ये पूरा चुनाव ही दिलचस्प था मगर इस चुनाव में सबसे मजेदार रवैया मुस्लिम मतदाताओं का रहा है. गोरक्षा के नाम पर हिंसा और तीन तलाक मामले को देखते हुए मुस्लिम समुदाय की वोटिंग ( Muslim voting in Loksabha elections 2019 ) को लेकर सबसे ज्यादा जिज्ञासा रही, और यह माना जा रहा था कि मुस्लिम मतदाता बीजेपी को बिलकुल वोट नहीं देंगे. लेकिन क्या वाकई ऐसा हुआ? आइए, इस India Today Axis my India Exit poll के आंकड़े से जानने की कोशिश करते हैं कि 17वीं लोकसभा के लिए मुस्लिम मतदाताओं ने किसका पक्ष लिया और किसका विरोध किया.
कांग्रेस से लेकर सपा बसपा तक एक ऐसे वक़्त में जब सभी ने मुस्लिम तुष्टिकरण को दरकिनार कर देश के मुसलमानों को साइड लाइन कर दिया हो, जिस हिसाब से मतों का बंटवारा हुआ है साफ पता चल रहा है मुस्लिमों ने वोट उन्हीं दलों को दिया है जिन्होंने किसी जमाने में अपने को मुस्लिम समुदाय का हिमायती दिखाया है.
कुछ और बात करने से पहले आपको बताते चलें कि देश भर में कुल मुस्लिम मतों में मुसलामानों के 10% मत भाजपा को गए. जबकि कांग्रेस को 51 प्रतिशत मुस्लिम मत और अन्य दलों को 39% मुस्लिम वोट मिले.
पोलिंग के लिहाज से मजेदार उत्तर प्रदेश और बिहार को देखना रहा. आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में 8 प्रतिशत मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया. जबकि 14 प्रतिशत वोट कांग्रेस सको मिले. यहां सबसे दिलचस्प महागठबंधन को देखना रहा जिसे 76 प्रतिशत मुसलमानों ने अपना वोट दिया है. बात अगर बिहार की हो तो यहां 14 प्रतिशत मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया. जबकि 79 प्रतिशत मुस्लिम मत कांग्रेस के पाले में आए और 7 प्रतिशत मतों पर अन्य दलों का कब्ज़ा रहा.
महाराष्ट्र में भाजपा को 21 प्रतिशत मुसलमाओं ने वोट दिया जबकि कांग्रेस से पाले में 75 % और अन्य दलों के पाल्दे में 14 प्रतिशत मुस्लिम मत आए. क्या कर्नाटक क्या असम और बंगाल कमोबेश हर जगह स्थिति कुछ ऐसी ही थी.
सवाल हो सकता है कि आखिर मुस्लिम मतों का इतना कम प्रतिशत भाजपा के पाले में क्यों गया? तो जवाब ये है कि चाहे तीन तलाक रहा हो या फिर गाय के नाम पर की गई हत्याएं रहीं हो मुसलमानों का एक बहुत बड़ा वर्ग था जिसने ये मान लिया था कि भाजपा उसकी हमदर्द नहीं है और कहीं न कहीं इस बात का खामियाजा पार्टी को इस चुनाव में भुगतना भी पड़ा है.
इसके अलावा एक बात और है, जिसने लोगों को हैरत में डाला है. जहां कहीं भी मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया या तो वो प्रत्याशी को देखकर दिया या फिर पार्टी के प्रति अपनी वफादारी साबित करने के लिए दिया. इस बात को समझने के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से बेहतर कोई उदाहरण हो ही नहीं सकता.
लखनऊ लोकसभा सीट किसी जमाने में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी की सीट थी जिसपर बाद में लाल जी टंडन और फिर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने चुनाव लड़ा और जीता. लखनऊ लोकसभा सीट का यदि गहनता से अवलोकन किया जाये तो मिलता है यहां से भाजपा ने एक बार फिर राजनाथ सिंह को टिकट दिया. जबकि कांग्रेस की तरफ से आचार्य प्रमोद कृष्णन और सपा बसपा गठबंधन की तरफ से पूनम सिन्हा को लाया गया. सीट हर बार भाजपा ही जीतती है.
लखनऊ के सन्दर्भ में कहा जाता है कि अपनी छवि के चलते राजनाथ सिंह एक तरफ हैं जबकि पार्टी दूसरी तरफ है और शायद यही वो कारण था कि लखनऊ की आबादी का एक बड़ा वर्ग शिया समुदाय खुल कर राजनाथ के समर्थन में आया. लखनऊ में शिया समुदाय के बीच राजनाथ की पहुंच कैसी थी इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि यहां खुद शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने राजनाथ के हक में दुआ करवाई. माना यही जा रहा है कि ये सीट फिर इस बार भाजपा जीतेगी और इस जीत में शिया समुदाय की एक निर्णायक भूमिका रहेगी.
बहरहाल बात भाजपा को मिले कम मुस्लिम वोटों पर चल रही है. ऐसे में हमारे लिए इन बातों को भी जान लेना बहुत जरूरी है जिन्होंने भाजपा की राह में रोड़ा बनने का काम किया है. चाहे दादरी का अखलाक रहा हो या फिर पहलू खान हरियाणा के जुनैद से लेकर कई मामले ऐसे आए जिन्होंने मुस्लिम समुदाय के बीच रोष को जन्म दिया. इसके बाद तीन तलाक के रूप में जिस तरह भाजपा ने शरिया कानून में दखलंदाजी करने का काम किया उसने भी मुसलमानों की एक बड़ी संख्या को आहत करने का काम किया.
मुसलमानों के प्रति जैसा रुख भाजपा का रहा यदि उसपर गौर करें तो मिलता है कि भले ही भाजपा ने मुस्लिम महिलाओं की स्थिति सही करने का काम किया हो मगर बात जब पुरुषों की आई तो जो स्थिति उनकी पहले थी वही अब भी है. कांग्रेस और महागठबंधन को मुस्लिम समुदाय ने दिल खोल कर मत दिया है बात यदि कारण की हो तो वजह बस इतनी है कि अन्य दलों ने हमेशा ही अपने आपको मुसलमानों का हमदर्द साबित किया है.
इसके अलावा भाजपा को मुस्लिम मत इसलिए भी मिला क्योंकि कई सीटें ऐसी थी जहां एक साथ दो मुस्लिम उम्मीदवार आ गए. बात अगर सिर्फ उत्तर प्रदेश की हो तो सहारनपुर में जहां भाजपा कैंडिडेट राघव लखनपाल के सामने हाजी फजलुर्रहमान और इमरान मसूद थे तो वहीं मुरादाबाद सीट पर भाजपा के कुंवर सर्वेश कुमार के सामने कांग्रेस सकी तरफ से इमरान प्रतापगढ़ी और सपा की तरफ से एसटी हसन हैं.
इस चुनाव में एक दिलचस्प बात ये भी थी कि जितने मुस्लिम वोट भाजपा के अलावा अन्य दलों में गए उससे कहीं ज्यादा ब्राहमण और दलित वोट भाजपा के पाले में आए.
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