पांच राज्यों में विधान सभा के चुनावों की तैयारी शुरू हो गई है. शुरू हो गया है खेल तू डाल डाल- मैं पात पात. प्रमुख राजनैतिक दलों के मुखिया अब रोज उड़न खटोलों पर आसमान व जमीन पर मंडराते हुए दिखाई दें तो विस्मय करने की आवश्कयता नहीं है. जिसमें प्रधानमंत्री व उनके सिपे सलाह से लेकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मुलायम सिंह, मायावती, केजरीवाल आदि को देखने का मौका जनता को मिलेगा, इसे जनता का सौभाग्य कहें या लोकतंत्र का दुर्भाग्य इसे मैं जनता पर छोड़ता हूं. लेकिन क्या ये जनता के प्रतिनिधि जो रोज ईमानदारी का ढ़ोंग (मेरी कमीज तेरी कमीज से साफ) जनता को बताते हैं, जनता को यह भी बताने का काम करेंगे कि आखिर इनके पास लाखों लोगों को इकठ्ठा करने के लिए धन कहां से आता है? या फिर ये लोग अन्ना-लोहिया आंदोलनों की तरह खुद ही चले आते हैं.
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क्या राजनैतिक पार्टियां डोनेशन देने वालों के बारे में भी बताएंगी ? |
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लखनऊ में महा रैली की थी, जिसमें बीजेपी ने दावा किया कि 5 लाख लोगों ने भाग लिया. उस रैली में केवल गाड़ियों पर 16.25 करोड खर्च आया. इसके लिए बीजेपी ने 10 हजार बसें व 50 हजार मिनी वैन्स को रैली में लगाया था. यह खर्च केवल लोगों को रैली स्थल तक लाने का था. इसके अलावा टेंट, कुर्सियां, साउंड, और प्रशासनिक अमलाजमा अलग है. प्रधानमंत्री व उनके कैबिनेट सदस्यों को भी जहाज से लखनऊ पहुंचाया गया उस पर भी खर्च आया होगा. यह मात्र बीजेपी पर ही लागू नहीं होता बल्कि कांग्रेस, बसपा, सपा व आप पर भी लागू होता है.
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तो क्या ये ईमानदार पार्टियां चुनाव के बाद यह भी बताएंगी कि कितना धन उन्होंने रैलियों पर खर्च किया. जवाब होगा हमें जो भी डोनेशन मिला उसकी लिस्ट चुनाव आयोग को दे दी है, पर क्या बड़ी रैलियों का खर्चा, हेलीकॉप्टरों का खर्चा भी बताएंगी. आज के समय एक डबल इंजन छह सीट वाले हेलीकाप्टर का एक घंटे का खर्च लगभग दो लाख है. कहा तो यह भी जा रहा है कि विधान सभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए बीजेपी ने लगभग एक दर्जन हेलीकाप्टर किराये पर लिए हैं. समाजवादी पार्टी ने 6-8, कांग्रेस ने 4, बीजेपी ने भी लगभग कांग्रेस के ही बराबर हेलीकॉप्टर किराये पर ले लिए हैं.पार्टियों का एक सीधा साधा जवाब होता है, ये तो हमारे कार्यकर्ताओं ने दिया है. लेकिन क्या ये पार्टियां यह भी बताएंगी कि किस रैली में किस धन्नासेठ ने कितने दिए. देश को भी तो पता चले कौन हैं ये धन्नासेठ और ये देश को कितना टैक्स देते हैं.
चुनाव आयोग ने उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश व पंजाब के लिए प्रत्याशी की खर्च सीमा 28 लाख रुपये व गोवा-मणिपुर की लिए 20 लाख की तय की है, तो क्या विधान सभा का चुनाव इतने में ही लड़ा जाता है?
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चुनाव आयोग को चाहिए कि वह नेताओं द्वारा किये जा रहे खर्चे का पूरा विवरण मांगे, जो वह मांग भी रहा है. पर इसमें उसे आंशिक सफलता ही मिल पाती है. आखिर तंत्र नेताओं के सामने फेल क्यों हो जाता है. इसे लोकतंत्र की विजय कहें या विफलता, अगर यह विजय है तो बटरूपी भ्रष्टाचार का यह वृक्ष दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला जायेगा और अपनी छाया के आगोश में पूरे भारत को ले लेगा. देश को अगर आगे बढ़ना है तो देश की सभी पार्टियों को राजनीति से ऊपर उठकर इसका हल निकलना होगा. समाधान है? और वह है, भारत सरकार अपने खर्च पर देश के सारे चुनाव करे.
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