सिर पर साफा, गले में पुष्पों की माला, मन्द-मन्द मुस्कुराते, भगवा रंग से घिरे... स्वामिनारायण मन्दिर के परिसर में राहुल गांधी की ये तस्वीर संकेतों से भरी है. इन संकेतों के मायने और अहम हो जाते जब राहुल का ये अंदाज उनके पुराने स्टाइल से परे हो. मगर उस पर आने से पहले राहुल के नये अंदाज़ को डीकोड करते हैं.
पिछले दो दिन में राहुल चुनावी सभाओं के साथ-साथ प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर और स्वामीनारायण मंदिर की परिक्रमा कर चुके हैं. अब कांग्रेस नेता कहते हैं कि राहुल पहले भी हमेशा मंदिरों के दर्शन करते रहे हैं.
ज़रा आप ही बताइये तिलकधारी राहुल की कौन सी तस्वीर क़ैद है आपकी आँखों में? याद आया?
याद्दाश्त पर ज़्यादा ज़ोर डालेंगे तो शायद केदारनाथ की याद चली आयेगी. राहुल के उस दौरे में हम भी कवरेज पर निकले थे. चढ़ाई लंबी थी, कठिन और जटिल भी. उस पर मौसम की बेरुखी ने भोलेनाथ के दर्शन और दुर्लभ कर दिये थे. ये 2015 का अप्रैल के महीना का किस्सा है. राहुल लोक सभा की चुनावी हार के सदमे से उबर ही रहे थे. कांग्रेस की अंदरूनी कमेटी ने हार के पीछे कांग्रेस की हिन्दू विरोधी और प्रो-मुस्लिम छवि को बड़ा कारण बताया था. इस पृष्ठभूमि में राहुल ने केदारनाथ के दर्शन करने पैदल निकल पड़े थे. यात्रा के दौरान राहुल थोड़े camera-shy ज़रूर थे फिर भी पहले की तरह मीडिया की अनदेखी नहीं की. 20 कदम की दूरी से फिर मामला 10 कदम से कवरेज तक आ पहुंचा. नतीजा काली जैकेट, जीन्स में तिलकधारी राहुल की तस्वीर ने सुर्खियां बटोरी. वहीं से कांग्रेस ने अपने सॉफ्ट हिन्दू कार्ड खेलने की शुरआत की.
दो साल बाद उत्तर भारत में हिमायल की उचाईयों...
सिर पर साफा, गले में पुष्पों की माला, मन्द-मन्द मुस्कुराते, भगवा रंग से घिरे... स्वामिनारायण मन्दिर के परिसर में राहुल गांधी की ये तस्वीर संकेतों से भरी है. इन संकेतों के मायने और अहम हो जाते जब राहुल का ये अंदाज उनके पुराने स्टाइल से परे हो. मगर उस पर आने से पहले राहुल के नये अंदाज़ को डीकोड करते हैं.
पिछले दो दिन में राहुल चुनावी सभाओं के साथ-साथ प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर और स्वामीनारायण मंदिर की परिक्रमा कर चुके हैं. अब कांग्रेस नेता कहते हैं कि राहुल पहले भी हमेशा मंदिरों के दर्शन करते रहे हैं.
ज़रा आप ही बताइये तिलकधारी राहुल की कौन सी तस्वीर क़ैद है आपकी आँखों में? याद आया?
याद्दाश्त पर ज़्यादा ज़ोर डालेंगे तो शायद केदारनाथ की याद चली आयेगी. राहुल के उस दौरे में हम भी कवरेज पर निकले थे. चढ़ाई लंबी थी, कठिन और जटिल भी. उस पर मौसम की बेरुखी ने भोलेनाथ के दर्शन और दुर्लभ कर दिये थे. ये 2015 का अप्रैल के महीना का किस्सा है. राहुल लोक सभा की चुनावी हार के सदमे से उबर ही रहे थे. कांग्रेस की अंदरूनी कमेटी ने हार के पीछे कांग्रेस की हिन्दू विरोधी और प्रो-मुस्लिम छवि को बड़ा कारण बताया था. इस पृष्ठभूमि में राहुल ने केदारनाथ के दर्शन करने पैदल निकल पड़े थे. यात्रा के दौरान राहुल थोड़े camera-shy ज़रूर थे फिर भी पहले की तरह मीडिया की अनदेखी नहीं की. 20 कदम की दूरी से फिर मामला 10 कदम से कवरेज तक आ पहुंचा. नतीजा काली जैकेट, जीन्स में तिलकधारी राहुल की तस्वीर ने सुर्खियां बटोरी. वहीं से कांग्रेस ने अपने सॉफ्ट हिन्दू कार्ड खेलने की शुरआत की.
दो साल बाद उत्तर भारत में हिमायल की उचाईयों से पश्चिमी छोर तक आते-आते राहुल ने अक्षरधाम से अंबाजी तक, द्वारकाधीश से 900 जीनों की चामुंडा माता की चढ़ाई नापी. वो राहुल जो निजता के चलते मंदिरों में तस्वीरे खिंचाना तो दूर मीडिया को आस पास देखना पसंद नहीं करते वो राहुल अब संकेतों में खेल रहे हैं. उनका ये नया अंदाज उनके प्रतिद्वंदी और सेल्फ मार्केटिंग के महारथी मोदी से मेल खाता है.
सोमनाथ मंदिर हो या स्वामीनारायण मंदिर कांग्रेस ने खुद मीडिया कवरेज का बीड़ा उठाया और सुरक्षा के मद्देनज़र अनुमति भी ली. कांग्रेस अब भाजपा को उसी के खेल में मात देने की फिराक में हैं. ज़ाहिर है लड़ाई सोशल मीडिया, अख़बार और न्यूज़ चैनल में कवरेज की भी है. क्योंकि जनता में संदेश जाना भी ज़रूरी है वरना कैसे कोई जानेगा की कांग्रेस हिन्दू विरोधी नहीं है?
कांग्रेस की दिक्कत ये है कि भाजपा इस खेल की मंझी हुई खिलाड़ी है. तभी तो प्रोपगैंडा वारफेर में माहिर भाजपा के बड़बोले नेता राहुल के धर्म पर खड़े विवाद में झट से कूद पड़े. कांग्रेस जब तक प्रेसवार्ता बुलाती तब तक पानी सर से ऊपर निकल चुका था.
अब फिर आखिरी सीन पर चलते हैं. बोटाड के स्वामीनारायण मंदिर में कांग्रेस की शूटिंग प्लान के हिसाब से सटीक रही. आखिर क्यों न हो ये पाटीदार समुदाय बेहद प्रभावशाली है और भाजपा का पारंपरिक समर्थक रहा है. सो कांग्रेस ने आस्था के साथ-साथ पब्लिसिटी के लिए पूरा समय निकाला है. पहले मुख्य मंदिर के द्वार पर स्वागत, फिर बन्द कमरे में राहुल और स्वामी जी, फिर नीम के पेड़ पर पूजा अर्चना. इधर घूमो उधर देखो और फिर वो लम्हा जब राहुल थे और भगवान... कुछ क्षण के लिए भगवान पर सारा ध्यान और फिर कैमरे पर... भगवान तो मुस्करा रहे ही थे पर कांग्रेस के युवराज भी भगवान के दर्शन से गद-गद नज़र आ रहे थे.
संत कबीर होते तो आजकल के नेताओं पर दोहे जरूर लिखते... चुनावी मौसम है तो जो नेता सुख में है वह भी भगवान का सुमिरन कर रहा है और जो दुख याने की सत्ता से बाहर है वह भी उनके सुमिरन में लगा हुआ है. ऐसे में असल धर्म संकट तो भगवान के सामने है कि आखिर आमने-सामने खड़े दो नेताओं के दंडवत पर किसको तथास्तु कहें... हे प्रभू! अगर जनता भगवान के इशारे समझ जाय तो शायद नेता ना तो कैमरों के लिए मंदिर के चक्कर काटेंगे और ना खड़ा होगा धर्म संकट!
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