कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव (Congress President Election) का नतीजा क्या होगा, सबको मालूम है. सबको लगता है, जैसे मैच पूरी तरह फिक्स्ड हो. काफी हद तक शशि थरूर को भी मालूम होगा ही, उनकी बातों से तो कई बार ऐसा ही लगा है.
शशि थरूर और मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) के बीच ही कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में मुकाबला होना है - और कांग्रेस अध्यक्ष के लिए गांधी परिवार की पहली पसंद रहे, अशोक गहलोत का कहना है कि चुनाव का नतीजा एकतरफा होगा.
शशि थरूर और मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों ही अपने अपने तरीके से अपना कैंपेन चला रहे हैं. राज्यों में जाकर कांग्रेस डेलिगेट्स से मिल रहे हैं और अपने लिए वोट और सपोर्ट मांग रहे हैं. दोनों के कैंपेन में एक फर्क भी नजर आ रहा है, शशि थरूर को ये सब अपने दम पर करना पड़ रहा है. कैंपेन के दौरान उनके साथ उनके निजी समर्थक ही होते हैं, जबकि मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कांग्रेस पार्टी का सपोर्ट कदम कदम पर नजर आता है.
जगह जगह पहुंच कर वो बता भी रहे हैं कि कैसे इंदिरा गांधी ने उनको संगठन में काम करने का मौका दिया और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का दौर आते आते वो लोक सभा के बाद राज्य सभा में भी विपक्ष के नेता बन गये. मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के नामांकन से पहले विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा दे दिया - क्योंकि राहुल गांधी ने पहले ही बोल दिया था कि एक बार जो कमिटमेंट कर दिया है, उस पर हमेशा कायम रहेंगे.
मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कांग्रेस के पदाधिकारी नजर आते हैं. कई जगह प्रेस कांफ्रेंस में उनके अगल बगल सीनियर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी और गौरव वल्लभ को देखा जा सकता है. कांग्रेस नेता उनके सपोर्ट में बयान भी दे रहे हैं - जैसे, मल्लिकार्जुन खड़गे के भोपाल दौरे से पहले ही सीनियर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने उनके स्वागत में...
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव (Congress President Election) का नतीजा क्या होगा, सबको मालूम है. सबको लगता है, जैसे मैच पूरी तरह फिक्स्ड हो. काफी हद तक शशि थरूर को भी मालूम होगा ही, उनकी बातों से तो कई बार ऐसा ही लगा है.
शशि थरूर और मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) के बीच ही कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में मुकाबला होना है - और कांग्रेस अध्यक्ष के लिए गांधी परिवार की पहली पसंद रहे, अशोक गहलोत का कहना है कि चुनाव का नतीजा एकतरफा होगा.
शशि थरूर और मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों ही अपने अपने तरीके से अपना कैंपेन चला रहे हैं. राज्यों में जाकर कांग्रेस डेलिगेट्स से मिल रहे हैं और अपने लिए वोट और सपोर्ट मांग रहे हैं. दोनों के कैंपेन में एक फर्क भी नजर आ रहा है, शशि थरूर को ये सब अपने दम पर करना पड़ रहा है. कैंपेन के दौरान उनके साथ उनके निजी समर्थक ही होते हैं, जबकि मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कांग्रेस पार्टी का सपोर्ट कदम कदम पर नजर आता है.
जगह जगह पहुंच कर वो बता भी रहे हैं कि कैसे इंदिरा गांधी ने उनको संगठन में काम करने का मौका दिया और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का दौर आते आते वो लोक सभा के बाद राज्य सभा में भी विपक्ष के नेता बन गये. मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के नामांकन से पहले विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा दे दिया - क्योंकि राहुल गांधी ने पहले ही बोल दिया था कि एक बार जो कमिटमेंट कर दिया है, उस पर हमेशा कायम रहेंगे.
मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कांग्रेस के पदाधिकारी नजर आते हैं. कई जगह प्रेस कांफ्रेंस में उनके अगल बगल सीनियर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी और गौरव वल्लभ को देखा जा सकता है. कांग्रेस नेता उनके सपोर्ट में बयान भी दे रहे हैं - जैसे, मल्लिकार्जुन खड़गे के भोपाल दौरे से पहले ही सीनियर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने उनके स्वागत में ट्वीट किया.
लेकिन भोपाल पहुंचे मल्लिकार्जुन खड़गे ने बातों बातों में एक ऐसी कहावत दोहरायी है, जिसके कई मतलब निकल रहे हैं. उनके कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने के बाद क्या हालात होंगे और प्रधानमंत्री पद को लेकर क्या स्ट्रैटेजी होगी, ऐसे सवाल मल्लिकार्जुन खड़गे से बार बार पूछे जाते रहे हैं, लेकिन बकरीद और मोहर्रम को लेकर भोपाल में जो कहावत सुनायी है वैसी टिप्पणी पहली बार सुनने को मिली है.
बीजेपी की तरफ से मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान को एंटी-मुस्लिम बताया गया है. बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने ट्विटर पर लिखा है, 'ये मुसलमानों का अपमान करने वाला है.'
मुद्दे की बात ये है कि बीजेपी कि तरफ से कांग्रेस के लिए ये दुर्लभ टिप्पणी है. कांग्रेस के बारे में तो बीजेपी नेताओं और प्रवक्ताओं को एंटी-हिंदू बताते देखा और सुना जाता रहा है. बीजेपी नेतृत्व तो कांग्रेस पर राम मंदिर निर्माण में बाधा तक खड़े करने का इल्जाम लगा चुका है. हो सकता है, आगे से ये इल्जाम नये तरीके से सुनने को मिले क्योंकि कपिल सिब्बल तो अब कांग्रेस में रहे नहीं.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस की दावेदारी और चेहरे को लेकर जो कहावत सुनायी है, वो यूं ही मुंह से निकल गयी है या फिर सोच समझ कर बोला है? मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि ये कहावत वो अक्सर सुनाते हैं. सुनाते होंगे, लेकिन क्या ऐसे ही सुना देते हैं या फिर उसका मतलब वही होता है, जो राजनीतिक नजरिये से देखे बगैर मौटे तौर पर भी समझ में आता है?
मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऐसी ही कहावत क्यों चुनी जिसके राजनीतिक मायने अलग से निकाले जायें - और जो मुस्लिम समुदाय कांग्रेस को अपनी तरफ मानता आ रहा है - वो भी बकरीद और मोहर्रम का ऐसी कहावत के रूप में जिक्र सुन कर कांग्रेस के बारे में नये सिरे से सोचने लगे.
क्या मल्लिकार्जुन खड़गे को भरोसा नहीं है?
मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे हैं और वहां EVM जैसा तो कोई चक्कर भी नहीं है, ताकि चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठाने का मौका मिल सके. वैसे भी ऐसा सवाल तो शशि थरूर की तरफ से ही उठाया जा सकता है.
ये तो शशि थरूर बार बार दोहरा रहे हैं कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने उनको आश्वस्त किया है कि चुनाव फ्री-एंड-फेयर ही होगा - और ये भी कहने से नहीं चूकते कि गांधी परिवार पर उनको पक्का यकीन है. पहले शशि थरूर ये जरूर बता चुके हैं कि सोनिया गांधी ने उनसे कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए उनकी तरफ से या पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक उम्मीदवार नहीं होगा. ये रिएक्शन शशि थरूर ने मल्लिकार्जुन खड़गे के नामांकन के दौरान कांग्रेस के सीनियर नेताओं मौजूदगी को लेकर दिया था.
शशि थरूर के नजरिये से देखें तो वास्तव में ये एकतरफा नतीजे की तरफ ही इशारा कर रहा है, फिर भी सवाल है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने 2024 में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के चेहरे को लेकर पूछे जाने पर जो जवाब दिया, वो यूं ही मुंह से निकल गया या जानबूझ कर ही कहा है - और उस पर कायम हैं?
बकरीद और मोहर्रम का जिक्र आया कैसे: भोपाल में मल्लिकार्जुन खड़गे से सवाल बिलकुल उसी लहजे में पूछा गया जो कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव को लेकर आम धारणा बनी हुई है.
सवाल रहा - वैसे तो आपका अध्यक्ष चुना जाना तय है, मगर आप अध्यक्ष बन जाते हैं तो प्रधानमंत्री का चेहरा कौन होगा...आप या राहुल गांधी?
पहले तो मल्लिकार्जुन खड़गे ने टालने की कोशिश की. कहने लगे कि संगठन के चुनाव के लिए वहां पहुंचे हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे मामला टालने की कोशिश की, 'पहले तो मेरा चुनाव खत्म होने दो... अध्यक्ष बनने दो... उसके बाद देखेंगे.
और तभी एक कहावत भी सुना डाली, ये बताते हुए कि वो बहुत जगह उसका जिक्र कर चुके हैं, "बकरा ईद में बचेगा, तो मोहर्रम में नाचेंगे!"
आखिर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में जब सब कुछ पहले से तय नजर आ रहा है, फिर मल्लिकार्जुन खड़गे को डर क्यों लग रहा है? क्या मल्लिकार्जुन खड़गे को कोई संदेह है? क्या वो शशि थरूर को कम करके नहीं आंक पा रहे हैं? क्या शशि थरूर का चुनाव की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठाने से मल्लिकार्जुन खड़गे परेशान हैं?
शशि थरूर का ताजा बयान भी मल्लिकार्जुन खड़गे को परेशान करने वाला ही है. क्योंकि हर जगह कांग्रेस नेताओं की तरफ से मल्लिकार्जुन खड़गे को हाथों हाथ लिये जाने से शशि थरूर थोड़े परेशान तो हैं ही. कह भी रहे हैं, 'कई जगह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और बड़े नेता खड़गे जी को बुला रहे हैं, उनका स्वागत कर रहे हैं और लोगों को उनसे मिलने के लिए निर्देश दिये जा रहे हैं... ये एक ही उम्मीदवार के लिए था, मेरे लिया नहीं था... मैं कई बार पीसीसी गया हूं लेकिन वहां अध्यक्ष नहीं था... मैं खुशी से साधारण कार्यकर्ताओं से मिला - मुझे बहुत फर्क नहीं पड़ता, लेकिन क्या ये व्यवहार में फर्क नहीं है?'
मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऐसा बयान क्यों दिया?
मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान में कम से कम दो ऐसी चीजें हैं जिसका मतलब कांग्रेस के खिलाफ जाता है. पहली बात तो यही कि क्या मल्लिकार्जुन खड़गे की कहावत का अर्थ सिर्फ उनके मामले में और कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव तक ही समझा जाये या फिर राहुल गांधी भी उसके दायरे में आ जाते हैं? और दूसरी मुसीबत है कि ये मुद्दा सिर्फ मुस्लिम समुदाय से जुड़ा ही नहीं है, बल्कि पसंद नहीं आने वाला है.
गलती से मिस्टेक हो गया: क्या मल्लिकार्जुन खड़गे ने बकरीद और मोहर्रम वाली कहावत यूं ही सुना दी है, लेकिन ऐसा तो है नहीं कि उनकी हिंदी कोई मणिशंकर अय्यर की तरह है. ताकि बाद में भूल सुधार करते हुए माफी मांग सकें. मल्लिकार्जुन खड़गे के मुंह से मणिशंकर अय्यर वाला बहाना तो चलने वाला है नहीं.
तो क्या कुछ भी बोलना था, इसलिए जो जबान पर आया बस बोल दिया? मैंने कई लोगों से बात कर ये चीज समझने की कोशिश की - और उनकी ऐसी ही राय रही. खास बात ये रही कि ये वे लोग रहे जिनकी राजनीति की छोटी से छोटी चीजों में पूरी दिलचस्पी रहती है.
क्या कांग्रेस अब चीजों के प्रति गंभीर नहीं रही: क्या मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी राहुल गांधी वाली गलती दोहरा दी है - जैसे संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गले मिलने के बाद आंख भी मार दिये थे?
मतलब, कांग्रेस 2014 से अब तक जिस समस्या से जूझ रही है, उससे निकलने को बारे में सोचना तक बंद कर दिया है. जो भी प्रयास चल रहे हैं, वे मनोरंजन के साधन जैसे क्यों लगते हैं? क्या सिर्फ दूसरों को दिखाने के लिए कि हम भी कुछ कर रहे हैं?
कांग्रेस के सामने खड़ी चुनौतियों को लेकर क्या गंभीरता से कुछ भी नहीं सोचा जाता? या फिर उससे उबरने की कोई गंभीर कोशिश भी नहीं होती? और क्या ये सब यूं ही चलते रहना है?
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