बिहार में नई सरकार के मंत्रिमंडल का शनिवार को विस्तार हो गया. नीतीश कुमार की नई कैबिनेट में 27 मंत्रियों ने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली है. जिसमें एनडीए के 13 और जदयू के 14 मंत्री शामिल हैं. चार वर्षों के बाद एक बार फिर से नीतीश कुमार एनडीए के साथ आए हैं. लेकिन इस बार साथ आने के साथ-साथ कुछ चुनौतियां भी आने लगी हैं, इनमें से कुछ हैं -
1. नीतीश के सामने पहली चुनौती है अपने नेताओं को एकजुट रखने की, क्योंकि ऐसी खबरें आ रही हैं कि पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद यादव और अली अनवर इस फैसले से नाराज हैं और इससे पार्टी में अविश्वास बढ़ सकता है.
2. दूसरी है एनडीए के सहयोगी दल 'हम' पार्टी के नेता जीतन राम मांझी को अपने साथ रखने की, जो मंत्रिमंडल में उनकी पार्टी को जगह न मिलने से नाराज चल रहे हैं. वो अपने किसी उम्मीदवार को मंत्रिमंडल में लाना चाहते थे.
3. आखिर में है रालोसपा को भी अपने साथ रखने की, जो मांझी की तरह मंत्रिमंडल में जगह ना दिए जाने से नाराज हैं. उनकी मांग थी की पार्टी के विधायक सुधांशु शेखर को मंत्री बनाया जाए. जिसको नीतीश ने नहीं माना.
सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार पहले की तरह ही आसानी से सरकार चलते रहेंगे, तो जबाव हां में होगा क्योंकि उनके सामने फिलहाल कोई बड़ी मुसीबत नहीं दिखती है. और केंद्र में एनडीए की सरकार होने से उम्मीद है कि वो बिहार के लिए काफी कुछ कर सकेंगे, जिससे कि उनकी छवि पहले जैसी बानी रहे.
कुछ भी हो, लेकिन इस बार उनका एनडीए के साथ आना कुछ मजबूरी लगता है. क्योंकि तेजस्वी के इस्तीफा ना देने की वजह से उन्होंने महागठबंधन से रिश्ता तोड़ दिया था. शायद इसी मजबूरी का असर मंत्रिमंडल में शामिल बीजेपी के...
बिहार में नई सरकार के मंत्रिमंडल का शनिवार को विस्तार हो गया. नीतीश कुमार की नई कैबिनेट में 27 मंत्रियों ने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली है. जिसमें एनडीए के 13 और जदयू के 14 मंत्री शामिल हैं. चार वर्षों के बाद एक बार फिर से नीतीश कुमार एनडीए के साथ आए हैं. लेकिन इस बार साथ आने के साथ-साथ कुछ चुनौतियां भी आने लगी हैं, इनमें से कुछ हैं -
1. नीतीश के सामने पहली चुनौती है अपने नेताओं को एकजुट रखने की, क्योंकि ऐसी खबरें आ रही हैं कि पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद यादव और अली अनवर इस फैसले से नाराज हैं और इससे पार्टी में अविश्वास बढ़ सकता है.
2. दूसरी है एनडीए के सहयोगी दल 'हम' पार्टी के नेता जीतन राम मांझी को अपने साथ रखने की, जो मंत्रिमंडल में उनकी पार्टी को जगह न मिलने से नाराज चल रहे हैं. वो अपने किसी उम्मीदवार को मंत्रिमंडल में लाना चाहते थे.
3. आखिर में है रालोसपा को भी अपने साथ रखने की, जो मांझी की तरह मंत्रिमंडल में जगह ना दिए जाने से नाराज हैं. उनकी मांग थी की पार्टी के विधायक सुधांशु शेखर को मंत्री बनाया जाए. जिसको नीतीश ने नहीं माना.
सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार पहले की तरह ही आसानी से सरकार चलते रहेंगे, तो जबाव हां में होगा क्योंकि उनके सामने फिलहाल कोई बड़ी मुसीबत नहीं दिखती है. और केंद्र में एनडीए की सरकार होने से उम्मीद है कि वो बिहार के लिए काफी कुछ कर सकेंगे, जिससे कि उनकी छवि पहले जैसी बानी रहे.
कुछ भी हो, लेकिन इस बार उनका एनडीए के साथ आना कुछ मजबूरी लगता है. क्योंकि तेजस्वी के इस्तीफा ना देने की वजह से उन्होंने महागठबंधन से रिश्ता तोड़ दिया था. शायद इसी मजबूरी का असर मंत्रिमंडल में शामिल बीजेपी के मंत्रियों की संख्या में देखने को मिलता है जो कि पहले की तुलना में अधिक है. वो भी तब जबकि विधानसभा में बीजेपी का संख्या बल पहले की तुलना में कम है. इससे इतना तो साफ है कि इस बार बीजेपी मोल भाव करने में सफल रही है. केवल मंत्रियों की संख्या ही नहीं बल्कि बीजेपी अपने पाले में कुछ अहम् मंत्रालय भी करने में सफल रही है.
यहां आपको बता दें कि पिछली बार 2010 में जब बीजेपी कि नीतीश के साथ मेलजोल कि सरकार थी तब बीजेपी के 11 मंत्री थे और विधायकों कि संख्या 91 थी. जबकि इस बार बीजेपी विधायकों कि संख्या महज 53 है. 2005 में अपने पहले गठबंधन के सरकार में बीजेपी के 7 मंत्री थे और विधायकों कि संख्या 55 थी.
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