नये कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए नोटिफिकेशन जारी हो गया है - और इसके साथ ही ये भी पक्का हो गया है कि अब कांग्रेस को एक स्थायी अध्यक्ष जरूर मिलेगा. वो काम करता हुआ भी नजर आएगा या नहीं, अलग बात है. वो सिर्फ रबर स्टांप ही बना रहेगा, ये भी अलग बात है - और राहुल गांधी के लिए फायदेमंद होगा या नहीं, भला कौन कह सकता है.
अगर नये कांग्रेस अध्यक्ष के पास कोई नया आइडिया हो, तो बहुत कुछ मुमकिन भी है. शर्त ये है कि नये कांग्रेस अध्यक्ष के आइडिया और सलाहियत अहमियत भी बख्शी जाय. अगर नया कांग्रेस अध्यक्ष भी पुराने सलाहकारों और राहुल गांधी के फरमानों तले काम करने को मजबूर हुआ तो, बची खुची हालत और भी बदतर हो सकती है.
लेकिन राजनीतिक विरोधियों के हमले के लिए नया टारगेट आगे कर अगर राहुल गांधी वास्तव में कुछ क्रिएटिव करना चाहें, तो फायदा ही फायदा है. और कुछ नहीं तो नया कांग्रेस अध्यक्ष कम से कम तोहमतें तो आगे बढ़ कर अपने मत्थे मढ़ ही लेगा - ये भी कोई कम है क्या?
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अपनी तरफ से नये अध्यक्ष के लिए संदेश भी जारी कर दिया है - और ध्यान देने वाली बात ये भी है कि कुछ नये उम्मीदवारों के भी नाम चर्चा में शामिल हो गये हैं. मतलब, मुकाबला सिर्फ अशोक गहलोत और शशि थरूर के बीच ही हो, ऐसा जरूरी नहीं है.
कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों के रूप में जिन दो नये नामों की चर्चा शुरू हो गयी है, वे हैं - दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी. दिग्विजय सिंह के नाम की चर्चा उनकी गुगली के बाद शुरू हुई लगती है - आप मेरा नाम खारिज करके क्यों चल रहे हैं? ये पूछे जाने पर कि क्या वो भी कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने जा रहे हैं, दिग्विजय सिंह कहते हैं, लोगों को 30 सितंबर तक इंतजार करना चाहिये. दरअसल, 30 सितंबर नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख है.
नामांकन...
नये कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए नोटिफिकेशन जारी हो गया है - और इसके साथ ही ये भी पक्का हो गया है कि अब कांग्रेस को एक स्थायी अध्यक्ष जरूर मिलेगा. वो काम करता हुआ भी नजर आएगा या नहीं, अलग बात है. वो सिर्फ रबर स्टांप ही बना रहेगा, ये भी अलग बात है - और राहुल गांधी के लिए फायदेमंद होगा या नहीं, भला कौन कह सकता है.
अगर नये कांग्रेस अध्यक्ष के पास कोई नया आइडिया हो, तो बहुत कुछ मुमकिन भी है. शर्त ये है कि नये कांग्रेस अध्यक्ष के आइडिया और सलाहियत अहमियत भी बख्शी जाय. अगर नया कांग्रेस अध्यक्ष भी पुराने सलाहकारों और राहुल गांधी के फरमानों तले काम करने को मजबूर हुआ तो, बची खुची हालत और भी बदतर हो सकती है.
लेकिन राजनीतिक विरोधियों के हमले के लिए नया टारगेट आगे कर अगर राहुल गांधी वास्तव में कुछ क्रिएटिव करना चाहें, तो फायदा ही फायदा है. और कुछ नहीं तो नया कांग्रेस अध्यक्ष कम से कम तोहमतें तो आगे बढ़ कर अपने मत्थे मढ़ ही लेगा - ये भी कोई कम है क्या?
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अपनी तरफ से नये अध्यक्ष के लिए संदेश भी जारी कर दिया है - और ध्यान देने वाली बात ये भी है कि कुछ नये उम्मीदवारों के भी नाम चर्चा में शामिल हो गये हैं. मतलब, मुकाबला सिर्फ अशोक गहलोत और शशि थरूर के बीच ही हो, ऐसा जरूरी नहीं है.
कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों के रूप में जिन दो नये नामों की चर्चा शुरू हो गयी है, वे हैं - दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी. दिग्विजय सिंह के नाम की चर्चा उनकी गुगली के बाद शुरू हुई लगती है - आप मेरा नाम खारिज करके क्यों चल रहे हैं? ये पूछे जाने पर कि क्या वो भी कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने जा रहे हैं, दिग्विजय सिंह कहते हैं, लोगों को 30 सितंबर तक इंतजार करना चाहिये. दरअसल, 30 सितंबर नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख है.
नामांकन से लेकर नतीजे आने तक चुनाव की प्रक्रिया अपनी जगह है - और दिग्विजय सिंह ने जो आखिरी बात कही है वो लाख टके की है, अगर अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं भी हुआ तो भी नेहरू-गांधी परिवार का रोल वही होगा जो आज है.
...और भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) की पूरी कवायद राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के मुकाबले खड़ा करने की है. राहुल गांधी का भारत जोड़ो यात्रा के नेतृत्व से इनकार करना आखिर क्या कहलाता है?
राहुल गांधी का संदेश साफ है
राहुल गांधी को धीरे धीरे भारत जोड़ो यात्रा में आनंद आने लगा है. अब तक यात्रा में राहुल गांधी का बने रहना इस बात का सबसे बड़ा सबूत है. वरना, ट्रैक रिकॉर्ड तो यही रहा है कि बड़े से बड़ा कार्यक्रम बीच में छोड़ कर ही वो भाग जाते रहे हैं. कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि चुनाव कैंपेन के बीच अपनी रैली छोड़ कर भी विदेश दौरे पर चले जाते हैं. यहां तक कि जब प्रशांत किशोर प्रजेंटेशन दे रहे थे तो भी वो बीच में जाकर अपना काम कर आये थे. जाने से पहले वो ये भी कह चुके थे कि प्रशांत किशोर नहीं मानने वाले, हुआ भी वैसा ही.
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी लगातार लोगों के बीच बने हुए हैं. जगह जगह उनके साथ समय बिता रहे हैं. बातचीत कर रहे हैं. हाथ मिला रहे हैं. गले मिल रहे हैं. कहीं आश्वस्त कर रहे हैं तो कहीं हौसलाअफजाई भी कर रहे हैं - और बीच बीच में मौका निकाल कर कट्टर राजनीतिक विरोधी बीजेपी पर अपनी भड़ास भी निकाल लेते हैं.
कश्मीर से कन्याकुमारी के रास्ते में जब भी मौका मिल रहा है, राहुल गांधी मीडिया से भी बात कर रहे हैं - और हर किसी को अपने मन की बात भी बताते चल रहे हैं. राहुल गांधी अपनी बात भी कह रहे हैं, कांग्रेस नेताओं को भी संदेश दे रहे हैं और कांग्रेस समर्थक जनता को भी.
अशोक गहलोत के लिए संदेश: अशोक गहलोत अव्वल तो अब भी राहुल गांधी को ही कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए मनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन असल बात ये है कि वो राहुल गांधी से अपनी बात मनवाना चाहते हैं. अशोक गहलोत चाहते हैं कि भले ही वो कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ें और कुर्सी पर बैठ भी जायें, लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी वो ही काबिज रहें.
अशोक गहलोत को वैसे तो दिग्विजय सिंह ने ही साफ कर दिया था कि जैसा वो चाहते हैं, वो बाजा नहीं बजने वाला है - लेकिन ऐसी बातों की अशोक गहलोत परवाह करते कहां हैं. उनके लिये राजस्थान की कुर्सी अपने पास बने रहने से भी जरूरी ये है कि चाहे जो हो जाये सचिन पायलट तो किसी भी सूरत में राजस्थान के मुख्यमंत्री नहीं बनने चाहिये. बहरहाल, अब तो राहुल गांधी की तरफ से भी तस्वीर पूरी तरह साफ कर दी गयी है, देखते हैं अशोक गहलोत अब कौन पैंतरा अपनाते हैं.
केरल में मीडिया से बातचीत में राहुल गांधी ने 'एक व्यक्ति, एक पद' को लेकर साफ कर दिया कि ये नियम हर किसी पर लागू होगा, "हमने उदयपुर में एक कमिटमेंट की है... मुझे उम्मीद है कि इसे बनाए रखा जाएगा."
अपनी बात मनवाने के लिए अशोक गहलोत ने पहले सोनिया गांधी से मुलाकात की थी, उसके बाद वो राहुल गांधी से मिलने कोच्चि निकल गये, लेकिन राहुल गांधी ने सलमान खान वाली स्टाइल में अशोक गहलोत को समझा दिया है कि वो क्या कमिटमेंट करने के बाद तो वो अपनी भी नहीं सुनने वाले हैं.
नये कांग्रेस अध्यक्ष के लिए संदेश: 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों से लेकर 2019 के आम चुनाव तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे, राहुल गांधी ने नये कांग्रेस अध्यक्ष के लिए भी अपना संदेश जारी कर दिया है - राहुल गांधी के संदेश से समझा जा सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद उनके लिए क्या मायने रखता है?
राहुल गांधी का कहना है कि कांग्रेस का अध्यक्ष पद एक वैचारिक पद है. एक ऐसा पद है जो भारत का दृष्टिकोण सामने लाता है. और लगे हाथ ये भी जता दिया कि अध्यक्ष पद को लेकर उनकी स्थिति पहले से ही स्पष्ट है.
एक बात तो माननी पड़ेगी. गांधी परिवार से अलग के कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर राहुल गांधी ने जो बात कही थी, उस पर अभी तक कायम हैं. ये राहुल गांधी की ही जिद है कि सोनिया गांधी को भी अशोक गहलोत से कहना पड़ा है कि वो किसी का पक्ष नहीं लेंगी. मीडिया में तो ऐसी ही खबर आयी है. सोनिया गांधी ने शशि थरूर को भी वैसे ही चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी है, जैसे वो अशोक गहलोत को आगे से कांग्रेस अध्यक्ष का कामकाज संभालने को कहा था.
राहुल गांधी से ये भी पूछा गया कि जो भी अध्यक्ष पद की कुर्सी संभालेगा उसे वो क्या संदेश देना चाहेंगे?
राहुल गांधी का नये कांग्रेस अध्यक्ष के लिए संदेश है, 'आप एक एतिहासिक पोजीशन लेने जा रहे हैं... जो भारत के बारे में विशेष दृष्टिकोण की व्याख्या करता है... कांग्रेस अध्यक्ष एक वैचारिक पद है... आप विचारों के एक समूह, एक विश्वास प्रणाली और भारत की दृष्टि का प्रतिनिधित्व करेंगे."
देश में जो कांग्रेस समर्थक हैं, उनके लिए: भारत जोड़ो यात्रा को लेकर राहुल गांधी ने पहले भी अपना पक्ष रखा था और पूछे जाने पर वो बार बार दोहरा भी रहे हैं. यात्रा में अपनी हिस्सेदारी को लेकर राहुल गांधी के बयान को राजनीतिक नजरिये से भी देखा जा सकता है, और उनके औपचारिक स्टैंड के तौर पर भी.
भारत जोड़ो यात्रा को लेकर राहुल गांधी ने फिर कहा है, 'ये यात्रा मेरी नहीं, लोगों की है... मैं सिर्फ इस यात्रा का हिस्सा बना हूं.'
ये बात राहुल गांधी शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि वो भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं, बल्कि वो यात्रा में सिर्फ एक पदयात्री के तौर पर हिस्सा ले रहे हैं. यात्रा में राहुल गांधी भारत यात्री कैटेगरी में हिस्सा ले रहे हैं. भारत यात्री यात्रा के वे सदस्य हैं जो कन्याकुमारी से कश्मीर तक पूरी यात्रा में बने रहेंगे.
वैसे बीच बीच में राहुल गांधी यात्रा से निकल कर जरूर काम निबटाते भी रहेंगे. जैसे अभी सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली पहुंच रहे हैं, ठीक वैसे ही वो यात्रा के दौरान होने वाले राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए कांग्रेस का प्रचार भी कर सकते हैं.
अध्यक्ष पद ठुकराने का संदेश क्या है
अब तो करीब करीब पक्का हो चुका है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनने जा रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए नामांकन 24 सितंबर से 30 सितंबर के बीच होगा - और कांग्रेस की तरफ से ये साफ कर दिया गया है कि उस दौरान राहुल गांधी यात्रा में ही रहेंगे. लिहाजा नामांकन भरने का सवाल भी पैदा नहीं होता.
कांग्रेस की तरफ से ये भी सफाई दी गयी है कि राहुल गांधी दिल्ली आकर भी कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया से कोई वास्ता नहीं रखेंगे. और सोनिया गांधी को लेकर भी वैसा ही रुख अख्तियार करने की बात प्रचारित की जा रही है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद ठुकरा कर राहुल गांधी कोई खास संदेश भी देना चाहते हैं क्या? और ये खास संदेश किसके लिए हो सकता है?
देश मोदी के विकल्प के रूप में देखे: ऐसा लगता है राहुल गांधी के लिए कांग्रेस के रणनीतिकारों ने स्ट्रैटेजी में कुछ बदलाव किया है. अब तक राहुल गांधी सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की खामियां ही गिनाते आ रहे थे, लेकिन वो महत्वपूर्ण बिंदु पीछे छूट जा रहा था जो मील का पत्थर साबित हो सकता है.
'सूट बूट की सरकार' से लेकर 'चौकीदार चोर है' तक राहुल गांधी का जोर इसी बात पर रहा कि संघ और बीजेपी के साथ मोदी सरकार भी खामियों से भरी पड़ी है, लेकिन वो लोगों को ये नहीं समझा पा रहे थे कि कांग्रेस भी बीजेपी का विकल्प हो सकती है. मतलब ये समझा जाये कि राहुल गांधी भी नरेंद्र मोदी के विकल्प हो सकते हैं.
देर से ही सही, लेकिन लगता है अब कांग्रेस के रणनीतिकारों की ये बात भी राहुल गांधी को समझ में आने लगी है कि लोग मौजूदा सरकार की खामियों पर तो ध्यान देने से रहे. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता तले लोगों को महंगाई जैसे मुद्दे तक की परवाह नहीं हो रही है. लोग ये मान कर चल रहे हैं कि चाहे ये सब मुश्किलें क्यों न हों, लेकिन देश सुरक्षित हाथों में है - और बहुसंख्यक आबादी को भी लगता है कि मोदी है तो हिंदुत्व सुरक्षित है.
ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा के जरिये लोगों को ये मैसेज देने की कोशिश हो रही है कि राहुल गांधी, मोदी के प्रतियोगी नहीं बल्कि विकल्प हैं - ये बात अलग है कि ये संदेश कहां तक पहुंच पाता है. नतीजे भी वैसे ही देखने को मिलेंगे, ये तय है.
ताकि विपक्ष भी भरोसा कर सके: राहुल गांधी चाहते हैं कि विपक्ष भी उन पर भरोसा करे कि जो शख्स कांग्रेस अध्यक्ष का पद ठुकरा सकता है, उसे प्रधानमंत्री बनने की भी जिद नहीं होगी - ऐसी जिद कांग्रेस नेताओं और सोनिया गांधी की हो सकती है, लेकिन खुद राहुल गांधी शायद ऐसा नहीं करने वाले हैं.
राजनीति में अपनी दिलचस्पी को लेकर राहुल गांधी खुद अपनी इच्छा कई बार बता चुके हैं - न तो दलगत राजनीति में, न ही सत्ता की राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी है. अब ये बात अगर विपक्ष भी समझ ले तो आगे की मुश्किलें खत्म नहीं तो कम तो हो ही सकती हैं.
राहुल गांधी को कई मनमोहन की तलाश है: हो सकता है राहुल गांधी को भी सोनिया गांधी की तरह ही 'मनमोहन सिंह' और 'अहमद पटेल' की जरूरत महसूस होने लगी है, लेकिन उनकी डिमांड ऐसे एक से ज्यादा लोगों की लगती है.
अशोक गहलोत के रूप में एक मनमोहन सिंह तो राहुल गांधी को मिल ही चुके हैं, लेकिन दूसरे मनमोहन के लिये जो नाम सामने हैं ममता बनर्जी या नीतीश कुमार, कोई भी उनके जैसे भरोसे के काबिल नहीं है. दोनों में से किसी को भी सपोर्ट किया तो वो मनमानी करने लगेगा, गारंटी है - और फिर थक हार कर राहुल गांधी को भी अपने पिता राजीव गांधी जैसा कदम उठाना पड़ेगा. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चंद्रशेखर को सपोर्ट देकर प्रधानमंत्री बनाया था - और फिर समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा भी दी, लेकिन ऐसी स्थिति हासिल करने के लिए भी राहुल गांधी के सामने अभी मीलों का सफर बाकी है.
लब्बोलुआब ये है कि कांग्रेस ने इस बार राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले देश का नेता बनाने की नयी तरकीब निकाली है - अब तरकीब तो महज एक कवायद होती है, कामयाब भी हो सकती है और नाकाम भी! अपनी अपनी किस्मत है जिसको जो सौगात मिले.
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