एक कहावत है 'सच परेशान हो सकता है, पराजित नहीं'. हमारे देश में सियासत बार-बार ईमानदारी का ज़िक्र तो करती है. लेकिन अगर कोई ईमानदार खड़ा हो जाता है तो सत्ता बेचैन हो जाती है. हम बात कर रहे हैं अपनी ईमानदारी के लिए चर्चित हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की. 1991 बैच के आईएएस अधिकारी खेमका का 24 साल की नौकरी में 51 बार तबदला किया जा चुका है. यानी औसतन हर छह महीने में उनका तबादला हुआ है.
खेमका इससे इतने आहत हुए कि उन्होंने कहा- "हर तबादले के बाद कुछ खोने का सा अहसास होता है. लगता है, हार गया हूं. लेकिन फिर लगता है कि मैं सिर्फ़ स्वयं से हार सकता हूं. शुरू में बुरा लगता है. लेकिन फिर ज़िंदगी अपनी रफ़्तार पर लौट आती है."
राज्य में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो, खेमका हमेशा सत्तापक्ष की आंख की किरकिरी बने रहे और विपक्ष ने उन्हें हमेशा गले लगाए रखा. लेकिन जैसे ही विपक्ष में रही पार्टियां सत्ता में आईं, तो खेमका के प्रति उनका नजरिया बदल गया. ऐसे में सवाल उठना वाज़िब ही है कि सरकार किसी की भी हो, मुख्यमंत्री कोई भी हो, खेमका को अपनी ईमानदारी की कीमत हर बार तबादले के साथ ही क्यों चुकानी पड़ती है?
ईमानदारी की सज़ा का अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि 2004 में चौटाला तो 2012 में हुड्डा और 2017 में खट्टर के समय में उनका तबादला हुआ. पहले में मामला शिक्षकों का था. दुसरे में राबर्ट बाड्रा का. तो इस बार बुज़ुर्ग पेंशन से लेकर सरकारी गाड़ियों के इस्तेमाल का है.
आइए जानते हैं किन-किन मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में खेमका का क्यों और कितनी बार तबादला किया गया?
बंसीलाल और भजनलाल- खेमका का 7-7 बार तबादला...
एक कहावत है 'सच परेशान हो सकता है, पराजित नहीं'. हमारे देश में सियासत बार-बार ईमानदारी का ज़िक्र तो करती है. लेकिन अगर कोई ईमानदार खड़ा हो जाता है तो सत्ता बेचैन हो जाती है. हम बात कर रहे हैं अपनी ईमानदारी के लिए चर्चित हरियाणा के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की. 1991 बैच के आईएएस अधिकारी खेमका का 24 साल की नौकरी में 51 बार तबदला किया जा चुका है. यानी औसतन हर छह महीने में उनका तबादला हुआ है.
खेमका इससे इतने आहत हुए कि उन्होंने कहा- "हर तबादले के बाद कुछ खोने का सा अहसास होता है. लगता है, हार गया हूं. लेकिन फिर लगता है कि मैं सिर्फ़ स्वयं से हार सकता हूं. शुरू में बुरा लगता है. लेकिन फिर ज़िंदगी अपनी रफ़्तार पर लौट आती है."
राज्य में सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रही हो, खेमका हमेशा सत्तापक्ष की आंख की किरकिरी बने रहे और विपक्ष ने उन्हें हमेशा गले लगाए रखा. लेकिन जैसे ही विपक्ष में रही पार्टियां सत्ता में आईं, तो खेमका के प्रति उनका नजरिया बदल गया. ऐसे में सवाल उठना वाज़िब ही है कि सरकार किसी की भी हो, मुख्यमंत्री कोई भी हो, खेमका को अपनी ईमानदारी की कीमत हर बार तबादले के साथ ही क्यों चुकानी पड़ती है?
ईमानदारी की सज़ा का अंदाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि 2004 में चौटाला तो 2012 में हुड्डा और 2017 में खट्टर के समय में उनका तबादला हुआ. पहले में मामला शिक्षकों का था. दुसरे में राबर्ट बाड्रा का. तो इस बार बुज़ुर्ग पेंशन से लेकर सरकारी गाड़ियों के इस्तेमाल का है.
आइए जानते हैं किन-किन मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में खेमका का क्यों और कितनी बार तबादला किया गया?
बंसीलाल और भजनलाल- खेमका का 7-7 बार तबादला हुआ
ओमप्रकाश चौटाला- हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला ने 24 जुलाई 1999 से 4 मार्च 2005 तक राज्य की कमान संभाली. इस बीच खेमका का पांच साल में नौ बार तबादला हुआ. मामला 2004 का है जब चौटाला सरकार ने कई टीचर्स का सत्र के बीच में ही ट्रांसफर किया था. तब खेमका ने मुख्यमंत्री का आदेश मानने से इनकार कर दिया था और नतीज़तन तबादला कर दिया गया.
भूपेंद्र सिंह हुड्डा- हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा 5 मार्च 2005 से 19 अक्टूबर 2014 तक मुख्यमंत्री रहे. इस सरकार में उनक सबसे ज्यादा 22 बार तबादला किया गया. साल 2012 में इस सरकार में खेमका ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद वाड्रा और डीएलएफ लैंड डील को कैंसल किया था. हुड्डा शासनकाल में खेमका के खिलाफ चार्जशीट भी जारी हुई थी.
... और मनोहर लाल खट्टर के राज में :
अक्टूबर 2014 में हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी. अभी मनोहर लाल खट्टर सरकार ने इस बार उन्हें सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग से हटाकर खेल एवं युवा मामले विभाग का प्रधान सचिव बनाया गया है. कुछ दिनों पहले ही सरकारी गाड़ी के दुरुपयोग के मामले में उन्होंने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के मंत्री कृष्ण कुमार बेदी को खूब खरी खोटी सुनाई थी. खेमका ने इसी विभाग के प्रधान सचिव के नाते उन 3.22 लाख लोगों की पेंशन बंद कर दी थी जिनके दस्तावेज मौजूद नहीं थे. इसी कारण मुख्यमंत्री खट्टर और मंत्री कृष्ण कुमार बेदी को राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ सकता था. खट्टर सरकार में खेमका का यह 5वां तबादला है.
लेकिन ये वही भाजपा सरकार है जो हुड्डा के समय काफी हमलावर थी. क्योंकि तब रॉबर्ट वाड्रा मामले में खेमका का तबादला हुआ था. यहां तक कि 2014 के हरियाणा विधान सभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी कांग्रेस को भ्रष्ट तक बताती थी. मोदी का तब कांग्रेस पर तंज़ हुआ करता था 'दामाद को ज़मीन देने के काम को फ़ाइनल कर दिया, चुनाव नतीजे के बाद दामाद को कुछ मिलने की संभावना नहीं है'.
अब सवाल ये है कि जो खेमका भाजपा के लिए हुड्डा के समय में 'नायक' थे, अचानक खट्टर सरकार में 'खलनायक' कैसे बन गए? यहां सवाल खेमका का नहीं बल्कि एक ईमानदार अधिकारी का है. जिसकी ईमानदारी हर सरकार को चुभती है. और मज़ेदार बात ये कि जो ईमानदारी, किसी पार्टी को विपक्ष में रहने पर अच्छी लगती है, उसे सत्ता में आते ही वही ईमानदारी खटकने लगती है.
अब खेमका को खेल एवं युवा मामले विभाग का प्रधान सचिव बनाया गया है. तो अब इंतज़ार है नए विभाग में खेमका के खेल का और उनके नए तबादले का.
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