आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) का तेजस्वी यादव से जाकर मिलना यूं ही तो नहीं हो सकता. बगैर किसी आयोजन के, बगैर किसी खास कार्यक्रम के या बगैर किसी प्रयोजन के भला कोई मुंबई से चल कर पटना क्यों जाएगा?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से तो मुलाकात बोनस समझी जाएगी. क्योंकि बताया गया है कि नीतीश कुमार से मिलने का आदित्य ठाकरे का कोई कार्यक्रम नहीं था. हो सकता है बातों बातों में नीतीश कुमार का जिक्र आया हो और तेजस्वी यादव ने प्रस्ताव रखा हो और दोनों एक ही गाड़ी में निकले हों तो ऐसा हो सकता है - भला तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार से मिलने के लिए पहले से कोई समय लेने की जरूरत तो होगी नहीं. पहले के दौर में ऐसा हो भी सकता था, लेकिन अभी तो कोई मतलब ही नहीं बनता.
तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) से मिलने के बाद जब आदित्य ठाकरे मीडिया के सामने आये तो कुछ न कुछ तो बोलना ही था. वो तो कतई नहीं बोलना था जो वास्तव में मुलाकात के दौरान हुआ होगा. लिहाजा एक राजनीतिक बयान दे दिया - हर मुलाकात राजनीतिक नहीं होती. ऐसे बयान पुराने बयानों के खंडन जितने ही विश्वसनीय लगते हैं.
एक मौका जरूर रहा, लालू यादव से मिलने का बहाना हो सकता था. लालू यादव अभी सिंगापुर जाने वाले हैं जहां उनका किडनी ट्रांसप्लांट होने वाला है - लेकिन अगर ऐसी बात होती तो आदित्य यादव मुंबई से दिल्ली जाते, पटना जाने की क्या जरूरत थी.
राजनीति में भला कोई मुलाकात गैर राजनीतिक हो सकती है क्या? ये तो अदालतों की तरह शपथ लेकर भी कोई साथ बैठे तब भी मुमकिन नहीं है. जब हम और आप जैसे लोग साथ बैठते हैं और हमारा कोई कॉमन इंटरेस्ट होता है तो बातचीत का बड़ा हिस्सा उसी पर फोकस हो जाता है, तो राजनीति में ये कैसे हो सकता है? हमारी मुलाकातें तो कई बार यूं ही होती हैं, लेकिन राजनीति में ऐसे विरले मौके आते हैं जब दो लोग यूं ही मिल पाते हैं. सब कुछ तय रहता है - और अगर किसी कारणवश मुलाकात होने की सूरत बने तो भी पहले से ही रणनीति बन जाती है कि क्या बात करनी है. ऐसा दोनों ही...
आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) का तेजस्वी यादव से जाकर मिलना यूं ही तो नहीं हो सकता. बगैर किसी आयोजन के, बगैर किसी खास कार्यक्रम के या बगैर किसी प्रयोजन के भला कोई मुंबई से चल कर पटना क्यों जाएगा?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से तो मुलाकात बोनस समझी जाएगी. क्योंकि बताया गया है कि नीतीश कुमार से मिलने का आदित्य ठाकरे का कोई कार्यक्रम नहीं था. हो सकता है बातों बातों में नीतीश कुमार का जिक्र आया हो और तेजस्वी यादव ने प्रस्ताव रखा हो और दोनों एक ही गाड़ी में निकले हों तो ऐसा हो सकता है - भला तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार से मिलने के लिए पहले से कोई समय लेने की जरूरत तो होगी नहीं. पहले के दौर में ऐसा हो भी सकता था, लेकिन अभी तो कोई मतलब ही नहीं बनता.
तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) से मिलने के बाद जब आदित्य ठाकरे मीडिया के सामने आये तो कुछ न कुछ तो बोलना ही था. वो तो कतई नहीं बोलना था जो वास्तव में मुलाकात के दौरान हुआ होगा. लिहाजा एक राजनीतिक बयान दे दिया - हर मुलाकात राजनीतिक नहीं होती. ऐसे बयान पुराने बयानों के खंडन जितने ही विश्वसनीय लगते हैं.
एक मौका जरूर रहा, लालू यादव से मिलने का बहाना हो सकता था. लालू यादव अभी सिंगापुर जाने वाले हैं जहां उनका किडनी ट्रांसप्लांट होने वाला है - लेकिन अगर ऐसी बात होती तो आदित्य यादव मुंबई से दिल्ली जाते, पटना जाने की क्या जरूरत थी.
राजनीति में भला कोई मुलाकात गैर राजनीतिक हो सकती है क्या? ये तो अदालतों की तरह शपथ लेकर भी कोई साथ बैठे तब भी मुमकिन नहीं है. जब हम और आप जैसे लोग साथ बैठते हैं और हमारा कोई कॉमन इंटरेस्ट होता है तो बातचीत का बड़ा हिस्सा उसी पर फोकस हो जाता है, तो राजनीति में ये कैसे हो सकता है? हमारी मुलाकातें तो कई बार यूं ही होती हैं, लेकिन राजनीति में ऐसे विरले मौके आते हैं जब दो लोग यूं ही मिल पाते हैं. सब कुछ तय रहता है - और अगर किसी कारणवश मुलाकात होने की सूरत बने तो भी पहले से ही रणनीति बन जाती है कि क्या बात करनी है. ऐसा दोनों ही पक्ष करते हैं - और अगर ऐसा नहीं होता तो वो राजनीति नहीं है? ऐसी राजनीति को पार्ट-टाइम पॉलिटिक्स की संज्ञा भी दे दी जाती है.
आदित्य ठाकरे ने कहा, 'ये युवाओं की मुलाकात थी.'
बेशक. किसी को इसमें किन्तु परंतु नहीं होना चाहिये. दोनों हम उम्र ही हैं. आदित्य ठाकरे से तेजस्वी यादव करीब छह महीने बड़े होंगे. तेजस्वी यादव दूसरी बार बिहार के डिप्टी सीएम बने हैं, और आदित्य ठाकरे भी महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं. और पिता के मुख्यमंत्री होते उद्धव ठाकरे के विरोधियों का आरोप रहा कि आदित्य ठाकरे का दखल भी कुछ ज्यादा ही हुआ करता था. लेकिन ये तो कतई जरूरी नहीं कि नीतीश कुमार भी तेजस्वी यादव को वैसी ही छूट देते होंगे. अब अगर नीतीश कुमार की मजबूरी का फायदा उठाते हुए तेजस्वी यादव कहीं कहीं दबंगई दिखा दें तो बात अलग है. वैसे तेजस्वी यादव के जन्मदिन पर जिस तरह नीतीश कुमार हथियार डाले हुए देखे गये, पहले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मामले में भी वैसा कुछ किसी को नजर नहीं आया था.
उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना के नेता आदित्य ठाकरे ने बताया कि वो भी तेजस्वी यादव को मुंबई आने का न्योता दिये हैं. निश्चित तौर पर ऐसा ही हुआ होगा. बल्कि राजनीति में तो रिश्ते और भी बढ़ चढ़ कर निभाये जाते हैं. बहुत ज्यादा खटास न हो तो नेताओं के रिश्ते में राजनीति बहुत कम ही आड़े आती है.
मीडिया से बातचीत में आदित्य ठाकरे ने एक महत्वपूर्ण बात जरूर कही है, 'मुलाकात ने नई दोस्ती को जन्म दिया है.' वो तो है. राहुल गांधी और आदित्य ठाकरे का मिलना अलग था, लेकिन तेजस्वी यादव से मुलाकात तो खास मानी ही जाएगी. नहीं बताते तो भी सबको ऐसा ही समझ में आता.
आदित्य ठाकरे और तेजस्वी यादव तो सार्वजनिक घोषणा करके मिले हैं, भले ही अभी सारी चीजें सामने न आयें. आपको याद होगा, जब महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार हुआ करती थी तो संजय राउत और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के छुप कर होटल में मिलने की खबर आयी थी. बाद में सफाई दी गयी कि सामना के इंटरव्यू के लिए बातचीत करनी थी, इसलिए मिले थे - ये बात अलग है कि अब तक वो इंटरव्यू किसी को पढ़ने को नहीं मिल सका है.
मुद्दे की बात ये लगती है कि आदित्य ठाकरे और तेजस्वी यादव बीजेपी के खिलाफ देश में चल रही विपक्षी एकता की कोशिशों के लिए भी मिले हो सकते हैं, लेकिन दोनों की मुलाकात ऐसे दौर में हुई है जब मुंबई में बीएमसी के चुनावों की जोरदार तैयारी चल रही है - और बंटवारे के बाद आदित्य ठाकरे और उद्धव ठाकरे के सामने ये सबसे बड़ा चैलेंज है.
आदित्य ठाकरे की सक्रियता क्या कहती है?
भारत जोड़ो यात्रा के महाराष्ट्र पहुंचने पर आदित्य ठाकरे हिंगोली में शामिल हुए थे, उसी दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ कुछ दूर तक मार्च भी किया था. आदित्य ठाकरे और राहुल गांधी की मुलाकात को महाराष्ट्र की राजनीति के हिसाब से काफी अहम माना जा रहा है - और आदित्य ठाकरे की तेजस्वी यादव से हुई मुलाकात उसके आगे की कड़ी हो सकती है.
एकनाथ शिंदे के बगावत करके मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना के सामने बड़े ही कम विकल्प बचे हैं. देवेंद्र फडणवीस के महाराष्ट्र की राजनीति में नफरत भर जाने वाले बयान के बाद एक विकल्प ये भी हो सकता है कि उद्धव ठाकरे फिर से बीजेपी के साथ हो जायें - लेकिन उससे पहले इस बात के लिए तैयार होना होगा कि बीजेपी की सारी शर्तें माननी होगी. तब ये भी हो सकता है कि बीजेपी शिवसेना के दोनों गुटों में सुलह कराने की कोशिश करे और कोई बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो.
बाकी तो एक ही रास्ता बचता है कि आदित्य ठाकरे नये सिरे से संघर्ष करें और अपने हिस्से की शिवसेना को फिर से खड़ा करने की कोशिश करें. कोशिशें तो अलग अलग तरीकों से कई स्तरों पर जारी हैं ही, लेकिन इसी बीच ये भी खबर आयी है कि तीन सांसद और 8 विधायक उद्धव ठाकरे से नाता तोड़ कर एकनाथ शिंदे के साथ रिश्ता पक्का करने वाले हैं.
आदित्य ठाकरे के पास सरवाइवल का एक बड़ा मौका है बीएमसी का चुनाव, जिसमें ज्यादा वक्त भी नहीं बचा है. अंधेरी ईस्ट सीट पर हुए उपचुनाव का नतीजा तो पहले ही साफ हो गया था, लेकिन जो भी हुआ और जैसे भी हुआ वो आदित्य ठाकरे और उद्धव ठाकरे को बहुत बड़ी राहत देने वाला रहा.
एकनाथ शिंदे और उनके गुट की शिवसेना तो सामने नहीं आयी थी, लेकिन बीजेपी के खिलाफ ये ठाकरे परिवार की एक तरीके से बड़ी जीत ही रही. अव्वल तो उद्धव ठाकरे की उम्मीदवार के चुनाव लड़ने की राह में ही बीएमसी की तरफ से अड़ंगेबाजी की जा रही थी, लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट के कड़ा रुख दिखाने के बाद पूरा खेल ही बदल गया. ऐसे हालात पैदा हो गये कि बीजेपी को अपना उम्मीदवार वापस लेने के लिए तमाम इंतजाम करने पड़े थे.
उद्धव ठाकरे को भी आदित्य ठाकरे की नयी पहल से काफी उम्मीदें होंगी ही, और वो सही भी हैं. जैसे बीजेपी विरोधियों ने 2019 में उद्धव ठाकरे का साथ दिया था और मिल कर सरकार बना ली थी, वैसा तो नहीं लेकिन ये जरूर है कि तेजस्वी यादव की ही तरह राहुल गांधी और एनसीपी से शरद परिवार के कुछ युवा आदित्य ठाकरे का साथ दे दें तो स्थिति बेहतर होने की संभावना बन सकती है.
एनसीपी से बदले हालात में कितनी मदद मिलेगी, कहना मुश्किल है क्योंकि गठबंधन सरकार रहते राज्य सभा और विधान परिषद चुनावों के दौरान दोनों पक्षों में जो तकरार हुई थी वो हेल्दी तो कतई नहीं थी. आगे बढ़ कर एनसीपी नेता सुप्रिया सुले का बयान देना भी तो यही बता रहा था कि शरद पवार भी खासे नाराज हुए होंगे - लेकिन अभी तो सबके सब अंदर तक हिले हुए हैं. सत्ता की राजनीति की बात ही और होती है.
आदित्य ठाकरे के एक ताजा बयान से भी आसानी से समझा जा सकता है कि वो चुनावी तैयारियों में पूरे मन से जुटे हुए हैं. हाल ही में आदित्य ठाकरे ने सत्ता पक्ष पर बड़ा इल्जाम लगया था, बीएमसी में इन दिनों टेंडर, ट्रांसफर और टाइम पास का काम चल रहा है.'
महाविकास आघाड़ी सरकार गिरने के बाद बीजेपी और एकनाथ शिंदे की सरकार बन जाने के बाद से अगला टारगेट बीएमसी ही है - क्योंकि तीन दशक से काबिज शिवसेना को बेदखल किये बगैर मिशन अधूरा ही समझा जाएगा. अच्छा है आदित्य ठाकरे पहले से ही अलर्ट हो गये हैं, और अपने मिशन में लग गये हैं.
पूर्वांचल के वोटर पर भी निगाह
देखा जाये तो आदित्य ठाकरे का तेजस्वी यादव से मिलना करीब करीब वैसा ही है, जैसा महाबल मिश्रा का अरविंद केजरीवाल से. महाबल मिश्रा ने आप ज्वाइन कर लिया है, लेकिन आदित्य ठाकरे के अभी इतने भी बुरे दिन नहीं आये हैं.
ये तो बार बार साबित हुआ है कि जैसे दिल्ली की राजनीति में पूर्वांचल के लोगों का दखल है, महाराष्ट्र में खासकर मुंबई में भी स्थिति मिलती जुलती ही है. दिल्ली में तो नहीं, लेकिन मुंबई में तो पूर्वांचल के लोग शुरू से ही शिवसेना और बाद में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के निशाने पर रहे हैं - लेकिन दिन तो सबके कभी न कभी बदलते ही हैं. जैसे सभी के अच्छे दिन बारी बारी आते ही हैं.
ये बताने की जरूरत नहीं कि बीजेपी और एकनाथ शिंदे के खिलाफ खड़ा होने के लिए आदित्य ठाकरे को पूर्वांचल के लोगों की सख्त जरूरत आ पड़ी है. ये तो नहीं कहा जा सकता कि मुंबई में बसे पूर्वांचल के लोगों पर तेजस्वी यादव का कितना असर पड़ेगा, लेकिन तेजस्वी यादव का सपोर्ट डूबते को तिनके के सहारे से तो बेहतर ही होगा.
हो सकता है, आदित्य ठाकरे से बातचीत के बाद तेजस्वी यादव उनको नीतीश कुमार से मिलाने यही सोच कर ले गये हों. जैसे नीतीश कुमार बिहार के लोगों के वोट के लिए दिल्ली में प्रचार कर चुके हैं, बीएमसी चुनाव में मुंबई में भी कर सकते हैं - ये बात अलग है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में जिस सीटपर नीतीश कुमार ने अमित शाह के साथ चुनाव प्रचार किया था, बीजेपी गठबंधन का उम्मीदवार हार गया था और सबसे बड़ी हार जीत का रिकॉर्ड भी उसी सीट पर बना था.
मुस्लिम वोटर पर नजर: जैसे बीजेपी पसमांदा मुस्लिम समुदाय के सपोर्ट के लिए हाथ पांव मार रही है, उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे की तरफ से भी वैसी ही कोशिशें हो रही हैं - और सुनने में आया है कि मराठी मुस्लिम सेवा संघ ने बीएमसी चुनाव में शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के समर्थन की घोषणा भी कर दी है.
मुस्लिम वोट के मामले में भी तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार चाहें तो ठाकरे परिवार की कुछ न कुछ मदद तो कर ही सकते हैं. ये बात कितनी अहम है, उसे मुंबई बीजेपी अध्यक्ष आशीष शेलार के बयान और उनकी प्रस्तावित 'जागर मुंबईचा यात्रा' की घोषणा से समझा जा सकता है. आशीष शेलार का कहना है कि उद्धव ठाकरे की पार्टी अब मुसलमानों के वोट बटोरना चाहती है, और बड़ी चालाकी से एक नया नाम मराठी मुस्लिम दे डाला है. आशीष शेलार का कहना है कि अपनी यात्रा के दौरान वो लोगों को उद्धव ठाकरे की मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के खिलाफ जागरुक करने की कोशिश करेंगे.
आदित्य-तेजस्वी मुलाकात से जो चीजें साफ हुई हैं
1. तेजस्वी यादव बीएमसी चुनाव में बिहार के वोटर से आदित्य ठाकरे को समर्थन देने की अपील कर सकते है - हो सकता है तेजस्वी यादव मुंबई जाकर चुनाव प्रचार के लिए भी तैयार हो जायें.
2. तेजस्वी यादव के सपोर्ट से आदित्य ठाकरे को बीएमसी चुनाव में मुस्लिम वोटर का समर्थन भी मिल सकता है.
4. हो सकता है बीएमसी चुनाव में तेजस्वी यादव भी कुछ सीटों की मांग करें. ऐसी मांग तो तेजस्वी की पश्चिम बंगाल चुनाव में भी रही. वो ममता बनर्जी से मिलने कोलकाता भी गये थे, लेकिन तृणमूल कांग्रेस नेता ने बहला फुसला कर बैरंग भेज दिया था.
4. ऐसे भी समझा जा सकता है कि अब महा विकास आघाड़ी पर मंडरा रहा खतरा टल गया है. कांग्रेस के साथ सार्वजनिक मतभेद के बावजूद अंदर ही अंदर गठबंधन को जारी रखने की कोशिश हो सकती है.
5. राहुल गांधी के वीर सावरकर आये बयान को लेकर ठाकरे परिवार और उसकी टीम मुखालफत भी करती रहेगी और ऐन उसी वक्त कांग्रेस के साथ फ्रेंडली मैच चलता रहेगा.
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