यूपी में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव 2022 (P assembly election 2022) का सेमीफाइनल कहे जा रहे थे. समाजवादी पार्टी (sp) ने इस सेमीफाइनल में शानदार बैटिंग करते हुए अयोध्या, मथुरा, काशी जैसे भाजपा (bjp) के सियासी किलों में सेंध लगा दी थी. माना जा रहा था कि जिला पंचायत सदस्य के चुनाव के नतीजों ने यूपी में 'बदलाव' का संकेत दे दिया है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भी नतीजों को देखकर सातवें आसमान पर थे. लेकिन, हालिया हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के नामांकन में सत्तारूढ़ भाजपा के चुनावी प्रबंधन ने सपा को जो झटका दिया है, वो अखिलेश यादव के लिए बचे हुए 57 जिलों में खतरे की घंटी बनता नजर आ रहा है.
अखिलेश यादव भले ही इसको भाजपा का छल और सत्ता का दुरुपयोग बता रहे हों, लेकिन असल में इस पूरे मामले में सपा की सांगठनिक कमजोरी खुलकर सामने आ गई है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर खुद को पेश करने में सपा कामयाब नहीं हो सकी है. हालांकि, समाजवादी पार्टी के 11 जिलाध्यक्षों पर गिरी गाज से स्थिति को संभालने की कोशिश की गई है. लेकिन, प्रत्याशियों का एक दिन पहले गायब हो जाना, नोटरी लाइसेंस रिन्यू न होने जैसी छोटी-छोटी गलतियां और लापरवाही सपा में भितरघात का संकेत देने लगी हैं.
अखिलेश यादव जिस संगठन के बल पर यूपी विधानसभा चुनाव 2022...
यूपी में हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव 2022 (P assembly election 2022) का सेमीफाइनल कहे जा रहे थे. समाजवादी पार्टी (sp) ने इस सेमीफाइनल में शानदार बैटिंग करते हुए अयोध्या, मथुरा, काशी जैसे भाजपा (bjp) के सियासी किलों में सेंध लगा दी थी. माना जा रहा था कि जिला पंचायत सदस्य के चुनाव के नतीजों ने यूपी में 'बदलाव' का संकेत दे दिया है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भी नतीजों को देखकर सातवें आसमान पर थे. लेकिन, हालिया हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के नामांकन में सत्तारूढ़ भाजपा के चुनावी प्रबंधन ने सपा को जो झटका दिया है, वो अखिलेश यादव के लिए बचे हुए 57 जिलों में खतरे की घंटी बनता नजर आ रहा है.
अखिलेश यादव भले ही इसको भाजपा का छल और सत्ता का दुरुपयोग बता रहे हों, लेकिन असल में इस पूरे मामले में सपा की सांगठनिक कमजोरी खुलकर सामने आ गई है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर खुद को पेश करने में सपा कामयाब नहीं हो सकी है. हालांकि, समाजवादी पार्टी के 11 जिलाध्यक्षों पर गिरी गाज से स्थिति को संभालने की कोशिश की गई है. लेकिन, प्रत्याशियों का एक दिन पहले गायब हो जाना, नोटरी लाइसेंस रिन्यू न होने जैसी छोटी-छोटी गलतियां और लापरवाही सपा में भितरघात का संकेत देने लगी हैं.
अखिलेश यादव जिस संगठन के बल पर यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में जीत का दंभ भर रहे थे, कहीं न कहीं उसी संगठन ने उन्हें पीछे ढकेल दिया है. सपा किसी भी हाल में भाजपा के सामने खुद को सबसे मजबूत राजनीतिक विकल्प के तौर पर पेश करने की भरपूर कोशिश कर रही है. लेकिन, सांगठनिक कमजोरी सामने आने के बाद ऐसा लग नहीं रहा है. वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती का जिला पंचायत अध्यक्ष (zila panchayat president election) चुनाव न लड़ने का हालिया ऐलान भी सपा के लिए मुश्किलों को बढ़ाने वाला ही दिखाई पड़ रहा है. जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों के सहारे यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में जीत का सपना देखने वाले अखिलेश यादव के लिए ये दोहरा झटका कहा जा सकता है.
सपा के मुखिया अखिलेश यादव पहले ही साफ कर चुके हैं कि विधानसभा चुनाव के लिए सपा किसी बड़े राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करेगी. उन्होंने छोटे राजनीतिक दलों को साथ लाने की योजना सामने रखी है. लेकिन, AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर के साथ 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' से गठबंधन कर चुके हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अखिलेश यादव का यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में हारना तय है?
छोटे दलों ने बना लिया 'भागीदारी संकल्प मोर्चा'
सपा मुखिया अखिलेश यादव छोटे राजनीतिक दलों को साथ लाने की बात कर रहे हैं. लेकिन, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर पहले से ही जन अधिकार पार्टी, अपना दल कमेरावादी, राष्ट्र उदय पार्टी, जनता क्रांति पार्टी, भारत माता पार्टी, भारतीय वंचित समाज पार्टी जैसे दलों को लेकर 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' बना चुके हैं. इस मोर्चा के साथ असदुद्दीन ओवैसी के जुड़ जाने से मुस्लिम वोटों का कुछ हिस्सा खिसकना तय माना जा सकता है. असदुद्दीन ओवैसी ने ऐलान भी कर दिया है कि उनकी पार्टी 100 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी. ओवैसी की कोशिश रहेगी कि वह मुस्लिम बहुल सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतारें. इस स्थिति में इन 100 विधानसभा सीटों पर सपा के सीधे तौर पर नुकसान मिलता दिखाई दे रहा है.
हालांकि, ये भी कहा जा सकता है कि सपा पर गठबंधन करने का दबाव बनाने के लिए भी भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठन किया गया होगा. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले अगर ये भागीदारी संकल्प मोर्चा सपा में शामिल हो जाता है, तो सपा को फायदा हो सकता है. लेकिन, ऐसा होने की उम्मीद बहुत कम ही है. दरअसल, इन सभी दलों के साथ विधानसभा सीटों शेयरिंग का फॉर्मूला तय होना सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा. भागीदारी संकल्प मोर्चा से गठबंधन न होने की सूरत में सपा को तकरीबन हर सीट पर छोटा ही सही लेकिन नुकसान उठाना पड़ेगा. उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव में भाजपा, बसपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों के सामने सपा ये नुकसान शायद नहीं उठाना चाहेगी. वहीं, मोर्चा से गठबंधन पर सपा को पार्टी के रूप में नुकसान उठाना पड़ेगा.
बसपा सुप्रीमो का 'गेम प्लान' समझ से बाहर
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर लगाए जा रहे कयासों में बसपा काफी हद तक फिसड्डी नजर आ रही है. लेकिन, बसपा सुप्रीमो मायावती (Mayawati) करना क्या चाह रही हैं, ये किसी भी राजनीतिक दल के समझ में नहीं आ रहा है. एक ओर मायावती अघोषित रूप से भाजपा की प्रवक्ता नजर आती हैं, तो दूसरी ओर बसपा सुप्रीमो यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के जमकर ताल ठोंक रही हैं. मायावती लगातार कहती आ रही हैं कि वे किसी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी. उन्होंने घोषणा कर दी है उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बसपा किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. लेकिन, पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन किया है. इसके उलट मायावती ने जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भागीदारी संकल्प मोर्चा के समर्थन का चौंकाने वाला ऐलान कर दिया है. मायावती की अगले विधानसभा चुनाव से पहले क्या रणनीति होने वाली है, इसका अंदाजा लगा पाना नामुमकिन नजर आ रहा है. वहीं, सतीश चंद्र मिश्रा को मीडिया सेल का राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर बनाकर मायावती 2007 वाला चुनावी माहौल बनाने का संकेत दे रही हैं.
कांग्रेस अपनी अलग राह पर
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में पूरी ताकत के साथ विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी हुई हैं. हालांकि, कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद प्रियंका गांधी की सक्रियता में कुछ कमी आई है. लेकिन, उनकी ओर से यूपी में कांग्रेस को पुर्नजीवित करने की कोशिशों में कोई कमी नहीं दिख रही है. खबरें हैं कि जुलाई में प्रियंका गांधी लखनऊ में डेरा डाल देंगी. विधानसभा चुनाव तक वह लखनऊ में ही रहेंगी. वहीं, अन्य राजनीतिक दलों की तरह कांग्रेस भी मुस्लिम मतदाताओं में पकड़ बनाने के लिए भरपूर कोशिश कर रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद लगातार मुस्लिम समाज के बीच एक्टिव नजर आ रहे हैं. सलमान खुर्शीद ने हाल ही में पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि प्रियंका गांधी हमारी कैप्टन हैं. जिसके बाद से कांग्रेस की ओर से CM फेस को लेकर प्रियंका गांधी के नाम की चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है. कांग्रेस निश्चित तौर पर चाहेगी कि कम से कम चुनाव होने तक ऐसी चर्चा बनी ही रहे. जिससे कांग्रेस को काफी हद तक फायदा होना तय कहा जा सकता है.
अखिलेश यादव के सामने मुश्किलों का पहाड़
समाजवादी पार्टी सत्ता में आने के लिए लंबे समय तक एमवाई समीकरण (मुस्लिम+यादव) पर भरोसा जताती रही है. लेकिन, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिले अप्रत्याशित बहुमत ने ये साबित कर दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में केवल एमवाई समीकरण के सहारे सपा चुनावी वैतरणी को पार नहीं कर सकेगी. बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन से अखिलेश यादव तौबा कर चुके हैं. बहुसंख्यक वोटों के बीच पकड़ बनाने के लिए छोटे राजनीतिक दलों का सहारा था, लेकिन वह अलग मोर्चा बनाए तैयार खड़े हैं. कांग्रेस और बसपा की अलग राह से मतों का विभाजन होना तय है. मान भी लिया जाए कि मुस्लिम वोट एकतरफा हो जाएंगे, तो केवल उसके सहारे जीत हासिल करना आसान नहीं है.
सपा को बहुसंख्यक मतदाताओं का साथ भी चाहिए होगा. वहीं, सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते जाने पर सपा को भाजपा से उसी की मांद में टक्कर लेनी होगी. राम मंदिर के कथित जमीन घोटाले पर अखिलेश यादव का सीधे तौर पर मुखर न होना इसकी बानगी भर है. वहीं, जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के सहारे खुद को मजबूत दिखाने का दांव भी बेकार जाता दिखाई दे रहा है. भाजपा चुनाव से पहले हाथ पर हाथ धरे तो बैठी नहीं रहेगी. इस स्थिति में यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले इन तमाम मुश्किलों का हल अखिलेश यादव कैसे निकालेंगे, ये देखने वाली बात होगी. अगर वो ऐसा करने में कामयाब नहीं हो पाते हैं, तो ये तय माना जाए कि अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव हारेंगे ही.
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