किसी को सरेआम मार डाला जाये. लोग ऐसे पीटने लगें जैसे फुटबॉल खेल रहे हों. मौत से पहले अपने बयान में वो शख्स कातिलों के नाम भी बताये - और फिर एक दिन खबर आये - पहलू खान को तो किसी ने मारा ही नहीं.
खुले आसमान के नीचे भीड़ भरे मैदान में कोई हत्या 'मर्डर मिस्ट्री' कैसे बन जाती है, पहलू खान का केस इस बात की मिसाल है - और थोड़ा आगे बढ़ कर देखने पर गौरी लंकेश का मामला भी वैसा ही लगने लगा है.
आखिर पहलू खान में ऐसा क्या है?
इसी साल अप्रैल में राजस्थान के बहरोड़ में पहलू खान की पीट पीट कर हत्या कर दी गयी थी. कुछ लोगों ने पहलू खान को गौतस्कर बताते हुए गाड़ी से खींच कर उतारा और पीट पीट कर अधमरा कर दिया - अस्पताल में दो दिन बाद पहलू खान ने दम तोड़ दिया. मौत से पहले दिये अपने बयान में पहलू खान ने जिन लोगों के नाम बताये थे पुलिस ने उन्हें आरोपी बनाया था. जब हिंदुस्तान टाइम्स में खबर छपी कि सभी आरोपियों को क्लीन चिट दे दी गयी तो कुछ लोग पहलू खान को उसी जगह श्रद्धांजलि देने पहुंचे जहां उनकी हत्या कर दी गयी थी.
एक बस में सवार होकर श्रद्धांजलि देने लोग निकले ही थे कि रास्ते में ही हिंदू संगठनों के लोग जमा हो गये और रोक दिया. वे लोग वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगा भी लगा रहे थे.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक जब उनसे श्रद्धांजलि देने से रोकने को लेकर पूछा गया तो उल्टे सवाल हाजिर था, "क्या वो नेताजी सुभाषचंद्र बोस है या सरहद पर जंग लड़ने वाला कि लोग उसे श्रद्धांजलि देंगे?"
एक थे पहलू खान, जिन्हें किसी ने नहीं मारा!
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार पहलू खान की हत्या के छह आरोपियों में से तीन एक हिंदू संगठन से जुड़े हैं. मौत...
किसी को सरेआम मार डाला जाये. लोग ऐसे पीटने लगें जैसे फुटबॉल खेल रहे हों. मौत से पहले अपने बयान में वो शख्स कातिलों के नाम भी बताये - और फिर एक दिन खबर आये - पहलू खान को तो किसी ने मारा ही नहीं.
खुले आसमान के नीचे भीड़ भरे मैदान में कोई हत्या 'मर्डर मिस्ट्री' कैसे बन जाती है, पहलू खान का केस इस बात की मिसाल है - और थोड़ा आगे बढ़ कर देखने पर गौरी लंकेश का मामला भी वैसा ही लगने लगा है.
आखिर पहलू खान में ऐसा क्या है?
इसी साल अप्रैल में राजस्थान के बहरोड़ में पहलू खान की पीट पीट कर हत्या कर दी गयी थी. कुछ लोगों ने पहलू खान को गौतस्कर बताते हुए गाड़ी से खींच कर उतारा और पीट पीट कर अधमरा कर दिया - अस्पताल में दो दिन बाद पहलू खान ने दम तोड़ दिया. मौत से पहले दिये अपने बयान में पहलू खान ने जिन लोगों के नाम बताये थे पुलिस ने उन्हें आरोपी बनाया था. जब हिंदुस्तान टाइम्स में खबर छपी कि सभी आरोपियों को क्लीन चिट दे दी गयी तो कुछ लोग पहलू खान को उसी जगह श्रद्धांजलि देने पहुंचे जहां उनकी हत्या कर दी गयी थी.
एक बस में सवार होकर श्रद्धांजलि देने लोग निकले ही थे कि रास्ते में ही हिंदू संगठनों के लोग जमा हो गये और रोक दिया. वे लोग वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगा भी लगा रहे थे.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक जब उनसे श्रद्धांजलि देने से रोकने को लेकर पूछा गया तो उल्टे सवाल हाजिर था, "क्या वो नेताजी सुभाषचंद्र बोस है या सरहद पर जंग लड़ने वाला कि लोग उसे श्रद्धांजलि देंगे?"
एक थे पहलू खान, जिन्हें किसी ने नहीं मारा!
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार पहलू खान की हत्या के छह आरोपियों में से तीन एक हिंदू संगठन से जुड़े हैं. मौत से पहले अपने बयान में पहलू खान ने जिन लोगों के नाम बताये, पुलिस जांच में पता चला उनमें से कोई मौका-ए-वारदात पर मौजूद ही नहीं था.
वैसे पुलिस ने जिस ढंग से जांच की है वो ज्यादा दिलचस्प है. इस जांच की खासियत ये है कि न तो पहलू खान के बयान पर भरोसा जताया गया है, न पहलू खाने के बेटे जो चश्मदीद है. बल्कि, पुलिस को सबसे ज्यादा यकीन एक आरोपी की गौशाला के एक कर्मचारी पर हुआ है.
पुलिस की रिपोर्ट को मानें तो सबके सब जगमाल यादव की राठ गोशाला में मौजूद थे जब पहलू खान की हत्या हुई. ये गोशाला घटनास्थल से करीब चार किलोमीटर दूर है और उसका मालिक भी छह में से एक आरोपी है. पुलिस का दावा है कि आरोपियों के मोबाइल लोकेशन से भी जांच रिपोर्ट की पुष्टि होती है. आरोपियों को अब तक गिरफ्तार भी नहीं किया गया और अब तो पुलिस ने इन सभी को आरोपमुक्त करने की सिफारिश ही कर दी है - और इसके साथ ही इनके सिर पर घोषित पांच हजार का इनाम भी वापस ले लिया गया है.
वे पहलू खान को फुटबॉल बना डाले थे...
पहलू खान डेयरी का काम करते थे. अप्रैल में जयपुर से गाय लेकर अपने गांव जा रहे थे. पहलू खान हरियाणा के नूह के रहनेवाले थे. पहलू खान की हत्या के बाद गौरक्षों द्वारा हो रही हिंसा पर खूब बहस हुई और चौतरफा दबाव के बाद राजस्थान पुलिस ने जांच शुरू की. बाद में ऐसा दबाव बना कि उसी पुलिस ने आरोपियों को क्लीन चिट भी दे दी.
आरोपियों को क्लीन चिट दिये जाने पर गौरक्षकों पर डॉक्युमेंट्री बनाने वाली पत्रकार अल्प्यू सिंह अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखती हैं, "सबसे मुश्किल है पहलू की 85 साल की मां के एक सवाल का जवाब देना जिसको अब तलक ये समझ नहीं आ रहा कि कोई उनके इकलौते बेटे को सिर्फ गाय के साथ दिखने पर कैसे मार सकता है?"
अल्प्यू आगे लिखती हैं, "न्यूज़ में काम करने वाले लोगों के लिए वो महज एक न्यूज़ स्टोरी है. लेकिन 55 साल के इस शख्स के घर एक बार होकर आइये. उसके 9 बच्चे हैं, जिसमें सबसे छोटा महज 6 साल का है. एक बीवी है जिसे नहीं पता कि पति की मौत के बाद वो क्या करे?"
अल्प्यू की इस डॉक्युमेंट्री में पहलू खान के बेटे आरिफ बता रहे हैं कि गौरक्षा के नाम पर लोगों को बीच सड़क पर मार डालने वाले किस तरह उनके पिता को फुटबॉल की तरह पीट रहे थे.
अक्सर कई बातें समझ में नहीं आतीं. ये भला कैसा सिस्टम है कि जीते जागते इंसान को धरना प्रदर्शन करना पड़ता है, ये बताने के लिए कि वो मरा नहीं है. सिर्फ इसलिए क्योंकि सरकारी कागजों में उनके नाम के आगे 'मृत' दर्ज हो गया है. सामने खड़े देखने के बावजूद कोई सरकारी बाबू इस लिखे को बदल नहीं पाता.
दूसरी तरफ, एक इंसान जिसका सरेआम कत्ल कर दिया जाता है. बेटा अपनी आंखों के सामने देखता है कि किस कदर उसके पिता को पीट पीट कर अधमरा कर दिया जाता है - और आखिरकार वो दम तोड़ देता है. और जब पुलिस की रिपोर्ट आती है तो मालूम होता है कि उसके पिता को तो किसी ने मारा ही नहीं.
फिर क्या समझा जाये जैसा कभी जेसिका लाल के लिए कहा गया था, पहलू खां को भी किसी ने नहीं मारा. अब तो लगता है गौरी लंकेश को भी किसी ने नहीं मारा होगा - बस रिपोर्ट आनी बाकी है!
इन्हें भी पढ़ें :
#NotInMyName मुहिम और अवॉर्ड वापसी पार्ट - 2 के बीच मोदी की गाय कथा
गौरक्षकों से कितना अलग होगी हिंदुत्व की रक्षा के लिए प्रस्तावित संघ की 'वर्चुअल सेना'
पाक को मुहंतोड़ जवाब देना है तो गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर दीजिए
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.