देश में यूएस रिटर्न शख्स की अरसे से खासी पूछ रही है. राहुल गांधी को लेकर भी कुछ ऐसे ही ख्यालात जाहिर किये जा रहे हैं. माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने अमेरिका से लौट कर कांग्रेस में जान फूंक दी है. राहुल गांधी आत्मविश्वास से भरे हुए हैं और इसलिए कांग्रेस के नेता भी फील गुड महसूस कर रहे हैं, ऐसा कहा, सुना और माना जा रहा है.
मौके और मूड का फायदा तो उठा ही रहे हैं
एक बात जरूर है कि राहुल गांधी अब नेताओं की बातों और पब्लिक के मूड का पूरा फायदा उठाने लगे हैं. निश्चित तौर पर इसे राहुल गांधी की शख्सियत और सलाहकारों की टीम में बदलाव का नतीजा तो माना ही जा सकता है. कांग्रेस नेता और मौके तो बीजेपी के नेता ही एक एक करके उपलब्ध कराते जा रहे हैं - और गुजरात में कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम ने विकास मॉडल को लेकर कैंपेन चला कर लोगों का मूड तो बदल ही दिया है. कहना मुश्किल होगा क्या ये मूड चुनाव तक बना रहेगा?
पहले सुषमा स्वराज और अब यशवंत सिन्हा की बातें कांग्रेस के राजनीतिक रूप से काफी पौष्टिक साबित हो रही हैं. टीम राहुल फायदा उठाने में कसर भी बाकी नहीं रख रही. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने के लिए कहा था कि भारत ने जहां आईआईटी और आईआईएम दिये तो पाकिस्तान ने लश्कर और जैश जैसे दहशतगर्द. ये सुनते ही तपाक से राहुल की ओर से सुषमा स्वराज को शुक्रिया कहा गया है - कांग्रेस की उपलब्धियां गिनाने के लिए.
अब बीजेपी के सीनियर नेता और अटल बिहार वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस में अपने आर्टिकल में मोदी सरकार के वित्र मंत्री अरुण जेटली को कठघरे में खड़ा कर दिया है. सिन्हा के बेटे मोदी कैबिनेट में मंत्री जरूर हैं लेकिन खुद की पूछ न होने से वो मौजूदा नेतृत्व पर पहले भी हमलावर रहे हैं.
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों और खास तौर पर जीएसटी और नोटबंदी को लेकर उपजे गुस्से को राहुल गांधी पूरी तरह भुनाना चाहते हैं. यशवंत सिन्हा का...
देश में यूएस रिटर्न शख्स की अरसे से खासी पूछ रही है. राहुल गांधी को लेकर भी कुछ ऐसे ही ख्यालात जाहिर किये जा रहे हैं. माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने अमेरिका से लौट कर कांग्रेस में जान फूंक दी है. राहुल गांधी आत्मविश्वास से भरे हुए हैं और इसलिए कांग्रेस के नेता भी फील गुड महसूस कर रहे हैं, ऐसा कहा, सुना और माना जा रहा है.
मौके और मूड का फायदा तो उठा ही रहे हैं
एक बात जरूर है कि राहुल गांधी अब नेताओं की बातों और पब्लिक के मूड का पूरा फायदा उठाने लगे हैं. निश्चित तौर पर इसे राहुल गांधी की शख्सियत और सलाहकारों की टीम में बदलाव का नतीजा तो माना ही जा सकता है. कांग्रेस नेता और मौके तो बीजेपी के नेता ही एक एक करके उपलब्ध कराते जा रहे हैं - और गुजरात में कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम ने विकास मॉडल को लेकर कैंपेन चला कर लोगों का मूड तो बदल ही दिया है. कहना मुश्किल होगा क्या ये मूड चुनाव तक बना रहेगा?
पहले सुषमा स्वराज और अब यशवंत सिन्हा की बातें कांग्रेस के राजनीतिक रूप से काफी पौष्टिक साबित हो रही हैं. टीम राहुल फायदा उठाने में कसर भी बाकी नहीं रख रही. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा करने के लिए कहा था कि भारत ने जहां आईआईटी और आईआईएम दिये तो पाकिस्तान ने लश्कर और जैश जैसे दहशतगर्द. ये सुनते ही तपाक से राहुल की ओर से सुषमा स्वराज को शुक्रिया कहा गया है - कांग्रेस की उपलब्धियां गिनाने के लिए.
अब बीजेपी के सीनियर नेता और अटल बिहार वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस में अपने आर्टिकल में मोदी सरकार के वित्र मंत्री अरुण जेटली को कठघरे में खड़ा कर दिया है. सिन्हा के बेटे मोदी कैबिनेट में मंत्री जरूर हैं लेकिन खुद की पूछ न होने से वो मौजूदा नेतृत्व पर पहले भी हमलावर रहे हैं.
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों और खास तौर पर जीएसटी और नोटबंदी को लेकर उपजे गुस्से को राहुल गांधी पूरी तरह भुनाना चाहते हैं. यशवंत सिन्हा का बयान राहुल की बातों का मजबूती से समर्थन कर रहा है.
नोटबंदी को याद करते हुए राहुल गांधी ने गुजरात में एक वाकया सुनाया, 'ये खबर सुन कर मनमोहन सिंह सकते में आ गए. 20 सेकेंड तक चुप रहने के बाद बोले कि राहुल आपने अभी जो मुझे बताया मैं उसके सदमे से उबरने की कोशिश कर रहा हूं.' आपको याद होगा पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को देश के साथ आपराध करार दिया था.
तीन दिन तो गुजारे गुजरात में
राहुल गांधी के ताजा गुजरात दौरे के मुख्य तौर पर दो कारण रहे. एक वजह तो राज्य सभा चुनाव में अमित शाह पर अहमद पटेल की जीत रही. दूसरी वजह गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव हैं. चुनाव के ही आसपास राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंपे जाने के संकेत दिये जा चुके हैं. गुजरात चुनाव के नतीजे जो भी होने जा रहे हों, लेकिन इतना तो साफ है कि कांग्रेस के लिए फायदेमंद रहने वाला है - खास तौर पर राहुल गांधी के लिए. अमेरिकी दौरे में राहुल गांधी ने जो भी अनुभव अर्जित किये हों - गुजरात में उनका काफी बदला रूप सामने आया है. जो तीन दिन राहुल गांधी ने गुजरात में गुजारे वो पूरी तरह भक्तिभाव में डूबे नजर आये. सुबह की शुरुआत तो मंदिर से ही होती रही. बाद में भी वो कभी किसी मंदिर तो कभी नवरात्र के दुर्गापूजा पंडाल में नजर आये.
राहुल गांधी के इस भक्तिभाव को कांग्रेस के एजेंडे से जोड़ कर देखा जा रहा है. कांग्रेस हमेशा अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि पेश करती आई है. हालांकि, इसे पहले राहुल गांधी अयोध्या में भी मंदिर जाकर दर्शन पूजन कर चुके हैं. संभव है कांग्रेस को लगने लगा हो कि बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व सपोर्ट बेस से विरोध कर टकराना मुश्किल है, इसलिए पार्टी ने पैंतरा बदल दिया हो. वैसे भी जब चुनाव सिर पर हों और लोग गरबा उत्सव मना रहे हों तो बीजेपी को सांप्रदायिक बता कर हमला कुल्हाड़ी पर पैर मारने जैसा ही होता. सोनिया गांधी तो गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मोदी को मौत का सौदागर बोल कर नतीजे देख ही चुकी हैं.
राहुल के पहुंचने से पहले से ही कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम जबरदस्त कैंपेन चलाया - 'विकास गांडो थायो छे'. हिंदी में इसका मतलब है - 'विकास पागल हो गया है', लेकिन कहने का लहजा कुछ इस तरह है जैसे लगे कि 'विकास पगला गया है'.
कैंपेन को आगे बढ़ाते हुए राहुल गांधी भी पूछते हैं - 'केम छो?' बिलकुल मोदी वाले ही अंदाज में. फिर विकास का जिक्र छेड़ते हैं और जवाब मिलता है - 'विकास गांडो थायो छे'.
निशाने पर मोदी ही रहते हैं, राहुल गांधी कहते हैं - 'लोगों में सरकार के खिलाफ गुस्सा है. मोदी जी ने एक के बाद एक इतने झूठ बोले कि विकास पागल हो गया. इसे पागलखाने से बाहर लाना होगा.'
फिर राहुल गांधी का टारगेट मोदी का स्लोगन 'सबका साथ सबका विकास' होता है. वो समझाते भी हैं - मोदी का गुजरात मॉडल फेल हो चुका है. अब पुराने अमूल मॉडल को फिर से लाने की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चल सके. कांग्रेस यहां सरकार बनाएगी और सब लोगों को साथ लेकर चलेगी. गुजरात एक बार फिर देश को रास्ता दिखाएगा.
तो क्या समझा जाये? राहुल गांधी मोदी के ही दांव से उन्हें उन्हीं के गढ़ में मात देने की तैयारी से आगे बढ़ रहे हैं. वो गुजरात के लोगों से कनेक्ट होने के लिए पुरानी बातों का हवाला दे रहे हैं. वो गुजरात में ही गुजरात का पुराना मॉडल पेश कर रहे हैं. और अगर ये दांव कामयाब रहा तो आगे चल कर कांग्रेस भी लोगों को गुजरात मॉडल ही समझाएगी. जिस गुजरात मॉडल को उछाल कर मोदी दिल्ली पहुंचे उसी को पागल करार दे कांग्रेस पहले अहमदाबाद और फिर दिल्ली का सफर तय करना चाहती है.
अब अगर नवंबर में राहुल गांधी कांग्रेस की कमान संभाल लेते हैं तो इतना क्रेडिट तो बनता ही है कि गुजरात ने उन्हें आखिरकार कांग्रेस अध्यक्ष बना ही दिया. राहुल गांधी के लिए ये उपलब्धि भी कम है क्या कि अब वो निर्विरोध यानी बगैर किसी अंदरूनी विरोध के अध्यक्ष बन सकते हैं.
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