जिस तालिबान ने अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मोम्मद नजीबुल्लाह अहमदजई को दर्दनाक मौत दी और फिर अमेरिका के दुश्मन नं. वन ओसामा बिन लादेन को पनाह दी, उसी से अमेरिका अब समझौता करना चाहता है. जिसेे नजीबुल्लाह का अंंत याद न हो, उन्हें बता दें कि तालिबान से अपनी जान बचाने के लिए नजीबुल्लाह यूनाइटेड नेशन्स की बिल्डिंग में घुस गए थे, लेकिन तालिबानियों ने उन्हें घसीटकर बाहर निकाला. 27 सितंबर 1996 की सुबह उन्हें मरने तक पीटा गया. ये भी नहीं भूलना चाहिए कि उनकी मौत से पहले उनके गुप्तांग काट दिए गए थे और उनकी खून से लथपथ बॉडी को ट्रक के पीछे बांधकर घसीटा गया. और उसके बाद शव को बिजली के खंभे से लटका दिया गया, जहां से जनता आती-जाती रहती है.
ट्रंप सरकार में स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता ग्लिन डेविस कहते हैं कि काबुल में यूनाइटेड नेशन्स प्रोटेक्शन का उल्लंघन और नजीबुल्लाह की हत्या वाकई खेदजनक घटना थी. उनका शासन शरीयत-आधारित था. जो सिर्फ आधुनिकता का विरोधी था, और पश्चिमी सभ्यता का विरोधी था. डेविस आगे कहते हैं कि उस समय अमेरिका को उम्मीद थी कि तालिबान एक अंतरिम सरकार बनाएगा, जो राष्ट्रव्यापी सुलह की प्रक्रिया शुरू कर सकता है.
इमरान खान से मुलाकात के पीछे निजी स्वार्थ
अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी प्रवक्ता ग्लिन डेविस की भाषा बोलते से दिख रहे हैं. ट्रंप को उम्मीद है कि तालिबान सीजफायर को स्वीकार कर लेगा, जिससे अमेरिका को उस युद्ध से बाहर निकलने में मदद मिलेगी, जो उसने 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमलों के बाद शुरू किया था. देखना होगा कि तालिबान इस शांति समझौते से इनकार ना कर दे और...
जिस तालिबान ने अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मोम्मद नजीबुल्लाह अहमदजई को दर्दनाक मौत दी और फिर अमेरिका के दुश्मन नं. वन ओसामा बिन लादेन को पनाह दी, उसी से अमेरिका अब समझौता करना चाहता है. जिसेे नजीबुल्लाह का अंंत याद न हो, उन्हें बता दें कि तालिबान से अपनी जान बचाने के लिए नजीबुल्लाह यूनाइटेड नेशन्स की बिल्डिंग में घुस गए थे, लेकिन तालिबानियों ने उन्हें घसीटकर बाहर निकाला. 27 सितंबर 1996 की सुबह उन्हें मरने तक पीटा गया. ये भी नहीं भूलना चाहिए कि उनकी मौत से पहले उनके गुप्तांग काट दिए गए थे और उनकी खून से लथपथ बॉडी को ट्रक के पीछे बांधकर घसीटा गया. और उसके बाद शव को बिजली के खंभे से लटका दिया गया, जहां से जनता आती-जाती रहती है.
ट्रंप सरकार में स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता ग्लिन डेविस कहते हैं कि काबुल में यूनाइटेड नेशन्स प्रोटेक्शन का उल्लंघन और नजीबुल्लाह की हत्या वाकई खेदजनक घटना थी. उनका शासन शरीयत-आधारित था. जो सिर्फ आधुनिकता का विरोधी था, और पश्चिमी सभ्यता का विरोधी था. डेविस आगे कहते हैं कि उस समय अमेरिका को उम्मीद थी कि तालिबान एक अंतरिम सरकार बनाएगा, जो राष्ट्रव्यापी सुलह की प्रक्रिया शुरू कर सकता है.
इमरान खान से मुलाकात के पीछे निजी स्वार्थ
अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी प्रवक्ता ग्लिन डेविस की भाषा बोलते से दिख रहे हैं. ट्रंप को उम्मीद है कि तालिबान सीजफायर को स्वीकार कर लेगा, जिससे अमेरिका को उस युद्ध से बाहर निकलने में मदद मिलेगी, जो उसने 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमलों के बाद शुरू किया था. देखना होगा कि तालिबान इस शांति समझौते से इनकार ना कर दे और अफगानिस्तान के शहरों पर एक बार फिर से 1996 जैसा खतरा मंडराने लगे. इसी सप्ताह ट्रंप पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से मिले थे. उनकी मुलाकात की गर्मजोशी के पीछे कई निजी हित भी थे. वह पाकिस्तान के जरिए अफगानिस्तान के साथ एक खास समझौता करना चाहता है, जिसकी कीमत सारी दुनिया को चुकानी पड़ सकती है.
महिला अधिकारों को लेकर गढ़ा जा रहा झूठ
इस्लामाबाद लंबे समय से मानता है कि तालिबान में पश्ताे राष्ट्रवादी लोग हैं, ना कि ग्लोबल जिहादी, जो महिलाओं के अधिकार और डेमोक्रेसी की बात करें. ट्रंप चाह रहे हैं कि इस्लामाबाद ये सुनिश्चित करे कि तालिबान में ऐसा ही हो. दोहा समझौते से ही ये साफ है कि तालिबान से अभी कोई सीधी बात नहीं हो रही है. इस समझौते के 3 वर्जन हैं. अंग्रेजी वर्जन सुनिश्चित करता है कि महिलाओं को राजनीति, समाज, शिक्षा और कल्चरल अफेयर्स से जुड़े सभी अधिकार मिलें. लेकिन इसका पश्ताे वर्जन, जो तालिबान के हिसाब से उसका आधिकारिक वर्जन है, उसमें महिलाओं के अधिकारों की कोई बात ही नहीं है. यानी दुनिया को अंग्रेजी वर्जन दिखेगा, जो कहेगा कि महिलाओं को हर अधिकार दिया जाता है, जो कोरा झूठ है. दरअसल, पश्ताे वर्जन तालिबान में लागू होगा, जिसमें महिलाओं को कोई अधिकार नहीं दिए जाएंगे और उन्हें दबाकर रखा जाएगा. अंग्रेजी और डारी वर्जन में ऐसा भी कुछ नहीं लिखा है कि शांति समझौते के तहत विदेशी सेनाओं को हटाया जाएगा. हालांकि, पश्ताे वर्जन में ये बात लिखी है.
इस्लामिक सिस्टम लागू करना चाहता है तालिबान
अफगानिस्तान में शांति समझौते के लिए पार्टियां देश में इस्लामिक सिस्टम लागू करने के लिए तैयार हो गई हैं. ये साफ करता है कि अफगानिस्तान के मौजूदा सिस्टम को हटाया जाएगा, जो धार्मिक सिद्धांतों पर आधारित है. तालिबान के हिसाब से इसे इस्लामिक सिस्टम कहना ही सही होगा.
तालिबान रिपब्लिकन सिस्टम क्यों नहीं अपनाना चाहता है, ये जानना भी जरूरी है. यूनाइटेड नेशन्स के एक्सपर्ट की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक हम ये जानते हैं कि तालिबान ग्लोबल जिहादियों के ग्रुप अल कायदा के साथ मिलजुल कर काम कर रहा है. तालिबान के नए यंग कमांडर ग्लोबाल जिहाद को फॉलो करते हैं और अफगानिस्तान में उनकी ताकत में जरा सी कमी को वह अपनी हार जैसा समझते हैं. आपको बता दें कि अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्से में तालिबान की शैडो सरकार का ही राज चलता है और उन्हें पैसे मिलते हैं ड्रग्स की स्मगलिंग और कारोबारियों पर टैक्स लगाने से.
सिर्फ आईएसआई कर सकता है ट्रंप की मदद
ट्रंप के अफगानिस्तान की पॉलिसी बना रहे जलमय खलीलजाद ने ट्रंप से ये साफ कर दिया है कि सिर्फ आईएसआई ही है जो उनकी मांगों को तालिबान पर थोप सकता है. पैसों की दिक्कत से जूझ रहे पाकिस्तान के सामने सिवाय को-ऑपरेट करने के और कोई रास्ता भी नहीं बचा है. हालांकि, कोई भी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि पाकिस्तान ट्रंप की इच्छाओं को तालिबान के ऊपर थोप सकता भी है या नहीं. वैसे, इतिहास गवाह है कि इस कहानी का अंत बुरा ही होने वाला है.
चीन और रूस दोनों ही इस समय तालिबान को ताकत देने का काम कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि वह तालिबान के जरिए इस्लामिक स्टेट, चेचेन और उइघर जिहादियों पर कब्जा किया जा सकता है. भारत के लिए बहुत ही बुरी खबर है. पीएम मोदी पहले ही ट्रंप को तालिबान के साथ शांति समझौते के रिस्क के बारे में बता चुके हैं. खैर, इतना कुछ होने के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि ट्रंप किसी भी हालत में पीछे हटने वाले हैं, बल्कि यूं लगता है मानो उन्होंने तय कर लिया है कि इमरान खान के साथ उनके रोमांस की कीमत पूरी दुनिया चुकाएगी.
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